प्रदीप सिंह।

पश्चिम बंगाल से शुक्रवार को एक बड़ी खबर आई है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने ममता बनर्जी के बढ़ते अहंकार और निरंकुश रवैये पर जो सख्त रवैया अपनाया है वह देश के लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव नतीजे आने के बाद से हिंसा का तांडव चल रहा है। बंगाल में जिस हिंसा को ममता बनर्जी बीजेपी का प्रोपेगंडा बताती रहीं हैं, कलकत्ता हाईकोर्ट ने हिंसा की हर एक घटना की एफआईआर दर्ज करने का आदेश राज्य सरकार को दिया है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के गुंडे खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे थे, बीजेपी समर्थकों और कार्यकर्ताओं की हत्या की जा रही थी- उनके घर जलाए-लूटे जा रहे थे, महिलाओं के साथ दुष्कर्म हो रहा था, लोग पलायन पर मजबूर थे। वहीं टीएमसी प्रमुख और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लगातार इस बात से न सिर्फ इनकार कर रही थीं बल्कि यह मानने को ही तैयार नहीं थीं कि ऐसी कोई घटना हो रही है। उल्टे वह आरोप लगा रही थीं कि बीजेपी के लोग हिंसा कर रहे हैं। हाईकोर्ट का आदेश उनकी निरंकुशता पर कानून की नकेल कसने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है जिसका पूरे देश की राजनीति पर असर पड़ेगा।


 

लापरवाही और अक्षमता के लिए फटकार

अभी दो दिन पहले हिंसा के मामलों की जांच करने बंगाल गयी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की टीम के वाइस चेयरमैन के साथ धक्का-मुक्की की गई। ममता बनर्जी ने आरोप लगाया कि वहां मौजूद केंद्रीय बलों ने लोगों पर हमला किया था इसलिए यह स्थिति आई। शुक्रवार को एनएचआरसी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट कोलकाता हाईकोर्ट में पांच जजों की पीठ के समक्ष पेश की। रिपोर्ट में टीम ने वह उन स्थानों पर हुई हिंसा की घटनाओं का विस्तार से जिक्र किया, जहाँ वह जाँच करने गयी थी। कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि जिन मामलों की एनएचआरसी ने जांच की है उन सभी मामलों की एफआईआर दर्ज की जाए। इसके अलावा न्यायालय ने इस मामले में लापरवाही बरतने के लिए राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया। न्यायालय ने कहा कि सरकार ने न केवल इस मामले में लापरवाही बरती बल्कि अक्षमता भी दिखाई। एनएचआरसी के वाइस चेयरमैन के साथ हुई धक्का-मुक्की और दुर्व्यवहार की घटना पर कोलकाता हाईकोर्ट ने सख्त रुख दिखाते हुए दक्षिण कोलकाता के डीसीपी के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला दर्ज करने का आदेश दिया है। इस घटनाक्रम से पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक नया भूचाल या परिवर्तन आने वाला है।

अब नजर 13 जुलाई पर

हिंसा की घटनाओं से ममता बनर्जी लगातार न केवल इनकार बल्कि गलत बयानी भी करती रही हैं। लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम जो जनतंत्र की दुहाई देते नहीं थकता और मामूली सी भी किसी घटना को राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर मुद्दा बनाना रहा है- उसने भी इस मामले पर सुनियोजित चुप्पी साध रखी है। बंगाल की घटनाओं पर उनके मुंह में दही जम गई, जबान बंद हो गई, मुंह से कोई शब्द नहीं निकल रहा। इतना व्यापक हत्याकांड और पलायन- हिंसा के शिकार हजारों लोग अपनी जान बचाने पश्चिम बंगाल से पलायन कर शरण लेने असम चले गए, जो बच गया उनके सिर मुंडवाए जा रहे हैं और लिखवाया जा रहा है कि हम कभी बीजेपी का सपोर्ट नहीं करेंगे। एनएचआरसी की अंतरिम रिपोर्ट में इन बातों का विस्तार से उल्लेख है। अंतरिम रिपोर्ट में एनएचआरसी की टीम ने हाईकोर्ट से फाइनल रिपोर्ट देने तक कार्यकाल बढ़ाने की प्रार्थना की है। हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार करते हुए एनएचआरसी टीम का कार्यकाल 13 जुलाई तक के लिए बढ़ा दिया है कि उसी दिन मामले की अगली सुनवाई की तारीख निश्चित कर दी है। उम्मीद है कि उस दिन तक एनएचआरसी की फाइनल रिपोर्ट आ जाएगी।

Bengal: How BJP Leaders Used Fake News to Build a Communal Narrative on Post-Poll Violence

इसके अलावा पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी के एक प्रमुख कार्यकर्ता अभिजीत सरकार की जिस तरह से हत्या की गई उस मामले में हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। अभिजीत सरकार ने हत्या से पहले फेसबुक लाइव में बताया कि किस तरह से उनका घर जलाया जा रहा है- लूटा जा रहा है- घर के लोगों को मारा पीटा जा रहा है। उसके बाद उनकी हत्या हो गई। कलकत्ता हाई कोर्ट ने आदेश दिया है कि उनके शव का फिर से पोस्टमार्टम कराया जाए और उसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश की जाए।

