प्रहलाद सबनानी।
हाल ही के समय में भारतीय युवाओं ने भारतीय संस्कृति के नियमों का अनुपालन करने की ओर अपने पग बढ़ा दिए हैं। “वसुधैव कुटुम्बकम” के भाव को आत्मसात करते हुए अन्य कई देशों में उच्च शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से एवं अपनी उच्च शिक्षा समाप्त करने के पश्चात आज भारतीय युवा रोजगार प्राप्त करते हुए इन देशों में आसानी से रच बस रहे हैं।

आज कई विकसित देशों में तकनीकी, स्वास्थ्य एवं रीसर्च जैसे क्षेत्रों में भारतीय मूल के नागरिकों का दबदबा बन गया है। इन देशों की अर्थव्यवस्था को गति देने में भारतीय मूल के नागरिकों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। कई अन्य देशों में रचे बसे भारतीयों ने अपनी हिंदू सनातन संस्कृति का पालन करते हुए अपनी छाप छोड़ी है। इसके चलते ही आज कई देश – रूस, जापान, इजराईल, वियतनाम, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, फ्रान्स एवं अन्य कई देश – भारतीय युवाओं की खुले रूप से मांग करने लगे हैं। विशेष रूप से विकसित देशों में आज श्रमबल की भारी कमी महसूस की जा रही है क्योंकि इन देशों में बुजुर्गों की संख्या बहुत तेज गति से बढ़ रही है और इन देशों में युवाओं द्वारा बच्चे पैदा नहीं करने अथवा कम बच्चे पैदा करने के चलते युवाओं की बहुत कमी हो गई है। इसीलिए भी विश्व के कई देश आज भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते को शीघ्रता के साथ अंतिम रूप देना चाहते हैं ताकि वे भारत से श्रमबल को अपने देशों में विशेष सुविधाएं देकर आकर्षित कर सकें।
इस समय रूस लगभग 20 लाख कामगारों की कमी से जूझ रहा है। 4 एवं 5 दिसम्बर 2025 को रूस के राष्ट्रपति श्री व्लादिमीर पुतिन, 23वें भारत रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने हेतु, भारत में आए थे। रूस के राष्ट्रपति की भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी से द्विपक्षीय चर्चा में अन्य मुद्दों के साथ साथ भारतीय युवाओं के लिए रूस द्वारा अपने दरवाजे खोलने पर भी गम्भीर चर्चा हुई थी। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2017 में प्रारम्भ हुए यूरेशियाई आर्थिक संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते को आगे बढ़ाते हुए उक्त 23वें भारत रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भारत एवं रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से रूस में भारत द्वारा निर्यात की जाने वाली 90 प्रतिशत वस्तुओं पर वर्ष 2028 तक शून्य टैरिफ सम्बंधी शर्तों को अंतिम रूप दिया गया। इससे भारतीय फार्मा और वस्त्र उद्योग के लिए तीन करोड़ उपभोक्ताओं का बाजार खुल जाएगा, जिससे प्रति वर्ष लगभग 1500 से 2000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। यूरेशियाई आर्थिक संघ में रूस, बेलारूस, कजाकिस्तान, आर्मेनिया और किर्गिस्तान शामिल हैं। इस महत्वपूर्ण समझौते के अंतर्गत भारत वर्ष 2030 तक सूचना प्रौद्योगिकी, निर्माण और नर्सिंग के क्षेत्रों में रूस को लगभग 5 लाख भारतीय श्रमबल उपलब्ध कराएगा। इससे भारत को अपने रोजगार सृजन के लक्ष्य को पूरा करने और अपनी जनसांख्यिकी बढ़त का लाभ उठाने का अवसर मिलेगा। रूस के उद्योगपतियों एवं उद्यमियों के संघ के उपाध्यक्ष ने तो बताया है कि रूस को 50 लाख कुशल श्रमिकों की आवश्यकता है और भारत रूस की इस कमी को पूरा करने में अपनी अहम भूमिका निभा सकता है।

