टोक्यो ओलंपिक जा रहे भारतीय खिलाडियों की संघर्ष गाथा बताई पीएम ने
आपका अख़बार ब्यूरो
दुनिया भर के खेलप्रेमियों की निगाहें ओलंपिक का इंतज़ार करती हैं। 27 जून को मन की बात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोगों और खासकर युवाओं में टोक्यो ओलंपिक के बहाने खेलों के प्रति जागरूकता और रूचि जगाने की कोशिश की। उन्होंने कुछ सवाल पूछे : ओलंपिक में इंडिविजुअल गोल्ड मेडल जीतने वाला पहला भारतीय कौन था?… ओलंपिक के कौन से खेल में भारत ने अब तक सबसे ज्यादा मेडल जीते हैं?… ओलंपिक में किस खिलाड़ी ने सबसे ज्यादा पदक जीते हैं?
प्रधानमंत्री ने कहा, “साथियो, आप मुझे जवाब भेजें न भेजें, पर MyGov (माईगव) में ओलंपिक पर जो क्विज है, उसमें प्रश्नों के उत्तर देंगे तो कई सारे इनाम जीतेंगे। ऐसे बहुत सारे प्रश्न MyGov के ‘रोड टू टोक्यो क्विज’ में हैं। आप इस क्विज कम्पटीशन में ज़रुर हिस्सा लीजिये। भारत ने पहले कैसा प्रदर्शन किया है? हमारी टोक्यो ओलंपिक के लिए अब क्या तैयारी है? – ये सब ख़ुद जानें और दूसरों को भी बताएं।” उल्लेखनीय है कि माईगव भारत सरकार का एक पोर्टल है जिसका शुभारंभ 26 जुलाई 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इस पोर्टल का मुख्य उद्देश्य नागरिकों को सरकार के साथ जोड़ना तथा राष्ट्र के विकास में हाथ बंटाने के माध्यम के रूप में कार्य करना है। खेल और खिलाडियों के बारे में प्रधानमंत्री ने कई बातें साझा कीं, उन्हें सुनते हैं।
मिल्खा सिंह
टोक्यो ओलंपिक की बात हो रही हो, तो भला मिल्खा सिंह जी जैसे महान एथलीट को कौन भूल सकता है ! कुछ दिन पहले ही कोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया। जब वे अस्पताल में थे, तो मुझे उनसे बात करने का अवसर मिला था। मैंने उनसे आग्रह किया था कि आपने तो 1964 में टोक्यो ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। इसलिए इस बार जब हमारे खिलाड़ी ओलंपिक के लिए टोक्यो जा रहे हैं, तो आपको हमारे एथलीटों का मनोबल बढ़ाना है, उन्हें अपने संदेश से प्रेरित करना है। वो खेल को लेकर इतना समर्पित और भावुक थे कि बीमारी में भी उन्होंने तुरंत ही इसके लिए हामी भर दी। दुर्भाग्य से नियति को कुछ और मंजूर था। मुझे आज भी याद है 2014 में वो सूरत आए थे। हम लोगों ने एक नाईट मैराथन का उद्घाटन किया था। उस समय उनसे जो गपशप, खेलों के बारे में बात हुई, उससे मुझे भी बहुत प्रेरणा मिली थी। हम सब जानते हैं कि मिल्खा सिंह जी का पूरा परिवार खेलों को समर्पित रहा है, भारत का गौरव बढ़ाता रहा है।
कठिन संघर्षों से निकले प्रवीण, नेहा और दीपिका
हमारे देश में तो अधिकांश खिलाड़ी छोटे-छोटे शहरों, कस्बों, गाँवों से निकल करके आते हैं। जब टेलेंट, डेडिकेशन, डेटर्मिनेशन, और स्पोर्ट्समैन एक साथ मिलते हैं, तब जाकर कोई चैंपियन बनता है। टोक्यो जा रहे हमारे ओलंपिक दल में भी कई ऐसे खिलाड़ी शामिल हैं, जिनका जीवन बहुत प्रेरित करता है। प्रवीण जाधव कितने कठिन संघर्षों से गुजरते हुए यहाँ पहुंचे हैं। प्रवीण महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के एक गाँव के रहने वाले हैं। वो तीरंदाजी के बेहतरीन खिलाड़ी हैं। उनके माता-पिता मज़दूरी कर परिवार चलाते हैं… और अब उनका बेटा, अपना पहला ओलंपिक खेलने टोक्यो जा रहा है। ये सिर्फ़ उनके माता-पिता ही नहीं, हम सभी के लिए कितने गौरव की बात है।
