योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाने को मुद्दा बनाएगी सबसे पुरानी पार्टी।

प्रदीप सिंह।

जिसका पतन हो रहा हो और उसे पता ही न चले कि उसका पतन हो रहा है तो स्थिति और कॉम्प्लिकेटेड हो जाती है। कांग्रेस पार्टी और उसके नेता राहुल गांधी की यही हालत है। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी उसको झुनझुना पकड़ाती है और कांग्रेस व राहुल गांधी मगन होकर उसे बजाते रहते हैं। उनको लगता है कि बहुत बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली है। ऐसे दो मु्द्दे हैं,जिनकी मैं चर्चा करूंगा।

Courtesy: NDTV.in

राहुल गांधी ने वोट चोरी को मुद्दा बनाया। उन्होंने कहा कि वोट चोरी से ही बीजेपी जीत रही है। मतलब उनका कहना था कि जो हार हो रही है उसके लिए कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का नेतृत्व कतई जिम्मेदार नहीं है। जनता इसे मानने को तैयार नहीं है। देश की अदालत भी इसे मानने को तैयार नहीं है। बिहार के तो जनादेश ने ही बता दिया है कि उसका इस मुद्दे पर क्या सोचना है। जब बिहार में एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन ऑफ इलेक्टोरल रोल्स) शुरू हुआ तो कांग्रेस ने वोट चोरी और एसआईआर पर चर्चा कराने की मांग को लेकर संसद का मानसून सत्र नहीं चलने दिया। चूंकि एसआईआर का काम चुनाव आयोग करा रहा है तो सरकार ने कहा कि चुनाव आयोग तो संसद में है नहीं और सरकार चुनाव आयोग की ओर से बोल नहीं सकती इसलिए संवैधानिक कारणों से इस पर चर्चा हो नहीं सकती। इस तरह की रूलिंग कांग्रेस के ही स्पीकर बलराम जाखड़ दे चुके हैं। जब संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ तब भी इन मामलों पर चर्चा कराने की मांग को लेकर कांग्रेस ने दो दिन बर्बाद कर दिए। इस पर भाजपा ने बहुत ही चालाकी से कांग्रेस को एक झुनझुना पकड़ा दिया। उसने कहा कि एसआईआर पर तो चर्चा नहीं हो सकती लेकिन चुनाव सुधार पर हो सकती है। चुनाव सुधार पर चर्चा के दौरान आप एसआईआर पर बोल लीजिएगा। इससे राहुल गांधी और कांग्रेस खुश हो गए लेकिन इस मुद्दे पर चर्चा की उनकी कोई तैयारी नहीं थी। वे भाजपा के ट्रैप में फंस गए। राहुल संसद में गृह मंत्री को यही चुनौती देते रहे कि मेरी तीन प्रेस कॉन्फ्रेंस पर संसद में चर्चा करा लीजिए। बाकी उनके पास इस मुद्दे पर बोलने के लिए कुछ था नहीं। इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि मैं किस बात को पहले रखूंगा, यह मैं तय करूंगा। आप नहीं तय करेंगे। उन्होंने सदन में कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए गांधी परिवार की ही तीन पीढ़ियों की वोट चोरी की पोल खोल दी, जिसका कोई जवाब कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के सदस्यों के पास नहीं था। कुल मिलाकर हुआ यह कि जिस मांग को लेकर कांग्रेस और राहुल सरकार को घेरना चाहते थे, खुद ही घिर गए।

Courtesy: NDTV Inida

इसी तरह सरकार ने संसद के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिनों में एक विधेयक पेश किया। उसने महात्मा गांधी नेशनल रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा) में संशोधन कर दिया। इसके साथ ही उसका नाम भी बदलकर उसमें से महात्मा गांधी शब्द हटा दिया और उसे विकसित भारत जी राम जी योजना कर दिया। भाजपा चाहती तो इस योजना में जो उसने आधारभूत परिवर्तन किए हैं, उन्हीं की बात करती नाम न बदलती लेकिन नाम बदलने से भाजपा को मालूम था कि कांग्रेस क्या करेगी और उसने वही किया। कांग्रेस के पास इस सारे मामले में मुद्दा सिर्फ यह है कि इसमें से महात्मा गांधी का नाम क्यों हटाया? जबकि मुद्दा तो यह होना चाहिए कि योजना में जो परिवर्तन किया गया है,उससे ग्रामीण समाज को फायदा होगा या नुकसान होगा। पुरानी योजना में क्या अच्छा था, जिसको हटा दिया गया और क्या बुरा है जो इस नई योजना में जोड़ दिया गया है।

