घुसपैठियों की भगदड़ से ममता बेचैन।
प्रदीप सिंह।बिहार में किला फतह करने के बाद भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ अब पश्चिम बंगाल की ओर मुड़ गया है। वहां मार्च-अप्रैल 2026 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। ममता बनर्जी राज्य में तीन बार 2011, 2016, 2021 में जीतकर मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। अगर इस बार जीतेंगी तो यह उनका चौथा टर्म होगा, जो किसी भी क्षेत्रीय दल के लिए एक ऐतिहासिक बात होगी। तो ममता बनर्जी इस बार तीन टर्म की एंटी इनकंबेंसी का सामना कर रही हैं, लेकिन उनके सामने केवल यही चुनौती नहीं है। वे दो बार इससे पहले भी एंटी इनकंबेंसी का सामना कर चुकी हैं, लेकिन उनको कोई नुकसान नहीं हुआ। उसके दो कारण थे। एक ममता बनर्जी की अपनी निजी छवि और दूसरा मजबूत विपक्ष का अभाव। उस अभाव को पूरा करने कोशिश 2021 में भारतीय जनता पार्टी ने की थी, लेकिन उसकी तैयारी ऐसी नहीं थी कि वह ममता बनर्जी को सत्ता से हटा सके। 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा पश्चिम बंगाल में उतरी थी तो 2019 में उड़ीसा हार कर आई थी और 2020 में बिहार में उसके गठबंधन की तो जीत हो गई थी, लेकिन गठबंधन के अंदरूनी समीकरण बुरी तरह से बिगड़ चुके थे। इसके अलावा उस चुनाव में भाजपा ने ममता बनर्जी पर सीधा हमले करके भी गलती की थी। क्षेत्रीय दल का जो भी नेता हो, अगर वह लोकप्रिय है तो सीधा उस पर आक्रमण मत कीजिए। ममता बनर्जी की छवि एक जुझारू और जनता के बीच में रहने वाली नेता की है और महिला हैं। तो जब उन पर सीधा हमला हुआ तो उन्हें विक्टिम कार्ड खेलने का मौका मिल गया, जो उन्होंने भरपूर खेला। बस सारे मुद्दे पीछे चले गए। उसके बाद भारतीय जनता पार्टी को हराना उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं रह गया। दूसरा पश्चिम बंगाल की डेमोग्राफी भी उनके पक्ष में जाती है। लगभग 30% मुसलमान है वहां रहते हैं, लेकिन मुसलमान भाजपा के लिए समस्या नहीं हैं। इससे बड़ी समस्या है बांग्लादेशी घुसपैठियों की। जब से प्रदेश में एसआईआर की घोषणा हुई है तब से पश्चिम बंगाल में दहशत और भगदड़ का माहौल है। बांग्लादेशी घुसपैठियों की बॉर्डर पर इस समय भीड़ लगी हुई है। जितने बांग्लादेशी आए थे वे सब लौट कर जाना चाहते हैं। उनको डर है कि एसआईआर के बाद जब वे पहचान लिए जाएंगे कि बांग्लादेशी हैं तो उनको गिरफ्तार कर लिया जाएगा क्योंकि उनके पास बांग्लादेश के अब भी डॉक्यूमेंट हैं। इनमें से बहुत से लोगों ने तो हाल ही में बांग्लादेश में अपनी नागरिकता को रिन्यू कराया है। अब बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स इन्हें वापस भेज रही है। तो ममता बनर्जी का एक बड़ा वोट बेस भागकर बांग्लादेश जा रहा है।

