प्रदीप सिंह।
गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी ने जो कर दिया है, मुझे नहीं लगता कि भारतीय राजनीति के इतिहास में कोई इतना बड़ा काम कर सकता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री रहने के समय कामराज योजना आई थी जिसमें सभी मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों से इस्तीफा ले लिया गया, फिर सरकार का पुनर्गठन हुआ था। उसका उद्देश्य जिन लोगों को नेहरूजी नहीं चाहते थे उनको हटाना और जिनको चाहते थे उन नये लोगों को लाना था। लेकिन इस तरह का परिवर्तन कि मुख्यमंत्री और पूरा का पूरा मंत्रिमंडल बदल जाए… यह मोदी है, तभी मुमकिन है। पूरे घर के बदल दिए और कहीं कोई चूं चपड़ नहीं! उसकी वजह क्या है? क्यों नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनाव से 14 महीने पहले गुजरात की पूरी सरकार को बदल देने का फैसला किया, फैसले को लागू किया और पार्टी ने उसे स्वीकार भी कर लिया।
शिकायत का मौका नहीं
इसकी वजह यह कि जो लोग हटाए गए उनमें से किसी को शिकायत का कोई मौका नहीं मिला। ऐसा नहीं था कि उनको अवसर नहीं मिला था। सरकार में मंत्री पद या संगठन में कोई पद नहीं मिला था। उनको अवसर मिला था। काम करने का भी मौका मिला था। वे यह शिकायत भी नहीं कर सकते कि उनके समुदाय की अनदेखी की गई है। नए मंत्रिमंडल में हर समुदाय और वर्ग का पूरा ध्यान रखा गया है। नरेंद्र मोदी जिस तरीके से और जिस पैमाने पर काम करते हैं उसमें बहुत सी चीजें अत्यंत साधारण दिखने लगती हैं। लेकिन मेरी नजर में यह भारतीय राजनीति के इतिहास की सबसे बड़ी घटना मानी जानी चाहिए। हमने 1980 से पहले का वह दौर देखा है जब हरियाणा में भजनलाल पूरी की पूरी कैबिनेट लेकर जनता पार्टी से कांग्रेस में चले गए थे और कांग्रेस की सरकार बन गई थी। पर गुजरात में उसी पार्टी की सरकार, मंत्री और मुख्यमंत्री हैं। कौन सीनियर है- कौन जूनियर, किसने अच्छा काम किया- किसने नहीं… इस बात का लिहाज किये बगैर सबको हटा दिया। ऐसा इसलिए किया क्योंकि नए लोगों को मौका देना था। परिवर्तन ऐसे ही तो आता है। अगर जो है वही बना रहेगा तो बदलाव कैसे आएगा? नए लोगों को मौका कैसे मिलेगा?
क्योंकि यह गुजरात है…
कैसे कर पाते हैं नरेंद्र मोदी यह? इसके कई कारण हैं। यह गुजरात है जो संगठन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण और मजबूत है। गुजरात और मध्य प्रदेश दो ऐसे राज्य हैं जो भारतीय जनता पार्टी के लिए जनसंघ के समय से संगठन की दृष्टि से बहुत मजबूत रहे हैं। यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का काम बहुत पहले से, बहुत अच्छे से और बहुत व्यापक रहा है। उसमें भारतीय जनता पार्टी का योगदान है। ये एक तरह से भाजपा के किले हैं। दोनों राज्यों की तुलना करें तो गुजरात आगे निकलता है। संयोग से दोनों ही राज्यों में दो दलों भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लड़ाई है।
साथ फीसदी मंत्री पहली बार के विधायक
गुजरात के नए मंत्रिमंडल में नौ कैबिनेट और पंद्रह राज्य मंत्रियों समेत कुल चौबीस मंत्री हैं। राज्य मंत्रियों में से पांच के पास स्वतंत्र प्रभार है। मंत्रियों में साठ फीसदी से अधिक पहली बार विधायक बने हैं। इसका कार्यकर्ताओं के लिए विशेष संदेश है। प्राय: राजनीतिक दलों में देखने में आता है कि लोग सरकार या संगठन में दशकों एक ही पद पर जमे रहते हैं। ऐसे में नीचे के कार्यकर्ता को लगता है कि हम तो यहां सिर्फ दरी उठाने के लिए हैं। फलां जगह वो जमे हुए हैं और उस जगह पर वो जमे हुए हैं… ऐसे में हमें तो कोई मौका मिलने वाला नहीं! यह परिवर्तन गुजरात के कार्यकर्ताओं और गुजरात के माध्यम से देशभर में भारतीय जनता पार्टी के सारे कार्यकर्ताओं को सदेश देता है कि आपके लिए हमेशा मौका है, यह पार्टी बदलाव में यकीन करती है- चेंज विद कंटीन्यूटी… निरंतरता के साथ बदलाव।
