के. विक्रम राव।
आज आजादी के इस अमृत महोत्सव वर्ष में भारत की सत्ता पर यदि नेहरु-परिवार जमा रहता तो? उन असंख्य जनों में जो सैकड़ों स्वाधीनता सेनानी हैं- अभी तक गुमनामी में ही खोये रहते। गहन शोध कर राष्ट्रभक्तों ने जनसंचार माध्यमों द्वारा रोज सैकड़ों शहीदों को पेश किया। उन पर हर भारतीय गौरव महसूस करता है। उन पर चर्चा हो रही है। अत: मथुरा के इस महान विद्रोही राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की याद को चाह कर भी सरकारें मिटा नहीं पायीं। इसीलिये हाथरस (गुरसान) नरेश घनश्याम सिंह के आत्मज आर्य पेशवा राजा महेन्द्र प्रताप सिंह की स्मृति जीवित है। भले ही अंग्रेजों द्वारा पकड़कर जेल में नहीं रखे जा सके। वे वैश्विक मंच पर जंगे आजादी की मशाल को प्रज्जवलित करते रहे। महात्मा गाँधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, वीर सावरकर, रास बिहारी बोस की भांति महेन्द्र प्रताप इस प्राचीन राष्ट्र में जालिम ब्रिटिश शासकों द्वारा किये जा रहे अमानुषिक अत्याचारों को सर्वत्र उजागर करते रहे।


‘नेहरु सरकार की त्रुटिपूर्ण राष्ट्रनीति को खारिज करता हूं’

PM Modi's visit to Raja Mahendra Pratap varsity | Observers say there is more to it than meets the eye - The Hindu

एक निजी परिदृश्य द्वितीय लोकसभा से है। मेरे सांसद-संपादक पिता की वजह से हर ग्रीष्मावकाश में लखनऊ से दिल्ली जाना होता था। उस दिन 1956 में लोकसभा में विदेश नीति पर चर्चा हो रही थी। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु जटिल वैश्विक रिश्तों की व्याख्या कर रहे थे। तभी प्रतिपक्ष की सीटों पर से महेन्द्र प्रताप सिंह उठे। अध्यक्ष एम. अन्नाशयनम अय्यंगर ने उन्हें चन्द मिनटों में बात समाप्त करने का आदेश दिया क्योंकि निर्दलीय सदस्यों की समय अवधि केवल तीन या चार मिनट की होती थी। अपने निराले अंदाज में ओजस्वी वाणी में वे बोले: ”मैं इस नेहरु सरकार की त्रुटिपूर्ण राष्ट्रनीति को खारिज करता हूं। मैं अपनी विदेश नीति का मसौदा पेश करता हूं।” सदन में कुछ देर तक फुसफुसाहट हुई, फिर लहजा मजाक में बदल गया था। हालांकि उप विदेश मंत्री लक्ष्मी एन मेनन ने सदस्यों को ऐसा करने से रोकने का प्रयास किया था। ( उनके पति प्रो. वीके नन्दन मेनन लखनऊ विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर थे।) चूंकि मैं बीए में राजनीति शास्त्र का छात्र था, वयस्क था, अत: सांसदों द्वारा राजा महेन्द्र का उपहास करने पर दर्शक दीर्घा में मुझे रोष हुआ। ये सांसद राजा से अनजान थे, जैसे आज भी कई युवा अनभिज्ञ हैं।

यूरोप में धमक

India' Remembers Jawaharlal Nehru, The First PM, On His 130th Birthday

जवाहरलाल नेहरु से तीन वर्ष बड़े राजा महेन्द्र कभी यूरोप में तहलका मचा चुके थे। तब तक जवाहरलाल नेहरु ने लंदन देखा भी नहीं था। अर्थात आज के ज्ञानीजन को कैसे पता चले कि राजा महेन्द्र प्रताप के मुलाकातियों में मास्को में तभी सत्ता में आये ब्लादीमीर लेनिन तथा लिआन त्रास्की, इस्तांबुल (तुर्की) के सुल्तान मोहम्मद रिशाद, बर्लिन में जर्मन बादशाह कैसर विल्हम आदि थे। इन सब ने अफगानिस्तान के युवा बादशाह अमानुल्लाह को सुझाया कि राजा से मिले। तब तक अफगान सम्राट महाबली ब्रिटेन को युद्ध में परास्त कर चुका था और कराची की ओर कूच करने वाला था। बादशाह अमानुल्लाह खान ने तुरंत राजा महेन्द्र प्रताप को 1915 में निर्वासित भारत सरकार के रुप में मान्यता दे दी। वे राष्ट्रपति बने, मौलवी बरकतुल्लाह  गृह मंत्री, मौलाना उबैदुल्लाह सिद्दीकी और मलयाली भाषी चम्पकराम पिल्लई विदेश मंत्री बने। पिल्लई ने ही जयहिन्द का नारा गढ़ा था।

आजाद हिन्द फौज को मजबूत बनाया

Unknown facts about Netaji Subhas Chandra Bose on his 125th birthday

अपने विदेश प्रवास के दौरान राजा महेन्द्र के संबंध बढ़े। उन्होंने रास बिहारी बोस की आजाद हिन्द फौज को मजबूत बनाया। जो बाद में नेताजी सुभाष बोस के नेतृत्व में पनपी। जब राजा महेन्द्र प्रताप भारत आये तो सरदार पटेल की पुत्री मणिबेन पटेल के अतिथि थे। मदन मोहन मालवीय के परामर्श पर उन्होंने मथुरा में 1909 में पॉलिटेक्निक स्थापित किया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को उन्होंने जमीन देकर मदद की। मगर यहां भारत का विभाजन करने वाले मोहम्मद अली जिन्ना को वैचारिक फायदा मिला।

ऐसे राजा को सलाम

Raja Mahendra Pratap Singh British had evicted king from princely state

हालांकि मेरी एक जिज्ञासा रही कि 25 जून 1975 को इन्दिरा गांधी ने राजा महेन्द्र सिंह जैसे बागी को जेल में क्यों नहीं ठूंसा? फिर महसूस किया कि 1975 में 95-वर्षीय राजा साहब को कैद करने की हिम्मत नहीं हुई होगी। तब अमानुषिकता की पराकाष्ठा हो जाती। ऐसे राजा को सलाम। वे राजा नहीं फकीर थे। भारत की तकदीर बने थे। भले ही नई पीढ़ी अनजान रहे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)