जिहादियों के साथ खड़े उमर भारत सरकार को देने लगे चुनौती

#pradepsinghप्रदीप सिंह।
भेड़िए ने भेड़ की खाल उतार दी है। जब तक भेड़िया भेड़ की खाल पहनकर घूम रहा था,गलतफहमी पैदा कर रहा था। लग रहा था कि शायद वह बदल गया है। उसका स्वभाव बदल गया है। उसकी सोच बदल गई है। बहुत से लोग बड़ी जल्दी ऐसी बातों से झांसे में आ जाते हैं। यही हो रहा था जब से जम्मू-कश्मीर विधानसभा का चुनाव हुआ और उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री का पद ग्रहण करने के बाद के उनके बयान देखिए आपको लगेगा कि यह पुराने वाले उमर अब्दुल्ला हैं ही नहीं। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद उनका मन बदल गया है। उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि केंद्र की भाजपा सरकार इस स्थिति को बदलने वाली नहीं है और जिनसे उनको उम्मीद है,वे सत्ता में आने वाले नहीं हैं। तो उन्होंने चाहे बेमन से ही सही लेकिन जो वास्तविकता है, उसको स्वीकार कर लिया है, लेकिन लोगों की यह गलतफहमी बहुत जल्दी दूर हो गई। उमर अब्दुल्ला ने कुछ दिनों से जो भेड़ की खाल ओढ़ रखी थी, जैसे ही मौका आया उन्होंने उस खोल को उतार फेंका और अपने असली रूप में आ गए।

 

हाल ही में श्री माता वैष्णो देवी ट्रस्ट की एक यूनिवर्सिटी का मामला सामने आया है। जम्मू में उसका मेडिकल कॉलेज है। एमबीबीएस के लिए मेडिकल कॉलेज में 50 छात्रों का चयन हुआ। इनमें से 42 मुसलमान हैं। यह मुद्दा शायद दबा रह जाता अगर फरीदाबाद के अलफला विश्वविद्यालय के जिहादी डॉक्टरों का मामला सामने न आता। इस पर जब जम्मू के लोगों का ध्यान गया तो विरोध शुरू हुआ। इस विरोध से उमर अब्दुल्ला को बहुत परेशानी होने लगी। उन्होंने कहा कि जब यह एक्ट बन रहा था तो किसी ने सवाल नहीं उठाया। लेफ्टिनेंट गवर्नर भारतीय जनता पार्टी के हैं। वे इसे क्यों नहीं खत्म कर देते? तो उनकी बात का जवाब यह है कि एक्ट विधानसभा से पास हुआ है। विधानसभा से ही इसमें संशोधन हो सकता है। उमर अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि एक्ट बनाते समय सोचा नहीं गया था कि धर्म के आधार पर एडमिशन मिलेगा। आप इसको माइनॉरिटी स्टेटस का दर्जा दे दीजिए। उमर को मालूम है कि यह कितना मुश्किल है। इस देश में प्रदेश के हिसाब से माइनॉरिटी तय नहीं होती है। राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या के हिसाब से माइनॉरिटी का स्टेटस तय होता है। पहले तो मेरा मानना है कि मुसलमानों के मामले में ये माइनॉरिटी स्टेटस ही खत्म कर दिया जाना चाहिए क्योंकि मुसलमान इस देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है। हिंदुओं के बाद सबसे ज्यादा आबादी उनकी है। अल्पसंख्यक होने की संयुक्त राष्ट्र की जो परिभाषा है उसमें यह कहीं से फिट नहीं बैठता। यूनाइटेड नेशंस के हिसाब से अल्पसंख्यक वह है जो कुल आबादी का 1% या उससे कम हो या फिर जो हमेशा शासित रहा हो, उसने शासन न किया हो। मुसलमानों ने 800 साल तो इसी देश में शासन किया है। किसी भी दृष्टि से मुसलमान इस देश में अल्पसंख्यक नहीं हैं। इस देश में हालांकि एक चर्चा यह भी चली थी कि जिन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं, वहां उन्हें माइनॉरिटी घोषित कर दिया जाए। यह बड़ा खतरनाक ट्रेंड है क्योंकि माइनॉरिटी और मेजॉरिटी केवल संख्या की बात नहीं है। यह एक मनोस्थिति की बात है। इस देश की मेजॉरिटी इस देश की संस्कृति है यानी हिंदू। उनको माइनॉरिटी में डाला जाता है तो यह बड़ा खतरनाक रास्ता होगा। बल्कि इसके उल्टा यह होना चाहिए कि भारत में मुसलमानों को माइनॉरिटी माना ही नहीं जाना चाहिए। देश का संविधान लिंग्विस्टिक माइनॉरिटी की तो बात करता है लेकिन रिलीजियस माइनॉरिटी की बात नहीं करता है। तो इसको परिभाषित भी नहीं किया गया है। लेकिन इस नाम पर कितने संस्थान बन गए? माइनॉरिटी कमीशन बन गया, माइनॉरिटी मिनिस्ट्री बन गई,माइनॉरिटी इंस्टिट्यूशन बन गए,एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन बन गए और उनको अपने धर्म की शिक्षा देने की छूट मिल गई। इससे देश का सबसे बड़ा नुकसान हुआ है।

