चौधरी और नवीन की नियुक्ति से लेकर एसआईआर तक पर कर रहे कुतर्क।

प्रदीप सिंह।
बेहोश व्यक्ति की जब बेहोशी टूटने लगती है तब वह बहुत अल्ल-बल्ल बोलने लगता है। वह क्या बोल रहा है किसी की समझ में नहीं आता। ऐसी स्थिति में अगर किसी राजनीतिक दल का नेता आ जाए तब वह क्या करता है?वह वही करता है जो इस समय उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कर रहे हैं। अखिलेश ने पिछले कुछ समय से पीडीए-पीडीए चिल्लाना शुरू किया है। पीडीए मतलब पिछड़ा,दलित और अल्पसंख्यक। हालांकि अखिलेश के लिए इसका मतलब है यादव और मुसलमान। उनको लगता है कि पीडीए-पीडीए कहकर वे पिछड़ों के मसीहा बन गए हैं। उनको थोड़ा सा सच्चाई की ओर भी ध्यान देना चाहिए। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का जन्म 1992 में हुआ था। जबकि यूपी में ही उनकी जो मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी है भाजपा उसने 1984 में ही पिछड़ा वर्ग के लोध समाज से आने वाले कल्याण सिंह को अपना विधायक दल का नेता बना दिया था और 1992 में तो उन्हें यूपी का मुख्यमंत्री बना दिया।

 

क्या समाजवादी पार्टी में यादव परिवार के अलावा कोई यह कल्पना भी कर सकता है कि वह मुख्यमंत्री के पद तक पहुंच सकता है? कुर्मी समाज से आने वाले पंकज चौधरी जब से उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बने हैं,अखिलेश यादव को लग रहा है कि उनका पीडीए का कार्ड चला गया है क्योंकि उनके पीडीए में तो गैर यादव पिछड़ी जातियां शामिल ही नहीं हैं। यूपी में पिछड़े वर्ग में यादवों के बाद सबसे ज्यादा आबादी कुर्मी समाज की है। जब पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो वे कुछ कह नहीं पाए लेकिन जब भाजपा ने नितिन नवीन को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया तो अखिलेश ने कहना शुरू कर दिया कि भाजपा में सात बार का सांसद प्रदेश अध्यक्ष बनता है और पांच बार का एमएलए राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाता है। वे यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा पिछड़ा विरोधी है। लेकिन उनको यह दिखाई नहीं दे रहा है कि भाजपा ने ही पंकज चौधरी को सात बार टिकट दिया। पंकज इसके  अलावा केंद्र में दो बार मंत्री रह चुके हैं। जरा अखिलेश बताएं कि उनकी पार्टी में यादवों के अलावा किसी और को इतना बढ़ने का मौका मिला है।

दरअसल पंकज चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनने से अखिलेश को अपने पैर के नीचे की जमीन खिसकती हुई दिखाई दे रही है। अखिलेश यह भी भूल गए हैं भाजपा ने ओबीसी समाज के व्यक्ति को ही देश का प्रधानमंत्री बनाया और वह 11 साल से लगातार पद पर है। अखिलेश जब सीनियर और जूनियर की बात करते हैं तो बताएं कि जब 2012 में वे मुख्यमंत्री बने थे तो पार्टी में आजम खान उनसे सीनियर थे या जूनियर। वैसे भी सपा में जब यादव से कुछ बचेगा तब मुसलमान को मिलेगा। 2007 में ही मुलायम सिंह यादव ने मुसलमानों को बता दिया था कि गलतफहमी में मत रहना। दरी तो तुम्हें ही बिछानी पड़ेगी और कुर्सी पर तो हमारे परिवार का यादव ही बैठेगा। मुलायम सिंह यादव की पार्टी में बेनी प्रसाद वर्मा कुर्मी समाज के बड़े नेता थे, लेकिन मुलायम सिंह यादव ने उनको सीएम तो छोड़िए,डिप्टी सीएम तक नहीं बनाया। और अखिलेश यादव को शायद यह भी याद नहीं है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा ने पिछड़ा वर्ग के केशव प्रसाद मौर्य को अपना प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। पंकज चौधरी और नितिन नवीन की तुलना करके अखिलेश दरअसल कुर्मी समाज का अपमान कर रहे हैं।