बाग्लादेशियों का भारत आना सीपीएम के जमाने से शुरू हुआ। चुनाव से पहले बांग्लादेशी घुसपैठियों को बुलाया जाता था। उनको आने-जाने और रुकने का खर्च दिया जाता था कि आओ और वोट दो। उनके वोटर आई कार्ड बनाए जाते थे। अभी दो दिन पहले ही नदिया में एक आदमी पकड़ा गया है, जिसके पास से 10,000 वोटर आई कार्ड बरामद हुए हैं। जाहिर है कि यह उन बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए था,जिनके वोटर आई कार्ड नहीं बने हैं। तो एसआईआर के कारण ममता बनर्जी के किले में सेंध चुनाव शुरू होने से पहले लग गई है। इसीलिए उनके सामने इस समय सबसे बड़ा कोई मुद्दा है तो वह है एसआईआर का विरोध। पश्चिम बंगाल में हाल ही में दो-तीन बीएलओ ने आत्महत्या कर ली। अब उनकी आत्महत्या का कारण क्या है? इसकी कोई जांच नहीं हुई है। इसकी कोई रिपोर्ट नहीं आई है। लेकिन ममता बनर्जी का दावा है कि एसआईआर के काम के बोझ के कारण इन बीएलओ ने आत्महत्या कर ली। उन्हें लगा कि यह इसे मुद्दा बनाने का मौका है।

तो इस बार हमला उन पर नहीं, बांग्लादेशी घुसपैठियों पर है। उन लोगों पर है जो इस देश के नागरिक नहीं है। ममता बनर्जी को लग रहा है कि अगर एसआईआर को न रोका तो हार तय है। एंटी इनकंबेंसी की उनको चिंता नहीं है। उनको मालूम है कि कोई विक्टिम कार्ड खेलेंगे और इससे रास्ता निकाल लेंगे। लेकिन भाजपा ने इस बार अपनी रणनीति बदल दी है। प्रधानमंत्री अभी तक जितनी बार पश्चिम बंगाल गए हैं, एक बार भी सीधे ममता बनर्जी पर हमला नहीं किया है। वे तृणमूल कांग्रेस पार्टी और तृणमूल की सरकार पर हमला करते हैं। महिलाओं में असुरक्षा का भाव जिस तरह से बढ़ा है, राज्य सरकार में भ्रष्टाचार अपनी सीमा रोज लांघ रहा है, सरकारी योजनाओं का पैसा कैसे हड़पा जा रहा है, ये मुद्दे बनाए जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल में रोजगार उपलब्ध कराने की सरकार की कोई चेष्टा नहीं है और यह सब सीपीएम के शासन के समय ही शुरू हो गया था, जब उद्योग पश्चिम बंगाल छोड़कर दूसरे राज्यों में जाने लगे थे। आगामी मार्च-अप्रैल में ममता बनर्जी के शासन के 15 साल पूरे हो जाएंगे, लेकिन उन्होंने अपने शासनकाल में कोई नई इंडस्ट्री नहीं लगाई। जहां रंगदारी मांगी जाएगी, जहां बिजली की सप्लाई का कोई ठिकाना नहीं, सड़कों का कोई भरोसा नहीं, कानून व्यवस्था सरकार और पुलिस नहीं तृणमूल कांग्रेस के गुंडे संभाले हैं,वहां कौन उद्योग लगाएगा। लेकिन राज्य में ये सब मुद्दे गौण हो गए हैं। बांग्लादेशी घुसपैठिये प्रमुख मुद्दा बन गए हैं। हालांकि यह मुद्दा पहले के चुनावों में भी उठाया जाता रहा है लेकिन तब केवल इसकी चर्चा होती थी। अब इसके समाधान पर काम हो रहा है। साथ ही सीएए के जरिए बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता देने और फिर उनका नाम वोटर लिस्ट में शामिल कराने का भी काम हो रहा है। इस तरह ममता बनर्जी को दोतरफा घाटा हो रहा है। ममता बनर्जी का जो कमिटेड वोट बैंक था, वह देश छोड़कर भाग रहा है। इसीलिए ममता बनर्जी डरी हुई हैं। उनको लग रहा है कि हमारे हाथ से तो बाजी फिसल रही है। तो इसको रोकने के लिए क्या करें? इसीलिए बीएलओ की आत्महत्या को मुद्दा बनाकर मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखा है कि एसआईआर तुरंत रोक दीजिए। यहां बड़ा तनाव है। उनका कहना है कि एसआईआर कराने के लिए कम से कम 3 साल का समय होना चाहिए। तीन साल इसलिए चाहिए कि 2026 का चुनाव निकल जाए। उसके बाद नई रणनीति बनाएंगे। अभी फिलहाल तो उनके पास सोचने का भी मौका नहीं है। किसी