सर्जना शर्मा।
शीर्षक पर रख़शां हाशमी का शेर इस बात की तर्जुमानी है कि हम भारतीय उपमहाद्वीप के लोग चाय के कितने दीवाने हैं। हमारे लिए तो हर दिवस चाय दिवस है हालांकि अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस 21 मई को मनाया जाता है। मेरे जीवन की चाय यात्रा बहुत रोचक है। मुझे याद है मेरी बीजी और पापा जी दोनों बेड टी के आदी थे। जब हम बड़े हुए तो उनको मैं या मेरी बहन बेड टी बना कर देते थे। मेरे पापा खुद भी बना लिया करते थे।
पापा जी ने सिखाया चाय बनाना
दरअसल पापा जी ने हमें चाय बनाना सिखाया था। एक कप पानी में एक चौथाई दूध, आधा चम्मच चाय, एक छोटा चम्मच चीनी। पापा जी ने सिखाया था पहले पानी को उबालो- फिर पत्ती डालो- हल्का उबालो- दूध और चीनी डालो- फिर गैस बंद कर दो। हमारे घर चाय में चीनी बहुत कम प्रयोग होती थी- ये आदत पापा जी ने डाली थी। ज्यादातर रेड लेबल चाय प्रयोग होती थी। उन दिनों लिपटन की चाय पत्ती बहुत फेमस होती थी। ताज तो बाद में आयी।
मेरी चा में तो देसी घी गेर दिए
ये तो हुई हमारी चाय। अब सुनिए मेरी दादी की चाय की कहानी। हम उन्हें मां कहते थे। मां जी या तो दूध में पत्ती उबलवाती थीं या बराबर का दूध। इतना ही नहीं जब उन्हें कमज़ोरी महसूस होती थी तो मेरी बीजी से कहती थीं- “ए बहू मेरी चा मैं तो आज देसी घी गेर दिए बहुत कमजोरी सी लगे”। और मां जी चाय को देसी घी से तरबतर करके पी जाती थीं। कभी कभी तो उनका घी से भी काम नहीं चलता था। मेरे पापा को क्या अपने सभी बेटों को वे भाई बोलती थीं। मेरे पापा से वे कहतीं- ” अरे भाई सीरी किसन दिमाग में चक्कर से आवें आज बादम रोगन की सीसी ले आइयो घर आता हुआ”। और मां जी चाय और दूध दोनों में ही बादाम रोगन डाल कर पीती थीं। आप यकीन नहीं मानेंगें 94 साल की उम्र तक वे घी और बादाम रोगन की चाय पीती थीं। चाय में चीनी इतनी होनी चाहिए थी कि दोनों होंठ चिपक जाएं। उनका कसूर नहीं था मुजफ्फरनगर जिले की थीं- चीनी वाले इलाके की। जी भर मीठा खाती पीती थीं।
चाय बनाने का हिंदुस्तानी तरीका
चाय से बचपन की एक ओर याद जुड़ी है। हमारे स्कूल में एक छात्र था जो गाया करता था- पी लवो जी चा कप्प विच्च पा, बूढ्या नूं देंदी नौजवान ए बणा। चाय का तो गजब शौक लोगों को होता था। बाहर दुकानों पर भी पकी और रिझी हुई चाय मिलती थी। उस बरतन को चाय वाले धोते भी नहीं थे, बार बार उसी में पकाते रहते थे। अब चाय बनाने का हिंदुस्तानी तरीका यही है कि पत्ती को पानी में खौला खौला कर पकाओ। खूब सारी चीनी और दूध डालो। फिर लोटे या गिलास में भर कर मजे ले लेकर पियो। गांवों में तो ऐसा ही होता था। शहरी लोग कप प्लेट में चाय पीते थे।
जादू है, नशा है…
