प्रदीप सिंह।

रविवार 11 जुलाई… विश्व जनसंख्या दिवस। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अवसर पर प्रदेश में नई जनसंख्या नीति की घोषणा की। लेकिन इससे पहले शुक्रवार को राज्य विधि आयोग ने जनसंख्या नीति पर एक ड्राफ्ट रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर डाल दी। आयोग ने परिवार में दो बच्चों को लेकर बनाए गए ड्राफ्ट पर जनता से 19 जुलाई तक सुझाव मांगे हैं। उसके बाद सरकार को फैसला करना है कि वह उसे लागू करती है या नहीं। लेकिन जिस प्रकार की खबरें आ रही हैं उनके अनुसार उत्तर प्रदेश सरकार नई जनसंख्या नीति (2021 से 2030) लागू करने के लिए या तो विधानसभा में विधेयक लेकर आएगी या फिर अध्यादेश के जरिए इस कानून की घोषणा होगी।


‘हम दो हमारे दो’

जस्टिस आदित्य नाथ मित्तल की अध्यक्षता में राज्य विधि आयोग द्वारा तैयार ड्राफ्ट में परिवार नियोजन के पुराने नारे- हम दो हमारे दो… छोटा परिवार सुखी परिवार- को पुनर्जीवित किया जा रहा है। उसे अमली जामा पहनाया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि जो लोग दो से ज्यादा बच्चे पैदा करेंगे उनके लिए केवल दंड की व्यवस्था होगी… और इस नीति का पालन करने वालों को सरकार की ओर से कोई प्रोत्साहन या पुरस्कार नहीं दिया जाएगा। ड्राफ्ट में दंड और पुरस्कार (पनिशमेंट और रिवार्ड) दोनों की बात कही गई है।

दो से अधिक बच्चे हैं तो…

जनसंख्या नीति का जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है अगर उसी रूप में कानून बनता है तो जिनके दो से अधिक बच्चे हैं वे स्थानीय निकाय के चुनाव नहीं लड़ सकेंगे, सरकारी नौकरी नहीं मिलेगी, अगर सरकारी नौकरी में हैं तो प्रमोशन और इंक्रीमेंट रोका जा सकता है। अगर वे सरकारी नौकरी में रहते हुए दो से ज्यादा बच्चे पैदा करते हैं तो उन्हें नौकरी से बर्खास्त भी किया जा सकता है। जब कानून बनेगा तो उसे लागू करने की एक समयसीमा होगी जो एक वर्ष की हो सकती है। कानून बनने से पहले अगर किसी ने गर्भधारण किया हुआ है तो वे इस कानून में शामिल नहीं किए जाएंगे।

जो दो बच्चों की नीति का पालन करेंगे…

Two Child Policy -- A Viable Solution to India's Population Boom

मसौदे में यह भी कहा गया है कि जो सरकारी नौकरी में है और दो बच्चों की नीति का पालन करते हैं उन्हें अपने सेवाकाल में दो स्पेशल इंक्रीमेंट दिए जाएंगे। उनको मकान बनाने या जमीन खरीदने में कुछ रियायतें और ब्याज में छूट दी जाएगी। साथ ही जो लोग एक बच्चा होने के बाद तय करते हैं कि उन्हें आगे संतान नहीं चाहिए और परिवार नियोजन करा लेते हैं उनको सरकारी नौकरी के दौरान चार स्पेशल इंक्रीमेंट देने की व्यवस्था है। साथ ही ईपीएफ में तीन प्रतिशत अधिक की व्यवस्था है। इसके अलावा कई अन्य प्रकार की सुविधाओं की बात कही गई है।

जो सरकारी सेवा में नहीं हैं

अब सवाल है कि जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं उनका क्या? उनके लिए भी ड्राफ्ट में व्यवस्था की गई है। जो सरकारी कर्मचारी नहीं हैं और जनसंख्या नीति का पालन करते हुए सिर्फ दो बच्चे पैदा करते हैं उनको बिजली, पानी और दूसरी सुविधाओं में रियायत मिलेगी। मकान या जमीन के लिए कर्ज सस्ता मिलेगा। और जो लोग एक बच्चे के बाद और संतान नहीं पैदा करने का ऐलान करते हुए परिवार नियोजन करा लेते हैं उनके बच्चे को बीस वर्ष की आयु तक शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधा सरकारी खर्च पर मुहैया कराई जाएगी।

जनसंख्या वृद्धि से असंतुलन

Draft UP Population Control bill proposes bar on couples who beget more than two children from availing welfare schemes, contesting polls

