प्रमोद जोशी।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि मीडिया का एक वर्ग देश को बदनाम करने वाली खबरों को साम्प्रदायिक रंग देता है। देश में हर चीज इस वर्ग को साम्प्रदायिकता के पहलू से नजर आती है। इससे देश की छवि खराब हो रही है। अदालत ने यह भी पूछा है कि क्या केंद्र ने निजी चैनलों के नियमन की कभी कोशिश भी की है? इसके पहले गत 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सत्य को ताकतवर बनाए बगैर लोकतंत्र की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।


ऊँची सैद्धांतिक बातों का मतलब?

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विचार-अभिव्यक्ति और सूचना तथा समाचार से जुड़ी इन बातों का जवाब नागरिकों को नहीं व्यवस्था को देना है। सुप्रीम कोर्ट भी उसी व्यवस्था का अंग है। सरकार के तीनों अंगों में उसकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है। सवाल है कि जिस देश में चार करोड़ से ज्यादा मुकदमे लम्बित हों, वहाँ ऊँची सैद्धांतिक बातों का मतलब क्या है। जब झूठ बोलने से व्यक्ति को लाभ मिलता हो, तो वह सच की लड़ाई कैसे लड़ेगा?  अदालतों को सवाल उठाने के साथ-साथ रास्ते भी बताने चाहिए। बहरहाल यह बहस लम्बी है और इसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।

साम्प्रदायिकता का पानी

प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और एएस बोपन्ना की पीठ फर्जी खबरों के प्रसारण पर रोक के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद की याचिका सहित कई याचिकाओं पर गत 2 सितम्बर को सुनवाई कर रही थी। जमीयत ने अपनी याचिका में निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ में पिछले साल धार्मिक सभा से संबंधित फर्जी खबरें फैलाने से रोकने और इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर कड़ी कार्रवाई करने का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया है।

इंटरनेट मीडिया पर फर्जी खबरों पर चिंता

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अदालत ने वैैब पोर्टलों और यूट्यूब सहित इंटरनेट मीडिया पर परोसी जाने वाली फर्जी खबरों पर गम्भीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वे केवल शक्तिशाली आवाजों को सुनते हैं। किसी मामले में ट्विटर, फेसबुक और यूट्यूब से जवाब मांगा जाए, तो वह जवाबदेही से पल्ला झाड़ लेते हैं। न्यायाधीशों, संस्थानों के खिलाफ बिना किसी जवाबदेही के कई चीजें लिखी जाती हैं।
उच्चतम न्यायालय इंटरनेट मीडिया तथा वेब पोर्टल समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए हाल में लागू सूचना प्रौद्योगिकी नियमों की वैधता के खिलाफ विभिन्न उच्च न्यायालयों में लम्बित याचिकाओं को सर्वोच्च अदालत में स्थानांतरित करने की केंद्र की याचिका पर छह हफ्ते बाद सुनवाई करने के लिए भी राजी हो गया है।

मीडिया की जवाबदेही

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा, मुझे यह नहीं मालूम कि ये इंटरनेट मीडिया, ट्विटर और फेसबुक आम लोगों को कहां जवाब देतेे हैं। वे कभी जवाब नहीं देते। कोई जवाबदेही नहीं है। वे खराब लिखते हैं और जवाब नहीं देते और कहते हैं कि यह उनका अधिकार है। वैब पोर्टल और यूट्यूब चैनलों पर फर्जी खबरों तथा छींटाकशी पर कोई नियंत्रण नहीं है। अगर आप यूट्यूब देखेंगे तो पाएंगे कि कैसे फर्जी खबरें आसानी से प्रसारित की जा रही हैं और कोई भी यूट्यूब पर चैनल शुरू कर सकता है। याचिका दायर करने वाले एक पक्ष का ओर से पेश हुए वकील संजय हेगड़े ने कहा कि ट्विटर ने उनके अकाउंट को निलम्बित कर दिया था। मैंने इस सिलसिले में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की है।

‘प्लांटेड खबरों’ की समस्या

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केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पोर्टलों पर ‘प्लांटेड खबरों’ की समस्या भी है। न केवल साम्प्रदायिक बल्कि ‘प्लांटेड खबरें’ भी पेश की जाती हैं। वैब पोर्टल समेत ऑनलाइन सामग्री के नियमन के लिए आईटी नियम बनाए गए हैं। सुनवाई शुरू होने पर मेहता ने दो हफ्तों का स्थगन मांगा। पिछले कुछ आदेशों का जिक्र करते हुए पीठ ने केंद्र से पूछा कि क्या उसने इंटरनेट मीडिया पर ऐसी खबरों के लिए कोई नियामक आयोग गठित किया है? अदालत ने जमीयत को याचिका में संशोधन की अनुमति भी दी और उसे सॉलिसीटर जनरल के जरिए चार हफ्तों में केंद्र को देने को कहा जो उसके बाद दो सप्ताह में जवाब दे सकता है।

निरंकुश वैब पोर्टल

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने आरोप लगाया कि तबलीगी जमात की दुर्भाग्यपूर्ण घटना का इस्तेमाल पूरे मुस्लिम समुदाय को बुरा दिखाने तथा कसूरवार ठहराने के लिए किया गया। उसने मीडिया को ऐसी खबरें प्रसारित करने से रोकने का भी अनुरोध किया। अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि क्या इससे निपटने के लिए कोई तंत्र है? आपके पास इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और अखबारों के लिए तो व्यवस्था है लेकिन वैब पोर्टल के लिए भी कुछ करना होगा।

कानून को मीडिया संस्थानों की चुनौती

चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा कि सोशल और डिजिटल मीडिया पर निगरानी के लिए आयोग बनाने के वायदे का क्या हुआ? इस मामले पर पहले भी अदालत सरकार से कह चुकी है कि उसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए फैलाई जा रही फेक न्यूज़ पर नियंत्रण की व्यवस्था बनानी चाहिए। इस पर सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि वैब और सोशल मीडिया की अवांछित गतिविधियों पर नियंत्रण के लिए ही ‘इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी रूल्स, 2021’ बनाया गया है। इसके प्रावधानों को अलग-अलग मीडिया संस्थानों ने विभिन्न हाई कोर्टों में चुनौती दी है। कुछ मामलों में हाई कोर्ट ने मीडिया के खिलाफ कार्रवाई पर रोक भी लगा दी है। मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार ने सभी मामलों की सुप्रीम कोर्ट में एक साथ सुनवाई के लिए आवेदन दिया है। कोर्ट उसे जल्द सुने।

प्रेस की आजादी और नागरिक अधिकार

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वहीं याचिकाकर्ता एनबीएसए ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने इन नियमों को चुनौती दी है क्योंकि ये नियम पोर्टलों पर ‘प्लांटेड खबरों’ की समस्या नहीं करते। चीफ जस्टिस ने सरकार से पूछा कि हम स्पष्टीकरण चाहते हैं कि प्रिंट मीडिया के लिए नियमन और आयोग है, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया आत्म-नियमन करते हैं लेकिन बाकी के लिए क्या इंतजाम है? सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि टीवी चैनलों के दो संगठन हैं।  ये आईटी नियम सभी पर एक साथ लागू हैं। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार चाहती है कि दर्शकों को खबर वैसी ही मिले, जैसी वह है। सरकार की कोशिश प्रेस की आजादी और नागरिक के शुद्ध-जानकारी पाने के अधिकार के बीच संतुलन को बनाए रखने की है।

सत्य उजागर करें

इसके पहले गत 28 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक व्याख्यान में कहा कि समाज के बुद्धिजीवियों का कर्तव्य बनता है कि वेे ‘राज्य के झूठ’ को उजागर करें। जस्टिस चंद्रचूड़ ने ‘नागरिकों के सत्ता से सच बोलने का अधिकार’ विषय पर छठे एम सी छागला स्मृति ऑनलाइन व्याख्यान में लॉ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के छात्रों एवं संकाय सदस्यों और न्यायाधीशों को संबोधित करते हुए कहा कि यह तय करना सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता कि वह सत्य तय करे। यहां तक कि वैज्ञानिकों, सांख्यिकीविदों, अनुसंधानकर्ताओं और अर्थशास्त्रियों जैसे विशेषज्ञों की राय हमेशा सच नहीं हो सकती है। हो सकता है कि उनकी राजनीतिक संबद्धता नहीं हो लेकिन उनके दावे वैचारिक लगाव, वित्तीय सहायता की प्राप्ति या व्यक्तिगत द्वेष के कारण प्रभावित हो सकते है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘लोकतंत्र में राज्य राजनीतिक कारणों से झूठ नहीं बोल सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि सच्चाई के लिए केवल राज्य पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। इसलिए समाज के प्रबुद्ध लोग सरकारों के झूठ को उजागर करें. उन्होंने कहा, ‘एकदलीय सरकारें सत्ता को मजबूत करने के लिए झूठ पर निरंतर निर्भरता के लिए जानी जाती हैं।’

