परिवार टूट रहा… पार्टी भी टूटेगी।
प्रदीप सिंह।
फिल्मों में अक्सर आपने देखा होगा कि जब गैंगस्टर बूढ़ा हो जाता है तो उसके गैंग पर कब्जा करने के लिए उसके ही साथियों में आपस में बड़ा संघर्ष शुरू हो जाता है। सत्ता पर कब्जा करने के लिए मुगल शासकों के राज में भी भाई ही भाई की हत्या कर देता था। बेटा पिता की हत्या कर देता था। लालू परिवार में भी सत्ता का संघर्ष चल रहा है, लेकिन मैं इन उदाहरणों का इस्तेमाल नहीं करूंगा। उनके परिवार में जो कुछ चल रहा है, उसको समझने के लिए कबीर दास की एक लाइन का इस्तेमाल करना चाहूंगा- ‘साधो घर में झगड़ा भारी।’ तो लालू प्रसाद यादव के घर में भारी झगडे की बात से अब परिवार के सदस्य भी इनकार नहीं कर सकते क्योंकि लड़ाई जब घर से निकलकर सड़क पर आ जाती है तब उसका बचाव करना बहुत मुश्किल हो जाता है। वही स्थिति हो गई है।

क्या लालू प्रसाद यादव इतने अशक्त हो गए हैं कि परिवार को एक नहीं रख पा रहे हैं? क्या लालू प्रसाद यादव का सिक्का परिवार में भी चलना बंद हो गया है? 2005 के बाद से बिहार की जनता में चलना तो बंद हो ही गया था। वह तो 2015 में नीतीश कुमार ने संभाल दिया, नहीं तो लालू प्रसाद यादव कब के राजनीति से पूरी तरह से बाहर हो गए होते। लेकिन अभी जो कुछ चल रहा है उसके इतनी जल्दी होने की उम्मीद शायद ही किसी को रही होगी। हालांकि झगड़े के इस सिलसिले की शुरुआत काफी पहले से हो चुकी है। लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की पत्नी ने जिस तरह से रोते हुए घर छोड़ा। घर वालों पर कई तरह के आरोप लगाए। मामला अदालत में गया और वह झगड़ा सड़क पर आया। उसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तेज प्रताप यादव को लालू प्रसाद यादव ने घर और पार्टी दोनों से निकाल दिया, लेकिन अभी घटनाक्रम रुका नहीं है।
उनकी एक बेटी रोहिणी आचार्य सिंगापुर में रहती हैं। उसने पिता की जान बचाने के लिए अपनी किडनी दी थी। तो पिता की जान बचाने वाली बेटी ही अपने पिता के घर में ही सुरक्षित नहीं है। यह मैं नहीं कह रहा हूं। उनकी बेटी ही कह रही है। रोहिणी आचार्य ने एक्स पर पोस्ट किया कि उनके साथ बदसलूकी हुई, गाली दी गई, चप्पल फेंकी गई और उन्होंने घोषणा की कि वह परिवार, पार्टी और राजनीति से नाता तोड़ रही हैं। यह बयान देकर वे सिंगापुर वापस लौट गईं। वे पिछले दिनों ही आई थीं। 2024 में उन्होंने सारण सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ा था और हार गई थीं। उनका कहना है कि उन पर आरोप लगाया जा रहा है कि उन्होंने लालू प्रसाद यादव को अपनी किडनी पैसे और लोकसभा चुनाव के टिकट के लालच में दी। अब देखिए जिस परिवार के पास इतने पैसे हों कि जिसका बेटा बालिग होने से पहले करोड़पति बन जाए। वहां पिता को किडनी पैसे से लेकर दी गई क्या? दूसरा क्या लोकसभा का टिकट बेटी को भी बेचा गया। इस तरह के आरोपों से यह शंकाएं मन में पैदा होती हैं। अभी इसी चुनाव में एक उम्मीदवार ने आरोप लगाया था कि उनसे टिकट के लिए तीन करोड़ मांगे गए थे। उनके पास थे नहीं तो उन्होंने मना कर दिया। अब इस आरोप में कितनी सच्चाई है यह नहीं मालूम, लेकिन अगर इस तरह के आरोप लगने लगें तो वो जो कहते हैं न कि बिना आग के धुआं नहीं निकलता, तो धुआं निकल रहा है तो कुछ न कुछ तो सुलग रहा है।
