प्रदीप सिंह।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति पर बात करें तो हमें देखना होगा कि पिछले सवा 4 साल में यानी योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद क्या हुआ है और उसके पहले क्या स्थिति थी। उत्तर प्रदेश में पिछले सवा 4 साल में कानून व्यवस्था की स्थिति में जो बदलाव हुआ है उसको अगर एक वाक्य में कहना हो तो हम कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में ‘गुंडों का आतंक’ से उत्तर प्रदेश में ‘गुंडों में आतंक’… यह सफर तय किया गया है।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति पर बात करें तो हमें देखना होगा कि पिछले सवा 4 साल में यानी योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद क्या हुआ है और उसके पहले क्या स्थिति थी। उत्तर प्रदेश में पिछले सवा 4 साल में कानून व्यवस्था की स्थिति में जो बदलाव हुआ है उसको अगर एक वाक्य में कहना हो तो हम कह सकते हैं कि उत्तर प्रदेश में ‘गुंडों का आतंक’ से उत्तर प्रदेश में ‘गुंडों में आतंक’… यह सफर तय किया गया है।
क्यों नहीं होती इस तस्वीर की चर्चा
इस तस्वीर को गौर से देखिए। यह तस्वीर आपको भारत या भारत से बाहर के किसी अखबार में छपी हुई नहीं दिखेगी। भारत में भी मेंस्ट्रीम मीडिया में आपको यह तस्वीर नहीं मिलेगी। यह तस्वीर अगर उत्तर प्रदेश के अलावा किसी और राज्य की होती तो पूरे देश में इस पर चर्चा हो रही होती। क्योंकि यह तस्वीर उत्तर प्रदेश से है और योगी आदित्यनाथ वहां मुख्यमंत्री हैं इसलिए इस तस्वीर की कहीं चर्चा नहीं होगी। यह तस्वीर वाशिंगटन पोस्ट या न्यूयॉर्क टाइम्स में नहीं छपेगी। भारत के भी बड़े अखबारों- खासकर अंग्रेजी अखबारों- में नहीं छपेगी। यह तस्वीर छपी है अमर उजाला के मेरठ एडिशन में। तस्वीर में आपको जो हाथ उठाए लोग देख रहे हैं वे किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ता नहीं हैं। ये किसी छोटे शहर या कस्बे में किसी छोटे-मोटे अपराध में पाए गए लोग भी नहीं हैं। ये वे लोग हैं जिनके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत मुकदमे दर्ज हैं। वे हाथ उठाकर कोतवाली में घुसे हैं और कह रहे हैं कि हम सरेंडर करने आए हैं। वे कह रहे हैं कि “हमको जेल भेज दीजिए। हम जब जेल से निकलेंगे तो अपराध से तौबा कर लेंगे, शांतिपूर्ण जीवन व्यतीत करेंगे और कभी अपराध के रस्ते पर नहीं जाएंगे।”
हाथरस, अलीगढ़, उन्नाव की घटनाएं अपवाद
ऐसी तस्वीरें आपने पहले कभी नहीं देखी होंगी। जो लोग उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की बात करते हुए हाथरस, अलीगढ़ या उन्नाव की घटनाओं का जिक्र करते हैं वे यह भूल जाते हैं कि उत्तर प्रदेश में 2017 से पहले स्थिति क्या थी? हाथरस, अलीगढ़, उन्नाव की घटनाएं उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की सही तस्वीर पेश नहीं करते। कानून व्यवस्था की तस्वीर पेश करती हैं गुंडों-बदमाशों, माफिया के खिलाफ प्रशासन और पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई। अगर उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की सही तस्वीर जाननी है तो हमें वहां 2017 से पहले क्या था और 2017 के बाद क्या हुआ- इसकी तुलना करनी होगी। अच्छा या बुरा- तुलना से पता चलता है। 2017 से पहले यह स्थिति थी कि पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश में लोगों ने लड़कियों को स्कूल-कॉलेज भेजना बंद कर दिया था। कब किसके घर से किसकी लड़की उठा ली जाएगी किसी को पता नहीं था। कोई घटना होने पर पुलिस कार्रवाई करेगी- इसका तो किसी को भी यकीन नहीं था। बल्कि उल्टा हो सकता था। अगर कोई जोर डाले कि घटना की एफआईआर लिखी जाए तो स्थिति यह थी कि पीड़ित के ही खिलाफ एफआईआर लिख दी जाती थी।
ऐसा जंगलराज
