प्रदीप सिंह।
पंजाब में 45 हज़ार रजिस्टर्ड आढ़तिया हैं जिसमें से सिर्फ 32 हज़ार सक्रिय हैं। फिर इनमें 13 हज़ार आढ़तिया कहां गए?

 

ये 13 हजार आढ़तिया वे लोग हैं जो रजिस्टर्ड आढ़तियों के घर के लोग/रिश्तेदार या दोस्त-परिचित हैं। उनके नाम से आढ़तिया का रजिस्ट्रेशन करा कर रखा हुआ है ताकि मौका पड़ने पर कभी काम आ सके। इन पर सरकार की ओर से कोई रोक नहीं है। इनकी कोई जांच-पड़ताल नहीं होती।

सब आपस में मिले हुए

जो 13 हज़ार आढ़तिया सक्रिय नहीं हैं इनका रजिस्ट्रेशन क्यों ना रद्द कर दिया जाए- ऐसा पूछने कहने वाला कोई नहीं है …क्योंकि आढ़तिया, राज्य सरकार और  राजनीतिक दल सब आपस में मिले हुए हैं। कोई इस गलतफहमी में कतई ना रहे कि वहां राजनीतिक पार्टियों में कोई भेद है।पंजाब में चाहे अकाली दल सत्ता में हो या कांग्रेस- आढ़तियों के तंत्र पर इसका कोई असर नहीं पड़ता। आढ़तिया का तंत्र बिल्कुल सहज तरीके से वैसा ही चलता रहता है। दोनों पार्टियों में से किसी का भी नेता इसका कोई विरोध नहीं करता।

मंडियों का संचालन

Punjab govt deputes 3,195 guardians of governance to assist Mandi Board

कहते हैं कि पंजाब में हर पांच किलोमीटर पर  एक मंडी या अनाज विक्रय केंद्र है और लगभग 152 बड़ी मंडिया हैं। मंडियों के संचालन के तौर-तरीकों के बारे में आप इस बात से अंदाजा लगाइए कि नियमों के मुताबिक इन मंडियों के चेयरमैनों का चुनाव  होना चाहिए। पिछला चुनाव कब हुआ था इस पर मैंने बहुत से लोगों से बात की लेकिन किसी को उन याद नहीं है कि आखिरी बार चुनाव कब हुआ।

बर्खास्त क्यों नहीं होती ‘ऐसी मंडियां’

अगर चुनाव नहीं होता तो फिर मंडियों का कामकाज चलता कैसे है। क्यों नहीं मंडी परिषद इन मंडियों को बर्खास्त कर देती और उनमें एडमिनिस्ट्रेटर बिठा दिया जाता। ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि हर साल चुनाव के समय इस आशय का एक प्रस्ताव पास कर दिया जाता है- क्योंकि समय कम है इसलिए चुनाव नहीं हो सकता, सारे अधिकार राज्य सरकार को स्थानांतरित किए जा रहे हैं। मंडी के सारे अधिकार राज्य सरकार को दिए जा रहे हैं- यह सुनकर किसी को भी लगेगा कि इसमें क्या समस्या है। राज्य सरकार एक जिम्मेदार और चुनी हुई सरकार है। आखिर लोगों ने उसे समर्थन देकर भेजा है। अगर उसके पास अधिकार है तो इसमें क्या गलत है?

लंबे हाथ मारती राज्य सरकार

अब देखिए कि राज्य सरकार करती क्या है?  सरकार मंडी समिति में चेयरमैन से लेकर उसके सदस्यों तक सबको  नॉमिनेट (मनोनीत) करती है। इसके अलावा कई मार्केटिंग की भी समितियां होती है और ये बहुत शक्तिशाली होती है। ये शक्तिशाली  इसलिए होती हैं क्योंकि आढ़तियों को जो ढाई पर्सेंट कमीशन मिलता है उसके अलावा किसान से जो 6 परसेंट लिया जाता है (3 फीसदी मंडी शुल्क और 3 फ़ीसदी ग्रामीण विकास फंड) उसको खर्च यही मार्केटिंग समितियां करती हैं। इसके अलावा भी कई समितियां होती हैं जैसे अनाज की समिति, फल सब्जी की समिति, पशुओं के व्यापार की समिति- यानी जितनी बड़ी मंडी उतना ज्यादा पैसा। और बात यहीं तक नहीं है।