सरकार को पुनर्नवा कर दिया
गुजरात के परिवर्तन से भाजपा ने दिखाया है कि ऐसा नहीं है कि हम जिस रास्ते पर चल रहे थे उसे छोड़ देंगे- लेकिन परिवर्तन करते रहेंगे, नये लोगों को मौका देते रहेंगे। नरेंद्र मोदी ने गुजरात में सरकार को पुनर्नवा कर दिया है। संगठन की मजबूती के कारण ही यहां परिवर्तन करना आसान होता है। उदाहरण के तौर पर केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला, काशीराम राणा जैसे नेता किनारे हो गए। पर पार्टी के जनाधार, चुनाव जीतने की क्षमता, गवर्नेंस से लोगों की संतुष्टि में कोई बड़ा फर्क नहीं आया।
मजबूत संगठन और नेतृत्व पर विश्वास
गुजरात में 2015-16 का एक दौर जरूर था जब पाटीदार आंदोलन हुआ। उससे जो स्थिति बनी उससे लोगों की सरकार के प्रति नाराजगी बनी। जिसका नतीजा यह हुआ कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की सीटें घट गईं। लेकिन उसके अलावा चाहे 2014 या 2019 का लोकसभा चुनाव ने नतीजे देख लें। राज्य में लोकसभा की कुल 26 सीटें हैं और सभी 26 सीटें भाजपा को मिलीं। ये कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। नरेंद्र मोदी यह कर पाते हैं क्योंकि पिछले सात सालों में गुजरात और देश के बीजेपी कार्यकर्ताओं को एहसास हो गया है कि प्रधानमंत्री का अपना कोई गुट या निजी पसंद-नापसंद नहीं है। लोगों को फैसलों में पारदर्शिता दिखाई देती है। जब नेता के फैसलों में पारदर्शिता दिखाई दे तो नेता के फैसलों में लोगों का भरोसा बढ़ जाता है। नेता की सबसे बड़ी खासियत यही होती है कि वह कोई भी फैसला करे, किसी भी समय पर करे, उसका साथ देने वाले कम न हों। जब ऐसा होता है तो नेता का कद अपने आप बड़ा हो जाता है।
नेहरू, इंदिरा और मोदी
अभी टाइम मैगजीन ने दुनिया के सौ सबसे प्रभावशाली लोगों की जो सूची बनाई है उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी नाम है। उसमें कहा गया है कि जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बाद मोदी सबसे प्रभावशाली नेता हैं। मेरा मानना है कि नेहरू और इंदिरा का आकलन हम उनका कार्यकाल खत्म होने के बाद कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी का कार्यकाल अभी जारी है। कब तक चलेगा किसी को मालूम नहीं है। लेकिन यह बहुत जल्दी खत्म होने वाला है ऐसा भी नहीं दिखाई देता। जब नरेंद्र मोदी तय करेंगे कि अब उनको रिटायर होना है सोचिए तब तक वह क्या क्या काम और बदलाव कर चुके होंगे। मुझे नहीं लगता कि तब जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी से उनकी तुलना हो पाएगी क्योंकि वह उनसे बहुत आगे निकल चुके होंगे। यह मोदी के करिश्माई नेतृत्व का नतीजा है कि लोगों को यकीन है कि कुछ भी हो नरेंद्रभाई नाव किनारे ले आएंगे। उनके चमत्कार में लोगों को यकीन है। लोगों को लगता है कि मोदी जो ठान लें वह कर सकते हैं। आम लोगों और पार्टी के कार्यकर्ताओं की यह सोच पार्टी को और मजबूत व नेतृत्व को और ताकतवर बनाती है।
किसी को भनक तक न लगी
मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को बदलने से पहले जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई बार अहमदाबाद गए, कई लोगों के साथ बैठकें कीं- तब यह कहा जा रहा था कि वह नितिन पटेल को मनाने गए हैं, फलां नेता को मनाने गए हैं। एकाध मामले को छोड़ दें तो बीजेपी में किसी को मनाने का खेल नहीं होता। हमें समझना चाहिए कि गुजरात में जो परिवर्तन हुआ है उसके लिए कितना लंबा समय लगा होगा। कितने दिन से इसकी तैयारी हो रही होगी। किसी को कोई हवा नहीं लगी। मुख्यमंत्री बदले जाने की खबर भी तब लगी जब विजय रूपाणी ने राजभवन जाकर राज्यपाल को इस्तीफा दिया और प्रेस कांफ्रेंस बुला कर इसकी जानकारी दी। तब लोगों को लगा कि मुख्यमंत्री बदल रहा है। फिर नया मुख्यमंत्री कौन होगा इसके अनुमान लगाए जाने लगे। जिन लोगों का नाम लिया जा रहा था उनका मुख्यमंत्री बनना तो छोड़िए- जो मंत्री थे वे सब भी मंत्रिमंडल की रेस से भी बाहर हो गए।