आरजेडी में तेजस्वी यादव के करीबी संजय यादव पर कई तरह के आरोप लग रहे हैं। वे राज्यसभा के सदस्य हैं। माना जा रहा है कि संजय तेजस्वी के सबसे बड़े सलाहकार हैं और परिवार के कई सदस्यों का कहना है कि पार्टी और परिवार में वह सबसे बड़े विध्वंसक तत्व के रूप में मौजूद हैं। पार्टी वही चला रहे हैं। तेजस्वी यादव सिर्फ उन्हीं की सुनते हैं। संजय यादव के खिलाफ आरजेडी के अंदर इतना विरोध है, जिससे लगता है कि कुछ न कुछ समस्या तो है। अब क्या है? कितनी गहरी समस्या है पता नहीं, लेकिन रोहिणी आचार्य का सार्वजनिक रूप से यह बयान देना यह बताता है कि लालू परिवार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। आमतौर पर ऐसा होता है कि परिवार जब संकट में आता है, तब परिवार के सदस्य सारे मतभेद भुलाकर एक हो जाते हैं, लेकिन एक ऐसी भी स्थिति आती है जब लगता है कि संकट का कोई समाधान नहीं है और यह संकट स्थाई हो गया है। तब परिवार के सारे सदस्य अपनी-अपनी चिंता करने लगते हैं।

लालू परिवार में ऐसा ही होता हुआ दिखाई दे रहा है। उनकी बाकी बेटियां भी उनसे और तेजस्वी यादव से संतुष्ट हों ऐसा नहीं है। असंतोष वहां भी है, लेकिन अभी तक वह सड़जाक पर नहीं आया है। कब आ एगा कोई नहीं जानता है। अब सवाल यह है कि भाई राजनीतिक सत्ता तो चली गई। वंशवादी राजनीति में आपको पार्टी का पद विरासत में मिलता है और पार्टी अगर सत्ता में हो तो सत्ता भी विरासत में मिलती है, लेकिन जनादेश कभी विरासत में नहीं मिलता। यह बात अब तेजस्वी यादव को समझ में आ जानी चाहिए। वे जो बार-बार कहते हैं कि मैं लालू प्रसाद यादव का बेटा हूं। मुख्यमंत्री तो मैं ही बनूंगा। अरे सब जानते हैं। आपको बताने की क्या जरूरत है? तो आप बता रहे हैं या धमका रहे हैं। लालू प्रसाद यादव के बेटे हैं तो इसका मतलब वह जंगल राज का समर्थन करते हैं। जंगल राज के वारिस हैं। तो जंगल राज का जो अभिशाप है वह लालू परिवार पर लग गया है। जिस तरह से परिवार में बिखराव हो रहा है, उसका अगला कदम पार्टी में बिखराव का होगा। ये कुछ दिन तक रुक सकता है, लेकिन हमेशा के लिए नहीं रुकेगा। उसकी अंतिम परिणति पार्टी के बिखराव के रूप में ही सामने आएगी।
बहुत से लोगों के मन में सवाल उठ सकता है और मेरे मन में भी सवाल है कि जब राजनीतिक सत्ता चली गई तो अब झगड़ा किस बात का? तो आप समझिए कि राजनीतिक सत्ता जाने के बाद अब परिवार के सदस्यों को लग रहा है कि संपत्ति पर कब्जा होना चाहिए। अब जिसके हाथ में जितनी संपत्ति आ जाएगी, वही उसके पास बचेगी। इस संपत्ति के बढ़ने की उम्मीद परिवार के लोगों में खत्म हो गई है। परिवार के बाकी सदस्यों को लग रहा है कि तेजस्वी यादव सारी संपत्ति पर पालथी मारकर बैठ गए हैं। बाकी लोग उसमें हिस्सा चाहते हैं। लालू प्रसाद यादव की ऐसी स्थिति लगती नहीं कि वे परिवार में कोई फैसला कर सके। उनको जिस तरह से बिहार के मतदाता ने रिजेक्ट किय, उसी तरह परिवार के सदस्यों ने भी रिजेक्ट कर दिया है। परिवार में झगड़ा पहले शुरू हो गया है, अगला झगड़ा पार्टी के अंदर होगा क्योंकि पार्टी का जो सबसे कोर वोट था मुस्लिम और यादव, इस चुनाव में उसमें भी छीजन हुई है और यह आने वाले दिनों में बढ़ने वाला है। मुसलमानों का मसीहा होने का लालू प्रसाद यादव का दावा दम तोड़ गया है। सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी फिर से पांच सीटें जीत गई। तेजस्वी को लगता है कि पिछली बार उनको मुख्यमंत्री बनने से ओवैसी और कांग्रेस ने रोक दिया। इस बार उनको समझ में आ जाना चाहिए कि ओवैसी और कांग्रेस नहीं रोक रहे हैं। बिहार के लोग रोक रहे हैं। बिहार का मतदाता तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहता।