तो उमर अब्दुल्ला अब विरोध से ब्लैकमेल पर आ गए हैं। वे भारत सरकार को चुनौती दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर मजहब के आधार पर चयन होना है तो फिर हम हमारे बच्चों से कहेंगे कि वे तुर्की और बांग्लादेश जाएं। अब उनके शब्दों पर ध्यान दीजिए। उनकी नजर में उनके बच्चे सिर्फ मुसलमान हैं। उन्होंने क्यों तुर्की और बांग्लादेश का ही नाम लिया? डॉक्टर, इंजीनियर या इस तरह के प्रोफेशनल कोर्स करने के लिए दुनिया में तमाम विकसित देश हैं। इन कोर्स के लिए बच्चे अमेरिका जाते हैं, कनाडा जाते हैं, इंग्लैंड जाते हैं,जर्मनी जाते हैं,फ्रांस जाते हैं। उमर अब्दुल्ला ने इनमें से किसी देश का नाम नहीं लिया। तुर्की और बांग्लादेश का नाम इसलिए लिया क्योंकि यहां जिहादी पैदा किए जाते हैं। उनका मानना है कि अगर मुसलमान जिहादी बन रहा है तो ठीक है। तुर्की और बांग्लादेश जाने की बात कहकर वह यह संदेश दे रहे हैं जिहादियों घबराओ मत। हम तुम्हारे साथ हैं। साथ ही भारत सरकार को चुनौती दे रहे हैं कि अगर हमको हमारे हिसाब से नहीं चलने दोगे तो हम जिहाद को और ज्यादा बढ़ा देंगे और जिहादी पैदा करेंगे। उन्होंने यह नहीं कहा कि हम नहीं चाहते हमारे बच्चे अलफला विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों मे पढ़ें क्योंकि वह जिहादी बनाने की फैक्ट्री है और यही वह चाहते हैं। तो यह भारत के एक यूनियन टेरिटरी के मुख्यमंत्री की भाषा है। वह इस बात की चर्चा नहीं कर रहा है कि यह जो श्री माता वैष्णो देवी ट्रस्ट का कॉलेज है,यह हिंदू भक्तों के दान से मिले पैसे से बना और चल रहा है। यह सरकारी पैसे से नहीं चल रहा है। अगर उमर अब्दुल्ला को मेरिट की इतनी चिंता है तो उनको जामिया मिलिया विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी मेरिट की बात करनी चाहिए। वहां मेरिट की बात क्यों नहीं करते? उनको बताना चाहिए कि जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पिछड़ा वर्ग का आरक्षण क्यों खत्म किया गया? उनको बताना चाहिए कि आजादी के बाद से अब तक जम्मू कश्मीर में दलितों और जनजातियों को आरक्षण का लाभ क्यों नहीं मिला?लेकिन वह उसकी बात नहीं करेंगे। वह ऐसी बात कहेंगे जो भारत के विरोधियों के समर्थन की होगी और पाकिस्तान के प्रत्यक्ष समर्थन में तो उनके पिता और दादा सब बोलते रहे हैं। तो पाकिस्तान इनका आका है और भारत इनका दुश्मन है। यह अघोषित रूप से इनकी नीति है। वह हर ऐसा काम करेंगे जिससे भारत, सनातनियों और हिंदुओं का नुकसान हो। उनको आतंकवाद से कोई समस्या नहीं है, लेकिन आतंकवाद के दमन से बहुत समस्या है। जैसे ही आतंकवाद के खिलाफ कारवाई शुरू होती है,उनको तुरंत मानवाधिकार याद आ जाता है।

उमर की क्या इस देश ने जिस हामिद अंसारी को दो बार लगातार उपराष्ट्रपति बनाया हो, उसकी करतूतें और बयान देखिए। उपराष्ट्रपति पद से रिटायर होते ही उसने इंटरव्यू दिया कि भारत में मुसलमान डरा हुआ है। यह वह व्यक्ति है सोनिया गांधी की अगर चलती तो उसको देश का राष्ट्रपति बना देतीं। हमारे इंटेलिजेंस के लोगों ने लिखा है कि जब अंसारी ईरान में एंबेसडर थे तो उन्होंने वहां हमारे जो रॉ के एजेंट और अधिकारी थे,उन सबकी सूचना दी ईरानी गुप्तचर एजेंसियों को दे दी थी और उनमें से ज्यादातर मारे गए। मैं बार-बार कहता हूं कि ऐसे व्यक्ति पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए। इसको जेल में होना चाहिए। लेकिन विडंबना देखिए कि यह लुटियंस दिल्ली में टाइप 8 के बंगले में रह रहा है। रिटायरमेंट के बाद भी टैक्स पेयर के पैसे से यह ऐशो आराम की जिंदगी जी रहा है और भारत के विरोध में बोल रहा है। और यह एक उदाहरण नहीं है। हजारों लाखों की संख्या में देश में ऐसे लोग हैं। ये उसी मानसिकता के लोग  हैं, जो कहते हैं-कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल पैदा होगा। तो ये हर शिक्षण संस्थान से अफजल पैदा करना चाहते हैं। इनका एकमात्र लक्ष्य है आतंकवाद की फैक्ट्री का उत्पादन बढ़ाना। तो जब तक हम शाखाओं, टहनियों,पत्तों पर कारवाई करते रहेंगे तब तक कुछ होने वाला नहीं है। आतंकवाद को बढ़ाने वाले इस पेड़ और इसकी जड़ को समाप्त किया जाना चाहिए और जड़ है वह विचारधारा, जो जिहादी बनाती है,जो जिहादियों का समर्थन करती है,जो जिहादियों के साथ खड़ी होती है। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक इस समस्या से कोई छुटकारा नहीं मिलने वाला है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)