पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 23 जुलाई सुबह 10.43… पूर्णिमा तिथि समाप्त- 24 जुलाई सुबह 08:06

ध्यान और उत्सव के अनुभव का दिन: श्री श्री रविशंकर

मानवीय चेतना के तीन स्तर होते हैं।

जड़ता
प्रथम तथा सबसे निचला स्तर है शुद्ध जड़ता का, जहां किसी को कुछ भी महसूस नहीं होता।
दुःख के प्रति जागृति
दूसरा स्तर है जब कोई यह अनुभव करता है कि जीवन में दु:ख है। महात्मा बुद्ध लोगों को जड़ता की स्थिति से दुःख के प्रति जागृति की स्थिति में ले गए। प्रत्येक दुःख आप को जागृत करता है और आपके भीतर विवेक और विरक्ति की भावना उत्पन्न करता है। इसीलिए बहुत से लोग दुःख  पड़ने पर आध्यात्मिक हो जाते हैं।
आनंद
तीसरा स्तर है, यह अनुभव करना कि यह जीवन आनंदमय हैं; यहां पर हमें गुरु तत्व की आवश्यकता अनुभव होती है। गुरु की उपस्थिति में दुख आनंद में बदल जाता है।

लोग दुनिया में होते हैं पर जीवन नहीं जीते

साधारणतया लोग दुनिया में होते हैं, परंतु वह जीवन नहीं जीते। केवल दुनिया में होना बिना जीवन के, यह जड़ता का प्रतीक है। ऐसे जीना कि तुम इस दुनिया में हो ही नहीं, यही प्रबुद्धता प्राप्त करना है। शून्यता और पूर्णता- ध्यान और उत्सव, दोनों साथ-साथ चलते हैं। आज गुरु पूर्णिमा का दिन ध्यान और उत्सव दोनों को अनुभव करने का दिन है।

apkaakhbarमानव जाति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण दिन: सदगुरु

गुरुपूर्णिमा पूरी मानव जाति के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। हमारे देश में कुछ समय  पहले तक ऐसा ही माना जाता था। देश में गुरु पूर्णिमा सबसे महत्वपूर्ण उत्सवों, पर्वों में से एक था। लोग इसको जाति या पंथ के किसी भी भेदभाव के बिना मनाते थे, क्योंकि इस देश में धन, संपत्ति सबसे महत्त्वपूर्ण नहीं थे। ज्ञान प्राप्त करना या जानना सबसे अधिक मूल्यवान समझा जाता था। समाज में शिक्षक या गुरु को सर्वोच्च सत्ता का दर्जा दिया जाता था क्योंकि जानना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। लेकिन फिर कुछ कारणों से हमने, जानने की बजाय अज्ञानता को महत्व दिया और पिछले 65 वर्षों में गुरु पूर्णिमा का महत्व इसलिये भी कम हो गया है क्यों कि भारत सरकार ने इस दिन को छुट्टी घोषित नहीं की है।

अंग्रेजों के आने से पहले

भारत में अंग्रेजों के आने से पहले अमावस्या के आसपास तीन दिन का और पूर्णिमा के आसपास दो दिन का अवकाश रहता था। तो महीने में आप के पास 5  दिन होते थे जब आप मंदिर जाते थे और अपनी आंतरिक खुशहाली के लिये काम करते थे। जब अंग्रेज़ आये तो उन्होंने रविवार को अवकाश का दिन बना दिया। उसका क्या मतलब है? आप को नहीं पता कि उस छुट्टी के दिन क्या करना चाहिये, तो आप बस खूब खाते हैं और टीवी देखते हैं!

उत्सव धीरे धीरे महत्व खो बैठा

Guru Purnima 2021 Date and Time in India: Worship Guru Purnima like this on July 24 know what will be the benefits - Astrology in Hindi - Guru Purnima 2021: गुरु पूर्णिमा

सारे देश में ये उत्सव धीरे धीरे अपना महत्व खो बैठा है। यहाँ, वहां, कुछ आश्रमों में आज भी ये जीवित है लेकिन अधिकतर लोगों को तो ये भी नहीं पता कि ये सबसे महत्वपूर्ण दिन इसलिये है, क्योंकि, लोगों के दिमाग में धर्म का विचार आने से पहले, आदियोगी ने यह विचार सामने रखा कि  मनुष्य, अपने अस्तित्व के वर्तमान आयामों के परे भी विकसित हो सकता है और उन्होंने इसे सच्चाई बनाने के लिये आवश्यक साधन भी दिये। ये वो सबसे कीमती विचार है, जो मनुष्य के मन में आया- कि वो अपनी वर्तमान सीमाओं के परे जा सकता है और अनुभव, अस्तित्व तथा पहुंच के एक बिल्कुल अलग आयाम में प्रवेश कर सकता है।


गुरु से ही नहीं, उसके विचारों से भी नज़दीकी हो: मोरारी बापू

रामचरितमानस का रस सम्पूर्ण समाज में व्याप्त है। कोई गीत गाता है तो उसमें भी रस है, कोई गुनगुनाता है तो वहां भी रस है।

तब चालीस छात्र थे अब चालीस हजार

कथा वाचक से पहले साल 1965-66 में परिषदीय विद्यालय में शिक्षक हुआ करता था। तब चालीस छात्र हुआ करते थे, आज मेरे पास चालीस हजारा से ज्यादा छात्र है। क्लास कैसे चलानी ये मैं अच्छे से समझता हूं। यहां इतने बुजुर्ग श्रद्धालुओं को छात्र कैसे कहूं। यह एक ऐसा वर्ग है जहां अप वर्ग भी तुच्छ हैं। एक आदमी को किडनैप करने में चार-पांच आदमियों की जरूरत होती है। लेकिन इस पंडाल में तो मैं हजारों लोगों को किडनैप कर रामकथा का रसपान करा रहा हूं।

मत्स्येन्द्रनाथ से बाबा गोरखनाथ का संवाद

Great Beings – 3 Stories of Gorakhnath

मत्स्येन्द्रनाथ एवं बाबा गोरखनाथ के बीच हुआ संवाद अत्यंत महत्वपूर्ण है। गोरखनाथ ने गुरु मत्स्येन्द्रनाथ से पूछा कि हे गुरु सत्य क्या है, धर्म क्या है तो गुरु उत्तर देते हैं सत्य ही धर्म है और धर्म ही सत्य है। इसके बाद गोरखनाथ फिर प्रश्न करते हैं कि हे गुरु, बुद्धि के लक्षण क्या हैं। तो गुरु मत्स्येन्द्रनाथ बुद्धि के लक्षण बताते हैं और कहते हैं कि विवेक, वैराग्य, शांति, संतोष एवं क्षमा बुद्धि के ये पांच लक्षण हैं

सच्चा साधु और सम्राट

सच्चा साधु कभी सम्राट की संपत्ति नहीं देखते बल्कि उसकी भक्ति देखते हैं। राजा की भक्ति व सम्मान कितना है, यह उसकी भक्ति को दर्शाता है। साधु कभी किसी भी राजा के मुंह पर उसके आवभगत की प्रशंसा नहीं करता।


असफलता ही हाथ लगती है संसार में: ओशो

मेरे पास लोग आते हैं। वे कहते हैं, संकल्प-शक्ति की कमी है- विल पावर। आप कृपा करें, संकल्प-शक्ति दे दें। मैं पूछता हूं, संकल्प-शक्ति का करोगे क्या? संकल्प-शक्ति का उपयोग संघर्ष में है, संसार में है; मोक्ष में तो कोई भी नहीं।

संकल्प बाधा बनेगा

अशांत होना हो तो संकल्प-शक्ति की जरूरत है। शांत होना हो तो विसर्जित करो। जो थोड़ी-बहुत संकल्प-शक्ति है, वह भी विसर्जित करो। उसे भी डाल आओ गंगा में। उससे भी छुटकारा लो। संकल्प तो बाधा बनेगा, समर्पण मार्ग है।

आशा का दीया

Guru Purnima 2021:छात्रों के लिए 'गुरु पूर्णिमा' पर भाषण, निबंध एवं विचार | Guru Purnima 2021: Guru Purnima Speech, Essay and Thoughts in Hindi for Students - Hindi Oneindia

लोग मेरे पास आते हैं, वे कहते हैं, कुछ आशीर्वाद दें। जीवन में बड़ी निराशा है। आशा का दीया जला दें। मैं उनसे कहता हूं, तुम गलत जगह आ गए। यहां तो आशा के दीये बुझाए जाते हैं।

सदगुरु की पहचान

ईश्वर क्या है ? क्या ईश्वर सत्य है ? ईश्वर का नाम और रूप क्या है ?

तुम इसे ध्यान रखना, यह सद्गुरु की पहचान है- जो तुमसे आशा छीन ले; जो तुमसे संकल्प छीन ले। यह सदगुरु की पहचान है- जो तुम्हें मिटा दे। तुम भला किसी कारण से उसके पास आए हो, वह तुम्हारी चिंता ही न करे। उसके लिए तो आत्यंतिक बात ही महत्वपूर्ण है। वह तो तुम्हारे भीतर मोक्ष को लाना चाहता है।

मोक्ष की कामना

और स्वभावतः तुम कैसे मोक्ष की कामना कर सकते हो? संसार को ही तुमने जाना है। वहां भी सफलता नहीं जानी। किसने जानी! सिकंदर भी असफल होता है। संसार में असफलता ही हाथ लगती है।

असद्गुरु से ही तुम्हारा मेल हो पाएगा

तो तुम वही सफलता पाने के लिए आ गए हो अगर, तो केवल असद्गुरु से ही तुम्हारा मेल हो पाएगा, जहां गंडा-ताबीज मिलता हो, मदारीगिरी से भभूत बांटी जाती हो, जहां तुम्हें इस बात का भरोसा मिलता हो कि ठीक, यहां कुछ चमत्कार हो सकता है; जहां तुम्हारा मरता-बुझता अहंकार प्रज्वलित हो उठे; जहां कोई तुम्हारी बुझती ज्योति को उकसा दे।

नरक की ज्योति

मगर वह ज्योति संसार की है। वही तो नरक की ज्योति है। वही तो अंधकार है। उसी ने तो तुम्हें पीड़ा दी है, सताया है। उसी से बिंधे तो तुम पड़े हो। वही तो तुम्हारी छाती में लगा विषाक्त तीर है। सदगुरु उसे खींचेगा। उसके खींचने में ही तुम मरोगे। सदगुरु तो मृत्यु है तुम्हारी; जैसे तुम हो। यद्यपि उसी मृत्यु के बाद तुम्हें पहली दफा उसका दर्शन होता है, जो वस्तुतः तुम हो।