प्रदीप सिंह।

पंजाब में कांग्रेस ने शेर की सवारी कर ली है। यह सबको पता है कि शेर की सवारी में शेर से उतरने पर क्या होता है- और बैठे रहे तो क्या होता है। यही मुश्किल है! इसके बावजूद ऐसा नहीं लगता कि गांधी परिवार के सदस्यों को इस बात का अहसास है कि उन्होंने क्या किया है… और उसका क्या नतीजा होने वाला है। पूरा परिवार इस समय शिमला में छुट्टी मना रहा है। सोमवार को पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का शपथग्रहण समारोह था। राहुल गांधी अचानक शपथग्रहण समारोह में पहुंचे। उनकी पहले से वहां पहुंचने की योजना नहीं थी। दरअसल उनको शिमला जाना था। लगता है किसी ने उनको समझाया कि आप शिमला तो जा ही रहे हैं, रास्ते में थोड़ी देर चंडीगढ़ में रुककर शपथग्रहण समारोह में शामिल हो जाइए। पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री को राहुल गांधी कितना महत्व देते हैं इसका अंदाजा इस बात से लगता है। राहुल गांधी को अगर कोई सही सलाह देने वाला होता तो यह कहता कि आप चंडीगढ़ आए हैं और शपथग्रहण समारोह में शामिल हुए हैं। इसमें पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह शामिल नहीं हुए तो शिष्टाचार के नाते आप उनसे मिलने उनके घर चले जाइए। पर राजा प्रजा से मिलने जाए- यह कैसे हो सकता है? तो गांधी परिवार की सोच में यह बात नहीं है। ्इस तरह की कोई अप्रोच नहीं है। गांधी परिवार के तीनों सदस्य सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा चंडीगढ़ के ही रास्ते से शिमला गए लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिलना जरूरी नहीं समझा


शपथ के बाद चन्नी गए कैप्टन के पास

Charanjit Singh will take over the command of Punjab, Captain Amarinder said - 'Hope Channi will keep the state safe'

अब चरणजीत सिंह चन्नी को देखिए। नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले और अध्यक्ष बनने के बाद भी कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिलने में अपनी हेठी समझते थे। जिस दिन सिद्धू ने अध्यक्ष का पदभार ग्रहण किया उस दिन उन्होंने उस समारोह में कैप्टन के साथ कैसा व्यवहार किया यह सबने देखा। लेकिन चरणजीत सिंह चन्नी शपथग्रहण के बाद कैप्टन अमरिंदर सिंह से मिलने गए। और मिलने के बाद क्या हुआ? चन्नी से वहां से लौटकर बिजली-पानी के बिलों की माफी की जो घोषणा की दरअसल कैप्टन की सरकार इसकी पूरी तैयारी कर चुकी थी। इसके लिए जो भी प्रशासनिक तैयारी होनी थी वह हो चुकी थी। हालांकि चन्नी ने ऐसा कहा नहीं पर ऐसा माना जा रहा है। चन्नी ने इस बात को दूसरी तरह से स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि कैप्टन ने कहा कि तुम आज बिजली-पानी बिल माफी की घोषणा कर दो। चन्नी ने कहा कि इसका श्रेय मुझे नहीं है बल्कि कैप्टन साहब इसकी पूरी तैयारी करके गए थे। मैं उनके अधूरे कामों को पूरा करूंगा।

शुरुआत ही समस्या से

Charanjit Singh Channi: Channi govt set to quick-fix issues neglected by Captain | India News - Times of India

यह बात तो सिद्धू को किसी भी हालत में रास नहीं आ सकती। तो समझ लीजिए कि शुरुआत में ही समस्या शुरू हो गई है। पहले हरीश रावत ने बयान दिया कि अगला विधानसभा चुनाव प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व में लड़ा जाएगा। फिर जब उस पर सवाल उठने लगे और पार्टी के अंदर से भी कहा जाने लगा कि ऐसा बयान देकर आप मुख्यमंत्री के अधिकारों को क्षीण कर रहे हैं तो उन्होंने कहा कि प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री दोनों के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा।

क्या हुआ तेरा वादा?