मंडी में सब लूटते हैं किसान को

Punjab farmer unions to corner Cong govt

किसान के मंडी में पहुंचते ही उससे लूट का सिलसिला शुरू हो जाता है। पल्लेदार से लेकर तमाम व्यवस्थाएं हैं जिनमें हर कदम पर किसान को पैसा देना पड़ता है। दो और जगह किसान को पैसा देना पड़ता है। एक- जब किसान मंडी में आता है तो आढ़तिया का एक आदमी वहां पर आता है। वह अनाज का बोरा खोलता है और हाथ में लेकर जमीन पर अनाज गिराता है- यह देखने के लिए उसमें कितना कूड़ा है और कितनी नमी है। जमीन पर जो अनाज गिरता है वह किसान को नहीं मिलता। कहा जाता है कि वह गौशाला को जाता है। वह अनाज गौशाला को जाता है या नहीं- इसका कोई हिसाब नहीं है। दूसरा- किसान से एक और पैसा लिया जाता है धर्म खाते के लिए। कहा जाता है कि यह पैसा मंदिरों और गुरुद्वारों के विकास और रखरखाव के लिए जाता है लेकिन उसका भी कोई हिसाब नहीं होता। मजे की बात यह है कि चाहे मंदिर की व्यवस्था हो चाहे गुरुद्वारे या गौशाला की यह सारा पैसा किसान दे रहा है- इसमें राज्य सरकार कुछ नहीं दे रही है, आढ़तिया जो कमीशन लेता है वह कुछ नहीं दे रहा है, मंडी समिति कुछ नहीं दे रही- ये सब पैसा ले रहे हैं किसान से।

सारी समस्या केवल पंजाब में

देखते हैं कि बाकी राज्यों में क्या व्यवस्था है। पंजाब में किसान से कुल 8.5 फ़ीसदी लिया जाता है और हरियाणा में 6.5 फ़ीसदी। हरियाणा और बाकी अन्य राज्यों ने सरकार के कहने पर यह कंप्यूटराइज व्यवस्था बना ली है कि किसानों का खाता बही उनके यहां ऑनलाइन दर्ज होगा। :मेरा बहीखाता मेरा अनाज’ नाम से एक पोर्टल बन गया है। इसमें किस किसान की कितनी जमीन है, उस पर उसने कितनी खेती की और कितनी फसल हुई- यह सब दिख जाता है। तो बाहर से अनाज लाकर बेचने का धंधा बाकी राज्यों में नहीं होता। वैसे वह पंजाब और हरियाणा के अलावा और कहीं था भी नहीं। पंजाब में अभी भी यह बदस्तूर चल रहा है। उसने केंद्र सरकार से यह कहते हुए 6 महीने के लिए एक्सटेंशन ले लिया है कि अभी हमारी तैयारी नहीं है और पूरी तरह से कंप्यूटराइजेशन नहीं हो पाया है। पंजाब ने केंद्र सरकार से कहा कि इसके लिए हमें 6 महीने का एक्सटेंशन दे दीजिए वरना किसानों को परेशानी होगी।

एमएसपी के पीछे का खेल

अभी दो दिन पहले पंजाब में गेहूं के सात हज़ार से नौ हजार बोरे पकड़े गए हैं जो मंडी में बेचने के लिए बिहार से लाए गए थे। पंजाब में एमएसपी के पीछे का जो खेल है वह क्यों नहीं टूट पा रहा है -उसका यही कारण है। दूसरे राज्यों से सस्ता अनाज लाकर पंजाब में एमएसपी पर बेचा जाता है और इस लूट में सभी भागीदार होते हैं। इसी कारण लूट का यह तंत्र चल रहा है।
जब 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो उसने 2015 में सभी राज्यों से कहा कि आप अपनी मंडियों का कंप्यूटराइजेशन और मॉर्डनाइजेशन कीजिए। अब सब कुछ ऑनलाइन होना चाहिए, कोई खरीद-फरोख्त ऑफलाइन नहीं होगी। सारा हिसाब किताब ऑनलाइन होना चाहिए। तब राज्यों ने कहा कि इसके लिए हमें पैसे की दिक्कत होगी। केंद्र सरकार ने मंडियों के आकार के आधार पर कि उससे कितने किसान जुड़े हैं, राज्यों को 32 से 50 लाख रुपए एकमुश्त खर्च के तौर पर मंडियों के कंप्यूटरीकरण और आधुनिकीकरण के लिए दिए।

