हरिवंश ।
पत्रकारिता के पुरखों को हमें याद करना चाहिए। कारण, समृद्ध इतिहास ही दूर भविष्य के लिए रास्ता दिखाता है। रामानंद चट्टोपाध्याय (29 मई 1865- 30 सितंबर 1943) उर्फ रामानंद चटर्जी। भारत में पत्रकारिता के ऋषि पुरूष। उनकी जयंती पर उनकी पावन स्मृतियों को कोटिश: नमन।
तब इस पेशे में पैसा कम था, जोखिम ज्यादा
आज पत्रकारिता जिस हाल में है, वैसे दौर में रामानंद चटर्जी को याद करना, प्रेरणा देता है। वह दौर था, जब इस पेशे में पैसा कम था। संघर्ष और चुनौतियां 24 पहर दरवाजे पर दस्तक देती थीं। तब प्रतिबद्धता, पत्रकारिता के प्रति समर्पण और पत्रकारीय विजन की परख पल-पल होती थी। यह जोखिम का पेशा था। पर, समाज बनाने के प्रति समर्पण से प्रेरित प्रतिभाशाली, चरित्रवान, नैतिक और ज्ञान जिज्ञासु इस पेशे में आते थे। इस कारण समाज हमेशा उन्हें आदर और प्रतिष्ठा देता था। पत्रकारिता में जो साख उस पीढ़ी ने पैदा की, उसकी टिमटिमाती आभा और यश में अब तक पत्रकार अपने को मानते हैं।
‘मॉडर्न रिव्यू’ और ‘विशाल भारत’
रामानंद चटर्जी का परिचय अगर संक्षेप में दें, तो वे कोलकाता से प्रकाशित देश की मशहूर पत्रिका ‘मॉडर्न रिव्यू’ के संस्थापक संपादक और मालिक थे। ‘मॉडर्न रिव्यू’ एक ऐसी पत्रिका हुई, जिसने गुलामी के दिनों में भी आजादी के बाद भारत के नवनिर्माण की बौद्धिक रूपरेखा तैयार की। इसे अंग्रेजी की श्रेष्ठतम पत्रिकाओं में माना गया। न सिर्फ भारत के स्तर पर, बल्कि दुनिया में इसकी पहचान बनी।
उन दिनों बड़े से बड़े लेखक, बौद्धिक, चिंतक ‘मॉडर्न रिव्यू’ में छपते थे। उसमें छपना गर्व और गौरव का विषय था। सिर्फ ‘मॉडर्न रिव्यू’ ही नहीं, बल्कि हिंदी में ‘विशाल भारत’ जैसा मासिक पत्र उनके ही प्रयास का परिणाम था। अपने समय में मशहूर ‘प्रवासी’ पत्रिका के सूत्रधार वही रहे।
प्रयागराज से पत्रकारिता की शुरुआत
उनका जन्म 1865 में बंगाल के बांकुड़ा जिला में हुआ। पहले प्राध्यापकी के पेशे में आये। कलकत्ते में (अब कोलकाता) सिटी कालेज में प्राध्यापक बने। इस दरम्यान उनका संपर्क केशवचंद्र सेन से हुआ। ब्रह्मसमाजी हो गए। इलाहाबाद आए। कायस्थ पाठशाला के प्रिंसिपल बने। पत्रकारिता की शुरुआत वहीं से हुई। कायस्थ पाठशाला एक पत्रिका का प्रकाशन करता था। उसका नाम था- कायस्थ समाचार। उर्दू में प्रकाशित होता था। रामानंद बाबू ने उसे अंग्रेजी में निकालना शुरू किया। उसके कैनवास को बड़ा कर उसे देश-समाज के बदलाव से जोड़ दिया। यहां से शुरू हुई पत्रकारिता की यात्रा फिर रूकी नहीं। आगे चलकर वह भारतीय पत्रकारिता के नजीर बन गये।
बंगाल विभाजन का समय था। देश के आंदोलन से जुड़े। 1907 में ‘माडर्न रिव्यू’ का प्रकाशन शुरू किया। ‘माडर्न रिव्यू’ की लोकप्रियता देश-विदेश में बढ़ी। अंग्रेजी सरकार ने उत्तरप्रदेश छोड़ने का आदेश दिया। वह फिर से कोलकाता आ गये।
अनमोल योगदान
सक्रिय जीवनकाल में पत्रकारिता और लेखन के माध्यम से उनका अनमोल योगदान रहा। उन्होंने ही रवींद्रनाथ टैगोर की श्रेष्ठ प्रतिभा और सृजन क्षमता को अंग्रेजी की दुनिया के सामने रखा। टैगोर की अंग्रेजी रचना ‘माडर्न रिव्यू’ में प्रकाशित हुई। कालजयी पुस्तकों में शामिल है, ‘इंडिया इन बांडेज’। अमेरिकी पादरी जेटी संडरलैंड का लिखा हुआ। इसे भी धारावाहिक रूप में सबसे पहले ‘माडर्न रिव्यू’ में छापा गया। बाद में पुस्तक रूप में भी रामानंद चटर्जी ने ही छापा। तथ्य है कि इस किताब को छापने की सजा रामानंद चटर्जी को मिली। पुस्तक जब्त हुई। अंग्रेजों ने रामानंद चटर्जी को दंड दिया।
ऐसी अनेक देन उनकी पत्रिका ‘मॉडर्न रिव्यू’ की रही। सर यदुनाथ सरकार और मेजर वामनदास वसु के हिस्टोरिकल रिसर्च आर्टिकल ‘माडर्न रिव्यू’ में छपे। 1928 में उन्होंने हिंदी मासिक ‘विशाल भारत’ निकाला। ‘विशाल भारत’ प्रवासियों का स्वर बना।
पत्रकारिता के साथ ही बतौर लेखक भी उनकी खास पहचान रही। ‘राजा राममोहन राय’, ‘आधुनिक भारत’ और ‘स्वशासन की ओर’ उनकी चर्चित किताबें रहीं। पुरोधा पुरखा पत्रकार को उनकी जयंती पर पुन: शत-शत प्रणाम।
(लेखक राज्यसभा के उप सभापति एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख सोशल मीडिया से साभार)