Rahul behind making Channi the captain of Punjab - Sangri Today

कुल मिलाकर मुद्दा यह है कि गांधी परिवार पिछले काफी समय से- खासतौर पर जबसे उनकी वोट दिलाने की ताकत घटती जा रही है- उनका रुक्का चलना बंद हो गया है- तब से वे ऐसे वायदे करते हैं जिनको निभा नहीं सकते। कैप्टन को हटाने को गांधी परिवार का रुक्का चलना मत मानिए। यह परिस्थितियों की बात है। गांधी परिवार ने सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। अभी नहीं निभा पाए। आगे भी नहीं निभा पाएंगे- अगर विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जीतकर आती है तो! गांधी परिवार पंजाब में दो पावर सेंटर बनाना चाहता है- चरणजीत सिंह चन्नी और नवजोत सिंह सिद्धू। दोनों को ही बराबरी पर रखना चाहता है। यह किसी भी प्रदेश में और किसी भी पार्टी में कभी भी संभव ही नहीं होता है। मुख्यमंत्री की ताकत हमेशा ही प्रदेश पार्टी अध्यक्ष से ज्यादा रहेगी। उसे हमेशा ज्यादा तरजीह मिलेगी। आप पार्टी प्रदेश अध्यक्ष किसी को भी बना दें वह कभी भी मुख्यमंत्री की शक्तियों को कमजोर नहीं कर सकता। यह सीधी सी बात गांधी परिवार की समझ में नहीं आ रही है। अगर उनको सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाना था तो यही मौका था। वह मौका वे चूक चुके हैं। इसलिए आगे चलकर और परेशानी होने वाली है।

‘युद्ध’ का नया मैदान!

Charanjit Singh Channi Wiki, Age, Caste, Wife, Children, Family, Biography & More – WikiBio

सरकार में दो उप मुख्यमंत्री हैं सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओ.पी. सोनी। ये दोनों माझा इलाके से आते हैं। माझा इलाके को किंगमेकर माना जाता है। यहां से निकले लोग या तो किंग बनते हैं या बनाते हैं। इसलिए माझा को महत्व दिया गया है। मुख्यमंत्री चन्नी मालवा क्षेत्र से आते हैं जहां सबसे ज्यादा विधानसभा सीटें हैं। माझा में 25 और मालवा में 69 विधानसभा सीटें हैं। बाकी 23 सीटें दोआबा की हैं। यह तो एक गणित हुआ। हम बात कर रहे थे उप मुख्यमंत्रियों की। ओम प्रकाश सोनी अमृतसर से आते हैं। अमृतसर में स्थानीय स्तर पर और प्रदेश स्तर पर वह सिद्धू के विरोधी हैं। सोनी और सिद्धू दोनों अमृतसर से हैं। इस तरह एक नया पावर सेंटर बन गया है सिद्धू और सोनी के बीच। सोनी उप मुख्यमंत्री हैं, सरकार में हैं। वे सरकार में फैसले लेंगे, उनको जो विभाग मिलेगा उसके फैसले लेंगे। और मानकर चलिए कि उनमें वह सिद्धू की नहीं सुनने वाले हैं। रंधावा को इस तरह समझिए कि वह मुख्यमंत्री बनते बनते इसलिए रह गए क्योंकि सिद्धू ने वीटो लगा दिया था। सिद्धू नहीं चाहते थे कि उनके अलावा कोई जट सिक्ख मुख्यमंत्री बने। वह अपने समानांतर एक और लीडरशिप नहीं खड़ा होने देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रंधावा का नाम काटा। जाहिर है रंधावा इसके लिए सिद्धू से बहुत खुश तो होंगे नहीं! वहीं चन्नी को सिद्धू जितना ज्यादा दबाने की कोशिश करेंगे वह उतना ही बाउंस बैक करेंगे और करारा जवाब देंगे।