यूपी में घाटे की मंडियां फायदे में चल पड़ीं

यूपी में ई-मण्डी और ई-गवर्नेस की व्यवस्था हुई लागू

हम उत्तर प्रदेश के बात करें तो 2015 में वहां अखिलेश यादव की सरकार थी और उसने इस बारे में 2 साल तक कुछ नहीं किया। 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी। उन्होंने मंडियों के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि सभी मंडियां घाटे में चल रही हैं। योगी जी को आश्चर्य हुआ कि जो संस्थान कमीशन लेते हैं वो घाटे में कैसे चल रहे हैं? उन्हें पता चला कि विभिन्न विभागों से अधिकारी कर्मचारी डेपुटेशन पर यहां आए हुए हैं। उन्होंने सभी डेपुटेशन धारकों को उनके मूल विभागों में वापस भेज दिया। तब मंडियों के सफाई व्यवस्था का यह आलम हुआ करता था कि आप किसी भी इलाके में जाएं तो वहां जो सबसे गंदा इलाका दिखे, समझ लें कि यही मंडी है।
योगी जी ने मंडियों के सफाई की व्यवस्था कराई। मंडियों का कंप्यूटराइजेशन और मॉडर्नाइजेशन कराया। फिर वहां के लोगों ने कहा कि यहां तो कोई कंप्यूटर चलाना जानता ही नहीं। फिर 15 हज़ार रुपये से कंप्यूटर ऑपरेटर की व्यवस्था की गई। सब कुछ ऑनलाइन हो गया। उसके बाद मुख्यमंत्री ने मंडी शुल्क भी घटा दिया। ध्यान देने की बात है कि उत्तर प्रदेश में मंडियां पहले ही घाटे में चल रही थीं। इसके बावजूद योगी सरकार ने मंडी शुल्क घटाने का कदम उठाया। वहां मंडी शुल्क केवल 2:5 फ़ीसदी है इससे कम केवल मध्य प्रदेश में है 2.2 फ़ीसदी उत्तर प्रदेश में दो फ़ीसदी मंडी शुल्क है और आधा फ़ीसदी आढ़तियों का कमीशन है। हिसाब किताब ऑनलाइन करते ही सारी मंडियां मुनाफे में आ गईं। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में लूट का कितना बड़ा संजाल चल रहा था। पंजाब में अभी भी चल रहा है। बाकी राज्यों में बंद हो चुका है। पंजाब में लूट के इस संजाल को वहां के राजनीतिक दल और सरकार मिलकर चला रहे हैं। जो भी राजनीतिक दल सत्ता में हो इसमें उसकी पूरी संलिप्तता है।

हर सरकार आढ़तियों की पैरोकार

पंजाब में 10 अप्रैल को आढ़तियों ने हड़ताल की घोषणा की थी और उसी दिन शाम तक हड़ताल टूट गई। 10 अप्रैल को ही आरोपियों और सरकार में समझौता हो गया। वह समझौता क्या था? केंद्र सरकार का स्पष्ट निर्देश था कि फसल का पूरा पैसा किसानों के खाते में जाएगा। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पूरा पैसा किसानों के बैंक खाते में भेजेगी। पैसा आढ़तियों के खाते में नहीं जाएगा। इसे राज्य सरकार ने मान भी लिया। फिर वह कौन सी बात थी जिस पर आढ़तिया मान गए।
पंजाब सरकार ने एक चोर दरवाजा निकाला। नियम है कि एफसीआई अनाज की जो खरीद करेगी उसके 72 घंटे के भीतर पैसा किसान के खाते में चला जाना चाहिए। अगर किसी कारण इस समय सीमा के भीतर किसान के खाते में पैसा नहीं जा पाता है तो एफसीआई को उस पर ब्याज देना पड़ेगा। राज्य सरकार ने इसी 72 घंटे के नियम का फायदा उठाया और आढ़तियों से कहा कि हम तुम्हारी व्यवस्था करते हैं। समझौता क्या किया? यह कि 72 घंटे में 48 घंटे का समय आढ़तिया के पास होगा। किसान को कुल कितना पैसा मिल रहा है इसकी सूचना किसान से पहले आढ़तिया के पास पहुंच जाएगी। जब आढ़तिया संकेत करेगा तब वह पैसा किसान के खाते में जाएगा। 48 घंटे का समय आढ़तिया को दिया कि वह इस दौरान मिसन से अपन्स हिसाब क्लियर कर ले। अगर ऐसा नहीं कर पाएगा तो 72 घंटे में पैसा अपने आप किसान के खाते में चला जाएगा।