जनसंख्या नीति के प्रस्तावित मसौदे में बहुत सी बातों का ध्यान रखा गया है। जनसंख्या बढ़ने और असंतुलन का कारण क्या है? उसका कारण यह है कि समाज का गरीब तबका- जो ज्यादा बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य का खर्च वहन नहीं कर सकता वह ज्यादा बच्चे पैदा कर रहा है। और जो लोग यह खर्च वहन कर सकते हैं वे कम बच्चे पैदा कर रहे हैं। इससे जो असंतुलन पैदा हो रहा है वह न केवल देश के विकास के लिए बाधक है वरन सामाजिक विकास के लिए भी बहुत घातक है। इससे आगे चलकर बहुत प्रकार की सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी। ऐसे लोगों की संख्या देश में बहुत अधिक हो जाएगी जो न तो ज्यादा पढ़े लिखे हैं, न स्वस्थ हैं और न उन्हें किसी प्रकार के कौशल का प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है। यह सब देश के लिए बढ़ती आबादी से भी ज्यादा मुश्किलें पैदा करेगा।

बीपीएल परिवारों को विशेष प्रोत्साहन

2 Child Policy Assam and Uttar Pradesh proceed on the policy of hum do hamare do the benefits of government schemes will be directly affected

इस असंतुलन को दूर करने के लिए ड्राफ्ट में कहा गया है कि अगर गरीबी रेखा से नीचे का (बीपीएल) परिवार है और इस जनसंख्या नीति का पालन करना तय करता है तो उस परिवार को लड़के को अस्सी हजार रुपये और लड़की को एक लाख रुपये एकमुश्त दिए जाएंगे। इस विशेष इंसेंटिव या प्रोत्सहन राशि के अलावा उनको और भी कई प्रकार की छूट दी जाएंगी जैसे कर्ज में छूट, सरकारी योजनाओं में प्राथमिकता आदि। लेकिन जो दो बच्चों की नीति का पालन नहीं करेंगे उन्हें 77 सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा। इसके अलावा अगर सरकार किसी योजना के तहत अनुदान राशि देती है तो वह भी उन्हें नहीं मिलेगी।

 

सीमित संसाधनों पर बढ़ता दबाव

उत्तर प्रदेश में दो बच्चों के नाम पर बात केवल चुनाव लड़ने तक सीमित नहीं है, जैसा कि कई राज्यों में हुआ है कि दो से ज्यादा बच्चे होने पर लोग स्थानीय निकायों का चुनाव नहीं लड़ सकते। उससे एक अलग तरह की विसंगति पैदा हो रही थी। भ्रूण का लिंग परीक्षण कराने की घटनाएं बढ़ने की संभावना पैदा हो गई थी। अगर दो ही बच्चे पैदा करने हैं तो लोग कोशिश करेंगे कि लड़के ही पैदा हों। इससे लिंगानुपात में असंतुलन का बहुत बड़ा खतरा होगा। फिर लड़कों और लड़कियों के अनुपात में भारी अंतर आ जाता। दूसरा गर्भपात के मामले बढ़ जाएंगे। इसके अलावा यह भी होने लगा कि अगर दो से ज्यादा बच्चे हैं तो लोग पत्नी को तलाक देने लगे। कागज पर तलाक दे दिया लेकिन फिर वैसे ही साथ में रहेंगे। या फिर बच्चे ज्यादा हैं तो उनको किसी और को गोद देने लगे। इन सब विसंगतियों को भी दूर करने का ख्याल ड्राफ्ट में रखा गया है। ड्राफ्ट में कहा गया कि जिनकी दो से ज्यादा पत्नियां हैं- उनकी पत्नियों की संख्या कितनी भी हो- बच्चों की संख्या दो ही होनी चाहिए। अगर दो से अधिक बच्चे हैं तो उन्हें उसका दंड भुगतना होगा जैसे सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित तो होंगे ही… अगर वे स्थानीय निकाय के चुनाव में जीते हैं तो उनका चुनाव रद्द हो सकता है, सरकारी नौकरी में हैं तो नौकरी से बर्खास्त किया जा सकता है, इंक्रीमेंट रोका जा सकता है। इस प्रकार एक संतुलित जनसंख्या नीति बनाने की कोशिश हुई है। यह पहल इस समय बहुत जरूरी थी। हालांकि इस पहल की जरूरत तो बरसों से थी। जिस रफ्तार से आबादी बढ़ रही है उसका नतीजा यह है कि सीमित संसाधनों पर दबाव बढ़ता जा रहा है। जमीन बढ़ने वाली नहीं है, उपभोग बढ़ने से पानी लगातार कम हो रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है, गरीबी बढ़ रही है, सरकारी संसाधन जितना भी बढ़ाए जाएं आबादी बढ़ने के कारण वे कम पड़ जाते हैं। संसाधनों को बढ़ाने की रफ्तार से कहीं अधिक तेजी से आबादी बढ़ जाती है। इसका खामियाजा टैक्स दे रहे लोगों को और अधिक टैक्स देकर चुकाना पड़ता है।

