घरों में खुल रहे गिरजाघर।

प्रदीप सिंह।
10/40 विंडो की अवधारणा के बारे में आपने सुना है। मुझे लगता है कि बहुत कम ने सुना होगा। लेकिन जो लोग क्रिश्चियनिटी या उसके विस्तार के बारे में जानते हैं और उसे रोकना चाहते हैं, उनको जरूर पता होगा। 10/40 विंडो यानी उत्तर में 10 डिग्री और उत्तरी अक्षांश में 40 डिग्री। यह दुनिया के नक्शे पर एक आयताकार क्षेत्र बनता है । यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें ज्यादातर हिंदू और बौद्ध रहते हैं। इसी क्षेत्र में खाड़ी के देश भी आते हैं और क्रिश्चियनिटी का जो विस्तार करना चाहते हैं, उनका सारा ध्यान इस समय इसी क्षेत्र में धर्म परिवर्तन कराने पर है। चूंकि इस्लाम से लड़ना उनके लिए मुश्किल है क्योंकि उनके डराने,धमकाने,लालच देने या ईसा मसीह के चमत्कार दिखाने के जो तरीके हैं वे इस्लामी देशों पर असर नहीं करते,इसीलिए भारत और चीन जैसे देश उनके निशाने पर हैं।  

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गुरुदेव रविंद्रनाथ ठाकुर की एक बात हमें कभी भूलनी नहीं चाहिए। उन्होंने कहा था कि दुनिया में दो मजहब ऐसे हैं जिनके मानने वाले इस बात से संतुष्ट नहीं होते कि उनको अपने मजहब का पालन करने की पूरी आजादी है। उनका उद्देश्य दूसरे मजहबों को समाप्त करना है। ये दो मजहब हैं इस्लाम और क्रिश्चियनिटी। इसी संदर्भ में एक और उदाहरण है सिंगापुर के लगभग 30 साल तक प्रधानमंत्री रहे लीन यू का। वे बड़े विजनरी भी माने जाते थे। उन्होंने 1990 में एक कार्यक्रम में चेतावनी दी थी कि धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो बहुत देर हो जाएगी। उन्होंने कहा था कि क्रिश्चियनिटी ने पूरे दुनिया में अपने को फैलाने की कोशिश की लेकिन दो देशों चीन और भारत में उनकी नहीं चली क्योंकि ये प्राचीन सभ्यताएं हैं। यहां छोटे-मोटे पैमाने पर तो धर्मांतरण हुए पर बड़े पैमाने पर नहीं हो पाया। लेकिन ऐसा नहीं है कि ईसाई मजहब के लोगों ने इस प्रोजेक्ट को छोड़ दिया। लीन यू की चेतावनी के बावजूद कोई कदम न उठाने का नतीजा आज सिंगापुर भोग रहा है। बहुत तेजी से वहां पर क्रिश्चियंस की आबादी बढ़ रही है।

भारत में कुछ कालखंड रहे हैं, जब ईसाई मजहब के लोगों को धर्मांतरण कराने के लिए अनुकूल समय मिला। पहला कालखंड था नेहरू के प्रधानमंत्री बनने के बाद का। नॉर्थ ईस्ट के ज्यादातर राज्यों के ईसाई हो जाने में ईसाई मिशनरियों से ज्यादा योगदान नेहरू का है। उन्होंने धर्मांतरण कराने वाले वार्नियर को एक तरह से नॉर्थ ईस्ट का अघोषित एंबेसडर घोषित कर दिया था। उसकी हैसियत गवर्नर से ज्यादा थी। सीधे पीएमओ से उसके तार जुड़े हुए थे। आज हालत यह है कि नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और मेघालय में 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग क्रिश्चियन हो चुके हैं। बौद्ध धर्म को मानने वालों के देश श्रीलंका में प्रधानमंत्री भंडार नायके के समय तेजी से धर्मांतरण हुआ। इसी कारण एक बौद्ध भिक्षु ने उनकी हत्या कर दी। सबसे बड़ा उदाहरण तो दक्षिण कोरिया है। जो बौद्ध धर्म को मानने वाला था। अब वहां पर बहुसंख्यक ईसाई हैं। चीन के लिए ईसाई मिशनरियों ने होम चर्च की रणनीति बनाई। यानी कोई पादरी या कोई ईसाई धर्म को मानने वाला अपने घर को ही चर्च बना दे और वहां धर्मांतरण शुरू कर दे। चीन में आज ईसाई मजहब के मानने वालों की आबादी 6% से बढ़कर 9% हो चुकी है। और चीन में ऐसा तब हो गया जब वहां लोकतंत्र नहीं, अधिनायकवाद है।

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होम चर्च की यही रणनीति भारत के पंजाब में भी बड़ी तेजी से अमल में लाई जा रही है। वहां के गांवों में घर-घर में चर्च खुल गए हैं और इसका सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं मजहबी सिख। पंजाब में पिछली जनगणना के मुताबिक 1.25% लोग ईसाई धर्म के मानने वाले थे। अनुमान है कि आज यह संख्या 15% तक पहुंच गई है।