डेटा में हेराफेरी

उन्होंने कहा, कोविड के समय में हम देख रहे हैं कि दुनिया भर के देशों में डेटा में हेरफेर करने का चलन बढ़ रहा है। उन्होंने फेक न्यूज पर भी निशाना साधा और कहा कि आज फेक न्यूज का चलन बढ़ता ही जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे ‘इंफोडेमिक’ कहा था। उन्होंने कहा कि मीडिया की निष्पक्षता सुनिश्चित होनी चाहिए। इंसानों में सनसनीखेज खबरों की ओर आकर्षित होने की प्रवृत्ति होती है, जो अक्सर झूठ पर आधारित होती है। ट्विटर जैसे सोशल मीडिया पर झूठ का बोलबाला है।

सच्चाई की अनदेखी करने की प्रवृत्ति

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ‘हमारी सच्चाई’ बनाम ‘आपकी सच्चाई’ और सच्चाई की अनदेखी करने की प्रवृत्ति के बीच एक प्रतियोगिता छिड़ी है, जो सच्चाई की धारणा के अनुरूप नहीं है। ‘सच्चाई की तलाश’ नागरिकों की प्रमुख मनोकामना होनी चाहिए। हमारा आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ है। हमें राज्य और विशेषज्ञों से सवाल करने के लिए तैयार रहना चाहिए। राज्य के झूठ को बेनकाब करना समाज के बुद्धिजीवियों का कर्तव्य है। सत्य क्या है यह तय करना सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता है।

दबाव से मुक्ति

उन्होंने कहा, ‘वियतनाम युद्ध में अमेरिका की भूमिका पेंटागन पेपर्स के प्रकाशित होने तक सामने नहीं आई थी। हम देखते हैं कि दुनिया भर में देशों द्वारा कोविड-19 संक्रमण दर और मौतों पर आंकड़ों में हेरफेर करने की कोशिश की प्रवृत्ति सामने आई है।’ सबसे पहली बात यह करनी है कि हमारी सार्वजनिक संस्थाएं मजबूत बनें। नागरिकों के रूप में, हमें यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना चाहिए कि हमारे पास एक ऐसा प्रेस हो जो किसी भी प्रकार के राजनीतिक या आर्थिक प्रभाव से मुक्त हो, जो हमें निष्पक्ष तरीके से जानकारी प्रदान करे।

साथ-साथ चलते हैं लोकतंत्र और सच्चाई

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेषज्ञों को अक्सर विचार मंचों द्वारा नियोजित किया जाता है जो विशिष्ट राय का समर्थन करने के लिए अनुसंधान करते हैं, लेकिन हाशिए पर रहने वाले समुदायों की सच्चाई अक्सर समाज में उनकी स्थिति के कारण सामने नहीं आ पाती। फर्जी समाचार या झूठी सूचना कोई नई प्रवृत्ति नहीं है और ये तब से है जब से प्रिंट मीडिया अस्तित्व में है, लेकिन प्रौद्योगिकी में तेज प्रगति और इंटरनेट पहुंच के प्रसार के साथ ही यह समस्या और बढ़ गई है। उन्होंने कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ‘फर्जी समाचार’ की घटनाएं बढ़ रही हैं। ‘लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए सत्य की ताकत चाहिए। ताकत के साथ सत्य बोलना अधिकार के साथ-साथ लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य भी है। लोकतंत्र और सच्चाई साथ-साथ चलते हैं। ‘अधिनायकवादी सरकारें प्रभुत्व स्थापित करने के लिए लगातार झूठ पर भरोसा करती हैं।’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से साभार)