सरकार ने अब इस योजना में आमूल परिवर्तन कर दिया गया है और इसको आजीविका से जोड़ दिया गया है। अब चार श्रेणियां होंगी, जिनमें मुख्य रूप से काम होगा। जल संरक्षण,आधारभूत संरचना,आजीविका और प्राकृतिक आपदा के समय ग्रामीणों के काम आ सके ऐसी परिसंपत्तियों का सृजन। उसके अलावा रोजगार की जो 100 दिन की गारंटी थी, उसको बढ़ाकर 125 कर दिया। मजदूरी भी बढ़ा दी और योजना का बजट भी बढ़ाकर 51 लाख करोड़ रुपये सालाना कर दिया। जरूरत पड़ने पर इसे और बढ़ा सकते हैं। साथ ही इसको प्रधानमंत्री गतिशक्ति योजना से जोड़ दिया गया है ताकि उसकी मॉनिटरिंग होती रहे। यानी इस योजना को पहले से बहुत बेहतर बना दिया गया है। इस योजना से ग्रामीण विकास का पूरा ढांचा बदलने वाला है।

मुझे तो लगता है कि भाजपा चाहती तो इस योजना का नाम न बदलती। हालांकि इस योजना के नाम बदलने के पीछे एक कारण यह भी है कि इसकी जो ओनरशिप कांग्रेस पार्टी के पास है, उसे भाजपा ने छीन लिया है। भाजपा ने पुरानी योजना में कई बदलाव कर उसका आकार इतना बढ़ा दिया कि यह एक तरह की नई योजना हो गई। तो उसका मानना है कि इसकी ओनरशिप हम कांग्रेस को क्यों दें और फिर इसमें भारतीय संस्कृति से जी राम जी जोड़ दिया। वैसे भी भगवान राम का जैसे ही नाम आता है,कांग्रेस को बहुत ज्यादा ज्यादा मिर्ची लगती है। उसके साथी दल भी परेशान हो जाते हैं।


तो कांग्रेस अब कह रही है कि योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाना उनका अपमान है। कांग्रेस भूल गई कि राजीव गांधी के समय भी ग्रामीण रोजगार की योजना शुरू हुई थी, जिसका नाम था जवाहर रोजगार योजना। बाद में सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की सरकार ने जवाहर नाम हटा दिया। नरेगा नाम से इसे शुरू किया। तब कांग्रेस को यह नहीं नजर आया कि यह जवाहरलाल नेहरू का अपमान है। अब गांधी जी का नाम हटा तो उनको गांधी जी का अपमान लग रहा है। अब वह योजना का नाम बदलने के मामले पर आंदोलन की तैयारी कर रही है। हालांकि सोनिया गांधी की कांग्रेस ने कभी कोई आंदोलन नहीं किया है। वे आंदोलन की घोषणा या कहें आंदोलन की धमकी देते रहते हैं। आंदोलन करने के लिए उनके अंदर न तो पॉलिटिकल विल है और  ही संगठनिक शक्ति।

देखा जाए तो भाजपा ने कांग्रेस को यह नया झुनझुना पकड़ा दिया है। हालांकि इसका कांग्रेस पार्टी को कोई फायदा नहीं होने वाला है। योजना का नाम क्या है? इससे किसी को कोई असर नहीं पड़ता। उस योजना से लाभ हो रहा है या नुकसान, इससे असर पड़ता है। कांग्रेस जितने मुद्दे चुनती है, वे सब लंगड़े होते हैं। यह मुद्दा भी जमीन से कटा हुआ है। उसे पता ही नहीं है कि लोग चाहते क्या हैं? नापसंद क्या करते हैं? किस मुद्दे पर नाराज हो सकते हैं? किस पर खुश हो सकते हैं? फिलहाल तो एसआईआर और वोट चोरी का मुद्दा पीछे चला गया है। देखना है कि नया झुनझुना कांग्रेस कितनी देर बजा पाती है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और ‘आपका अखबार’ के संपादक हैं)