झारखंड के मुख्यमंत्री को रक्षा कवच देने की तैयारी में भाजपा।
प्रदीप सिंह।
कर्नाटक के बाद इस समय अगर कहीं राजनीतिक हलचल सबसे तेज है तो वह है झारखंड। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और भाजपा में दोस्ती भी है,लड़ाई भी है। भाजपा पहले दो बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना चुकी है। पिछले कार्यकाल में हेमंत सोरेन की सदस्यता और उनकी सरकार जाते-जाते बची थी और उसे भाजपा ने ही बचाया था। हेमंत सोरेन की सदस्यता का मामला चुनाव आयोग के पास गया था। चुनाव आयोग ने अपना फैसला गवर्नर को भेज दिया और गवर्नर ने चुनाव आयोग की चिट्ठी कभी खोली ही नहीं। यह शायद भारत के इतिहास में पहली बार हुआ होगा कि राज्यपाल ने चुनाव आयोग के फैसले को सार्वजनिक ही न किया हो। फिर चुनाव में हेमंत सोरेन बड़े बहुमत से जीत कर आए और अपने पिता शिबू सोरेन के राजनीतिक वारिस बन गए। अब शिबू सोरेन का निधन हो चुका है। वे जब तक थे तब तक परिवार में हर फैसला वही करते थे,जो सभी को मान्य होता था। अब स्थिति बदल गई है और यह बदली हुई स्थिति हेमंत सोरेन के लिए बहुत सहायक नहीं है। इस तरह के कई और भी मुद्दे हैं,जो इशारा कर रहे हैं कि हेमंत सोरेन पाला बदल सकते हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हेमंत सोरेन सिर्फ दो सीटें मांग रहे थे लेकिन महागठबंधन के लोग देने को तैयार नहीं हुए। राहुल गांधी तो हेमंत सोरेन के फोन पर आने को ही तैयार नहीं हुए। संदेश भिजवाया कि अगर सीट की बात है तो आप आरजेडी से कीजिए। तो उनके रिश्ते इंडी गठबंधन से खराब हो चुके हैं। लेकिन केवल इस बात के कारण वे इंडी गठबंधन से निकलकर भाजपा के साथ नहीं चले जाएंगे। हेमंत सोरेन हाल ही में कई दिन दिल्ली में रहे और कहा जा रहा है कि भाजपा के कई बड़े नेताओं से उनकी मुलाकात हो चुकी है। चर्चाएं हैं कि हेमंत सोरेन एनडीए में शामिल हो सकते हैं और भाजपा के साथ उनकी मिलीजुली सरकार झारखंड में बन सकती है। अब ये सुनने में बड़ी अटपटी बात लगती है क्योंकि हेमंत सोरेन का जो गठबंधन है, उसको पूर्ण बहुमत है। 81 सीटों में से उनकी पार्टी की अकेले 34 और गठबंधन के पास 56 सीटें हैं। उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है। बीजेपी ऐसी स्थिति में नहीं है कि उनकी सरकार गिरा दे। तो ऐसी स्थिति में हेमंत सोरेन क्यों इंडी गठबंधन से निकलना चाहेंगे,इसके मैं

क्रमवार कारण बताता हूं। शिबू सोरेन के न रहने से अब परिवार एक रहेगा इसकी गारंटी कोई नहीं ले सकता और परिवार में थोड़ा भी उथल-पुथल हुई तो उसका सीधा असर हेमंत सोरेन की सत्ता पर पड़ेगा। हेमंत सोरेन का दूसरा डर छत्तीसगढ़ का शराब घोटाला है। उसकी आंच झारखंड तक पहुंचने लगी है। हेमंत छह महीने जेल में रहकर आए हैं और अब किसी भी हालत में दोबारा जेल नहीं जाना चाहते। उनको मालूम है कि अगर कोई उन्हें जेल जाने से बचा सकता है तो वह भाजपा ही है। उन्हें न तो कांग्रेस बचा सकती है और न आरजेडी। उन्हें समझ आ रहा है कि कांग्रेस का कम से कम बिहार और झारखंड में तो कोई भविष्य नहीं है। तीसरा कारण है कि चुनाव में उन्होंने महिलाओं को नकद पैसा देने की बात कही थी। झारखंड की वित्तीय स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स तक के लिए पैसा नहीं है और पैसा तभी मिलेगा जब केंद्र से संबंध अच्छे होंगे। तो हेमंत सोरेन इस समय चौतरफा घिरे हुए हैं। हालांकि हेमंत सोरेन की पार्टी और राज्य भाजपा के नेताओं की बात करें तो किसी को कुछ पता नहीं है। दिल्ली में जो चर्चा हुई है बीजेपी की टॉप लीडरशिप और हेमंत सोरेन के बीच में है और उनके बीच क्या बातचीत हुई यह तब तक कोई नहीं जान सकता जब तक इन लोगों में से कोई बताए नहीं। जेएमएम की ओर से लगातार इस बात का खंडन किया जा रहा है। यह भी सवाल