ओशो
महामारी से कैसे बचें?
महामारी से कैसे बचें… यह प्रश्न ही आप गलत पूछ रहे हैं। प्रश्न ऐसा होना चाहिए था- महामारी के कारण मेरे मन में मरने का जो डर बैठ गया है उसके संबंध में कुछ कहिए? इस डर से कैसे बचा जाए?
महामारी से बचना आसान
महामारी से बचना तो बहुत ही आसान है, लेकिन जो डर आपके और दुनिया के अधिक लोगों के भीतर बैठ गया है, उससे बचना बहुत ही मुश्किल है। अब लोग इस महामारी से कम- इस डर के कारण ज्यादा मरेंगे…।
‘डर’ से ज्यादा खतरनाक इस दुनिया में कोई भी वायरस नहीं है। इस डर को समझिए, अन्यथा मौत से पहले ही आप एक जिंदा लाश बन जाएंगे। ‘डर’ में रस लेना बंद कीजिए। आमतौर पर हर आदमी डर में थोड़ा बहुत रस लेता है, अगर डरने में मजा नहीं आता तो लोग भूतहा फिल्म देखने क्यों जाते?
डर का मनोविज्ञान
अपने भीतर के इस रस को समझिए। इसको बिना समझे आप डर के मनोविज्ञान को नहीं समझ सकते हैं। अपने भीतर इस डरने और डराने के रस को देखिए, क्योंकि आम जिंदगी में जो हम डरने-डराने में रस लेते हैं, वो इतना ज्यादा नहीं होता है कि आपके अचेतन को पूरी तरह से जगा दे। सामान्यत: आप अपने डर के मालिक होते हैं, लेकिन सामूहिक पागलपन के क्षण में आपकी मालकियत छिन सकती है। आपका अचेतन पूरी तरह से टेकओवर कर सकता है। आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आप दूसरों को डराने और डरने के चक्कर में नियंत्रण खो बैठे हैं।
महामारी का अर्थ
हम बड़े बैचेन हो जाते हैं जब महामारी फैल जाए, लोग मरने लगें। लेकिन एक बात पर हम ध्यान कभी नहीं देते हैं कि सभी को मरना है। महामारी फैले कि न फैले। इस जगत में 100 प्रतिशत लोग मरते हैं। आपने कभी खयाल किया कि ऐसा नहीं की 99 प्रतिशत मरते हों, 98 प्रतिशत मरते हों। अमेरिका में कम मरते हों या भारत में ज्यादा मरते हों। यहां 100 प्रातिशत लोग मरते हैं। जितने बच्चे पैदा होते हैं, उतने सभी मरते हैं।
महामारी तो फैली ही हुई है। महामारी का और क्या अर्थ होता है? जहां बचने का कोई उपाय नहीं, जहां कोई औषधि काम नहीं आएगी। साधारण बीमारी को हम कहते हैं कि जहां औषधि काम आ जाए। महामारी को कहते हैं जहां कोई औषधि काम न आए। जहां हमारे सब उपाय टूट जाए और मृत्यु अंततः जीते।
सदा से फैली हुई है महामारी
महामारी तो फैली हुई है। सदा से फैली हुई है। इस पृथ्वी पर हम मरघट में ही हैं। यहां मरने के अतिरिक्त और कुछ होने वाला नहीं है। देर सबेर यह घटना घटेगी। वैशाली के लोगों ने ये कभी न देखा था कि सभी लोग मरते हैं। यदि ये देखा होता तो भगवन को पहले ही बुला लाते कि हमें कुछ जीवन के सूत्र दे देते कि हम भी जान सकें की अमृत क्या है, लेकिन नहीं गए क्योंकि महामारी फैली हुई थी।
जरा भी नहीं सोचते जीवन के संबंध में
आदमी ने कुछ ऐसी व्यवस्था की है कि मौत दिखाई नहीं पड़ती। जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है वहां दिखाई नहीं पड़ती और जो व्यर्थ की बातें हैं वह खूब दिखाई पड़ती हैं। तुम एक कार या मकान खरीदते हो तो कितना सोचते हो, रातभर सोते नहीं, कितनी खोजबीन करते हो। तुम सिनेमाघर जाते हो तो कितना सोचते हो, लेकिन तुम जीवन के संबंध में जरा भी नहीं सोचते हो। तुम ये भी नहीं देखते हो कि जीवन हाथ से बहा जा रहा है और मौत रोज पास आए चली जा रही है। मौत द्वार पर खड़ी है। कब चली आएगी कहां ले जा सकती है? हमने जिस तरह से झुठलाया है मौत को- जिसका हिसाब नहीं।
(ओशो के विभिन्न प्रवचनों के सम्पादित अंश)