सरकार की किरकिरी, रिपोर्ट की कॉपी नहीं दी

न्यायालय में ममता बनर्जी सरकार की ओर से पेश वकील ने मानवाधिकार आयोग की अंतरिम रिपोर्ट की एक कॉपी दिये जाने की मांग की जिसे न्यायालय ने ठुकरा दिया। सरकार के वकील ने कहा कि उनको अंतरिम रिपोर्ट की कॉपी दी जाए जिससे वे अपना पक्ष रख सकें। इस पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि आपको अपनी बात रखने का मौका मिलेगा लेकिन जब तक फाइनल रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक यह अंतरिम रिपोर्ट आपको नहीं मिलेगी। इस घटनाक्रम का देशव्यापी असर होने वाला है। ममता बनर्जी के पक्ष में अभियान चलाकर प्रचारित किया जा रहा था कि वह अब केंद्र सरकार को चुनौती देने के लिए तैयार हो गई हैं, नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाला एक नया नेता आ गया है- वह सारा शिराजा अब बिखरने वाला है। विपक्षी एकता के लिए जो ताना-बाना बुना जा रहा था उसमें यह सबसे बड़ा पलीता लगा है। कोलकाता हाई कोर्ट के 5 जजों की बेंच बंगाल में हिंसा के मामलों की तत्परता से सुनवाई कर रही है। उधर सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई शुरू होने वाली है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है कि पश्चिम बंगाल में हिंदुओं की जान खतरे में है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए राज्य सरकार, केंद्र सरकार और एनएचआरसी को नोटिस जारी कर दिया है। उनके जवाब आने के बाद सुनवाई की तारीख तय होगी।

ऊंट पहाड़ के नीचे

Violence, but not communal: BJP pushes misinformation campaign in Bengal

इस तरह कुल मिलाकर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के खिलाफ शिकंजा कसता जा रहा है। संवैधानिक संस्थाओं, संवैधानिक मान्यताओं का मखौल उड़ाना- उनकी आये दिन की आदत है। कभी गवर्नर के खिलाफ मोर्चा खोलती हैं तो कभी प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ भी बोल देती हैं- मोदी को प्रधानमंत्री मानने से मना कर देती हैं। शुक्रवार का तो उन्होंने हद कर दी और भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
हर नियम-मान्यता-संविधान से परे वह किस तरह से बेखौफ होकर काम कर रही हैं इसकी एक और बानगी देखिए। शुक्रवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा का बजट सत्र शुरू हुआ तो उसकी कार्यवाही एक-दो घंटे ही चल पाई। बात इतनी ही नहीं है। मुकुल राय बीजेपी के राष्यट्रीय उपाध्यक्ष थे और विधायक चुने गए। बाद में वह बीजेपी छोड़कर वापस टीएमसी में चले गए। टीएमसी में उनको महामंत्री बना दिया गया। नियम और संवैधानिक व्यवस्था यह है कि पार्टी छोड़ने के बाद राय को विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना चाहिए था जो कि उन्होंने नहीं दिया। मुकुल राय की विधानसभा सदस्यता समाप्त करने के लिए बीजेपी ने विधानसभा अध्यक्ष को अर्जी दी हुई है।

झूठ-फरेब और साजिश

एक ऐसा व्यक्ति जिसको दल बदल निरोधक कानून के तहत सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराया जाना चाहिए था उसे ममता बनर्जी ने पब्लिक एकाउंट कमेटी (पीएसी) का सदस्य बनवा दिया और अब उनको पीएसी का चेयरमैन बनवाने की कोशिश कर रही हैं। उल्लेखनीय है कि विधानसभा और लोकसभा में पीएसी पब्लिक अकाउंट्स कमेटी होती है जिसका चेयरमैन परंपरा के अनुसार किसी विपक्षी दल का नेता होता है। ममता बनर्जी जिस मनमाने ढंग से काम कर रही हैं और संविधान के खिलाफ उनकी साजिश चल रही है- ऐसे में हाईकोर्ट का निर्देश देश के लोगों के लिए उम्मीद और भरोसे की किरण बनकर आया है। यह इस बात की तस्दीक है कि इस देश में अभी कानून और संविधान है- अदालतें हैं। साफ दिख रहा है कि आने वाले दिन ममता बनर्जी के लिए बहुत मुश्किल भरे होने वाले हैं। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चलने पर उनकी मुश्किलें और ज्यादा बढ़ने वाली हैं। विधानसभा चुनाव में उनको भारी जनादेश मिला है। लेकिन जनादेश का यह मतलब नहीं होता कि अपने राजनीतिक विरोधियों को आप शारीरिक रूप से खत्म कर देंगे, उनको मार देंगे- घर छोड़ने पर मजबूर करेंगे- उनके घर जला देंगे- परिवार की महिलाओं के साथ दुष्कर्म करेंगे। बंगाल में यह सब हुआ है। इससे भी बड़ी बात यह कि मुख्यमंत्री ने न केवल इन कृत्यों का बचाव और समर्थन किया वरन इस बात से ही इनकार कर दिया कि ऐसा कुछ हुआ है।

कलकत्ता हाई कोर्ट का निर्देश भारतीय लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत और महत्वपूर्ण कदम है। जिस तत्परता के साथ हाईकोर्ट सुनवाई कर रहा है उसे देखते हुए उम्मीद करनी चाहिए कि ममता बनर्जी का गुरूर और घमंड अवश्य टूटेगा।