एक टीवी चैनल के कार्यक्रम के बाद मुझसे प्रदेश के एक पूर्व डीजीपी ने कहा था कि ‘पुलिस को मौखिक आदेश है कि दो समुदायों के खिलाफ मुकदमा दर्ज नहीं होगा- यादव और मुसलमान।’ यह तब की बात है जब उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी। पूर्व डीजीपी का कहना था, ‘और अगर ऐसी स्थिति आ जाती है या अपराध इस प्रकृति का है कि मुकदमा दर्ज ही करना पड़े तो उस मामले में गिरफ्तारी नहीं होगी।’ ऐसा जंगलराज था प्रदेश में। जो परिवार सक्षम थे अगर वहां लड़की को पढ़ाना है तो परिवार का एक सदस्य उसे लेकर दूसरे राज्य में जाता था और वहां बेटी को पढ़ाता था। जिनकी हैसियत नहीं थी उन परिवारों ने लड़कियों का स्कूल कॉलेज जाना बंद करा दिया। और मनुष्य की तो बात ही छोड़ दीजिए जानवरों की यह स्थिति थी कि पश्चिम उत्तर प्रदेश में शाम के बाद कोई अपने जानवर बाहर नहीं छोड़ता था। डर था कि उठ जाएगा, काट दिया जाएगा और कोई सुनवाई नहीं होगी।
मुख्तार अंसारी का आतंक
पूर्वी उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी का आतंक यह था कि किसी के भी मकान, जमीन, दुकान पर कब्जा हो सकता था और वह बोल नहीं सकता था। मुख्तार अंसारी खुली जीप में लाउडस्पीकर लगाकर दंगा कराते थे और कोई बोलने वाला नहीं था। यही नहीं अगर कोई पुलिस वाला उसको रोकने की कोशिश करे तो पुलिस के खिलाफ कार्रवाई होती थी। मुलायम सिंह के जमाने में मुख्यमंत्री से मुख्तार अंसारी की सीधी हॉट लाइन थी। इस प्रकार के जितने भी माफिया के थे उनको प्रदेश सरकार का संरक्षण प्राप्त था। पुलिस सलाम बजाती थी।
धरी रह गयी सारी मुख्तारी
मुख्तार अंसारी का क्या रुतबा था इसे बताने के लिए यह एक दृश्य काफी है। 2017 में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। विधानसभा के पहले सत्र का पहला दिन। यह सालों से आम चलन था कि मुख्तार अंसारी के साथ पंद्रह-बीस हथियारबंद लोग विधानसभा में आते थे। किसी की कोई तलाशी नहीं होती थी बल्कि वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी उन्हें सलाम बजाते थे। मुख्तार अंसारी के आदमियों के लिए कोई रोक-टोक नहीं थी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा सत्र के पहले दिन जब यह देखा तो उन्होंने सचिवालय में सुरक्षा के इंचार्ज को बुलाया। योगी ने पूछा कि यह कब से और कैसे हो रहा है? उन्होंने जवाब दिया कि यह तो पंद्रह बीस साल से चल रहा है। मुख्यमंत्री ने कड़े स्वर में पूछा- ‘तुम्हें तनख्वाह सरकार से मिलती है या मुख्तार से? कल से यह सब नहीं होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति बिना पास के विधानसभा परिसर में नहीं आएगा और मुख्तार की भी उसी प्रकार तलाशी होगी जैसी दूसरे विधायकों की होती है।’
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा सत्र के पहले दिन जब यह देखा तो उन्होंने सचिवालय में सुरक्षा के इंचार्ज को बुलाया। योगी ने पूछा कि यह कब से और कैसे हो रहा है? उन्होंने जवाब दिया कि यह तो पंद्रह बीस साल से चल रहा है। मुख्यमंत्री ने कड़े स्वर में पूछा- ‘तुम्हें तनख्वाह सरकार से मिलती है या मुख्तार से? कल से यह सब नहीं होना चाहिए। कोई भी व्यक्ति बिना पास के विधानसभा परिसर में नहीं आएगा और मुख्तार की भी उसी प्रकार तलाशी होगी जैसी दूसरे विधायकों की होती है।’
गुंडे की कोई इज्जत नहीं होती
अगले दिन सदन का समय समाप्त हुआ। मुख्तार अंसारी मुंह लटकाए मुख्यमंत्री के कमरे में पहुंचे। मुख़्तार ने कहा कि ‘योगी जी, आज हमारी बड़ी बेइज्जती हुई है।’ योगी जी ने पूछा, ‘क्या हो गया?’ तब मुख्तार अंसारी ने पूरा किस्सा बताया कि मेरी तलाशी हुई और मेरे लोगों को रोक दिया गया। इस पर योगी जी ने कहा, ‘ठीक तो हुआ।…और सुनो मुख्तार तुम्हारी कोई बेइज़्ज़ती नहीं हुई है। बेइज़्ज़ती उसकी होती है जिसकी कोई इज्जत हो और गुंडे की कोई इज्जत नहीं होती है। गुंडे से लोग डरते हैं, उसकी इज्जत नहीं करते। तो यह मान कर चलो कि जब तक मैं हूं तब तक कानून के मुताबिक काम होगा। सुधर जाओ नहीं तो समझ लो क्या होगा?’
