सेना पर टिप्पणी के बाद क्या उन पर देशद्रोह का केस नहीं चलना चाहिए।
प्रदीप सिंह।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार में चुनाव रैली में देश के लिए बहुत ही खतरनाक बात कही है। चार नवंबर को उन्होंने कहा कि इस देश में सारा सिस्टम चाहे वह न्यायपालिका हो, संवैधानिक संस्थाएं हो, नौकरशाही हो और चाहे सेना हो, उसे 10% लोग चला रहे हैं। यह सीधे-सीधे देश के सवर्णों के प्रति घृणा फैलाने की कोशिश है। राहुल सवर्णों के प्रति घृणा फैलाएं, उनके खिलाफ बोले, इस बात में ऐतराज नहीं है। राजनीति में यह सब खेल चलते रहते हैं, लेकिन जाति की राजनीति में सेना को घसीटना देशद्रोह से कम नहीं है। सेना का मोटो है- सेवा परमो धर्म। सेना में जो भर्ती होती है, जाति देखकर नहीं होती है। फिजिकल फिटनेस और दूसरी जो परीक्षाएं हैं, उसके आधार पर होती हैं। सेना में अंग्रेजों के समय जाति के आधार पर रेजीमेंट बनाई गई और जाति के आधार पर रेजीमेंट बनाने का उद्देश्य यह था कि समाज में जाति के आधार पर बंटवारा हो। 1871-72 में देश में जो पहला सेंसस हुआ, जिसे एक ब्रिटिश ऑफिसर ने किया था, पहली जाति जनगणना उसी समय हुई थी। उसने कहा था- जब तक जाति रहेगी तब तक भारत एक नहीं हो सकता। राहुल गांधी उसी का एजेंडा चला रहे हैं।

आजादी के बाद जातियों के नाम पर बने रेजीमेंट धीरे-धीरे खत्म कर दिए गए। कुछ अभी भी बचे हुए हैं। लेकिन जातियों के नाम पर जो रेजीमेंट बचे हुए हैं, वहां भी उन जातियों के लोग बहुत कम हैं। उनमें सभी जातियों और धर्म के लोग हैं। भारतीय सेना का जो लक्ष्य है, जो उद्घोष है-राष्ट्र प्रथम, उसको राहुल गांधी ने एक तरह से अपमानित किया है। राहुल गांधी ने यह पहली बार नहीं किया। वे ऐसा करते रहे हैं। इसका राजनीतिक रूप से उनको जवाब दिया जाता रहा है। पिछले दिनों भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल ने कहा था कि सीमा पर चीन के सैनिक भारतीय सैनिकों को पीट रहे हैं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में आया तो उसने राहुल की भर्त्सना की और कहा कि अगर आप सच्चे भारतीय हैं तो इस तरह की भाषा नहीं बोल सकते। लेकिन राहुल गांधी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह न तो किसी संवैधानिक संस्था को मानते हैं और न ही चुनी हुई सरकार को मानते हैं। राहुल गांधी को क्या अपने परिवार और अपनी पार्टी का इतिहास नहीं पता है? इस देश के पहले प्रधानमंत्री उनके पिता के नाना थे जवाहरलाल नेहरू। काका कालेलकर कमेटी की बैकवर्ड कम्युनिटी को आरक्षण देने की जो रिपोर्ट थी, उसको किसने ठंडे बस्ते में डाला? जवाहरलाल नेहरू ने डाला। उसके बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने डाला। मंडल कमीशन की रिपोर्ट को भी इंदिरा गांधी ने ही ठंडे बस्ते में डाल दिया था और जब वीपी सिंह की सरकार उसे लेकर आई तो राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने संसद में उसका विरोध किया। लगभग दो घंटे के अपने भाषण में राजीव ने कहा कि अगर यह रिपोर्ट लागू हुई और आरक्षण लागू हुआ तो देश बर्बाद हो जाएगा। राहुल गांधी को अगर आजकल दलितों, जनजातियों और पिछड़ा वर्ग के लोगों की इतनी चिंता हो गई है तो उनको पहले देखना चाहिए कि उनकी मां की बनाई हुई संस्था राजीव गांधी फाउंडेशन में इन वर्गों का कितना प्रतिनिधित्व है। समाज सुधार की बात तो घर से ही शुरू होती है। राहुल गांधी बताएं कि उनके पिता, उससे पहले उनकी दादी और उससे पहले उनके पिता के नाना के शासनकाल में कितने लोगों को प्रतिनिधित्व दिया गया? कब उन्होंने इस वर्ग का समर्थन किया। पुरानी बात छोड़ भी दें तो यूपीए सरकार में उच्च शिक्षा में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिलाने की व्यवस्था अर्जुन सिंह ने की थी, जो उस समय मानव संसाधन मंत्री थे लेकिन अगली बार 2009 में जब सरकार बनी तो उनको सरकार से बाहर कर दिया गया। इस परिवार का यह है ट्रैक रिकॉर्ड।