किसान से ब्लैकमेल को ‘सरकारी’ प्रोत्साहन

सच्चाई यह है कि आढ़तिया को यह 48 घंटे का समय किसान को ब्लैकमेल करने के लिए दिया गया। आढ़तिया किसान को फोन करेगा कि तुम्हारा इतना पैसा बना है, हमें इतना पैसा या इस राशि के पोस्टपेड चेक दे दो- तब तुम्हारा पैसा रिलीज करेंगे।
ज्यादातर किसानों को सरकारी नियम कानूनों की इतनी जानकारी नहीं होती।
जबकि आढ़तिया का सिस्टम पहले से चल रहा होता है, उसे वे जानते हैं और उसमें वे फंस जाते हैं।

पैसा मिलने से पहले आढ़ती चेक मांग रहे

किसान शिकायत कर रहे हैं कि उन्हें भुगतान मिलने से पहले आढ़तियों की ओर से चेक मांगा जा रहा है। राज्य सरकार और कोई भी राजनीतिक दल इस पर कुछ नहीं बोल रहा है। सब के सब चुप हैं। किसानों के हक की बहुत बड़ी लड़ाई लड़ रहे किसान संगठन भी इस पर कुछ नहीं बोल रहे हैं। वे केंद्र सरकार की इस बात के लिए तो प्रशंसा कर रहे हैं कि किसानों को सीधे उनके खाते में पैसा मिल रहा है जो बहुत अच्छा काम है। कई किसानों ने यह कहा कि हमने पहली बार देखा कि हम फसल बेचकर आए और हमारे खाते में पैसा आ गया है। हमने कभी यह कल्पना नहीं की थी कि इस प्रकार से होगा पर यह हो रहा है।

किसान का हित आढ़ती को बेचा

अब सवाल यही है कि आढ़तिया को यह 48 घंटे का समय क्यों दिया अमरिंदर सरकार ने? फसल उगाने और बेचने वाला किसान। किसान फसल बेच रहा है। एफसीआई फसल खरीद रही है और किसान को पैसा दे रही है। अगर हम कोई चीज बेच रहे हैं और दूसरा खरीद रहा है तो हमें कितना पैसा मिल रहा है इसकी जानकारी किसी तीसरे को क्यों दी जाएगी। संविधान, कानून, बैंकिंग व्यवस्था, सरकारी आदेश- कहीं कोई ऐसा नियम नहीं है कि हमको मिलने वाली राशि की जानकारी किसी तीसरे को दी जाएगी। लेकिन यह पंजाब में हो रहा है और इसलिए हो रहा है क्योंकि वहां आढ़तियों के तंत्र को बनाए रखना है। केंद्र सरकार कोशिश करती रहे लेकिन जो जो नियम वह बदलेगी, उसमें से चोर दरवाजा ‘हम’ निकाल लेंगे।

उम्मीद : बन्द होगा चोर दरवाजा

उम्मीद की जानी चाहिए कि अगली फसल तक यह चोर दरवाजा बंद हो जाए। अगर आढ़तियों का मकड़जाल नहीं टूटेगा तो किसानों को उनके चंगुल से मुक्ति नहीं मिलने वाली है। सवाल यह है कि किसानों की हितेषी, किसानों के विकास की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली राज्य सरकारें, किसान संगठन, राजनीतिक दल, किसान नेता जो किसानों के नाम पर देश दुनिया घूमते हैं- वे किसानों के हक के लिए इस लूटतंत्र के खिलाफ खड़े क्यों नहीं हो रहे हैं? किसानों तक भी यह बात पहुंचनी चाहिए कि उनको लूटा जा रहा है और इसके खिलाफ उनको खड़ा होना है, न कि उन चीजों के खिलाफ जो उनके हित में हैं।