प्रदीप सिंह।
जो नेता या पार्टियां अपने आप को धर्मनिरपेक्ष मानती हैं उनका मुसलमान प्रेम तो एक बार समझ में आता है। उन्हें लगता है कि यह एक ऐसा वोट है जो एकमुश्त पड़ता है और अगर यह हमको मिल जाए तो हम अपने प्रतिद्वंद्वियों और बाकी पार्टियों से आगे निकल जाएंगे। लेकिन जो समझ में नहीं आता वह यह कि इन नेताओं को आतंकवाद के आरोपी मुसलमानों से हमदर्दी और प्रेम क्यों है? यह सिलसिला रुक नहीं रहा है, जारी है। क्या वजह है कि ये नेता आतंकवाद के आरोपियों को बचाने, उनके पक्ष में बोलने और उनके साथ खड़े दिखने की बार-बार कोशिश करते हैं। हालांकि मतदाताओं की तरफ से उनको बार बार जवाब मिलता है लेकिन उनमें कोई सुधार आता नहीं।
यह मुद्दा इसलिए उठाया है क्योंकि उत्तर प्रदेश में यूपी एटीएस ने दो संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया जिनका संबंध अलकायदा से बताया जा रहा है। एक आतंकवादी मिन्हाज अहमद को लखनऊ के पास काकोरी से गिरफ्तार किया गया। दूसरे आतंकवादी नसरुद्दीन उर्फ़ मुशीर को जौनपुर के मडियाव से गिरफ्तार किया गया। इनके तीसरे साथी शकील की तलाश जारी है। इनके पास से जो सामान मिला और इनकी जो योजना पता चली है उसके अनुसार ये 15 अगस्त को उत्तर प्रदेश के करीब आधा दर्जन शहरों आगरा, मेरठ, बरेली, लखनऊ, वाराणसी, अयोध्या और प्रयागराज में प्रेशर कुकर बम बना कर उनका विस्फोट करने वाले थे। इस वारदात को बड़े पैमाने पर अंजाम दिया जाना था। ऐसा हो पाता इसके पहले ही पुलिस को इनका सुराग मिला और एटीएस ने उनको गिरफ्तार कर लिया। स्वभाविक सी बात है कि एटीएस और अन्य सुरक्षा एजेंसियां ऐसी लीड्स पर काम करती रहती हैं। जो गाड़ी पकड़ी गई उसके बारे में सबूत मिले हैं कि वह जम्मू-कश्मीर भी जाती थी। जम्मू कश्मीर में तैनात सुरक्षा एजेंसियों ने इस गाड़ी का नंबर शेयर किया जिससे मालूम पड़ता है कि आतंकवादियों के लिंक कश्मीर से भी हैं।
आशा है उप्र में पुलिस का नया नेतृत्व अपनी प्रतिबद्धता जनता के प्रति दिखाएगा और अब तक के भाजपा काल में पुलिस के द्वारा जिस प्रकार की नाइंसाफ़ी आम जनता तथा विपक्ष के ख़िलाफ़ झूठे मुक़दमों के रूप में हुई है, उस प्रथा को ख़त्म करेगा।
पुलिस जनता के विश्वास का प्रतीक होनी चाहिए।
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) July 3, 2021
पुलिस पर भरोसा नहीं
अगर ऐसी घटनाओं के बारे में पता चले और पुलिस, एटीएस कार्रवाई करे तो ऐसे नेताओं और राजनीतिक दलों की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए जो जनता के लिए चिंतित हों और चाहते हों कि आतंकवाद का खात्मा हो, उसमें लिप्त लोग पकडे जाएं व कानून उनको सज़ा दे। जाहिर है इसके लिए पुलिस की तारीफ होनी चाहिए कि कितना बड़ा हादसा होने से टल गया जिसमें बड़ी संख्या में लोग मारे जाते और घायल होते। लेकिन उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान सुनिए कि मुझे योगी सरकार की पुलिस पर भरोसा नहीं है। जो व्यक्ति 5 साल तक देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री रह चुका हो उसको यह बोलने का साहस कहां से मिलता है। क्या उन्हें यह बताने की ज़रुरत है कि पुलिस किसी मुख्यमंत्री, राजनीतिक दल या राजनीतिक दल की सरकार की नहीं होती। पुलिस राज्य की होती है। पार्टी, मुख्यमंत्री, सरकार आते जाते रहते हैं लेकिन पुलिस तब भी रहती है। कोई नई पुलिस या नए अफसर नहीं आ जाते।
यह कैसी धर्मनिरपेक्षता
इस तरह की बयानबाजी कोई पहली बार नहीं हो रही है। 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में साफ़ कहा था कि हमारी सरकार आई तो जेलों में बंद निर्दोष मुसलमानों के खिलाफ मुकदमे वापस लेकर उनको रिहा करेंगे। यह अच्छी बात है, स्वागतयोग्य है। लेकिन मुसलमान ही क्यों… जो निर्दोष हिंदू बंद हैं उनको क्यों नहीं रिहा करेंगे- जो सिख और ईसाई निर्दोष हैं उनको क्यों नहीं रिहा करेंगे? यह कैसी धर्मनिरपेक्षता या सेक्युलरिज्म है। कहा जाता है कि सेक्युलरिज्म सांप्रदायिक सौहार्द का काम करता है? क्या इस प्रकार सांप्रदायिक सौहार्द की स्थापना की जाती है! किसी एक संप्रदाय के प्रति यह अतिशय प्रेम क्या दर्शाता है?
