उड़ीसा ने खिड़की खोली बिहार दरवाज़ा खोलेगा।
प्रदीप सिंह।
इस समय जो बिहार का विधानसभा चुनाव चल रहा है, मेरा मानना है कि वह नए राजनीतिक बदलाव का कारण बनेगा। इस बदलाव की शुरुआत हुई उड़ीसा से। उड़ीसा ने खिड़की खोली थी। बिहार दरवाजा खोलेगा। बिहार विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु में चुनाव होने वाला है। ये सभी चुनाव 2026 में होंगे। बीजेपी बड़े लंबे समय से पूरब के दरवाजे में प्रवेश करने की कोशिश कर रही थी। यह दरवाजा उड़ीसा से खुला। दूसरा बड़ा दरवाजा है बिहार। यहां बीजेपी की विचित्र स्थिति है। उसका एक पांव तो दरवाजे के अंदर है लेकिन दूसरा पांव रखने की उसको जगह नहीं मिल रही है। दूसरा पांव जेडीयू का है जो टस से मस नहीं हो रही है बल्कि इस बार के चुनाव में तो उसके और मजबूत होने के आसार हैं। बीजेपी के लिए पूरब का सबसे बड़ा द्वार पश्चिम बंगाल है। वैसे तो यह जरूरी नहीं कि अगर बीजेपी और उसका गठबंधन अगर बिहार में चुनाव जीते तो पश्चिम बंगाल में भी जीत जाए। लेकिन जीत का थोड़ा बहुत असर तो पड़ता ही है।

उड़ीसा में सालों बाद परिवर्तन आया। वहां 1999 में बीजेडी और बीजेपी की सरकार बनी थी। 2009 में गठबंधन टूट गया। उसके बाद से बीजेपी कभी सत्ता में नहीं रही। 2024 में वह सत्ता में आई है। यानी आजादी के बाद पहली बार वहां उसकी सरकार बनी है। इसी तरह त्रिपुरा और कई अन्य राज्यों में बीजेपी की पहली बार सरकार बनी है। इसी तरह लगता है कि बंगाल भी बदलाव के लिए तैयार है। अब गेंद भाजपा के पाले में है कि उसकी तैयारी कितनी है। तृणमूल कांग्रेस जब से सत्ता में आई है, इस समय वह अब तक की सबसे कमजोर स्थिति में है और भारतीय जनता पार्टी अब तक की सबसे मजबूत स्थिति में। हालांकि 2019 के चुनाव में भाजपा ने राज्य में लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छा परफॉर्म किया था और 18 सीटें जीत ली थीं, लेकिन उसके बाद 2021 में विधानसभा चुनाव में उस परफॉर्मेंस को रिपीट नहीं कर पाई।
बिहार में कोई संदेह नहीं है कि इस बार भी एनडीए जीतने जा रहा है और शायद उसकी जीत एकतरफा होगी। तो सकता है कि एनडीए की 2010 की जो जीत थी, लगभग उसी के समान इस बार भी जीत हो। सीटों की संख्या में थोड़ा बहुत हेरफेर हो सकता है लेकिन बहुत ज्यादा नहीं होगा। 2010 के बाद राज्य में आरजेडी को पूरी तरह हाशिए पर समेटने का काम हो सकता था, जब वह 23 सीटों पर सिमट गई थी, लेकिन नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षा जागी और 2013 में वे एनडीए छोड़कर चले गए और 2015 का चुनाव महागठबंधन में आरजेडी के साथ लड़े। इससे आरजेडी का रिवाइवल हो गया। आरजेडी की हालत इस समय 2010 के बाद सबसे ज्यादा खराब है। 2015 और 2020 दोनों चुनाव में उसकी स्थिति अच्छी थी। 2020 में तो वह 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बन गई थी। बिहार में अगर भाजपा और एनडीए की जीत होती है तो यह केवल बिहार में सत्ता बनाए रखने की जीत नहीं होगी बल्कि इसका ज्यादा असर बिहार से बाहर पड़ने वाला है।
बीजेपी एक बड़े लक्ष्य को लेकर चल रही है। वह सही मायने में ऑल इंडिया पार्टी बनने की ओर बढ़ रही है। हालांकि दक्षिण में उसका उस तरह का उसका प्रभाव नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया था। लेकिन अब बीजेपी को उस नारे की जरूरत नहीं है क्योंकि कांग्रेस खुद ही इस काम में लग गई है। पिछले 11 सालों में आप कोई एक राज्य नहीं बता सकते, जहां कांग्रेस पार्टी ने अपना संगठन जमीन पर मजबूत करने की कोशिश की हो। बल्कि इसके उल्टा हुआ है। जिन राज्यों में संगठन मजबूत था, वहां भी कमजोर होता गया है। कांग्रेस के निशाने पर उसकी अपनी ही पार्टी की दो सरकारें हैं। कर्नाटक और हिमाचल। हिमाचल जहां 2027 दिसंबर में विधानसभा चुनाव होना है और कर्नाटक जहां पर अप्रैल-मई 2028 में होना है, दोनों राज्यों से कांग्रेस की विदाई होना लगभग तय है और इसमें बीजेपी से ज्यादा योगदान कांग्रेस के लोगों का होगा। तो यह जो परिवर्तन हो रहा है, इसमें बिहार के विधानसभा चुनाव का नतीजा कैटलिस्ट का काम करेगा। यानी इस बदलाव की प्रक्रिया को तेज कर देगा।