मोदी-शाह की नई भाजपा
जब विजय रूपाणी मुख्यमंत्री बनाए गए थे तब लग रहा था कि शायद नितिन पटेल मुख्यमंत्री बनेंगे। नहीं बनाए गए। नितिन पटेल तो भावी मुख्यमंत्री के तौर पर मीडिया को इंटरव्यू भी देने लगे थे। फिर जब मंत्रिमंडल में विभागों का बंटवारा हुआ तो वह कुछ नाराज हो गए और कहा कि कार्यभार ग्रहण नहीं करेंगे। उनको समझाया गया कि बाद में ठीक कर दिया जाएगा। लेकिन यह उसी दिन तय हो गया था कि यह उनका आखिरी कार्यकाल होगा। मोदी-शाह की इस नई भाजपा में इस तरह से काम होता है। यह संदेश देना बहुत जरूरी होता है कि आप प्रदेश के और पार्टी के लिए काम कर रहे हैं, अपने पद के लिए काम नहीं कर रहे हैं। गुजरात में फेरबदल के जरिये नरेंद्र मोदी ने यही संदेश दिया है। वर्ण कौन नेता चुनाव से चौदह महीने पहले इतना बड़ा परिवर्तन करने का जोखिम मोल लेगा।
सब जानती है पब्लिक
कांग्रेस की बात करें तो राजस्थान में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा सचिन पायलट के लोगों को एडजस्ट कराने की कोशिश में लगे हुए हैं। कुछ नहीं कर पाए। पंजाब में क्या हो रहा है हम देख ही रहे हैं। छत्तीसगढ़ में क्या हो रहा है सबको पता है। भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के तौरतरीकों, कार्यशैली में जो अंतर है वह उनकी परफार्मेंस में दिखाई देता है- और नतीजों में भी नजर आता है। कांग्रेस का ग्राफ नीचे की ओर तथा भाजपा का ग्राफ ऊपर की ओर जा रहा है। वह ऐसे ही नहीं जा रहा है। हालांकि कांग्रेस के लोग कहते हैं कि भाजपा ने मतदाताओं को अफीम-धतूरा चटा दिया है, जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। जनता बेवकूफ नहीं होती। नेता, बुद्धिजीवी बेवकूफ हो सकते हैं- जनता बहुत समझदार होती है। उसे पता होता है कि कौन नाटक कर रहा है और कौन वास्तविकता में उसके दर्द को महसूस कर रहा है।
मुझे लगता है कि गुजरात में जो परिवर्तन हुआ है उसका असर पूरे देश में पार्टी के अंदर होगा। यह असर सबसे ज्यादा उन पांच राज्यों में होगा जहां चुनाव होने वाले हैं- खासतौर से उत्तर प्रदेश में। गुजरात के परिवर्तन के बाद मुझे यह यकीन हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के कम से कम साठ फीसदी विधायकों के टिकट कट सकते हैं। कोरोना के दौरान पार्टी और सरकार के खिलाफ जो भी माहौल बना उसमें सबसे बड़ा योगदान उन विधायकों का है जो घर से नहीं निकले। उसके बरक्स देखिए कि गुजरात में जिस विधायक ने कोरोना के दौरान सबसे ज्यादा काम किया उसे पहली बार विधायक चुने जाने के बावजूद सीधे कैबिनेट मंत्री बनाया गया। हाइरार्की (अनुक्रम) भी पूरी तरह बदल गई। गुजरात विधानसभा में स्पीकर राजेंद्र त्रिवेदी को मंत्रिमंडल में नंबर दो की जगह दी गई है। कांग्रेस के सबसे बड़े आदिवासी नेता जीतूभाई जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे, उनको कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए दो लोगों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। इससे पहले वाले मंत्रिमंडल में ऐसे चार लोग थे। उन सबको हटा दिया। जो दो लोग लिए गए वे ऐसे लोग हैं जिनका जनाधार है, जो वोट ला सकते हैं, काम कर सकते हैं। गुजरात के नए मंत्रिमंडल का एक ही मंत्र है Perform or Perish- या तो अच्छा प्रदर्शन कीजिए या नष्ट हो जाइए। संगठन और प्रशासन दोनों का इतना व्यापक अनुभव, ईमानदारी, परिवारवाद व पक्षपात से दूर, पारदर्शिता जैसे गुण नरेंद्र मोदी को एक अद्वितीय नेता बनाते हैं। इसीलिए वह बाकी नेताओं से अलग दिखते हैं।