प्रमोद जोशी।

ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और युनाइटेड किंगडम के बीच एक महत्वपूर्ण सुरक्षा समझौता हुआ है, जिसके अंतर्गत अब ऑस्ट्रेलिया को शक्तिशाली नाभिकीय शक्ति चालित पनडुब्बियाँ मिल जाएंगी। ऑकस यानी ऑस्ट्रेलिया, यूके और यूएस। इन तीनों देशों के बीच ऑकस नाम से प्रसिद्ध यह समझौता हिंद-प्रशांत क्षेत्र को कवर करेगा।


White House considering talks between Joe Biden and Xi Jinping | South China Morning Post

माना जा रहा है कि यह दाँव चीन को चित्त करने के इरादे से खेला गया है। हफ़्ते भर पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से फ़ोन पर बात की थी और कहा कि दोनों देशों के बीच बातचीत जारी रखनी चाहिए। उस बातचीत के एक सप्ताह बाद ही अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने यह महत्वपूर्ण रक्षा समझौता किया है।

तीसरे पक्ष के हितों को टारगेट

ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और ब्रिटेन मिलकर बनाएंगे परमाणु पनडुब्बी, डरा चीन - Australia america britain joins hand for nuclear submarine project which made china furious tlifw - AajTak

इस करार के तहत रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का निर्माण किया जाएगा। इस समझौते को लेकर चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है कि अब नाभिकीय पनडुब्बियों का बुखार पूरी दुनिया को चढ़ेगा। वॉशिंगटन में चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा है कि तीसरे पक्ष के हितों को टारगेट करते हुए अलग ब्लॉक नहीं बनाना चाहिए।

परमाणु अप्रसार

ऑस्ट्रेलिया, परमाणु अप्रसार संधि के पक्ष में है। इस समझौते के बाद भी एक ग़ैर-परमाणु देश के तौर पर अपना दायित्व पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है।

स्थिरता को बढ़ावा

ऑकस सुरक्षा समझौते पर एक संयुक्त बयान जारी कर कहा गया है, ऑकस के तहत पहली पहल के रूप में हम रॉयल ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के लिए परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों का निर्माण करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। …इससे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता को बढ़ावा मिलेगा और ये हमारे साझा मूल्यों और हितों के समर्थन में तैनात होंगी। ऑस्ट्रेलिया दुनिया के उन सात देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा, जिनके पास परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियाँ होंगी। इससे पहले अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, चीन, भारत और रूस के पास ही यह तकनीक थी।

मुख्य रूप से दो देशों पर असर

बीबीसी के रक्षा मामलों के संवाददाता जोनाथन बील के अनुसार इस समझौते का असर मुख्य रूप से दो देशों पर पड़ेगा। पहला है फ़्रांस और दूसरा है चीन। इस समझौते की वजह से ऑस्ट्रेलिया ने फ़्रांस के साथ किया एक सौदा रद्द कर दिया है। 2016 में ऑस्ट्रेलियाई नौसेना के लिए फ़्रांसीसी-डिज़ाइन की 12 पनडुब्बियों के निर्माण का फ़्रांस को कॉन्ट्रैक्ट मिला था। इस अनुबंध की लागत क़रीब 50 अरब ऑस्ट्रेलियाई डॉलर थी। यह सौदा ऑस्ट्रेलिया का अब तक का सबसे बड़ा रक्षा सौदा माना गया था।

ऑकस की ज़रूरत क्यों?

ऑकस को लेकर एक सवाल यह भी कि ‘क्वॉड’ समूह के होते हुए अमेरिका को इसकी ज़रूरत क्यों पड़ी? क्वॉड में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया के साथ-साथ जापान और भारत भी है। पर उसमें ‘हाई-टेक्नोलॉजी’ ट्रांसफर की बात नहीं है।

क्वॉड को लेकर संशय

Distrust of China brought India, Japan, Australia and US together: Report | World News - Hindustan Times

क्वॉड को लेकर भारत और जापान के मन में कुछ संशय हैं। भारत की दिलचस्पी रूस और ईरान के साथ भी रिश्ते बनाने की है। जापान के चीन के साथ अच्छे व्यापारिक रिश्ते हैं। चीन की बीआरआई परियोजना में भी जापान का सहयोग है। जापान, चीन के साथ अपने सारे संबंध ख़त्म नहीं करना चाहता है।

ऑस्ट्रेलिया बन गया चीन का विरोधी

ग्लोबल टाइम्स के लेख में कहा गया है इस समझौते के साथ ही ऑस्ट्रेलिया ने ख़ुद को चीन का विरोधी बना लिया है। 50 साल में यह पहली बार है जब अमेरिका अपनी पनडुब्बी तकनीक किसी देश से साझा कर रहा है। इससे पहले अमेरिका ने केवल ब्रिटेन के साथ यह तकनीक साझा की थी।

(लेखक ‘डिफेंस मॉनिटर’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक हैं। आलेख ‘जिज्ञासा’ से)