हर जगह हिंदू मुसलमान करना ठीक नहीं

ये सब समस्याएं हैं लेकिन मामला फिर भी काबू में रहता अगर लोग देश और समाज के बारे में सोच रहे होते। लेकिन इसमें भी लोग हिंदू मुसलमान के बारे में सोच रहे हैं। समाजवादी पार्टी और कई अन्य राजनीतिक दलों की ओर से यह हल्ला शुरू हो गया है कि जनसंख्या नीति का मसौदा इस समय क्यों लाया जा रहा है। तो इसे किस समय लाया जाना चाहिए था- इसका जवाब उनके पास नहीं है। फिर कहा जा रहा है यह मुसलमानों के खिलाफ कानून बनाया जा रहा है।

चाहे आबादी नियत्रण की बात हो, चाहे बाहर से आने वाले घुसपैठियों और दूसरे लोगों को रोकने की बात है- क्यों यह हिंदू मुस्लिम का सवाल बन जाता है। क्यों ऐसा होता है इस सवाल का जवाब तो जरूर आना चाहिए। इसके साथ ही एक बात और समझना चाहिए। कहा जा रहा है कि जनसंख्या नीति उत्तर प्रदेश सरकार क्यों बना रही है? केंद्र सरकार क्यों नहीं बना रही है। जनसंख्या नीति संविधान की समवर्ती सूची में है। यानी इस पर केंद्र भी कानून बना सकता है और राज्य भी बना सकता है। अलग अलग राज्यों ने अपने अपने तरीके से जनसंख्या कानून बनाए हैं। चूंकि उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं इसलिए वहां चर्चा थोड़ी ज्यादा हो रही है। केंद्र सरकार भी इस पर कानून बना सकती है और मुझे लगता है कि कानून बनने में ज्यादा समय नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार

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अभी सुप्रीम कोर्ट में अश्विनी उपाध्याय की ओर से एक जनहित याचिका दायर की गई है। उपाध्याय बहुत काबिल वकील हैं और ऐसे जनहित के मामलों को वह लगातार उठाते रहते हैं। वे राजनीति से जुड़े मामले या केवल प्रचार पाने के लिए किसी मामले को कोर्ट ले जाना- यह सब वह नहीं करते। उन्होंने कई पीआईएल की दाखिल की हैं जिनमें से एक जनसंख्या नीति को लेकर है, जिसकी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। जब तक इस पर सुनवाई पूरी नहीं हो जाती और सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता तब तक केंद्र सरकार इस पर कानून नहीं बना सकती है।

तैयारी की और कर दिखाया योगी ने

उत्तर प्रदेश सरकार जो काम शुरू करने जा रही है उसके लिए बहुत साहस की जरूरत थी। वह साहस राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिखाया है। इसकी सराहना की जानी चाहिए। यह सब लोग महसूस करते हैं कि बढ़ती आबादी सभी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रही है। अगर महंगाई बढ़ रही है, जमीन-पानी-बिजली की कीमत बढ़ रही है तो इससे कोई एक व्यक्ति या वर्ग प्रभावित नहीं हो रहा है- बल्कि पूरा देश और पूरा समाज प्रभावित हो रहा है। किसी मुद्दे पर तो सबको देश के बारे में सोचकर फैसला लेना चाहिए। हर मुद्दे पर यह कहना कि यह मुसलमान के खिलाफ है- ठीक नहीं है। क्यों बाकी आबादी को दो बच्चे पैदा करने चाहिए और मुसलमान को ज्यादा पैदा करना चाहिए? सबके लिए एक नीति क्यों नहीं होनी चाहिए। कोई कहे कि अगर सरकार केवल मुसलमानों के लिए नीति बनाएगी तो यह खराब है- यह बात समझ में आती है। कोई नीति सबके लिए बन रही है तो फिर क्या समस्या है। उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नीति की घोषणा के बाद वह चुनाव तक लागू भी हो जाएगी- लेकिन उसकी आलोचना सिर्फ इसलिए की जाएगी कि इसे चुनाव के पहले लागू किया गया है। ऐसा नहीं है कि अगर जनसंख्या नीति चुनाव के बाद लागू की जाती तब उसकी आलोचना नहीं होती… तब भी होती लेकिन बहाना दूसरा होता। जिस राज्य में जो भी लोग सत्ता में हैं- चाहे वे किसी भी दल के नेता हों- उनको ऐसी आलोचनाओं से घबराना नहीं चाहिए। अगर आप देश और समाज के लिए कुछ कर रहे हैं तो आपको बिल्कुल निश्चिंत और निर्भीक होकर कदम उठाना चाहिए। क्योंकि बुनियादी समस्याएं, स्थितियां सब जगह एक जैसी हैं- वसीम बरेलवी का शेर:

हर शख्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ,

फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले।