राजनाथ और गडकरी को अध्यक्षी मिलने से सीनियर नहीं थे खुश।

प्रदीप सिंह।
किसी भी क्षेत्र में देख लीजिए जब कोई जूनियर व्यक्ति बड़े पद पर आ जाता है तो बहुत से लोगों को परेशानी होती है। तो क्या युवा नितिन नवीन के भाजपा का अध्यक्ष बनने से कुछ लोगों को परेशानी होगी?परेशानी क्या होती है,ईगो को ठेस पहुंचती है कि जो हमारे सामने कल खड़ा रहता था,हमसे मिलने के लिए समय मांगता था,अब वही काम हमको करना पड़ेगा। मिलने से पहले समय लेना पड़ेगा। बात सुननी पड़ेगी,आदेश मानना पड़ेगा। यह सबके लिए आसान नहीं होता। बड़े से बड़े लोग इसको सहन नहीं कर पाते।

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थोड़ा सा पीछे चलते हैं और बात करते हैं 2005 की। जब पाकिस्तान स्थित जिन्ना की मजार का दौरा कर लालकृष्ण आडवाणी भारत लौटे तो संघ ने तय किया कि उनको अब पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रहने दिया जाएगा। 2005 भाजपा की स्थापना का सिल्वर जुबली साल भी था। मुंबई में हुए महाधिवेशन में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की घोषणा की जानी थी। प्रमोद महाजन उस समय अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के बाद सबसे वरिष्ठ और प्रभावशाली भाजपा नेता माने जाते थे। 31 दिसंबर 2005 को शिवाजी पार्क में भाजपा की सभा थी। इस आयोजन के कर्ताधर्ता प्रमोद महाजन ही थे। उन्होंने एक नया प्रयोग किया। उन्होंने एक लिफ्ट बनवाई,जो जमीन के नीचे से प्लेटफार्म के रूप में ऊपर आकर मंच बन गई। उस प्लेटफार्म पर 25 कुर्सियां थीं,जिन पर भाजपा के 25 वरिष्ठ नेता बैठे हुए थे। लेकिन लोगों को तब आश्चर्य हुआ जब उन 25 लोगों में राजनाथ सिंह नहीं थे,जबकि 31 दिसंबर 2005 की सभा से पहले ही तय हो  गया था कि वे अगले भाजपा अध्यक्ष होंगे और इस सभा के अगले ही दिन यानी 1 जनवरी 2006 को उन्हें आडवाणी से अध्यक्ष पद का चार्ज लेना था। प्रमोद महाजन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह राजनाथ सिंह को अपने से बहुत कमतर मानते थे। आडवाणी के बाद महाजन खुद अध्यक्ष की कुर्सी चाहते थे। राजनाथ को अध्यक्ष बनाए जाने से प्रमोद महाजन के ईगो को जो ठेस लगी उसका बदला उन्होंने इस तरह से लिया। उधर आडवाणी जी ने भी कभी स्वीकार नहीं किया कि राजनाथ सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए हैं। पार्टी नेताओं के सार्वजनिक कार्यक्रमों की तारीख और समय आपस में सलाह मशवरा करके तय होते हैं और उसकी सूचना मीडिया को पार्टी कार्यालय से दी जाती है। लेकिन उस दौरान आडवाणी जी के कार्यक्रम की सूचना सीधे उनके दफ्तर से दी जाती थी। उनके कार्यक्रमों का पार्टी अध्यक्ष को पता मीडिया से ही पता चलता था। ऐसी ही स्थितियों के कारण राजनाथ सिंह अपने पहले कार्यकाल में ज्यादा कुछ नहीं कर पाए। सुषमा स्वराज,अरुण जेटली,वेंकैया नायडू,अनंत कुमार आदि भी राजनाथ को अध्यक्ष बनाए जाने से खुश नहीं थे, लेकिन संघ एक संदेश देना चाहता था कि जो लोग सीधे तौर पर आडवाणी जी से आइडेंटिफाई होते हैं,उनसे अलग कोई व्यक्ति होना चाहिए।

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इसी तरह 2009 में भी संघ ने नितिन गडकरी को भाजपा का अध्यक्ष बनवाया। यह बात उस समय डी-4 कहे जाने वाले दिल्ली के चार बड़े नेताओं को पसंद नहीं आई। उन सबके ईगो को ठेस पहुंची। लेकिन नितिन गडकरी का जो कामकाज करने का तरीका है वह राजनाथ सिंह जैसा नहीं है। नितिन गडकरी ने अपने मन मुताबिक काम किया हालांकि पूर्ति घोटाले में नाम आने के बाद उनको अध्यक्ष पद का दूसरा कार्यकाल संघ के चाहने के बावजूद नहीं मिला। उसके बाद फिर राजनाथ सिंह अध्यक्ष बन गए। यहां पार्टी का वीटो चला। 2014 में अमित शाह अध्यक्ष बने। यह भी पार्टी का फैसला था, जिस पर संघ की सहमति थी। अब सबसे ज्यादा ठेस किसको पहुंची?जो खुद को सीनियर समझते थे उन्हें। जब नितिन गडकरी अध्यक्ष थे तो अमित शाह को उनके दफ्तर के बाहर दो-दो, तीन-तीन घंटे इंतजार करवाया जाता था और वही अमित शाह अब अध्यक्ष बन गए। उसके बाद से नितिन गडकरी कभी सहज नहीं हो पाए। हालांकि 11 साल से वे केंद्र में मंत्री हैं, लेकिन अमित शाह की चर्चा कीजिए तो आपको पता चल जाएगा कि नितिन गडकरी के विचार उनके बारे में क्या हैं।


तो क्या इसका शिकार नितिन नवीन भी होंगे? हालांकि परिस्थितियां बदल चुकी हैं। यह फैसला संघ के वीटों से नहीं आया है। मेरा मानना है कि संघ और भाजपा की सहमति से यह फैसला हुआ है। नितिन नवीन वैचारिक परिवार से आते हैं। युवा हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह दोनों की पसंद हैं। अब इन दोनों की पसंद के बाद तो किसी और की हिम्मत नहीं होगी कि नितिन नवीन के खिलाफ कुछ करें। लेकिन अध्यक्ष पद के दावेदार के रूप में जिनके नाम चल रहे थे,उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? वह किस तरह से इस नई परिस्थिति के अनुसार अपने को ढालने में सक्षम होंगे या नहीं, यह एक बड़ा सवाल है। यह सब कुछ नितिन नवीन के व्यवहार,उनके काम और उनकी परफॉर्मेंस पर निर्भर करेगा । नितिन नवीन के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद संगठन में परिवर्तन होना है और नई टीम बनेगी। उसके अलावा केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी बड़ा फेरबदल होगा। तो अगर किसी ने नितिन नवीन की नियुक्ति पर असंतोष जताया या नाराजगी दिखाई और वह मंत्रिमंडल में है, तो हो सकता है कि वहां से पत्ता कट जाए। इसलिए नितिन नवीन का मार्ग निष्कंटक हो, यह एक तरह से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने इंश्योर कर दिया है। भाजपा की एक बहुत बड़ी समस्या रही है कि जब भी वह सत्ता में आती है, उसके खिलाफ नाराजगी की शुरुआत सबसे पहले उसके कार्यकर्ताओं से होती है। क्योंकि पार्टी के सत्ता में आने के बाद कार्यकर्ता व उनकी मत्वाकांक्षा उसकी प्राथमिकता से बाहर हो जाते हैं। लेकिन चूंकि पार्टी से संघ जुड़ा हुआ है तो कार्यकर्ताओं में बहुमत ऐसे लोगों का है, जो वैचारिक आधार के कारण जुड़े हुए हैं। ऐसे हजारों-लाखों कार्यकर्ता मिलेंगे जो अपना पैसा खर्च करके पार्टी का काम करते हैं, लेकिन जब वे देखते हैं कि बाहर से आए या उन्हीं के साथ के बहुत से लोग दिन रात सिर्फ पैसा कमाने के बारे में सोचते हैं और उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं होता तब उनके मन में निराशा पैदा होती है कि भाई हमारे कमिटमेंट में कोई कमी नहीं है। दूसरे का कोई कमिटमेंट ही नहीं है और दोनों बराबर हैं और कई बार दूसरे को तरजीह मिलती है। इस समस्या का हल खोजने का काम नितिन नवीन को करना है। नितिन नवीन के काम से केवल पार्टी का नेतृत्व खुश हो, इससे काम नहीं बनने वाला। कार्यकर्ताओं में संतोष हो,उनमें उम्मीद जगे,मेरी नजर में यह उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। अब उस पर कितने खरे उतरेंगे, यह समय बताएगा।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)