तेजस्वी की पार्टी इस बार सिर्फ 25 सीटें जीती है। 2010 में भी आरजेडी 23 सीटें जीती थी। मैं स्पष्ट रूप से काफी पहले से कह रहा हूं कि यह चुनाव 2010 के चुनाव जैसा है और उसके मैंने तमाम कारण भी गिनाए थे, लेकिन यह बात तेजस्वी यादव, उनकी पार्टी और उनके समर्थक दल कांग्रेस को कभी समझ में नहीं आई। कई राजनीतिक विश्लेषक हैं जो बता रहे थे कि इस बार बड़ा क्लोज कंटेस्ट है, उनको जमीन पर चलती हुई आंधी नहीं दिखाई दी। तो लालू प्रसाद यादव के परिवार में टूटन शुरू हो गई है। जिस बेटी ने लालू की जान बचाने के लिए अपनी किडनी दी, उस बेटी को अगर रोते हुए घर से जाना पड़े तो आप समझ लीजिए कि स्थिति कितनी गंभीर है और इस गंभीर स्थिति का कोई हल लालू प्रसाद यादव के पास नहीं है। परिवार के मुखिया का प्रभाव तब तक रहता है, जब तक उसके हाथ में शक्ति होती है कुछ देने की या कुछ लेने या बिगाड़ने की। लालू प्रसाद यादव दोनों स्थिति में नहीं है। इसलिए उनको कोई नहीं पूछेगा। भले ही उनके खिलाफ कोई बोलेगा नहीं। तो अब आगे परिवार में क्या होगा, पार्टी में क्या होगा? यह तेजस्वी यादव के रुख पर निर्भर करेगा। तेजस्वी यादव मेल मिलाप का रास्ता अपनाते हैं या संघर्ष का रास्ता अपनाते हैं। संघर्ष का रास्ता अपनाएंगे तो यह फाइट टू फिनिश होगा। फिर कोई एक ही सर्वाइव करेगा। और कौन करेगा यह पता नहीं है। जनता ने तो बता दिया है कि हमें इस परिवार की जरूरत नहीं है। हमें इस पार्टी की जरूरत नहीं है। हमारा जीवन इस पार्टी के बिना ज्यादा सुरक्षित है। जिस घर में बेटी तक अपने को सुरक्षित न महसूस करे उस परिवार के लोग अगर सत्ता में आ जाएं तो प्रदेश के लोगों को कैसे सुरक्षित कर सकते हैं? यह एक बड़ा प्रश्न बिहार के लोगों के सामने है।
इससे जो जनादेश आया है, इसका महत्व और बढ़ जाता है। जो भविष्य में है, वह भी बिहार के मतदाताओं ने पहले ही भांप लिया। वे समझ गए थे कि इस परिवार का समय जा चुका है। इसलिए उन्होंने इतना स्पष्ट जनादेश दिया। 20 साल की एंटी इनकंबेंसी हवा में उड़ गई। एनडीए और महागठबंधन के वोट शेयर में 10% का अंतर है। इससे आप अंदाजा लगा लीजिए कि लोगों की इच्छा क्या थी? उन्होंने बहुत स्पष्ट रूप से बताया है कि वे किसी कंफ्यूजन में नहीं थे। जिसको इस जनादेश का मतलब समझ नहीं आ रहा उसको राजनीति की समझ नहीं है। यह जो आरजेडी और कांग्रेस के लोग बोल रहे हैं, दरअसल अपने लिए विपत्ति को न्योता दे रहे हैं। इनके आने वाले दिन कभी अच्छे नहीं होने वाले हैं।

यह जो परिवार का झगड़ा बढ़ रहा है यह आने वाले दिनों में और ज्यादा बढ़ेगा। 4 दिसंबर से लैंड फॉर जॉब केस की सुनवाई है। लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, मीसा भारती, तेजस्वी यादव और उनकी एक और बहन को अदालत में पेश होना पड़ेगा। चार्जशीट फाइल हो गई है। चार्जेस फ्रेम हो गए हैं। अब सुनवाई और फैसला आना है। वैसे तो अदालत के फैसले के बारे में कोई भी अनुमान या भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए लेकिन जिस तरह का यह केस है, उसको देखते हुए लगता है कि सजा तो मिलेगी। सवाल यह है कि कितनी और कितने दिन में। तो लालू प्रसाद यादव के परिवार का राजनीतिक सफर अब थमता हुआ नजर आ रहा है। बिहार की राजनीति से यह वंशवादी परिवार बाहर होने जा रहा है। जनता ने बाहर जाने का दरवाजा खोल दिया है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