सन्देश का असर
यह संदेश था। सरकार को बहुत बार कुछ करने की जरूरत नहीं पड़ती। जब सरकार का मुखिया इस तरह का संदेश देता है तो उसका असर नीचे तक जाता है। उसका असर पुलिस के मनोबल पर भी पड़ता है। जो पुलिस वाले माफिया और गुंडों के खिलाफ कार्यवाही करना चाहते हैं और पिछले दस पंद्रह सालों से हतोत्साहित थे- उनके मन में भी उत्साह आता है। मनोबल बढ़ता है। उनको यह भरोसा होता है कि उनकी सरकार उनके साथ खड़ी है। पुलिस के इन लोगों ने पहले देखा था कि जब उनके साथियों ने या किसी सीनियर ने माफिया या किसी छोटे से अपराधी के खिलाफ भी कार्रवाई की तो पता चला कि उन्हीं को नुकसान उठाना पड़ा। यह स्थिति थी उत्तर प्रदेश में।
कार्रवाई को मुसलमानों के खिलाफ एक्शन बताने की कोशिश
उत्तर प्रदेश से दलित, पिछड़ा वर्ग, गरीब और अन्य लोग मजदूरी और छोटा मोटा काम करने मुंबई, दिल्ली, पंजाब और दूसरे शहरों-प्रदेशों को जाते थे। वे जब छुट्टियों में घर लौट कर आते थे तो बस स्टैंड पर ही दस-पंद्रह गुंडे-मवाली खड़े रहते थे और वहीँ उनके सारे पैसे निकलवा लेते थे। वह दृश्य अब उत्तर प्रदेश में देखने को नहीं मिलता। उत्तर प्रदेश के लोगों से पूछें तो आपको यह सब मालूम हो जाएगा। चौराहों पर अड्डा लगाए जो गुंडे मवाली खड़े रहते थे वो अब कहां गए किसी को पता नहीं। योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जो एक बात कही थी कि- अपराधी सुधर जाएं नहीं तो ठोक दिए जाएंगे- उसका संदेश नीचे तक गया। उत्तर प्रदेश में 20 मार्च 2017 से 7 जुलाई 2021 के बीच में पुलिस और बदमाशों की कुल 8,440 मुठभेड़ हुई हैं। इनमें 18,180 लोग गिरफ्तार हुए। इस कार्यवाही के दौरान 3,277 बदमाश घायल हुए और 144 मुठभेड़ में मारे गए। अभियान में 1,151 पुलिसकर्मी जख्मी और 13 शहीद हुए। जब से यह कार्यवाही शुरू हुई तो इसके खिलाफ एक बड़े वर्ग ने- जिसमें इंटेलेक्चुअल का एक तबका, कई एनजीओ और तमाम राजनीतिक दल शामिल हैं- ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की कि यह मुसलमानों के खिलाफ एक्शन हो रहा है। बाद में पता चला कि पुलिस और अपराधियों के बीच हुई मुठभेड़ों में जो 144 बदमाश मारे गए, उनमें सिर्फ 45 मुसलमान हैं। इसलिए जब यह विमर्श खड़ा करने की कोशिश हुई कि यह मुसलमानों के खिलाफ अभियान है तो वह चला नहीं।
मुसलमान परिवारों में खुशी
एक बात और बता दें कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुसलमान परिवारों में भी इस बात की खुशी है कि अब उनकी लड़कियां बेखौफ होकर स्कूल और कॉलेज जा सकती हैं। देखिए, गुंडा किसी एक वर्ग या जाति के खिलाफ कुछ नहीं करता- उसकी तो प्रवृत्ति ही होती है गलत काम करना। आप चुनाव की बात छोड़ दीजिए कि मुसलमान इसके बाद भी बीजेपी को वोट नहीं देगा- वह एक अलग मुद्दा है और यहां उस पर बात नहीं हो रही है। जमीनी स्तर पर सरकार अगर आम लोगों में सुरक्षा की यह भावना पैदा कर सके तो यह एक बड़ी बात है। खासकर दिल्ली एनसीआर में प्रदेश के जो लोग काम करने जाते थे- चाहे वो सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ या पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसी और शहर के हों- काम के बाद रात में अपने घर नहीं लौटते थे। अगर घर के कोई व्यक्ति उसी शहर में अपने किसी दोस्त रिश्तेदार के यहां गया हो और रात में देर हो जाए, तो घर वाले फोन करके कहते थे- ‘वहीं रुक जाओ, रात में लौट कर मत आना।’ यह डर होता था कि मार दिए जाएंगे, मोटरसाइकिल और सामान छीन लिया जाएगा… क्या हो जाएगा किसी को कुछ पता नहीं था। पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए समान रूप से यह स्थिति थी। आज स्थिति यह है कि आम आदमी बेखौफ होकर रात में या किसी भी समय निकल सकता है। हम यह नहीं कह रहे कि उत्तर प्रदेश में राम राज्य आ गया है और अब अपराध नहीं होते। लेकिन संगठित अपराध की कमर तोड़ दी गई है।