आप शायद मेरी इस बात से सहमत हों कि चाय का भी एक नशा होता है। जिसे जितने बजे चाय पीने की आदत होती है उसको न मिले तो सिर दर्द हो जाता है। मेरी बहन को चाय का बहुत नशा है। बेड टी भी पीएगी, नहा कर फिर एक कप पीएगी, शाम को अपने समय पर चाय चाहिए। जबकि मैं बेड टी नहीं पीती, लेकिन नहाते ही एक बड़ा वाला मग चाय का चाहिए। वो भी हल्की चाय- कम दूध, कम पत्ती, कम चीनी। मेरी चाय घर में सबसे अलग बनती है। मेरी बहन बहुत गरम चाय पीती है। जब उसकी चाय खत्म हो जाती है तब मैं पीना शुरू करती हूं। और कई लोग तो रात को खाना खाने के बाद भी चाय पीते हैं। मेरी सहारनपुर वाली मौसी जी और मौसा जी को रात को चाय पीए बिना नींद नहीं आती थी।
मलाई मार के
पंजाब- हरियाणा में मलाई मार के चाय बनती है। घर के शुद्ध दूध में बनी चाय पर मलाई की मोटी परत डाल दी जाती है। वैसे भी पंजाब में तो दूध विच्च पत्ती उबाल कर ही चायपसंद की जाती है। पंजाब- हरियाणा के नेशनल हाई वे ढ़ाबों पर चाय के कोड़वर्ड हैं। ट्रक और बस ड्राईवर जब चाय का ऑर्डर करते हैं तो कहते हैं- सौ किलोमीटर वाली चा बना दे या फिर दौ सौ किलोमीटर वाली चाय। ये किलोमीटर चाय पत्ती की मात्रा के लिए हैं। जितनी कड़क चाय चाहिए उतने किलोमीटर का ऑर्डर होता है। गुजरात में तो चाय के तरह तरह के मसाले मिलते हैं। और चाय क्या भाई साहब खीर पकायी जाती है। लेकिन उनकी चाय ना हलक लगे न तालवे वाली होती है। बहुत छोटे छोटे प्लास्टिक के कप। या फिर गुजराती कप प्लेट में चाय मंगाएगा तो आधी कप में और आधी प्लेट में डाल लेगा। कप मेहमान को और प्लेट खुद रख लेगा। उत्तर भारतीय तो सोचता है भाई ये भी तू ही पी ले, इतनी भी क्यों दे दी मुझे। इससे अच्छा तो चाय पिलाने का नाटक ही न करता।
गगन गिल के संग टी पार्लर
ग्रीन टी से मेरा परिचय 12 वीं कक्षा में हुआ। फिर रेड लेबल में ग्रीन लेबल मिला कर हमारे यहां चाय बनने लगी। चाय के गिलासों के बहुत सुंदर होल्डर मिलते थे वो भी हम बाज़डार खरीद कर लाते थे। जब मैं दिल्ली नौकरी करने आयी तो दरियागंज टाईम्स हाऊस में वामा में लीव वैकंसी पर नौकरी मिली। अब सुप्रसिद्ध लेखिका गगन गिल वामा में मेरी सहयोगी थी। गगन दिल हमको दरियागंज के एक टी पॉर्लर में लेकर जाती थी। ये टी बोर्ड ऑफ इंडिया का पॉर्लर है जो आज भी मेन रोड़ पर है। यहां चाय की इतनी सारी वैरायटी थी कि मेरा ज्ञान चाय पत्ती पर यहीं से बढ़ा। हर चाय पत्ती के साथ उसका नाम और उसकी कहानी लिखी हुई थी। और एक से बढ़ कर एक गिफ्ट पैक चाय के। दार्जिलिंग चाय, असम चाय, नीलगिरी चाय …और भी बहुत कुछ। मखमल के बड़े पाऊच में टी गिफ्ट बहुत ही आकर्षक लगते थे। अकसर हम लोग ऑफिस से निकल कर शाम को यहां जाते। फिर चाय से प्रेम बढ़ता गया और चाय के लिए नफासत भी।
मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पर बुलाया है