आज इजराईल भी, विशेष रूप से हम्मास के साथ हुए संघर्ष के बाद से, निर्माण के क्षेत्र में कुशल श्रमिकों की कमी से जूझ रहा है और भारत की ओर बहुत आशाभारी नजरों से देख रहा है। इजराईल ने भारत से एक लाख श्रमिकों को उपलब्ध कराने हेतु आग्रह किया है। इजराईल ने भारत के साथ इस सम्बंध में एक द्विपक्षीय रूपरेखा करार भी किया है। भारतीय संसद में उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, इस करार के अंतर्गत, 1 जुलाई 2025 तक 6,774 भारतीय कामगारों को इजराईल भेजा जा चुका है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इजराईल भेजे जाने वाले श्रमिकों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है ताकि उत्तर प्रदेश से अधिकतम युवाओं को इजराईल भेजकर उन्हें वहां पर आसानी से रोजगार उपलब्ध कराया जा सके।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एवं जापान के प्रधानमंत्री श्री शिगेरू इशिबा के बीच 29-30 अगस्त, 2025 को जापान में हुई बैठक में भारत और जापान के बीच रणनीतिक सहयोग की दिशा में एक दूरदर्शी मार्ग प्रशस्त किया है और दोनों देशों के बीच अगले दशक के लिए एक व्यापक संयुक्त विजन की नींव रखी गई है। जापान ने आगामी दस वर्षों में भारत में अपने निवेश को 2024 के स्तर, लगभग 4,300 करोड़ अमेरिकी डॉलर, से बढ़ाकर, 6,800 करोड़ अमेरिकी डॉलर (10 लाख करोड़ जापानी येन) करने की प्रतिबद्धत्ता दिखाई है। पूंजी के प्रवाह के साथ ही, जापान एवं भारत ने एक “पीपल टू पीपल” आदान प्रदान कार्यक्रम को भी आगे बढ़ाने की बात कही है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य है कि जापान की प्रौढ़ हो रही आबादी के चलते वहां के संरचनात्मक श्रमबल के क्षेत्र में कमी को कम करने और भारत के डेमोग्राफिक डिवीडेंड का लाभ उठाने के लिए आने वाले 5 वर्षों में जापान में 5 लाख भारतीय छात्रों और श्रमिकों को भेजने के लक्ष्य को लेकर दोनों देश काम करेंगे। जापान, भारतीय नर्सों के लिए भी अवसर गढ़ने का प्रयास कर रहा है क्योंकि वहां चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सकों एवं नर्सों की भारी कमी है, जबकि जापान में बुजुर्गों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है।

इन्वेस्टमेंट बैंकर श्री सार्थक आहूजा की एक रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी, जापान, फिनलैंड एवं ताईवान भारतीय श्रमिकों की सक्रिय रूप से तलाश कर रहे हैं। जर्मनी में स्वास्थ्य सेवा, आईटी, इंजीनीयरिंग और निर्माण जैसे क्षेत्रों में पेशेवर श्रमिकों की भारी कमी है। जर्मनी प्रतिवर्ष लगभग 90,000 भारतीय कुशल श्रमिकों को वीजा जारी करने की योजना बना रहा है। जर्मनी में महत्वपूर्ण क्षेत्रों में 7 लाख से अधिक नौकरियां उपलब्ध हैं। फिनलैंड भारतीयों को आकर्षित करने के उद्देश्य से उन्हें स्थायी निवास प्रदान करने की पेशकश कर रहा है। ताईवान विनिर्माण के क्षेत्र में भारतीय श्रमिकों की तलाश में है।