उठ रहा है कि जिस पार्टी की सरकार ने उन्हें छह महीने जेल भेजा, उससे कैसे हाथ मिला लेंगे? लेकिन राजनीति जिसको करनी होती है,वह अपनी याददाश्त को कमजोर रखता है। याददाश्त को मजबूत करके आप राजनीति नहीं कर सकते। इसलिए हेमंत सोरेन को यह याद नहीं रहेगा कि किसने जेल भेजा। हेमंत सोरेन को इस बात की चिंता होगी कि कौन दोबारा जेल भेज सकता है। तो अगर यह नया गठबंधन बनता है और राज्य में मुख्य जनाधार वाली दोनों पार्टियों भाजपा और जेएमएम की सरकार बन जाती है तो झारखंड एक और ऐसा राज्य बन जाएगा, जहां कोई विपक्ष ही नहीं होगा। विपक्ष के नाम पर कांग्रेस और लेफ्ट के चंद विधायक ही रह जाएंगे।

हेमंत सोरेन को अपना राज्य चलाने के लिए जिस केंद्रीय मदद की जरूरत है, वह उनको राहुल गांधी नहीं दिला सकते। वह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह दिला सकते हैं। अगर हेमंत सोरेन राज्य की विकास की योजनाओं को आगे नहीं बढ़ा पाए तो उनकी राजनीति खतरे में पड़ जाएगी। एक चुनाव जीतने के बाद हर नेता की नजर अगले चुनाव पर होती है। हेमंत सोरेन कोई अपवाद नहीं हैं। तो हेमंत सोरेन को अगर पलटना है यानी एनडी गठबंधन से निकलकर एनडीए के साथ आना है तो लोगों को बताने के लिए कुछ तो चाहिए। याद रखिए जब शिबू सोरेन की स्थिति खराब हुई थी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सबसे पहले उनको अस्पताल में देखने गए थे और जब उनका निधन हो गया तो उनके 13वीं के कार्यक्रम में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उनके गांव गए थे। यह सब कोई औपचारिकता के नाते नहीं था। यह आगे की गोटियां बिठाई जा रही थीं। राजनीति में हर कदम, हर काम किसी ना किसी राजनीतिक लक्ष्य को ध्यान में रखकर किया जाता है। बीजेपी को मालूम था कि हेमंत सोरेन शिबू सोरेन का हाथ हट जाने के बाद अकेले बहुत दिन तक सर्वाइव नहीं कर पाएंगे। उनको आखिरकार बीजेपी की शरण में आना पड़ेगा और अब उनको लग रहा है कि वह परिस्थिति आ गई है। उधर हेमंत सोरेन नहीं चाहते कि उनके राज्य की स्थिति वित्तीय दृष्टि के बदहाल राज्यों पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसी हो। उनको लगता है कि अगर पॉलिटिकली सर्वाइव करना है तो बीजेपी के साथ चलने में भलाई है। लेकिन शायद वह एक बात को नहीं समझ रहे हैं। उनकी परिवार में,परिवार से बाहर,सरकार के स्तर पर जिस तरह की घेराबंदी हो रही है,ऐसी स्थिति में वे भाजपा से मिल तो जाएंगे लेकिन फिर वहां से नीचे ही फिसलेंगे। बीजेपी बड़ी पार्टी है। झारखंड में सत्ता में रह चुकी है और झारखंड की राजनीति में बीजेपी का प्रभाव कम नहीं होगा। हेमंत सोरेन के साथ आने से बढ़ेगा ही और हेमंत सोरेन का प्रभाव लगातार घटेगा क्योंकि वह याचक की मुद्रा में होंगे। वह केंद्र सरकार और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं पर निर्भर होंगे।
अभी की स्थिति में हेमंत सोरेन की एनडीए में जाने की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ तो गई है,लेकिन ऐसा करने के लिए हेमंत सोरेन को कुछ बहाना तो चाहिए होगा जिसको फेस सेविंग कहते हैं। तो वह बहाना बनेगा शिबू सोरेन को भारत रत्न देने से। अगर केंद्र सरकार शिबू सोरेन को भारत रत्न देने की घोषणा कर देती है तो हेमंत सोरेन के लिए आना आसान हो जाएगा। याद रखिए जयंत चौधरी भी इसी रास्ते से बीजेपी के साथ आए थे। तो झारखंड की राजनीति में बड़े परिवर्तन के संकेत हैं। भाजपा ऐसा लगता है कि हेमंत सोरेन को रक्षा कवच देने जा रही है कि अगले 5 साल तक यानी जब तक इस विधानसभा का कार्यकाल है तब तक उनकी कुर्सी के लिए कोई खतरा नहीं है। इसलिए किसी दिन आपको खबर मिले कि हेमंत सोरेन और बीजेपी का समझौता हो गया है तो चौंकिएगा नहीं।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