चाय बागान और वहां की ठसकदार नौकरियों के बारे में गौरापंत शिवानी के उपन्यासों में खूब पढ़ा। हर मेहमान को चाय पिलाने और साथ में कुछ खिलाना शिष्टाचार माना जाता था। यहां तक कि सत्तर अस्सी और नब्बे के दशक तक- जब विवाह के लिए लड़की देखने लड़के वाले आते थे तो लड़की बेचारी हाथ में चाय की ट्रे लेकर ड्राइंग रूम में मेहमानों के सामने शरमाती सुकचाती साड़ी पहने आती थी। इस चाय ने जाने कितनी जोड़ियां बनायी। चाय के कप में शक्कर घोलते घोलते कितने जोड़ों के जीवन में मिठास घुल गयी। एक चाय के कप ने सात जन्मों के बंधन बांध दिए।
चाय, चायवाला और पॉलिटिक्स
वाह री चाय वारी बलिहारी जाऊं तुझ पर। केवल सात जन्मों के ही क्यों दिल्ली की सत्ता भी भाजपा को चाय ने ही दिला दी। चाय पर चर्चा 2014 के बाद जितनी फेमस हुई उतनी राजनीति में पहले कभी नहीं थी। और अब तो प्रधानमंत्री ही चाय से जुड़े हुए हैं। फौजियों की चाय की बात भी हो जाए 60 के दशक में मेरे चाचा और फूफा जी दोनों फौज में गए थे। जब वे छुट्टी आते तो अपने साथ तामचीनी का चाय का एक बड़ा सा मग लाते थे। मग सफेद रंग का होता था और उसके हैंडल पर नीले रंग की लाईनें होती थीं।
वैसे मुझे बस सुबह नहा कर एक बड़ा मग चाय का चाहिए। शाम को मिले ना मिले कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन मैं सबके घर की चाय नहीं पी सकती। बहुत अलग तरह का टेस्ट है चाय का मेरा। चाय की पत्ती की न जाने कितनी किस्में ले आती हूं। मेरी बहन के पति जब नार्थ ईस्ट में पोस्टेड थे तो असम दार्जिलिंग नीलगिरी चाय खूब आयीं घर में। अब भी आपको लेमन जेस्मीन, पीच तरह तरह के फ्लेवर मिल जायेंगे। मेरी बहन आर्मी कैंटीन से हमेशा नए फ्लेवर की चाय ले आती है। हमारे घर जब कोई मेहमान या दोस्त आते हैं उनकी चाय की पसंद पूछ लेते हैं। उसी हिसाब से चाय सर्व कर देते हैं। चाय का शौक जनाब अकेले नहीं आता। साथ में तरह तरह के टी सेट्स, तरह तरह के मग, चाय की केतलियां, टी ट्रे क्लॉथ, टीकोज़ी, टी कोस्टर, टी नेपकिन्स, मिल्क एंड शुगर पॉट्स, टी स्पून का शौक भी साथ लेकर आता है। दिल्ली में कॉटेज इंडस्ट्री जनपथ में आपको खुर्जा के सुंदर टी सेट्स मिलेंगें- सिंगल कप वाला, दो कप वाला, 6 कप वाला। फिर बोन चाईना की वैरायटी के तो कहने ही क्या। चाय अंनत चाय कथा अनंता… कौन कहता है केवल मधुशाला ही मेल कराती है! चाय के ठिये, चाय की दुकानें, टी पॉर्लर भी खूब मेल कराते हैं। बंगाल चले जाइए। वहां तो चाय की दुकानों पर खूब अड्डेबाजी होती है। कुल्हडों में चाय के दौर चलते हैं। सत्यजीत रे से लेकर देश की जीड़ीपी- दुनिया के तमाम मुद्दों पर चर्चा होती है। लगता है बस अब यहीं रोक दूं… चाय का टाईम भी हो रहा है। शाइस्ता सहर की सुनिए-
चाय की प्याली में तूफ़ान उठाने वालो,
ये तमाशे सर-ए-बाज़ार नहीं होने के।