दलित वोटों की ठेकेदारी का दिवास्वप्न

मुख्य बात यह है कि अगर पंजाब में कांग्रेस एक दलित को मुख्यमंत्री बनाकर यह सोच नहीं है कि सारे दलित वोट उसे मिल जाएंगे तो अभी तक के इतिहास को देखते हुए लगता है कि यह पार्टी की खामख्याली है। यह इस आधार पर कह रहा हूं कि पंजाब में भले ही 32 फीसदी आबादी दलितों की है लेकिन वे तीन चार हिस्सों में बंटे हुए हैं। रविदसिया- जिससे चन्नी आते हैं। उसके अलावा वाल्मीकि हैं, मजहबी सिक्ख हैं। ये सब सामाजिक और राजनीतिक रूप से एक साथ नहीं रहते। इनमें कोई एका नहीं है। इसी वजह से चरणजीत सिंह चन्नी भले दलितों के कितने बड़े नेता हों लेकिन वह कांशीराम और उत्तर प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी मायावती से बड़े नहीं हैं। इसके बावजूद अगर पंजाब में बसपा का कुछ नहीं हो पाया तो उसकी वजह वही है। बाकी उत्तर भारत के दलित जिस तरह से सोचते हैं और जिस स्थिति में हैं वैसी स्थिति में पंजाब के दलित नहीं हैं। खासतौर से रविदसिया। रविदसिया में काफी बड़ी संख्या अमेरिका, कनाडा और इंग्लैंड में रहने वाले एनआरआई की है। उनके पास खूब धन संपत्ति है। कई तरह के व्यापार पर उनका प्रभुत्व है। वे उस तरह की स्थिति में नहीं हैं जैसी स्थिति में उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के दलित हैं। इसलिए वे उस तरह से राजनीति के बारे में सोचते भी नहीं। अगर ऐसा नहीं होता तो पंजाब में बहुजन समाज पार्टी को बहुत बड़ी पार्टी होना चाहिए। जिस राज्य में 32 फीसदी दलित वोट हों वहां बसपा को डेढ़- पौने दो फीसदी वोट मिलें, इससे अंदाजा लग जाता है कि वहां बसपा की क्या स्थिति है।

पंजाब में दलित समीकरण

Fist For Farm: How Punjab's Dalits Are Fighting For Their Right Over Common Land

दूसरी बात पंजाब में दलितों का वोट हमेशा बंटा रहा है। पहले हिंदुओं और सिक्खों में बंटता है। फिर पार्टियों के बीच बंटता है। कांग्रेस को एक बड़ा हिस्सा मिलता रहा है, अकाली दल को भी मिलता है और हिंदू दलितों के वोट का एक हिस्सा भारतीय जनता पार्टी को भी मिलता है। अब इस वोट में बंटवारा करने के लिए आम आदमी पार्टी भी आ गई है। अगर कांग्रेस सोच रही है कि जिस तरह से मुस्लिम समुदाय एक मुश्त वोट करता है, उसी प्रकार पंजाब का दलित समुदाय भी करेगा- तो ऐसा नहीं होने वाला है।

दूसरी बात- दलितों के मन में यह भी होगा कि कांग्रेस अभी तक पूरे देश में उनके साथ क्या करती रही है। 1947 से 1977 तक दलित समाज लगातार कांग्रेस पार्टी से जुड़ा रहा है। उसके बाद भी रहा। जब तक कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का गठन नहीं किया तब तक दलित समाज कांग्रेस पार्टी को वोट देता रहा। बदले में उसे कुछ नहीं मिला।

दलितों का इस्तेमाल करती आई कांग्रेस

Former Rajasthan CM Jagannath Pahadia dies of COVID-19 - The Hindu

कांग्रेस जो आज पंजाब में पहला दलित मुख्यमंत्री देने का दावा कर रही है, ऐसा ही दावा उसने 1960 में आंध्र प्रदेश में दामोदर संजीवैया को मुख्यमंत्री बनाकर किया था। फिर दो साल बाद उन्हें हटा दिया। उसके बाद राजस्थान में 1980 में जगन्नाथ पहाड़िया को मुख्यमंत्री बनाया गया। वे मुश्किल से एक साल कुछ दिन मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद उन्हें हटा दिया गया। इसी तरह महाराष्ट्र में 2003 में सुशील कुमार शिंदे मुख्यमंत्री बने। 2004 में विधानसभा चुनाव हुए जिसमें कांग्रेस और एनसीपी चुनाव जीत गई। शिंदे को हटाकर विलासराव देशमुख को मुख्यमंत्री बना दिया गया। इस तरह कांग्रेस ट्रैक रिकार्ड यह है कि वह चुनाव से पहले दलित समाज के नेताओं का इस्तेमाल करती रही है।