अदालत ने कहा आप मुकदमे वापस नहीं ले सकते
खैर… 2012 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बन गई। सरकार बनने के बाद 26 अप्रैल 2013 को बाराबंकी के स्पेशल कोर्ट में समाजवादी पार्टी की सरकार ने एक अपील दायर की कि आतंकवाद के मामले में गिरफ्तार जिन चार लोगों पर मुकदमा चल रहा है उन पर मुकदमा वापस हो। इन चार लोगों पर किस मामले में मुकदमा चल रहा था। उन पर लखनऊ और फैजाबाद की अदालतों में बम विस्फोट करने का आरोप था। इसके अलावा गोरखपुर में हुए बम विस्फोट मामले में भी वे आरोपी थे। स्पेशल कोर्ट ने सरकार को मना कर दिया कि आप मुकदमा वापस नहीं ले सकते। राज्य सरकार स्पेशल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट गई। हाई कोर्ट ने सरकार को लताड़ लगाई कि इन लोगों पर राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी कानून के अंतर्गत मुकदमा चल रहा है। राज्य सरकार यह मुकदमा कैसे वापस ले सकती है? आरोपियों के खिलाफ मुकदमा वापस नहीं होगा।
किस हद तक गिरेंगे?
चारों आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चला। इनमें से एक की फैजाबाद कोर्ट में पेशी के लिए लाते वक्त बाराबंकी के पास तबीयत बिगड़ी। अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसकी मौत हो गई। आरोपी के चाचा ने 42 पुलिस वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। एफआईआर में उत्तर प्रदेश के 2 पूर्व डीजीपी का भी नाम शामिल था। मामला मीडिया की सुर्खियों में था। मामले की जांच हुई लेकिन यह साबित नहीं हो पाया कि किसी और कारण से उस आरोपी की मौत हुई। जाँच में यही पाया गया कि तबीयत बिगड़ने पर उसे अस्पताल ले जाया गया जहां पहुंचते-पहुंचते उसकी मृत्यु हो गई। समाजवादी पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इन लोगों को निर्दोष मानते थे। बाकी तीन आरोपियों में से 2 को दिसंबर 2019 में आजीवन कारावास की सजा मिली। ये वही आतंकवादी थे जिनको अखिलेश यादव छुड़ाना चाहते थे, उनके खिलाफ मुकदमा वापस लेकर उनको बरी कराना चाहते थे। आखिर आप किस हद तक गिरेंगे? वोट के लिए देश में आतंकवाद और आतंकवादियों को बढ़ावा देंगे, उनका समर्थन करेंगे, उनके साथ खड़े नजर आएंगे।
वही समाजवादी पार्टी- वही अखिलेश यादव
यह वही समाजवादी पार्टी और वही अखिलेश यादव हैं जो लखनऊ में कमलेश तिवारी को दिनदहाड़े जिबह कर दिये जाने पर कुछ नहीं बोलते… कोई आवाज नहीं उठाते। यति नरसिंहानंद सरस्वती की हत्या की साजिश होती है। आरोपी गिरफ्तार होते हैं जिनके तार पाकिस्तान के पीओके में सक्रिय आतंकवादी संगठन से जुड़े होते हैं। लेकिन समाजवादी पार्टी इस पर कुछ नहीं बोलती। समाजवादी पार्टी और ऐसी अन्य पार्टियां जो अपने को सेकुलर कहती हैं दरअसल यह मानकर चलती हैं कि कुछ भी हो हिंदू तो उनको वोट देगा ही। उनको जो मेहनत करनी है वह मुस्लिम वोट हासिल करने के लिए करनी है। यह किस तरह का राजनीतिक विमर्श है कि एक धर्म विशेष के प्रति आप विशेष आग्रह से ग्रस्त हैं।
क्या संदेश दे रहे हैं मुस्लिम समुदाय को
अब जरा इसका दूसरा पक्ष भी देखिए। अगर आप आतंकवाद के आरोपियों का समर्थन कर रहे हैं, उनको बचाने की कोशिश कर रहे हैं- तो आप संदेश क्या दे रहे हैं? आप मुस्लिम समुदाय को क्या संदेश दे रहे हैं? उनको यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि तुम्हारे यहां कोई आतंकवादी होगा तो उसको भी हम बचाएंगे… या यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि मुस्लिम समुदाय इस बात को पसंद करता है कि उनके बीच अगर कोई आतंकवादी तत्व है तो उसको बचाया जाए। वह समुदाय आतंकवाद का समर्थन करता है और ऐसे लोगों को बचाने के लिए पुरस्कृत करेगा। अब मुसलमानों को भी अपने वोट के बारे में