डॉ. संतोष कुमार तिवारी।

हिन्दी में मुंशी प्रेमचंद (1880-1936) के पहले यदि कोई ऐसा उपन्यासकार हुआ है, जिसके उपन्यासों ने धूम मचाई हो, तो वह थे बाबू देवकीनंदन खत्री।

जब बाबू देवकीनंदन खत्री का उपन्यास चन्द्रकांता (1888) में प्रकाशित हुआ, तो लोगों की दिलचस्पी उसमें इतनी बढ़ गई कि उसे पढ़ने के लिए अनेकानेक गैर हिन्दी भाषियों ने हिन्दी सीखी। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में लिखा है कि ‘जितने हिन्दी पाठक उन्होंने (बाबू देवकीनन्दन खत्री ने) उत्पन्न किये उतने किसी और ग्रंथकार ने नहीं’।

जीवनी

देवकीनन्दन खत्री जी का जन्म 18 जून 1861 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला ईश्वरदास था। उनके पूर्वज पंजाब के निवासी थे तथा मुगलों के राज्यकाल में ऊँचे पदों पर कार्य करते थे। महाराज रणजीत सिंह के पुत्र शेरसिंह के शासनकाल में लाला ईश्वरदास काशी में आकर बस गये।

उर्दू-फ़ारसी, हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी में महारत

भूतनाथ by Babu Devakinandan Khatriदेवकीनन्दन खत्री जी की प्रारम्भिक शिक्षा उर्दू-फ़ारसी में हुई थी। बाद में उन्होंने हिंदी, संस्कृत एवं अंग्रेजी का भी अध्ययन किया।

आरम्भिक शिक्षा समाप्त करने के बाद वे गया के टेकारी इस्टेट पहुंच गए और वहां के राजा के यहां नौकरी कर ली। बाद में उन्होंने वाराणसी में ‘लहरी प्रेस’ नाम  से एक प्रिंटिंस प्रेस की स्थापना की और 1900 में हिन्दी मासिक ‘सुदर्शन’ का प्रकाशन आरम्भ किया।

जंगलों, पहाड़ियों और खंडहरों में घुमक्कड़ी

देवकीनन्दन खत्री जी का काशी नरेश ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह से बहुत अच्छा सम्बन्ध था। इस सम्बन्ध के आधार पर उन्होंने चकिया (उत्तर प्रदेश) और नौगढ़ के जंगलों के ठेके लिये। देवकीनन्दन खत्री जी बचपन से ही सैर-सपाटे के बहुत शौकीन थे। इस ठेकेदारी के काम से उन्हे पर्याप्त आय होने के साथ ही साथ उनका सैर-सपाटे का शौक भी पूरा होता रहा। वे लगातार कई-कई दिनों तक चकिया एवं नौगढ़ के जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की खाक छानते रहते थे। उस समय उनके साथी हुआ करते थे-औलिया, तान्त्रिक, फकीर, साधक । उन्होंने हरिद्वार और हिमालय की भी घुमक्कड़ी यात्रा भी की ।

‘चन्द्रकान्ता’ उपन्यास की रचना

जन्‍मदिन विशेष: हिन्दी के प्रथम तिलिस्मी लेखक देवकीनंदन खत्री – Legend News

धीरे-धीरे जब उनसे जंगलों के ठेके छिन गये तब इन्हीं जंगलों, पहाड़ियों और प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों के खंडहरों की पृष्ठभूमि में अपनी तिलिस्म तथा ऐयारी के कारनामों की कल्पनाओं को मिश्रित कर उन्होंने ‘चन्द्रकान्ता’ उपन्यास की रचना की। ‘चंद्रकांता’ की सफलता के बाद उन्होंने अपना दूसरा उपन्यास ‘चन्द्रकान्ता सन्तति’  लिखा जोकि और अधिक रोचक था।

‘भूतनाथ’ की अपूर्ण रचना

बावन वर्ष की अपेक्षाकृत छोटी सी उम्र में बाबू देवकीनन्दन खत्री का निधन हो गया। अपनी मृत्यु के समय तक वह अपने उपन्यास ‘भूतनाथ’ के केवल छह खंड ही लिख अपये थे। बाद में  इसके शेष पंद्रह खंडो को उनके बड़े बेटे दुर्गा प्रसाद खत्री ने पूरा किया।

बनारसवासी दुर्गा प्रसाद खत्रीजी (1895-1975) भी एक दिग्गज कहानीकार और उपन्यासकार थे। उन्होंने लगभग बीस उपन्यास लिखे।

बाबू  देवकीनंदन खत्री का युग हिन्दी का शैशवकाल था

बाबू  देवकीनंदन खत्री का युग हिन्दी का शैशवकाल था। उनके उपन्यास ‘चंद्रकांता’ (1888) पहले हिन्दी इतिहास में केवल 6 उपन्यासों का जिक्र आता है। वे हैं:

Buy Bhootnath (भूतनाथ) Book Online at Low Prices in India | Bhootnath  (भूतनाथ) Reviews & Ratings - Amazon.inपंडित गौरीदत्तजी  द्वारा लिखा गया उपन्यास ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ (1870), श्रद्धारामजी  का  उपन्यास ‘भाग्यवती’ (1877),  लाला श्रीनिवास द्वारा लिखा गया उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’ (1882), बालकृष्ण भट्ट के उपन्यास  ‘रहस्य कथा’ (1879), ‘नूतन ब्रह्मचारी’ (1886), ठाकुर जगमोहन सिंह का उपन्यास ‘श्यामा स्वप्न’ (1888)।

बाबू देवकीनंदन खत्री के उपन्यासों की सफलता के बाद हिन्दी में तिलस्मी उपन्यासों की बाढ़ आने लगी।

गोपालराम ‘गहमरी’ ने उपन्यास लिखे: ‘सरकटी लाश’ (1900), ‘जासूस की भूल’ (1901), ‘जासूस पर जासूसी’ (1904), ‘जासूस की ऐयारी’ (1904), ‘अद्धुत लाश’, आदि।

किशोरीलाल गोस्वामी ने भी उपन्यास लिखे ‘तिलस्मी शीशमहल’, ‘लखनऊ की कब्र या शाही महलसरा’, आदि।

(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं।)