दयानंद पांडेय।
कहते हैं कि हर अच्छे काम में अच्छे लोग बहुतायत में साथ आ जाते हैं पर इक्का-दुक्का बुरे लोग भी आ जाते हैं। गोरखपुर की 4 साल की बच्ची शिवा के साथ भी यही हुआ। मिलिए सोशल वर्क के नाम पर इन दो ‘विष कन्याओं’ से। एनजीओ चलाने के नाम पर दलाली का धंधा है इनका।
पहली विषकन्या
शिवा के लिए शत-प्रतिशत लोगों ने जी खोल कर दान दिया। मदद की। शिवा के पिता को नैतिक साहस और प्रोत्साहन भी दिया। जैसे पूरी दुनिया शिवा और सत्येंद्र के साथ खड़ी हो गई। शिवा का लीवर ट्रांसप्लांट भी सफलता पूर्वक संपन्न हो गया है। पर इस बीच कुछ लोग अवरोध बन कर भी खड़े हुए। सब से पहले प्रियंका ओम विष कन्या बन कर प्रस्तुत हुईं। और बता दिया कि यह तो फ्राड है। तमाम लोगों की इस बाबत पोस्ट कह-कह कर मिटवाई। फ़िशी बताया।
माफी मांगी पर मदद के लिए बढ़े तमाम हाथ रोक दिए
जब चौतरफा घिर गईं और लोगों ने प्रियंका ओम से सत्येंद्र के फ्राड होने के सुबूत मांगे तो प्रियंका ओम ने माफी मांग ली। लेकिन मदद खातिर आगे बढ़े तमाम हाथ रोक लिए। बहुत से लोग बिदक कर किनारे हो गए। मदद को बढ़े अनगिन हाथ तो गुम हुए ही हमारी छवि भी धूल-धूसरित हुई। होता क्या है कि निगेटिव बातें आग की तरह फैलती हैं। सो इस में भी यही हुआ। एक से दो , दो से चार , चार से चालीस और फिर चार सौ होते देर नहीं लगी। बड़ी मुश्किल से इस अप्रिय स्थिति को मित्रों ने डैमेज कंट्रोल का अभियान चला कर रोका। लेकिन उस रात मैं सो नहीं पाया था। फ्राड कहने पर। सत्येंद्र ने लीवर ट्रांसप्लांट न करवाने का मन बना लिया था। मालूम है आपको ?
यह दुष्प्रचार में सफल हो गई होती तो…
खुदा न खास्ता अगर यह विष कन्याएं अपने दुष्प्रचार में सफल हो गई होतीं तो तय मानिए कि शिवा का लीवर ट्रांसप्लांट नामुमकिन हो गया होता। क्योंकि अगर ‘फ्राड है’ की आंधी चल गई होती तो शिवा के लीवर ट्रांसप्लांट खातिर फंडिंग भला कहां से हो पाती। कौन कर पाता भला। मेरे मुंह पर जो कालिख लगती वह कैसे और कहां , किस पानी से धोता भला। लेकिन वह कहते हैं न कि साध्य ही नहीं , साधन भी पवित्र भी होने चाहिए। मैं अपने जीवन में सर्वदा इसी राह पर चलता हूं। साध्य और साधन दोनों ही पवित्र रखता हूं। यही मेरी नैतिक पूंजी है। यही सर्वदा मेरे साथ रहती है। रहेगी। सो अपने पर सर्वदा भरोसा रहता है। लेकिन यह समाज तो काजल की कोठरी है। सो बहुत बच कर रहना पड़ता है। फिर तो देखा प्रियंका ओम ने मेरी ही पोस्ट को कॉपी कर अपनी पोस्ट बना कर पेस्ट कर लिया। मदद के लिए। फिर अखबारों में अपनी पीठ भी ठोंकी कि मैंने यह किया , मैं ने वह किया। क्राउड फंडिंग की। मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश से दस लाख दिलवाए। आदि- इत्यादि।
सुख मिल रहा था पोस्ट चोरी होते देख
ऐसा बहुतेरे लोगों ने किया। बहुतेरे लोगों ने मेरी पोस्ट , फोटो जस का तस उठा कर अपनी पोस्ट बना कर आह्वान कर रहे थे। अपनी पीठ ठोंक रहे थे। यह देख-सुन कर अच्छा लग रहा था। अमूमन अपनी पोस्ट चोरी होने पर मैं चोरों को पकड़-पकड़ कर नंगा करता रहता हूं। लेकिन यह पहली बार हो रहा था कि अपनी पोस्ट चोरी होते देख सुख मिल रहा था। सैकड़ों की संख्या में लोगों ने इस बाबत मेरी कई पोस्ट , बार-बार उठाई और इसे शिवा की मदद के लिए अभियान बना दिया। यह प्रीतिकर भी था और सुखदाई भी।
दूसरी विषकन्या
अब जब लीवर ट्रांसप्लांट हो गया तो अपने को सोशल वर्कर बताने वाली एक और सोशल वर्कर बरखा त्रेहन कूद पड़ीं।
फेसबुक पोस्ट पर अपनी पीठ ठोंकती हुई। मैंने यह किया, वह किया। इतना ही नहीं, दिल्ली के नवभारत टाइम्स में खबर भी छपवा ली अपने प्रशस्तिवाचन में। इसमें भी कोई हर्ज नहीं था। हर्ज तब हुआ जब बरखा त्रेहन ने शिवा की मां को फ़ोन कर-कर के परेशान कर दिया।
वह मुझ पर ही बरस पड़ी
हुआ यह कि शिवा के पिता सत्येंद्र लीवर डोनेट करने के कारण बेड पर हैं। अब फोन सत्येंद्र की पत्नी के पास है। अब यह बरखा त्रेहन फ़ोन कर कर के हज़ारों सूचनाएं जान लेना चाहती हैं। सत्येंद्र की पत्नी ने परेशान हो कर मुझे बताया। मैंने बरखा त्रेहन को फोन पर बताया कि सत्येंद्र की पत्नी को परेशान करना बंद करें। जो भी सूचना चाहिए, मुझे बताएं। सारी सूचना दे दूंगा। बरखा त्रेहन मुझ पर ही बरस पड़ीं। बताने लगीं मैंने क्राउड फंडिंग करवाई है। मैंने उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री से 10 लाख रुपए दिलवाया। मैंने पूछा कि मुख्य मंत्री से आप ने पैसा दिलवाया? वह चुप रह गईं। फिर मैं ने पूछा- आप ने क्राउड फंडिंग करवाई है, उसका कोई स्क्रीन शॉट दे सकती हैं। वह भड़क गईं। फिर हम ने कहा कि नवभारत टाइम्स में खबर कैसे छपवा ली? वह और भड़कीं। बोलीं , आप हैं कौन। मैंने कहा , सत्येंद्र का गार्जियन हूं। लखनऊ से बोल रहा हूं। आप कहां से हैं ?
तो बरखा त्रेहन बोलीं , पश्चिम दिल्ली में रहती हूं। मैंने पूछा, फिर भी पश्चिम दिल्ली में कहां। बरखा भड़कीं क्यों बताऊं। मैंने उनसे कहा, मत बताइए पर सोशल वर्क के नाम पर अपनी यह दलाली बंद कीजिए। और कि सत्येंद्र की पत्नी को परेशान करना बंद कर दीजिए। तो वह बोलीं, अभी सत्येंद्र को लाइन पर लेती हूं। कह कर फोन काट दिया। फिर बरखा त्रेहन का फोन स्विच आफ हो गया।
एनजीओ के नाम पर दलाली का धंधा
अवरोध के ये दो मामले सिर्फ बानगी भर हैं। सोशल वर्क के नाम पर, एनजीओ चलाने के नाम पर दलाली का धंधा है इन दोनों का। अवरोध और भी कई हैं। जिन की चर्चा फिर कभी। लेकिन मदद के हाथ, शिवा के इलाज में मदद को अभियान बनाने वाले हज़ारों हाथ हैं। यह सब हमारे दीनानाथ हैं। इन हज़ारों-हज़ार हाथों को अनेकशः प्रणाम ! लेकिन इन विष-कन्याओं से भी सतर्क रहना बहुत ज़रूरी है। सतर्क रहें। शिवा को शुभाशीष दें ताकि शीघ्र स्वस्थ हो कर हंसती-खेलती गोरखपुर अपने घर जाए।
(‘सरोकारनामा’ से)