ऐसे ही एक और खिलाड़ी हैं नेहा गोयल। टोक्योजा रही महिला हॉकी टीम की सदस्य हैं। उनकी माँ और बहनें, साईकिल की फैक्ट्री में काम करके परिवार का ख़र्च जुटाती हैं। नेहा की तरह ही विश्व की नंबर एक तीरंदाज़ रहीं चुकीं दीपिका कुमारी के जीवन का सफ़र भी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। दीपिका के पिता ऑटो-रिक्शा चलाते हैं और उनकी माँ नर्स हैं। और देखिए, दीपिका टोक्यो ओलंपिक में भारत की तरफ से एकमात्र महिला तीरंदाज़ हैं।
हर कमी का सामना कर भी डटे रहे, जुटे रहे
जीवन में हम जहां भी पहुँचते हैं, जितनी भी ऊंचाई प्राप्त करते हैं, जमीन से ये जुड़ाव, हमेशा, हमें अपनी जड़ों से बांधे रखता है। संघर्ष के दिनों के बाद मिली सफलता का आनंद भी कुछ और ही होता है। टोक्यो जा रहे हमारे खिलाड़ियों ने बचपन में साधनों-संसाधनों की हर कमी का सामना किया, लेकिन वो डटे रहे, जुटे रहे। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर की प्रियंका गोस्वामी का जीवन भी बहुत सीख देता है। प्रियंका के पिता बस कंडक्टर हैं। बचपन में प्रियंका को वो बैग बहुत पसंद था, जो मेडल पाने वाले खिलाड़ियों को मिलता है। इसी आकर्षण में उन्होंने पहली बार रेस-वाकिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था। आज वो इसकी बड़ी चैंपियन हैं।
फ़ेंक जहाँ तक भाला जाये
जेवलिन थ्रो (भाला फ़ेंक) में भाग लेने वाले बनारस के शिवपाल सिंह का तो पूरा परिवार ही इस खेल से जुड़ा हुआ है। इनके पिता, चाचा और भाई, सभी भाला फेंकने में एक्सपर्ट हैं। परिवार की यही परंपरा उनके लिए टोक्यो ओलंपिक में काम आने वाली है। टोक्यो ओलंपिक के लिए जा रहे चिराग शेट्टी और उनके पार्टनर सात्विक साईराज का हौसला भी प्रेरित करने वाला है। हाल ही में चिराग के नाना जी का कोरोना से निधन हो गया था। सात्विक भी खुद पिछले साल कोरोना पॉज़िटिव हो गए थे। लेकिन, इन मुश्किलों के बाद भी ये दोनों मेंस डबल शटल कम्पटीशन में अपना सर्वश्रेष्ठ देने की तैयारी में जुटे हैं।
माँ ने अपने गहने तक गिरवी रख दिये
एक और खिलाड़ी से मैं आपका परिचय कराना चाहूँगा। हरियाणा के भिवानी के मनीष कौशिक खेती-किसानी वाले परिवार से आते हैं। बचपन में खेतों में काम करते-करते मनीष को बॉक्सिंग का शौक हो गया था। आज ये शौक उन्हें टोक्यो ले जा रहा है। एक और खिलाड़ी हैं, सी.ए. भवानी देवी। नाम भवानी है और ये तलवारबाजी में एक्सपर्ट हैं। चेन्नई की रहने वाली भवानी पहली भारतीय फेंसर हैं, जिन्होंने ओलंपिक में क्वालीफाई किया है। मैं कहीं पढ़ रहा था कि भवानी जी की ट्रेंनिंग जारी रहे, इसके लिए उनकी माँ ने अपने गहने तक गिरवी रख दिये थे।
हम सब मिलकर करेंगे अपने खिलाड़ियों को सपोर्ट
ऐसे अनगिनत नाम हैं लेकिन मैं कुछ ही नामों का जिक्र कर पाया हूँ। टोक्यो जा रहे हर खिलाड़ी का अपना संघर्ष, बरसों की मेहनत रही है। वो सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं बल्कि देश के लिए जा रहे हैं। इन खिलाड़ियों को भारत का गौरव भी बढ़ाना है और लोगों का दिल भी जीतना है। मैं आपको भी सलाह देना चाहता हूँ, हमें जाने-अनजाने में भी हमारे इन खिलाड़ियों पर दबाव नहीं बनाना है, बल्कि खुले मन से, इनका साथ देना है, हर खिलाड़ी का उत्साह बढ़ाना है। सोशल मीडिया पर आप #Cheer4India के साथ खिलाड़ियों को शुभकामनाएँ दे सकते हैं। अगर आपको कोई ऐसा आईडिया आता है जो हमारे खिलाड़ियों के लिए देश को मिलकर करना चाहिए, तो वो आप मुझे ज़रुर भेजिएगा। हम सब मिलकर टोक्यो जाने वाले अपने खिलाड़ियों को सपोर्ट करेंगे।