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भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष या मैं कहता हूं कि राष्ट्रीय अध्यक्ष से भी बड़ा पद है क्योंकि भाजपा एक राष्ट्रीय पार्टी है। अखिलेश यादव ने जब 2024 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद विधानसभा से इस्तीफा दिया और सपा विधायक दल का का नेता चुनने का मौका आया, तब उनको पीडीए क्यों नहीं याद आया? तो केवल बोलने से आप नैरेटिव नहीं खड़ा कर सकते। देश में आज दो ही राजनीतिक परिवार ऐसे हैं जिनके तीन या तीन से ज्यादा सदस्य संसद में हैं। गांधी परिवार से सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा। इनमें सोनिया राज्यसभा में हैं। जबकि अखिलेश यादव के परिवार से वे खुद, उनकी पत्नी डिंपल यादव और चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव। ये तीनों लोकसभा में हैं। इसके अलावा उनके चाचा रामगोपाल यादव राज्यसभा के सदस्य हैं। यहां तक कि उनके दूसरे चाचा शिवपाल यादव यूपी विधानसभा के सदस्य हैं। परिवार से बाहर सोचने की शक्ति अखिलेश यादव में नहीं है।

यूपी में एसआईआर को लेकर भी अखिलेश रोज नई-नई बातें कर रहे हैं। अभी उन्होंने कहा कि बीजेपी का 4 करोड़ वोटर गायब हो गया और उसका आधार उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक बयान को बनाया। योगी ने अपनी पार्टी के नेताओं से कहा था कि 4 करोड़ मतदाताओं का फॉर्म भरकर वापस नहीं आया है। इसका यह तो मतलब नहीं हुआ कि 4 करोड़ वोट कट गए, जो अखिलेश निकाल रहे हैं। यूपी में चुनाव कल तो होने नहीं जा रहा है। जिन लोगों ने अभी तक फार्म नहीं दिया वे आगे दे सकते हैं। अंतिम तारीख खत्म होने के बाद भी ऑनलाइन अप्लाई कर सकते हैं। लेकिन अखिलेश ने कहा कि भाजपा का 4 करोड़ वोट कटने से हर विधानसभा क्षेत्र से उसका 84,000 वोट कम हो गया और हमारे 40 हजार वोट हैं तो हम जीत जाएंगे।

SP chief Akhilesh Yadav gets ₹8 lakh challan for his car, blames BJP: 'Will trace and find out' | Today News

मतलब उन्होंने माना कि हर विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी का 84,000 वोट है और उनकी पार्टी का 40 हजार वोट है। आप इसी से समझिए कि वह अपनी पार्टी की ताकत उत्तर प्रदेश में कितनी आंकते हैं। शनिवार को उन्होंने एक और मुद्दा उछाला कि 2 करोड़ नए वोटर बनाए जा रहे हैं। उनका मानना है कि जो भी नया वोटर बनेगा, वह भाजपा का वोटर होगा। अगर दो करोड़ लोग वोटर बनने की योग्यता रखते होंगे तो ही बनेंगे और आपका बीएएलए भी तो है। अगर उसको लगे कि कुछ गड़बड़ हो रही है तो उस पर विरोध जता सकता है। तो या तो आपको अपने बीएलए पर भरोसा नहीं है या ऐसा लगता है कि आप मान चुके हैं कि 2027 का चुनाव हार गए हैं। हार का बहाना क्या होगा? आप उसकी तैयारी कर रहे हैं।

सपा के सामने समस्या यह भी है कि मायावती के सक्रिय होने से मुस्लिम वोट में भी बंटवारे का खतरा पैदा हो गया है। दूसरा कांग्रेस का भी पेच फंसा हुआ है। सपा का कांग्रेस से समझौता होता है तो सीटें छोड़नी पड़ेंगी और नहीं होगा तो मुस्लिम वोट के बंटवारे की आशंका बनी रहेगी। भाजपा को 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में जो झटका लगा था उससे वह उबर चुकी है। दूसरी ओर 2024 में जो मिला था, उसको अखिलेश यादव स्थाई उपलब्धि मान रहे हैं।

हालांकि अब उनको लगने लगा है कि पैर के नीचे से जमीन खिसकना शुरू हो गई है और 27 आते-आते कितनी बचेगी कुछ पता नहीं है। इसलिए वह इस तरह के बयान दे रहे हैं जिनको आप सिर्फ कुतर्क की श्रेणी में रख सकते हैं। अखिलेश धीरे-धीरे उसी तरह के होते जा रहे हैं जैसे राहुल गांधी हैं। अपनी ही दुनिया में रहो। जो हमको ठीक लगता है वही बोलते रहो। वे 2027 तक तो ऐसा बोल सकते हैं। उसके बाद मुझे नहीं लगता कि बोलने की स्थिति में रहेंगे।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)