देश में हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित कराने वाला दूसरा कालखंड तब आया जब सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की सरकार बनी। उस दौरान भारत में धर्मांतरण का प्रोजेक्ट बहुत तेजी से चला। जब उसके खिलाफ कांची कामकोटी के शंकराचार्य उठ खड़े हुए और उन्होंने अभियान चलाया तो उन्हें और उनके उत्तराधिकारी को हत्या के झूठे आरोप में ऐन दीवाली के दिन गिरफ्तार कर लिया गया। और हद तो इस बात की रही कि हिंदुओं में इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। कोई हिंदू सड़क पर नहीं उतरा। भारत में धर्मांतरण में एक नया आयाम जुड़ा है क्रिप्टो क्रिश्चियन। यह छद्म युद्ध है। यानी धर्मांतरण कर लो लेकिन अपनी जो मूल पहचान है सार्वजनिक रूप से उसी को बनाए रखो। उससे पता ही नहीं चलता कि वास्तव में कितने क्रिश्चियन हैं। हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला आया है,जिसमें उत्तर प्रदेश के सारे जिलाधिकारियों से इस बात का पता लगाने को कहा गया है कि किसने धर्मांतरण कर लिया है,जिसने कर लिया है उसको आरक्षण की सुविधा का लाभ नहीं मिलना चाहिए। अब आप इससे अंदाजा लगाइए कि हो क्या रहा है। हमारे आपके घर के बगल में किसी घर में गिरजाघर खुल जाता है। आपको एक दिन पता चलेगा कि आपके घर में जो काम करते हैं, वे अचानक ईसाई हो गए हैं। और ये किसी एक राज्य तक सीमित नहीं है। उत्तर प्रदेश,बिहार,गुजरात,मध्य प्रदेश,झारखंड और देश के जनजातीय इलाको में यह बहुत तेजी से चल रहा है। भारत में सनातन संस्कृति पर तो दो तरफ़ा खतरा है। एक तरफ इस्लामी धर्मांतरण और दूसरी तरफ ईसाई धर्म के लोग धर्मांतरण करा रहे हैं। देश की पूरी डेमोग्राफी बदलने का खेल चल रहा है। हम आप चाहें तो इसके लिए सरकार की आलोचना कर सकते हैं। लेकिन आलोचना करने से पहले एक बार अपने आप से पूछकर देखना चाहिए कि हमने इसके बारे में क्या किया। कम से कम हम पता होने पर इनकी पहचान तो उजागर कर सकते हैं। हमारे पड़ोस में अगर होम चर्च चल रहा है तो उसकी सूचना तो प्रशासन को दे सकते हैं। यह खतरा कोई छोटा-मोटा नहीं है। इसकी पहली स्टेज है धर्मांतरण। दूसरी स्टेज आती है देशांतरण। ईसा मसीह को हिंदू देवी देवताओं के रूप में दिखाने की कोशिश हो रही है। मैंने तो झारखंड में देखा है क्रॉस और जीसस क्राइस्ट की मूर्ति को केसरिया रंग से रंग दिया गया है। कोशिश यह बताने की होती है कि ये हिंदू देवी देवताओं जैसे ही हैं। इनका विरोध मत करो। इनको अपनाओ और एक बार यह मनस्थिति बना लेने पर फिर धीरे-धीरे हिंदू धर्म की बुराइयां बताना शुरू करते हैं।

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आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में जितनी तेजी से धर्मांतरण हुआ,आजादी के बाद के सालों में कभी नहीं हुआ होगा। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने तो चुनाव जीतने के बाद एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मंच पर बैठे पादरियों से कहा था कि हम आपकी वजह से सत्ता में आए हैं। नतीजा क्या हुआ? वहां प्राचीन मंदिर तोड़े गए और उस जगह चर्च बनाई गई। यह सिलसिला लगातार चल रहा है। उनका बेटा उदयनिधि स्टालिन कहता है कि सनातन धर्म बीमारी है। इसका समूल नाश कर देना चाहिए और हिंदू चुपचाप सुन लेते हैं। ऐसा ही खतरा हमारी अदालतों की ओर से भी है। अलग-अलग राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून बने हुए हैं। उन कानूनों को लागू करने में सबसे ज्यादा अड़ंगा अदालतें लगाती हैं। धर्मांतरण का मुद्दा आते ही अदालतों को मानवाधिकार याद आता है।

याद रखिए इस्लाम और क्रिश्चियनिटी दोनों के लिए भारत एक अधूरा प्रोजेक्ट है। यहां 800 साल मुगलों और 200 साल अंग्रेजों का राज रहा। फिर भी वे न तो भारत को इस्लामी देश बना पाए और न ईसाई देश। तो उनको लगता है कि इस प्रोजेक्ट को छोड़ने की जरूरत नहीं है। और दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे देश के बहुत से नेता और पार्टियां उनकी सहायता करती हैं। तो इस समस्या की गंभीरता को पहचानिए। देश में जो लोग सेकुलर-सेकुलर चिल्लाते हैं,वे तभी तक सेकुलर हैं जब तक हिंदू बहुसंख्यक है। जिस दिन हिंदू अल्पसंख्यक बन जाएगा यह देश सेकुलर नहीं रहेगा। दुनिया का कोई एक देश बताइए जहां मुसलमान या ईसाई बहुसंख्यक हों और वह देश सेकुलर हो।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)