क्या इसी पद से संतोष करना होगा सिद्धू को!

At the end of bitter battle, elevation for Navjot Singh Sidhu in Punjab Congress | Latest News India - Hindustan Times

जैसा लेख के शुरू में ही कहा कि कांग्रेस ने पंजाब में शेर की सवारी कर ली है- वह इसलिए कहा कि अब दलित को मुख्यमंत्री बना दिया है। पार्टी के सामने संकट यह है कि अब वह सिद्धू को सीधे सीधे मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर सकती। अगर किसी तरह कांग्रेस चुनाव जीत जाती है तो फिर चन्नी को कैसे और क्या कहकर हटाएगी? यह कि ‘जिस दलित नेता ने चुनाव जिताया उसे इसलिए हटा रहे हैं कि हम इसको पसंद नहीं करते। यह हमारे लिए कामचलाऊ व्यवस्था था, हम इसका इस्तेमाल कर रहे थे।’ कोई यह जरूर कह सकता है कि वे ऐसा पहले भी कर चुके हैं तो अब क्यों नहीं कर सकते… वे पहले भी चुनाव जीतकर दलित को मुख्यमंत्री पद से हटा चुके हैं तो अब क्या समस्या है? लेकिन ‘तब’ और ‘अब’ में एक बहुत बड़ा फर्क यह आ गया है कि तब राज्यों में कांग्रेस के पास प्रभावशाली व जनाधार वाला नेतृत्व था, लोकप्रिय नेता थे। आज वह स्थिति नहीं है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद कांग्रेस के पास एक भी ऐसा नेता नहीं है जो यह दावा कर सके कि उसका पूरे सूबे में असर है। इसलिए चन्नी को हटाना आसान नहीं होगा। दूसरी बात यह कि सिद्धू ‘अननोन कमोडिटी’ अर्थात अज्ञात वस्तु की तरह हैं- वह क्या करेंगे कुछ पता नहीं। ऐसा लगता है कि अगर कांग्रेस की सरकार बनती है तो सिद्धू को इसी प्रदेश अध्यक्ष पद से संतोष करना पड़ेगा। अगर कांग्रेस को राजनीतिक समझ है और वे दलित कार्ड खेलना चाहते हैं तो वो केवल पंजाब तक नहीं देखेंगे। पूरे देश में दलितों में एक संदेश देना चाहेंगे कि हमारा पुरान जनाधार हमारे पास लौट कर आए। वो संदेश चन्नी को हटाकर तो नहीं जाएगा।

लगता यही है कि कैप्टन के हटने के बाद कांग्रेस की चुनौतियां और ज्यादा बढ़ गई हैं। विधानसभा चुनाव में जो पांच महीने का समय बचा है वह इतना नहीं है जिसमें चन्नी कोई चमत्कार नहीं कर सकते।

-एक महिला अधिकारी को अभद्र संदेश भेजने के पुराने मामले को लेकर महिला आयोग ने चन्नी के इस्तीफे की मांग की है- चुनाव में विरोधियों के यह मुद्दा उठाने पर उसका बचाव कांग्रेस कैसे करेगी?

-सिद्धू लगातार कैप्टन सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं कि पिछले साढ़े चार सालों में सरकार ने कोई काम नहीं किया। अब चुनाव में पार्टी कैसे कहेगी कि हमारी सरकार ने काफी काम किया है?

-कैप्टन अमरिंदर सिंह का अगला कदम क्या होगा?

इन तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए नीचे दिए वीडियो लिंक पर क्लिक करें।