प्रमोद जोशी।
अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी पूरी तरह से होने के साथ 31 अगस्त को दो खबरें और भारतीय मीडिया में थीं। पहली यह कि दोहा में भारतीय राजदूत और तालिबान के एक प्रतिनिधि की बातचीत हुई है और दूसरी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव संख्या 2593 में तालिबान से कहा गया कि भविष्य में अफगान जमीन का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में नहीं होना चाहिए। इन तीनों खबरों को एकसाथ पढ़ने और उन्हें समझने की जरूरत है, क्योंकि निकट भविष्य में तीनों के निहितार्थ देखने को मिलेंगे।


दुनिया से किये वायदे पूरे करेगा तालिबान

Analysis: For Russia, U.S. Afghan exit creates security threat on southern flank | Reuters

अफगानिस्तान में सरकार बनने में हो रही देरी को लेकर भी कुछ पर्यवेक्षकों ने अटकलें लगाई हैं, पर इस बात को मान लेना चाहिए कि देर-सबेर सरकार बन जाएगी। ज्यादा बड़ा सवाल उस सरकार की नीतियों को लेकर है। वह अपने पुराने नजरिए पर कायम रहेगी या कुछ नया करेगी? 15 अगस्त को काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान प्रतिनिधि ने जो वायदे दुनिया से किए हैं, क्या वे पूरे होंगे? और क्या वे वायदे तालिबान के काडर को पसंद हैं?

तीन बातें

इसके बाद अब यह देखें कि नई सरकार के बारे में वैश्विक-राय क्या है, दूसरे भारत और अफगानिस्तान रिश्तों का भविष्य क्या है और तीसरे पाकिस्तान की भूमिका अफगानिस्तान में क्या होगी। इनके इर्द-गिर्द ही तमाम बातें हैं। फिलहाल हमारी दिलचस्पी इन तीन बातों में है। मंगलवार को संरा सुरक्षा परिषद में भारत की अध्यक्षता का अंतिम दिन था।

भविष्य के टकराव का पहला संकेत

भारत की अध्यक्षता में पास हुआ प्रस्ताव 2593 भारत की चिंता को भी व्यक्त करता है। यह प्रस्ताव सर्वानुमति से पास नहीं हुआ है। इसके समर्थन में 15 में से 13 वोट पड़े। इन 13 में भारत का वोट भी शामिल है। इस प्रस्ताव के विरोध में कोई मत नहीं पड़ा, पर चीन और रूस ने मतदान में भाग नहीं लिया। दोनों देशों की अनुपस्थिति वैश्विक राय के बीच की दरार को व्यक्त कर रही है। अफगानिस्तान को लेकर सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों के विचार एक नहीं हैं, जो भविष्य के टकराव का पहला संकेत है।

अमेरिका और रूस का मत

Afghan crisis: Russia plans for new era with Taliban rule - BBC News

हालांकि भारत उस बैठक में अध्यक्ष था, जिसमें यह प्रस्ताव पास हुआ, पर प्रस्ताव के पक्ष या विरोध में मतदान में अध्यक्ष की भूमिका नहीं होती है। मूलतः यह प्रस्ताव अमेरिका की ओर से आया था और इस बात को सुरक्षा परिषद की बैठक में रूसी प्रतिनिधि के वक्तव्य में देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि इस प्रस्ताव के लेखक, यानी अमेरिका ने, अफगानिस्तान में आतंकवादियों को ‘हमारे और उनके (अवर्स एंड देयर्स)’ के खानों में विभाजित किया है। इस प्रकार उसने तालिबान और उसके सहयोगी हक्कानी नेटवर्क को अलग-अलग खाँचों में रखा है। हक्कानी नेटवर्क पर ही अफगानिस्तान में अमेरिकी और भारतीय ठिकानों पर हमले करने का आरोप लगता रहा है।

हक्कानी नेटवर्क

Explained: What Is Haqqani Network, Its Relation With Taliban, Why US Sees Them As Two Entities

इस बैठक में भारतीय विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला स्वयं उपस्थित थे। उन्होंने बैठक में लश्करे-तैयबा और जैशे-मोहम्मद की भूमिकाओं को रेखांकित करते हुए और कहा कि इन समूहों की पहचान करते हुए उनकी ‘निन्दा की जानी चाहिए।’  अलबत्ता उन्होंने हक्कानी नेटवर्क का नाम नहीं लिया, जिसका नाम सम्भवतः उस वक्त लिया जाएगा, जब तालिबान प्रतिबंध समिति में तालिबान के नाम को आतंकवादी संगठनों की सूची से बाहर करने के मामले पर विचार होगा।