लोगों में भरोसा
बदलाव यह आया है कि लोगों में यह भरोसा है अगर उनके साथ कुछ गलत हो गया तो पुलिस और सरकार पहले की तरह कार्रवाई उनके खिलाफ नहीं बल्कि आरोपी के खिलाफ करेगी। कानून के राज में लोगों का कानून के प्रति विश्वास और कानून का डर- ये दो बातें काम करती हैं। हर नागरिक का कानून के राज में विश्वास हो- यह सरकार का दायित्व है। गुंडों बदमाशों में कानून का डर होना चाहिए- यह भी सरकार का दायित्व है। कहा जा सकता है कि योगी सरकार यह दोनों काम करने में कामयाब रही है। उत्तर प्रदेश में पूरा सिस्टम लगभग सड़ चुका था। जिस प्रदेश में पुलिस वाले गुंडे और माफिया सरदारों को सलाम बजाते रहे हों- आप आसानी से समझ सकते हैं कि यह सब करना कितना कठिन था। यह कतई आसान काम नहीं था- हो गया है तो आज आसान लग रहा है। हाथरस, उन्नाव, अलीगढ़ या कहीं और इक्का-दुक्का आपराधिक घटनाएं शर्मनाक हैं और नहीं होनी चाहिए। लेकिन वे उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की सही तस्वीर नहीं बताती हैं। आज जो नई स्थिति बनी है वे उस व्यवस्था का अपवाद हैं। वह भी नहीं होना चाहिए- लेकिन स्थिति बदलने, लोगों की मानसिकता बदलने और लोगों में विश्वास पैदा होने में भी- समय लगता है। अब धीरे-धीरे दिखाई दे रहा है कि लोगों में विश्वास बहाली हो रही है।
कहां गए वो मनचले
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनने के साथ ही रोमियो स्क्वायड बना था। अब रोमियो स्क्वायड की जरूरत नहीं रह गई है… क्यों? जो स्कूल कॉलेज के बाहर खड़े रहते थे और आती-जाती लड़कियों पर फब्तियां कसते और छेड़छाड़ करते थे वे मनचले कहां गए। क्या यह सब ऐसे ही हो गया… क्या अचानक उनके मन में संत का भाव जाग गया …उनको लगा ये सब चीजें गलत हैं और हम नहीं करेंगे? यह कानून के डर से हुआ। उन सभी लोगों को जो गलत काम कर रहे हैं कानून का डर जरूर होना चाहिए। और जो सही के साथ खड़ा है उसे कानून के राज पर यकीन होना चाहिए।
परिवर्तन को पहचानिए
यह स्थिति पूरे ही प्रदेश में थी। सैफई, इटावा यादव परिवार का घर और गढ़ है। यादव परिवार सैफई और इटावा को ही उत्तर प्रदेश मानकर सारे काम करता रहा है। वहां भी आम लोगों-गरीबों में यही डर था कि पता नहीं कब मार दिए जाएंगे। यादव परिवार के सारे रिश्तेदारों में से जाने कौन नाराज हो जाएगा और उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज करवा देगा। आज जब उन लोगों से बातचीत हो रही है तो ये बातें निकलकर सामने आ रही हैं। वे लोग कह रहे हैं कि कम से कम हम जिंदा तो हैं। आप उनसे बाकी समस्याओं की बात कीजिए तो वे कहते हैं कि ‘अभी तो इस राज में हम जिंदा हैं- हमारे लिए सबसे बड़ी बात यह है।’ अगर सैफई में भी लोग अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करते थे तो आप अंदाजा लगाइए कि किस तरह का राज रहा होगा- और किस तरह का बदलाव हुआ है। यह तो शुरुआत है। गुंडों और माफियाओं के खिलाफ अभियान अभी समाप्ति की ओर नहीं है। आपको यह दृश्य कई बार देखने को मिलेगा कि अभियुक्त अपने आप थाने में आकर अपनी जमानत रद्द करा रहा है। देश के किसी अन्य प्रदेश में यह दृश्य आपको देखने को नहीं मिलेगा। इस परिवर्तन को पहचानिए और नजर रखिए।