पश्चिम बंगाल और उसके बाद अगर दक्षिण के राज्यों की भी बात कर लें तो तमिलनाडु और केरल में भी भाजपा की परफॉर्मेंस पहले से बेहतर होने जा रही है। तमिलनाडु में इस बार अभिनेता विजय की पार्टी भी मैदान में होगी। वे वहां के सुपर स्टार हैं। हालांकि करूर का जो वो हादसा हुआ है, उसके बाद से वे हिले हुए हैं। वे अभी तय नहीं कर पा रहे हैं कि अकेले लड़ें या गठबंधन में। गठबंधन में लड़ेंगे तो जाहिर है कि वे डीएमके के साथ तो नहीं जाने वाले। अगर जाएंगे तो एनडीए के साथ जाएंगे। एनडीए में भी उनके सामने प्रश्न है कि केवल एआईएडीएमके के साथ जाएं या बीजेपी और एआईएडीएमके के साथ एनडीए में शामिल हों। इसका फैसला दिसंबर-जनवरी तक होगा। लेकिन विजय का कॉन्फिडेंस जो करूर की दुर्घटना से पहले था, वह अब नहीं रह गया है। इसी तरह से केरल में भी बदलाव होता हुआ दिखाई देगा। लेकिन वह बदलाव की प्रक्रिया बहुत धीमी है। बिहार का चुनाव नतीजा उसको तेज करेगा। इसलिए नहीं कि वहां जमीन पर कोई बड़ा कारण बन जाएगा बल्कि इसलिए कि कांग्रेस और और उसके कार्यकर्ता और ज्यादा हतोत्साहित होंगे। इसी तरह से 2026 मे असम में भी बीजेपी की हैट्रिक लगने जा रही है। हालांकि पिछले महीने भर से स्थिति में थोड़ा बदलाव आया है। बीजेपी की स्थिति थोड़ी कमजोर हुई है, लेकिन कांग्रेस की स्थिति मजबूत नहीं हुई है। कांग्रेस के पास कोई कैंपेनर नहीं है। साथ ही उसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है।

बिहार में राहुल गांधी वोट चोरी का नारा लेकर चले थे और उनके सबसे बड़े सहयोगी आरजेडी और तेजस्वी यादव भी अब उस मुद्दे को उठाने को तैयार नहीं हैं। राहुल गांधी अपनी ही दुनिया में रहते हैं। जमीनी राजनीति से उनका कोई वास्ता नहीं होता। अभी तक उन्होंने जो किया है उससे कांग्रेस का सिर्फ नुकसान हुआ है। तो बिहार विधानसभा चुनाव का नतीजा बीजेपी के ऑल इंडिया पार्टी सही मायने में बनने में एक नई छलांग लगाने के लिए आधारभूमि तैयार करेगा। पश्चिम बंगाल इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। पश्चिम बंगाल में अगर ममता बनर्जी सत्ता से बाहर होती हैं तो भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में पूरे देश में जो माहौल बनेगा, वह एक नई हवा चलाएगा। 2014 के बाद ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक कहते थे कि कांग्रेस से लड़ने में तो बीजेपी आसानी से जीत जाती है लेकिन क्षेत्रीय दलों से नहीं जीत पाती। बिहार और पश्चिम बंगाल की जीत उस मिथक को हमेशा के लिए दफना देगी। इसीलिए 26 में होने वाले चुनाव ममता बनर्जी, एमके स्टालिन और केरल में सीपीएम के लिए बड़ी चुनौती हैं। केरल में भाजपा कांग्रेस को रिप्लेस कर नंबर दो हो जाएगी, ऐसी संभावना अभी तो दिखाई नहीं देती है लेकिन यह जरूर है कि बीजेपी केरल और तमिलनाडु दोनों राज्यों में बड़ी छलांग लगाने को तैयार है।
पश्चिम बंगाल में भाजपा ममता बनर्जी को राजनीतिक रूप से नहीं कानूनी और संवैधानिक रूप से भी घेर रही है। ममता बनर्जी कानून व्यवस्था की स्थिति और घोटाले को लेकर जितना डरी हुई हैं उससे कई गुना ज्यादा भय उन्हें एसआईआर से है। इलेक्शन कमीशन ने पश्चिम बंगाल समेत 12 राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में एसआईआर कराने का फैसला किया है और उसकी प्रक्रिया शुरू होने मात्र से तृणमूल कांग्रेस में भारी खलबली है। ममता बनर्जी बहुत बड़े संकट में घिर गई हैं। उनको लगता है कि अगर एसआईआर सफलतापूर्वक जैसे बिहार में हुआ, उसी तरह से बंगाल में भी हो गया तो उनका तो जनाधार ही चला जाएगा क्योंकि उनके जनाधार का एक बड़ा हिस्सा घुसपैठियों से है। अगर उनका नाम कट जाता है तो यह ममता बनर्जी पर बड़ी चोट होगी। इसलिए ममता बनर्जी कह रही है कि हम एसआईआर होने नहीं देंगे। हालांकि वह इसे रोक नहीं सकती हैं। पहले भी वे कह रही थीं कि सीएए को लागू नहीं करने देंगे, लेकिन उसे भी रोक नहीं पाईं क्योंकि संसद से पास कोई भी कानून को लागू होने से कोई भी राज्य सरकार रोक नहीं सकती है। तो बिहार विधानसभा का चुनाव के नतीजे के बाद इंडी नाम का गठबंधन बचेगा भी कि नहीं, यह कहना मुश्किल है। हालांकि वह इतनी तरफ से दरक चुका है कि उसका अस्तित्व क्यों टिका है? किस तरह किस वजह से टिका है यह समझना मुश्किल है। व्यावहारिक रूप से वह है नहीं, कागज पर जरूर बना हुआ है। तो बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे का इंतजार कीजिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



