देश का नागरिक बने बिना ही वोटर बन गई थीं सोनिया,नोटिस आया तो बिलबिला उठे।
प्रदीप सिंह।
दिल्ली की राउस रेवेन्यू कोर्ट ने हाल ही में सोनिया गांधी और दिल्ली पुलिस को एक नोटिस भेजा है। मामला यह है कि सोनिया गांधी अप्रैल 1983 में भारत की नागरिक बनीं, लेकिन 1980 में ही दिल्ली में मतदाता सूची में उनका नाम आ गया। हालांकि 82 में उनका नाम हटा दिया गया। क्यों हटाया गया, किसी को मालूम नहीं और 83 में नाम फिर जुड़ गया। 83 में भी जब नाम जुड़ा तब भी वह भारत की नागरिक नहीं बनी थीं। तो नागरिकता न होने पर भी मतदाता सूची में नाम आ जाने को लेकर सोनिया गांधी से जवाब मांगा गया है। इस नोटिस को लेकर प्रियंका वाड्रा ने बयान दिया है कि सोनिया 80 साल की होने जा रही हैं। अब तो छोड़ दो।

अरे भाई ये उनके कर्म है जो उनके पीछे हैं। कोई सरकार नहीं है उनके पीछे। जनता की ओर से यह रिवीजन पिटीशन है और इसमें नोटिस जारी हो गया है। सवाल यह है कि राहुल गांधी जो वोट चोरी का पूरे देश में ढिंढोरा पीट रहे हैं, दरअसल उसकी शुरुआत तो उनके घर से ही हुई है। उनकी मां इस देश का नागरिक बनने से पहले ही मतदाता कैसे बन गईं? किस आधार पर बन गईं? इस देश में मतदाता बनने के दो ही आधार हैं। एक आपकी उम्र 18 साल हो। दूसरा आप भारत के नागरिक हों। सोनिया गांधी की शादी राजीव गांधी से फरवरी 1968 में हुई थी। भारत में आने और राजीव गांधी से शादी करने के 15 साल बाद अप्रैल 1983 में वह भारत की नागरिक बनीं। अब इसमें बहुत सारे प्रश्न हैं। क्या यह सवाल नहीं उठना चाहिए कि कोई विदेशी नागरिक भारत के प्रधानमंत्री के आवास में 15 साल तक कैसे रहा? दूसरा सवाल सोनिया ने शादी के बाद 15 साल तक भारत की नागरिकता क्यों नहीं ली? क्या इरादा था उनका? तीसरा सवाल यह कि भारतीय कानून के अनुसार अगर आप किसी कंपनी में डायरेक्टर बनना चाहते हैं तो आपका भारत का नागरिक होना जरूरी है। संजय गांधी ने कारों की एक कंपनी मारुति नाम से बनाई थी। उस कंपनी में सोनिया गांधी तब डायरेक्टर बन गईं जब वह भारत की नागरिक नहीं थीं। तो कानून को अपनी जेब में रखना इस परिवार की आदत है।
सोनिया पर सवाल यहीं खत्म नहीं होते हैं। 1991 में राजीव गांधी की हत्या कर दी गई। सोनिया उस समय तक न तो किसी सरकारी पद पर थीं,न कांग्रेस की सदस्य थीं, न कांग्रेस की पदाधिकारी थीं, लेकिन फिर भी राजीव गांधी को जो सरकारी बंगला प्रतिपक्ष के नेता के रूप में मिला था, उसमें वह रह रही थीं। किसी ने कोई ऐतराज नहीं किया। इसके अलावा पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह की किताब से भी उनके बारे में बहुत सी चीजें पता चलती हैं। सोनिया गांधी की भाषण की तैयारी की बातें भी उन्होंने लिखी हैं। उनका भाषण तैयार करने में आठ-दस घंटे तक लग जाते थे। एक दिन नटवर सिंह ने कहा कि आपको भाषण के बीच में कालिदास या कबीर दोहे भी बोलने चाहिए। इस पर सोनिया का जवाब था,लिखी हुई स्पीच पढ़ने में ही मेरी हालत खराब हो जाती है। दोहे बोलना तो संभव ही नहीं है। तो सोनिया न भारत, न यहां की संस्कृति,न भाषा और न रीति रिवाज के बारे में कुछ जानती थीं। मार्च 1998 में किस तरह वह कांग्रेस अध्यक्ष बनीं सब जानते हैं। सीताराम केसरी को धक्का देकर अध्यक्ष पद से हटाया गया था।

नटवर सिंह लिखते हैं कि सोनिया के जीवन के चार अध्याय हैं। एक जब वह शादी के बाद यहां आई थीं। दूसरा जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई उसके बाद का दौर। तीसरा जब राजीव गांधी की हत्या हुई उसके बाद का दौर और चौथा जब वह कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं। 1991 में पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने। उनका चयन सोनिया गांधी ने ही किया था जबकि सोनिया की कोई राजनीतिक हैसियत नहीं थी। बाद में वह नरसिम्हा राव से ही नाराज रहने लगीं। इस पर नरसिम्हा राव ने नटवर सिंह से पूछा था कि सोनिया मुझसे क्यों नाराज हैं। नटवर ने सोनिया से बात की तो उन्होंने बताया कि वह राजीव गांधी की हत्या की धीमी जांच से नाराज हैं। इस पर नरसिम्हा राव खुद फाइलें सोनिया गांधी के पास ले गए और उनको समझाने की कोशिश की कि कुछ कानूनी अड़चनों से केस को तेज करने में दिक्कत आ रही है। इसके बाद भी उनके रवैये में अंतर नहीं आया। एक दिन नरसिम्हा राव ने सोनिया को सुझाव दिया कि आपके घर में रैक्स फोन लगवा देते हैं। रैक्स फोन एक तरह से हॉट लाइन था, जो प्रधानमंत्री और मंत्रियों के घरों में लगता था। सोनिया गांधी ने पहले तो हां कहा, लेकिन एक घंटे बाद संदेश आया कि वे रैक्स फोन नहीं लगवाना चाहतीं। इस पर नरसिम्हा राव ने नटवर सिंह ने कहा कि यह मेरे मुंह पर तमाचे जैसा था। यह थी सोनिया गांधी की ताकत। राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्होंने राजीव गांधी फाउंडेशन बनाया। फिर जवाहरलाल नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट की अध्यक्ष बन गईं। इसके बाद इंदिरा गांधी के नाम पर जो ट्रस्ट था, उसकी भी अध्यक्ष बन गईं। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करना शुरू किया। फिर नटवर सिंह से कहा गया कि जो भी विदेशी मेहमान आएं वे सोनिया गांधी से भी मिलें और सरकार के सुझाव पर ऐसा किया भी गया। तो जब उनके पास कोई पद नहीं था तब भी उनके पास सारे अधिकार थे। और फिर 2004 आया। कांग्रेस की फिर सरकार बन गई, लेकिन एक असंवैधानिक व्यवस्था के तहत पैरेलल गवर्नमेंट भी बनी, जिसका नाम था एनएससी यानी नेशनल एडवाइज़री कमेटी। जिसकी चेयरपर्सन थीं सोनिया गांधी। एनएससी के चेयर पर्सन को कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा मिले और वह किसी भी विभाग की फाइल देख सके, ऐसी संवैधानिक व्यवस्था कराने का प्रस्ताव उस समय के कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज ने पेश किया था। विपक्ष ने उसका कड़ा विरोध किया तो औपचारिक रूप से ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि डी फैक्टो वह चलता रहा। एनएससी से जो प्रस्ताव पास होता था, वही कैबिनेट का प्रस्ताव बनता था। एनएससी तय करती थी कि सरकार कौन सी नीतियां बनाएगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके मंत्रिमंडल का काम केवल उस पर मोहर लगाना था।
जिसने यह सब देखा हो, उसको अब क्या देखना पड़ रहा है? नेशनल हेरल्ड केस में अदालत में पेश होना पड़ रहा है। इनफोर्समेंट डायरेक्ट्रेट में पूछताछ के लिए घंटों-घंटों बैठना पड़ रहा है। और अब अदालत से यह नोटिस। यह किसी पॉलिटिकल पार्टी का नोटिस तो है नहीं कि जवाब देने से मना कर देंगे। इसका जवाब तो देना ही पड़ेगा कि आप भारत का नागरिक बनने से पहले भारत की मतदाता कैसे बन गईं? अब आप सोचिए कि यह बात हम कब कर रहे हैं? 2025 के आखिर में और यह हुआ कब? 1980 में। मतलब 45 साल पहले। 45 साल तक इस बारे में कुछ बोलने की किसी की हिम्मत नहीं हुई।

जो राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा का आज अहंकार दिखाई देता है, वह इसी वजह से है। प्रियंका से जब पूछा गया कि संसद सत्र चल रहा है और राहुल विदेश जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री भी तो विदेश जाते हैं। अब आप सोच देखिए। प्रधानमंत्री से नेता प्रतिपक्ष की तुलना हो रही है। प्रतिपक्ष का नेता पद संवैधानिक पद नहीं है। प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं तो अपने संवैधानिक दायित्व का निर्वाह करने के लिए जाते हैं। दूसरे देशों से संबंध बनाने के लिए जाते हैं। इन लोगों के दिमाग अब भी है कि हमारी तुलना अगर किसी से हो सकती है तो देश के प्रधानमंत्री से हो सकती है। इसीलिए जैसे ही इनके खिलाफ कोई अदालती नोटिस आता है तो यह कहते हैं पॉलिटिकल वेंडेटा है। आप घपला करेंगे, घोटाला करेंगे,राहुल और सोनिया नेशनल हेरल्ड केस मे जमानत पर हैं, लेकिन दिमाग में बात वही है कि हम इस देश के राजा थे, हैं और रहेंगे। इनको लगता है कि यह सब जो चल रहा है टेंपरेरी है। निकल जाएगा। अल्टीमेटली तो इस देश पर राज हम ही को करना है। इनके दिमाग में बैठी यही बात इनसे इस तरह के बयान दिलवाती है और यह सिलसिला तब तक रुकने वाला नहीं है, जब तक इनके खिलाफ जो मामले हैं उनमें न्याय के अनुसार अदालत का फैसला नहीं आता और इनकी जवाबदेही तय नहीं होती।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)



