राजीव रंजन।
नियति की नीयत को कोई नहीं जान सकता। भारतीय सिनेमा के युगपुरुष दिलीप कुमार को ही लें, जिन्होंने फिल्मों में काम करने के बारे में सोचा भी नहीं था, लेकिन वही आगे चलकर भारतीय सिनेमा के सबसे बड़े नाम साबित हुए। पेशावर के फल व्यापारी लाला गुलाम सरवर खान के बेटे यूसुफ खान दरअसल फुटबॉल खिलाड़ी बनना चाहते थे। लेकिन होनी कुछ और थी, फिल्मों से चिढ़ने वाले फल व्यापारी का बेटा फिल्मों की सबसे सम्मानित शख्सीयत बन गया।

मधुबाला से अलगाव

Dilip Kumar and Madhubala: How things turned sour for this star couple,  Entertainment News | wionews.com

दिलीप कुमार और मधुबाला की प्रेम कहानी बॉलीवुड की किंवदंतियों में से एक है। कहते हैं कि दिलीप कुमार और प्रेमनाथ दोनों मधुबाला से प्रेम करते थे, लेकिन प्रेमनाथ ने अपने प्यार की कुर्बानी दे दी, ताकि दिलीप कुमार और मधुबाला का मिलन हो जाए, लेकिन ये हो न सका। मधुबाला के पिता दिलीप कुमार को पसंद नहीं करते थे। वे नहीं चाहते थे कि दोनों की शादी हो, क्योंकि दोनों की उम्र में 12-13 साल का फासला था। लेकिन मधुबाला अपने पिता की मर्जी के खिलाफ दिलीप कुमार से शादी करना चाहती थीं। फिर एक वाकया हुआ। प्रसिद्ध फिल्मकार बी.आर. चोपड़ा ने फिल्म ‘आन’ से जुड़े एक विवाद को लेकर मधुबाला और उनके पिता पर मुकदमा दायर कर दिया। इसमें दिलीप कुमार ने मधुबाला के पिता के खिलाफ गवाही दी। मधुबाला ने इसे अपने पिता का अपमान माना और दिलीप साहब से बेहद खफा हो गईं। बाद में, इस मुकदमे में दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया। दिलीप कुमार ने इसके बाद मधुबाला के सामने शादी का प्रस्ताव रखा। मधुबाला ने इसके लिए दिलीप कुमार को अपने पिता से माफी मांगने के लिए कहा। दिलीप कुमार इसके लिए राजी नहीं हुए और ये खूबसूरत जोड़ी हमेशा के लिए जुदा हो गई।

हल्की-फुल्की भूमिकाओं में एक नया अंदाज

Ram Aur Shyam (1967) Full Movie | राम और श्याम | Dilip Kumar, Mumtaz -  YouTube

अपने करियर के शुरुआती वर्षों में दिलीप साहब ने ज्यादातर गंभीर और दुखांत किरदार निभाए। इसी वजह से 1950 के दशक में उन्हें ‘ट्रैजेडी किंग’ की उपाधि मिली। इन किरदारों का उन पर ऐसा असर हुआ कि निजी जिंदगी में भी वह अवसाद में चले गए। फिर डॉक्टरों की सलाह पर उन्होंने हल्की-फुल्की भूमिकाएं करनी शुरू कीं। 1950 के दशक में उन्होंने ‘आजाद’, ‘कोहिनूर’, 1960 के दशक में ‘लीडर’, ‘राम और श्याम’ तथा 1970 के दशक में ‘सगीना महतो’, ‘गोपी’ जैसी कॉमिक शेड वाली भूमिकाएं कीं। उनके इस अंदाज को भी दर्शकों ने खूब पसंद किया। 1976 में आई ‘बैराग’ में उन्होंने तिहरी भूमिका निभाई। हिन्दी फिल्म जगत में इस कद के अभिनेता द्वारा तिहरी भूमिका निभाने की यह संभवत: पहली घटना थी।

गंगा जमना के असली निर्देशक

Dilip kumar and vyjayanthimala classic romantic film ganga jamuna | News in  Hindi

1960 में आई फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ दिलीप कुमार के करियर की सबसे बड़ी हिट है। यह इकलौती फिल्म थी, जिसमें उन्होंने मुस्लिम पात्र की भूमिका निभाई थी। 1961 में आई ‘गंगा जमना’ भी दिलीप कुमार के करियर की सबसे अहम फिल्मों से एक थी। इसने गोल्डन जुबिली मनाई और यह फिल्म सोवियत संघ में भी काफी लोकप्रिय हुई। दिलीप कुमार ने ‘गंगा जमना’ का निर्माण किया था और इसके लेखक भी थे। कहते हैं कि फिल्म के निर्देशक तो नितिन बोस थे, लेकिन वास्तव में इसे दिलीप साहब ने ही निर्देशित किया था। वैसे दिलीप कुमार 1996 में बतौर निर्देशक, आधिकारिक रूप से, ‘कलिंगा’ बनाने वाले थे, लेकिन दुर्भाग्यवश यह फिल्म नहीं बन पाई।
(लेखक के ब्लॉग ‘हमलोग’ से साभार)