राहुल गांधी को लग रहा है कि भारत को अगर तोड़ना है तो जातियों में बांटो। अभी तक वह राजनीति और नौकरशाही की बात करते थे, तब तक बर्दाश्त के काबिल था। लेकिन सेना और न्यायपालिका के बारे में वे उस समय बोल रहे हैं, जब इस समय देश का मुख्य न्यायाधीश दलित वर्ग से आता है। राहुल गांधी जो कुछ बोल रहे हैं, उसके पीछे उद्देश्य सुधार नहीं है। उनका सीधा उद्देश्य विभाजन है। समाज का विभाजन, राजनीति का विभाजन और उसके बाद देश का विभाजन। इसके लिए उनको देश के अंदर से और देश के बाहर से मदद लेने में कोई संकोच नहीं है। वे विदेश में जाकर कहते हैं कि भारत में जनतंत्र खत्म हो रहा है। आप आइए बचाइए और वे भारत का संबंध सुधारने के लिए कहां जाते हैं? कोलंबिया। कोलंबिया, जो दुनिया में ड्रग्स रैकेट के लिए जाना जाता है। ड्रग्स के व्यापार का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। अब कोलंबिया से उनका क्या नाता है? कोई निजी रिश्ता है या नहीं है। बहुत से लोग बहुत सी बातें करते हैं। आखिर राहुल गांधी कोलंबिया क्यों गए थे? इसका जवाब कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी को देना चाहिए। पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा कांग्रेस पार्टी की सरकारों के समय नहीं मिला। उसे यह दर्जा तब मिला, जब एक पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति नरेंद्र मोदी देश का प्रधानमंत्री बना। वैज्ञानिक, लेखक और वक्ता डॉक्टर आनंद रंगनाथन ने राहुल गांधी के इस बयान के बाद टिप्पणी की कि राहुल गांधी अरुंधति राय का मेल वर्जन नजर आ रहे हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि कभी अरुंधति राय ने कहा था कि गोवा में हिंदुत्ववादी और सवर्ण भारतीय सेना ने ईसाइयों पर अत्याचार किए और उनकी हत्या की। अब आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि ये लोग देश के विरोध में कितना नीचे गिर सकते हैं। अरुंधति राय के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ था। अब यह नहीं मालूम कि उसका क्या स्टेटस क्या है। मुकदमा खत्म हो गया या चल रहा है। नई न्याय संहिता भारतीय न्याय संहिता में इस कानून में संशोधन किया गया है। राष्ट्रद्रोह को परिभाषित किया गया है। तो मेरा मानना है कि राहुल गांधी के खिलाफ राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए यह फिट केस है। राहुल का बयाान सेना को डीमोरलाइज करने, देश की सुरक्षा को खतरे में डालने की कोशिश और देश की सारी संवैधानिक संस्थाओं का अपमान है। उनकी कोशिश है कि देश में अराजकता फैले जिससे देश का बंटवारा आसान हो जाए। राहुल गांधी एक विध्वंसक नेता के रूप में सामने आए हैं। वे मोदी विरोध का आवरण का ओढ़े हें दरअसल उनका लक्ष्य भारत विरोध है। राहुल अगर नौकरशाही और न्यायपालिका में इस वर्ग के कम प्रतिनिधित्व की बात करते हैं तो सबसे ज्यादा समय तो देश में कांग्रेस की सरकार रही है। आपकी पार्टी और आपका परिवार इस आरोप से कैसे बच सकता है? राहुल की बातों से कमजोर वर्ग को भी सचेत हो जाना चाहिए। दरअसल राहुल गांधी आरक्षण को खत्म करने का आधार तैयार कर रहे हैं। जब वह कहते हैं कि आजादी के बाद से कमजोर वर्ग के लोगों को प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो इसका मतलब वे कह रहे हैं कि आरक्षण की व्यवस्था फेल हो गई है। तो उनका अगला कदम होगा कि आगे चलकर आरक्षण को खत्म कर देना चाहिए।

राहुल गांधी को ऐसी व्यवस्था चाहिए जो उनको प्रधानमंत्री बना सके। वरना उनकी नजर में सब बिके हुए हैं। राहुल गांधी को जो व्यवस्था प्रधानमंत्री न बनाए वह उनके लिए किसी काम की नहीं है। उनको यह समझ में आ गया है कि चुनाव लड़कर वे जीत नहीं सकते। इतनी हार उन्होंने देख ली हैं कि अब वे थक चुके हैं। तो उनको लग रहा है कि दूसरा रास्ता अपनाओ। उनकी कोशिश अराजकता फैलाने की रहती है। इसीलिए आजकल वे जेन जी की बात करते हैं। देश की सारी संवैधानिक संस्थानों को जातिवादी बताकर वे उनकी सेवा, उनके त्याग और उनकी प्रतिभा का अपमान कर रहे हैं। राहुल को लगता है कि वे राज परिवार से हैं। किसी का भी अपमान करना और इस देश पर राज करना उनका जन्मसिद्ध अधिकार है। उस अधिकार से उन्हें वंचित कर दिया गया है तो जाहिर है कि वह व्यवस्था तो ठीक हो नहीं सकती है। अगर इस देश का मतदाता ऐसा कर रहा है, राजनीतिक दल कर रहा है, संवैधानिक संस्थाएं कर रही हैं तो वे मानते है कि सब बिके हुए हैं।
अब वे वोट चोरी का अभियान चला रहे हैं। इसका कितना असर है कि कैमरा हटाकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं से ही बात कर लीजिए तो उनमें से कोई राहुल गांधी की बात का समर्थन करने को तैयार नहीं होगा। राहुल गांधी के पास किसी बात का कोई प्रमाण नहीं है। सिर्फ है तो कुतर्क और अराजकता का फार्मूला। सेना पर उन्होंने जो टिप्पणी की है, उसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। अब वह समय आ गया है जब सुप्रीम कोर्ट को इस टिप्पणी का कॉग्निजेंस लेना चाहिए।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