सोचना होगा। उनको सोचना होगा कि जो धर्मनिरपेक्षता के नाम पर उनका वोट लेते हैं वे सत्ता में आने के बाद उनके लिए करते क्या हैं? जब तक सत्ता में नहीं है तब तक वादे कर सकते हैं- यह बात समझ में आती है… लेकिन सत्ता में आने के बाद? मुलायम सिंह तीन बार मुख्यमंत्री रहे, अखिलेश यादव एक बार पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे- उन्होंने मुसलमानों के हित के लिए क्या किया, उनका जीवन स्तर, आर्थिक स्तर व शैक्षणिक स्तर सुधारने के लिए क्या कदम उठाए? इन नेताओं को मालूम है कि यह सब करने से वोट नहीं मिलता है। इनको मालूम है कि हिंदुओं के खिलाफ मुसलमानों को बरगलाओ, उनको दिखाओ की हम तुम्हारा समर्थन करने और तुम्हारे साथ खड़े होने के लिए हिंदुओं का विरोध करने को तैयार हैं- तब मुसलमानों का वोट मिलेगा। पिछले 70 सालों में इस तरह का विमर्श खड़ा किया गया है। इसका नतीजा क्या रहा? उसकी गवाही सच्चर कमेटी की रिपोर्ट देती है कि आजादी के बाद से मुसलमानों की स्थिति क्या हो गई, जो लोग लगातार मुस्लिम हितों और उनके हितैषी होने का दावा करते रहे हैं उन लोगों ने क्या किया है?
उनके लिए यह सरकार की उपलब्धि नहीं
चार साल में उत्तर प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ है- क्या इसका श्रेय योगी आदित्यनाथ की सरकार को नहीं जाता है। 2002 के बाद से गुजरात में एक भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ है- क्या इसका श्रेय नरेंद्र मोदी को नहीं जाता है। देश में पिछले 7 सालों से पहले की स्थिति को देखिए। सार्वजनिक स्थानों पर और हर सार्वजनिक बस के पीछे सीट पर लिखा होता था कि लावारिस सामान से सावधान- अगर आपको अपनी सीट के नीचे कोई भी संदिग्ध वस्तु दिखे तो तुरंत पुलिस को सूचना दें। पिछले 7 सालों में हम वह सब भूल गए कि ऐसा भी होता था। तब हर चार-छह महीने में देश के किसी ना किसी क्षेत्र में बम विस्फोट की घटनाएं होती थीं। अब बंद हो गया है तो उस बात को हम भूल गए। उनके लिए यह कोई सरकार की उपलब्धि नहीं है। वह तो आतंकवादियों ने खुद ही तय किया कि हम अभी ऐसी घटनाएं करना बंद कर देते हैं, अभी थोड़ा आराम कर लेते हैं- शायद यही मानते होंगे ये लोग।
मुस्लिम वोट की खातिर खतरे में डालेंगे देश की सुरक्षा
आखिर सरकार ने कुछ तो किया होगा कि कश्मीर के बाहर पूरे देश में एक भी बड़ी आतंकवादी घटना नहीं हुई। और कश्मीर में हुई घटनाओं का जैसा जवाब दिया गया वैसा आज तक कभी नहीं दिया गया। मुस्लिम वोट की खातिर क्या आप देश की सुरक्षा को खतरे में डालेंगे- यह सवाल पूछा जाना चाहिए अखिलेश यादव और उनकी जैसी राजनीति करने वाले और लोगों से। जिनको ओसामा बिन लादेन में ओसामा जी नजर आता है- जिनको भगवा आतंकवाद और हिंदू आतंकवाद नजर आता है- उनकी चुप्पी भी सवालों के घेरे में है। जिस दिन मुसलमानों को यह समझ में आ जाएगा और समझ में आना भी चाहिए कि ये लोग तो कम से कम उनके हितेषी नहीं हैं। इन लोगों ने मुस्लिम समुदाय को कुछ नहीं दिया है और आगे भी कुछ नहीं देने वाले। इनको सिर्फ मुसलमानों का वोट चाहिए- इसके अलावा इनको उनसे कोई मतलब नहीं है।
अपना हित-अहित तो पहचानिए
मुसलमानों के बारे में तो फिर भी उम्मीद है कि शायद उनको समझ में आ जाएगा। लेकिन हिंदुओं को यह कभी समझ में नहीं आएगा कि जो आप के खिलाफ हैं, आपकी परवाह नहीं करते हैं, उनको भी आप वोट देते हैं यह बहुत अच्छी बात है- पर कम से कम अपना हित-अहित तो पहचानिए। यह तो पहचानिए कि कौन आपके साथ खड़ा है- किन परिस्थितियों में और किस कीमत पर खड़ा है। लगता नहीं कि इस स्थिति में कोई बड़ा बदलाव आने वाला है इसलिए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदू विरोधी और मुस्लिम सरपरस्ती का सिलसिला जारी रहने वाला है।