भारतीय संसद में उपलब्ध कराई गई एक जानकारी के अनुसार पिछले 5 वर्षों के दौरान (जनवरी 2020 से 30 जून 2025 तक) कुल 16,06,964 भारतीय श्रमिकों को विभिन्न देशों में रोजगार के लिए मंजूरी प्रदान की गई है। भारत सरकार ने भारतीय श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न देशों से इस संबंध में विभिन्न प्रकार के समझौते भी सम्पन्न किये हैं। आस्ट्रिया, औस्ट्रेलिया, फ्रान्स, जर्मनी, इटली, डेनमार्क और यूनाइटेड किंगडम के साथ प्रवासन और आवाजाही भागीदारी समझौता सम्पन्न किया गया है। जापान, पुर्तगाल, ताईवान, मारीशस, मलेशिया और इजराईल के साथ श्रम आवाजाही समझौता सम्पन्न किया गया है। बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, साऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात और जॉर्डन जैसे खाड़ी सहयोग देशों (जी सी सी) के साथ श्रम और जन शक्ति सहयोग समझौता सम्पन्न किया गया है जो श्रम और जनशक्ति मुद्दों पर सहयोग के लिए व्यापक रूपरेखा प्रदान करते हैं। साऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात और कुवैत के साथ अलग अलग समझौता ज्ञापन (एम ओ यू) और समझौता घरेलू श्रमिकों के लिए सुरक्षा उपायों की रूपरेखा तैयार करता हैं। इन समझौता ज्ञापनों और करारों में एक संयुक्त कार्य समूह के माध्यम से कार्यान्वयन का प्रावधान है, जहां सम्बंधित देशों के साथ संयुक्त कार्य समूहों की नियमित बैठकों के दौरान श्रमिकों के कल्याण और सुरक्षा से सम्बंधित मामलों पर विचार किया जाता है।

विकसित देशों यथा यूरोपीय महाद्वीप के कई देश – यूनान, इटली, ब्रिटेन, फ्रांन्स आदि एवं इजराईल में भारतीय श्रमिकों की मांग बढ़ रही है। भारत ने श्रमिक उपलब्ध कराने के लिए वर्ष 2023 तक 17 देशों के साथ समझौते सम्पन्न किए हैं। विदेशों में काम करने वाले भारतीयों की संख्या वर्ष 1990 में 66 लाख से बढ़कर वर्ष 2024 में 185 लाख हो गई है, जो तीन गुना वृद्धि है। इसी अवधि में वैश्विक प्रवासियों में भारतीयों की हिस्सेदारी 4.3 प्रतिशत से बढ़कर 6 प्रतिशत से अधिक हो गई है। खाड़ी देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय विश्व के कुल प्रवासी भारतीयों का लगभग आधा हिस्सा है। यूरोप, जापान, रोमानिया, फिनलैंड, रूस, जर्मनी, साऊदी अरब और पश्चिम एशिया में भारतीय श्रमिकों की मांग को पूरा करने के लिए नेशनल स्किल डेवलपमेंट कारपोरेशन (NSDC) भारतीय युवाओं को प्रशिक्षण भी प्रदान कर रहा है। NSDC अभी तक लगभग 60,000 भारतीय युवाओं को जापान, जर्मनी, इजराईल, ब्रिटेन, बहरीन एवं साऊदी अरब जैसे देशों में रोजगार दिला चुका है। विश्व के कई देशों में कुशल श्रमिकों के रूप में भारतीय युवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसीलिए केंद्र सरकार द्वारा कौशल विकास योजना चलाई जा रही है जिसका उद्देश्य देश में कुशल श्रमिकों की मांग को पूरा करना है तथा भारत को ग्लोबल मैनपावर सप्लायर के रूप में स्थापित करना भी लक्ष्य है। यह रणनीति भारत के युवा आबादी को देखते हुए विशेष तौर पर बहुत महत्वपूर्ण है। यूरोप, जापान और अन्य देशों में आबादी बूढ़ी हो रही है, ऐसे समय में यह भारत के पास एक बड़ा अवसर है। केंद्र सरकार की यह कोशिश है कि अधिक से अधिक युवाओं को रोजगार मिल सके। इसके लिए कौशल विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है एवं अन्य देशों में भी भारतीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर तलाशे जा रहे हैं।
(लेखक भारतीय स्टेट बैंक के सेवानिवृत्त उपमहाप्रबंधक हैं)