भी हालत में वह एसआईआर को रोकना चाहती हैं। लेकिन उनको एक बात समझ में नहीं आ रही है कि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि एसआईआर चुनाव आयोग का संविधान प्रदत्त अधिकार है। इसको सुप्रीम कोर्ट नहीं रोकेगा। बिहार में नहीं रोका। ममता बनर्जी को डर सता रहा है कि जो लोग अब इस दुनिया में नहीं हैं, जो पश्चिम बंगाल छोड़कर चले गए हैं और जिन घुसपैठियों को बुलाकर वोटर बनाया गया है, इन तीनों कैटेगरी के वोटर मतदाता सूची से निकल जाएंगे तो चुनाव कैसे जीतेंगे। यही तो ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत रहे हैं। तो इस बार ममता बनर्जी की सबसे बड़ी ताकत पर हमला हो गया है और वह संविधान प्रदत्त अधिकार के जरिए हो रहा है।ममता बनर्जी कैसे यह कह सकती हैं कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को मत निकालिए। वे एक और विक्टिम कार्ड खेल रही हैं कि जो बांग्ला बोलते हैं, उनको निशाना बनाया जा रहा है। उनको घुसपैठिया और बाहरी बताया जा रहा है। और यह सब बाहरी लोग कर रहे हैं। ये गुजराती लोग कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि ममता बनर्जी के सामने इसका रास्ता क्या है? ये विक्टिम कार्ड खेलकर वह चाहती हैं कि अदालत का ध्यान इस ओर जाए और अदालत किसी तरह से एसआईआर को रोक दे और आप मानकर चलिए कि अगर पश्चिम बंगाल में एसआईआर हो गया तो ममता बनर्जी का जीतना 2026 में लगभग असंभव है। तो एसआईआर ममता बनर्जी का सबसे बड़ा दुश्मन और बीजेपी का सबसे बड़ा हथियार बन गया है। चूंकि एसआईआर संवैधानिक तरीके से हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट की मर्जी से हो रहा है तो इसलिए ममता बनर्जी की बेचैनी और ज्यादा बढ़ रही है।
अब उनको समझ में नहीं आ रहा है कि उनका सारा मतदाता लुट रहा है, उस लूट को बचाएं कैसे? इन तीनों श्रेणियों के वोटर रहते तो ममता बनर्जी एंटी इनकंबेंसी से भी लड़ लेतीं और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से भी। लेकिन अब उनको लग रहा है कि वह निहत्था हो गई हैं। चुनाव से पहले ही हार की आहट उन्हें सुनाई दे रही है। उन्हें समझ में आ रहा है कि उनके सत्ता के दिन जा रहे हैं तो उसको बचाने की वह हरसंभव कोशिश कर रही हैं, लेकिन उनके समर्थन में अभी तक कोई विपक्षी दल नहीं आया है। कोई ममता बनर्जी के साथ खड़ा नहीं हुआ।
ऐसे में पश्चिम बंगाल का चुनाव पहली बार सही मायने में चुनाव होने जा रहा है। सीपीएम के समय से शुरू हुआ घुसपैठियों का खेल, जिसे ममता बनर्जी ने एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया, वह खत्म होने जा रहा है। तो जो लोग पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से चुनाव नहीं जीत सकते, वे परेशान हैं। जो चाहते हैं कि इसी तरह से चुनाव हो उनको लग रहा है कि यह अच्छा अवसर है। तो लड़ाई इसकी है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों को कैसे बचाया जाए और कैसे निकाला जाए। अब यह बात बड़ी साफ हो गई है कि बांग्लादेशी घुसपैठिए कम से कम 2026 के चुनाव में कोई भूमिका नहीं निभा पाएंगे।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



