apka akhbar-ajayvidyutअजय विद्युत।
आज जैसे ही कोई कहता है भारत का इतिहास दोबारा लिखा जाना चाहिए- वैसे ही एक वर्ग की- जिसमें सेक्युलर, लेफ्ट, लिबरल शामिल हैं- भुजाएं फड़क उठती हैं… भृकुटि तन जाती है। वे उसे भाजपाई, संघी, हिंदुत्ववादी, भगवा और न जाने क्या क्या घोषित कर डालते हैं। लेकिन स्वामी विवेकानंद तो भाजपा के नहीं थे। फिर उन्होंने क्यों कहा कि ‘हमारा इतिहास विदेशियों ने लिखा और इसलिए लिखा ताकि भारत का गौरव कम हो। हमें अपना इतिहास दोबारा लिखना चाहिए।’


 

शिक्षा में भारत?

Swami Vivekananda's Experience of Nirvikalpa Samadhi or Complete Mergence With God – The Spiritual Bee

बच्चों के छोटे हाथों को चांद सितारे छूने दो, चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे बन जाएंगे।
बच्चा मिट्टी में खेलता है, मां की भाषा बोलता है। ये चार किताबें उससे उसकी मिट्टी और मातृभाषा से लगाव, अपनी जड़ों से जुड़ाव सब छुड़ा देती हैं। उसे इनके बारे में बताया ही नहीं जाता। ये चांद सितारे जो उसके अपने हैं विदेशियों की खोज बताए जाते हैं। खूब पढ़ लिख जाता है तो वह भारत में होता है पर भारत का नहीं होता।

हमारी सभ्यता के बारे में कुछ नहीं सिखाया जाता

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कोई दो-तीन साल पहले की बात होगी। प्रसिद्ध लेखक अमीश त्रिपाठी बेंगलुरु में आर्ट आफ लिविंग के आश्रम गए थे। आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर से उन्होंने एक बड़ा सटीक सवाल पूछा- ‘मेरा यह मानना है कि हमारे देश में जो शिक्षा प्रणाली है उसमें काफी हद तक इंसान जितना पढ़ लिख जाता है उतना अपनी जड़ों से, सभ्यता से कट जाता है। हमारी शिक्षा प्रणाली में हमारी सभ्यता के बारे में कुछ नहीं सिखाया जाता। अगर इस बारें में हमें कुछ सीखना है तो हमें आपके चरणों में आना पड़ता है क्योंकि हमारी कक्षाओं में कुछ सिखाया नहीं जाता। आप बताएं कि यह सुधार होना चाहिए या नहीं?

झूठ फैलाया गया कई सालों-दशकों से

कुछ क्षण के लिए तो सभागार में मौजूद हजारों की भीड़ में सन्नाटा छा गया। क्या जवाब देंगे श्रीश्री। बात जो छोटी सी थी बहुत दूर तलक जा सकती थी। पर श्रीश्री ने भोलेपन से माइक अपने मुंह के सामने खींचा और मुस्कुराए- ‘बिल्कुल सुधार होना चाहिए। हमारा इतिहास दोबारा लिखा जाना चाहिए। ये जो झूठ फैलाया गया कई सालों दशकों से कि यहां आर्य और द्रविड़ आपस में लड़ते रहे। आर्य बाहर से आए थे। ये सब बातें आज वैज्ञानिक रूप से असिद्ध हो चुकी हैं। आज भी हमारे स्कूलों में यह पढ़ाया जाता है कि गैलिलियो ने यह पता लगाया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूम रही है। भारत में आप किसी भी मंदिर में चले जाएं सभी ग्रह चारों ओर हैं सूर्य के। सूर्य की प्रतिमा बीच में है। हमने पहले से जाना था इसको। हमने सबको गोल रूप में देखा था इसीलिए हम भूगोल कहते हैं, खगोल कहते आए हैं। ये जो हमको सिखाया जा रहा है कि किसी व्यक्ति ने यह पता लगाया कि पृथ्वी गोल गोल है- यह बात गोल गोल है।’

ये पुस्तक हिंदी में भी है?

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इसके बाद जब अमीश ने अपनी नई पुस्तक ‘इम्मॉर्टल इंडिया’ श्रीश्री को भेंट की। पुस्तक अंग्रेजी में थी। श्रीश्री ने तुरंत पूछा- ‘ये हिंदी में भी है क्या?’
अमीश का जवाब था- ‘ये हिंदी में ‘अमर भारत’ नाम से है और बांग्ला, तमिल व अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो रहा है।’
ये छोटा सा दृश्य बताता है कि अपने देश और भाषा को लेकर स्वत:स्फूर्त ललक क्या होती है।

मातृभाषा में दी जाए शिक्षा

शिवा ट्रायलॉजी के बाद रामचंद्र सीरीज पर काम कर रहे अमीश मूलत: अंग्रेजी में लिखते हैं लेकिन साफ कहते हैं, ‘शिक्षा का माध्यम हमेशा मातृभाषा होनी चाहिए।’
‘लेकिन आप तो अंग्रेजी में लिखते हैं और आपकी पुस्तकें विदेश में काफी बिकती हैं…!’
बात पूरी होने से पहले ही वह काट देते हैं- ‘मैं पश्चिम की संस्कृति का विरोधी नहीं हूं। इन देशों ने पिछले तीन सौ सालों में बहुत विकास किया है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम अपनी संस्कृति छोड़ दें। हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी है जिसमें हमें अपने अस्तित्व, संस्कृति और अस्मिता के बारे में कुछ नहीं सिखाया जाता है। तमाम आक्रमणों के बाद भी हमारी संस्कृति बची हुई है। बाकी देशों की संस्कृति सिर्फ संग्रहालयों में कैद होकर रह गई है।’