तालिबान की पहल

150 Indians In Afghanistan 'Picked Up' By Taliban Amid Evacuations, Released Later

अब हमें दोहा में भारतीय राजदूत की तालिबान प्रतिनिधि से हुई बातचीत पर गौर करें। पहली बार भारत सरकार ने इस बात की जानकारी दी है कि हम भी तालिबान के सम्पर्क में हैं। भारत के विदेश मंत्रालय के अनुसार क़तर की राजधानी दोहा में यह मुलाकात ‘तालिबान की पहल पर हुई।’ क्या भारत अब तालिबान से रिश्ते बनाएगा? क्या हम तालिबान के तौर-तरीकों को स्वीकार कर लेंगे? ऐसे सवाल किए जाएंगे, पर सम्प्रभुता तालिबान के हाथों में होगी और उसे विश्व समुदाय में जगह मिलेगी, तो हमें भी उसे स्वीकार करना होगा। और यदि तालिबान-प्रशासन सत्ता में है, तो हमें अपने राष्ट्रीय हितों के बरक्स उसके साथ रिश्ते बनाने होंगे। तालिबान की आंतरिक नीति और उसके धार्मिक-सामाजिक दृष्टिकोण इसमें आड़े नहीं आएंगे।

दोहा में मुलाकात

Indian envoy meets Taliban representative in Doha - terrorism, safety of stranded Indians discussed | India News | Zee News

विदेश मंत्रालय ने 31 अगस्त को बयान जारी कर बताया कि क़तर में भारत राजदूत दीपक मित्तल ने तालिबान राजनीतिक ऑफिस के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकज़ाई से मुलाक़ात की। दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच हुई बातचीत का अहम हिस्सा रहे शेर मोहम्मद स्तानिकज़ाई ने सार्वजनिक रूप से भी भारत के साथ ‘दोस्ताना संबंध’ बनाए रखने की गुज़ारिश की थी। यह बताना भी जरूरी है कि शेर मोहम्मद इंडियन मिलिट्री एकेडमी से प्रशिक्षित हैं। वे देहरादून में आईएमए के 1982 बैच में रह चुके है। यहां सहपाठी उन्हें ‘शेरू’ कह कर बुलाते थे। वे आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी में शामिल हुए थे।

भारत की चिंता

150 Indians captured by Taliban in Kabul; all are safe, says govt - World News

तालिबान के वर्तमान नेतृत्व में उनका दो कारणों से महत्व है। एक तो वे पश्चिमी देशों के अलावा रूस और चीन के साथ हुई बातचीत में शामिल रहे हैं और दूसरे वे तालिबान के उन नेताओं में हैं, जो अंग्रेजी अच्छी तरह बोल पाते हैं और पश्चिमी शैली की शिक्षा से निकले हैं। भारत को तालिबान के भीतर भी सम्पर्क के लिए सूत्र चाहिए। बहरहाल विदेश मंत्रालय के मुताबिक़ इस मुलाक़ात में भारत ने अफ़ग़ानिस्तान में फँसे ‘भारतीय नागरिकों की सुरक्षित और जल्दी वापसी के साथ आतंकवाद से जुड़ी चिंताओं को उठाया। तालिबान के प्रतिनिधि ने भरोसा दिया कि भारत की चिंताओं का समाधान किया जाएगा।’

इंतज़ार करें और देखें

Reports Of EAM Jaishankar Meeting Taliban Leaders False, Baseless And Mischievous: Sources

इसके एक हफ्ते पहले अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर भारत में हुई सर्वदलीय बैठक में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने तालिबान के साथ संबंध के सवाल पर कहा था, “वेट एंड वॉच। यानी इंतज़ार करें और देखें।” विदेश मंत्रालय के अनुसार भारतीय राजदूत मित्तल ने ‘आतंकवाद’ से जुड़ी चिंता को भी उठाया और कहा, “अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन का इस्तेमाल भारत विरोधी गतिविधि या आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए।” बयान के मुताबिक, “तालिबान के प्रतिनिधि ने भरोसा दिया कि भारतीय राजदूत ने जो मुद्दे उठाए हैं उन पर सकारात्मक तरीक़े से अमल होगा।”
(लेखक ‘डिफेंस मॉनिटर’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से)