भारत में जिसने अंग्रेजों के समय मलाई खाई, आजादी के बाद मक्खन चाटा

के. विक्रम राव।
देशद्रोही, गद्दार अथवा ट्रेटर- अर्थात वह व्यक्ति जो स्वजन और स्वदेश के शत्रुओं का स्वेच्छा से साथ दे- वतन पर आक्रमकों से सहानुभूति रखे। यह अपराध अक्षम्य होता है। फिर भी फ्रांस के कम्युनिस्ट समर्थित, नास्तिक राष्ट्रपति इम्मेनुअल माक्रोन ने सोमवार, 20 सितम्बर 2021 को उन तमाम अलजीरियायी मुसलमानों से सार्वजनिक तौर पर क्षमा याचना की जिन्हें छह दशकों बाद भी आज तक अपने ही हमवतनी अलजीरियायी स्वतंत्रता सेनानियों की हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है। इन लोगों ने फ्रेंच साम्राज्यवादियों का साथ दिया था। तब अपने हमवतनियों पर अत्याचार ढाया था। इस उत्तर अफ्रीका स्थित अरब इस्लामी गणराज्य अलजीरिया के हर घर का एक युवा फ्रेंच सैनिक की गोली से भूना जा चुका है। शहीद हुआ है। लहू बहाकर आजादी पायी है… शांतिमय सत्याग्रह द्वारा नहीं।


आतताइयों की मदद का इनाम

France's Emmanuel Macron heckled asking Algerian veterans for forgiveness - BBC News

फ्रेंच में ऐसे सभी अलजीरियायी जन को ”हार्किस” कहते हैं, जो साम्राज्यवादी शासकों के मददगार रहे। विदेशी सत्ता द्वारा स्वजन पर हुए जुल्मों सितम में हाथ बटाते रहे। अब राष्ट्रपति माक्रोन इन ”हार्किसजन” से माफी मांग कर उनके पुनर्वास की योजना में ओवरटाइम कर रहें हैं! इस संदर्भ में पड़ोस के बांग्लादेश का नमूना दिखता है। बिहार से पूर्वी पाकिस्तान हिजरत कर बसे उर्दूभाषी मुसलमानों को उसी दृष्टि से राष्ट्रदोही माना जाता रहा। वे सब बांग्लादेश की मुक्ति युद्ध के समय याहया खान और टिक्का खान के पंजाबी-पठान सेनाओं की मुखबिरी करते थे, मदद करते थे।

अंग्रेजों के साथ भी आज़ादी के बाद भी- लाइफ टनाटन

आजाद भारत में तो माक्रोन की भांति क्षमायाचना की मांग तक नहीं उठी, न मिली ही। भारत के कांग्रेसी शासकों ने ब्रिटिश साम्राज्यवादियों से इतना उम्दा समझौता कर लिया था कि सिवाय चन्द शासकों के देश वैसा ही चलता रहा, जैसा गोरे राज के दौर में था। मसलन जिन सरकारी नौकरों ने ब्रिटिश शासकों के निर्देश पर गांधीवादियों सत्याग्रहियों पर जुल्म ढाये, उनमें से कोई भी दण्डित नहीं हुआ। उन सभी को आजाद देश के शासन में ऊंचे ओहदे दिये गये।

गद्दारों को ओहदे

When Stalin Invited Bhagat Singh to Soviet Union | NewsClick

भारतीय लोगों का दमन उत्पीड़न करने वाले उन्हीं आईसीएस और आईपी (पुलिस) अधिकारियों को नेहरु शासन में अधिक सत्ता और आर्थिक लाभ मिले। मसलन ब्रज कुमार नेहरु, आईसीएस, (जवाहरलाल के सगे भतीजे) गवर्नर भी रहे और भारत के वाशिंगटन में राजदूत भी। अंग्रेजों के समय मलाई खाई, आजादी के बाद मक्खन चाटा। शहीदे आजम सरदार भगत सिंह को जिसकी गवाही पर सजा दी गयी थी उस सिख ठेकेदार को ‘सर’ के खिताब से नवाजा गया और कनाट प्लेस निर्माण का ठेका भी मिला। सन 1942 के हीरो, भूमिगत आंदोलन के प्रणेता जयप्रकाश नारायण को जिस मुखबिर ने रेल के डब्बे में पकड़वाया था उसे नेहरु राज में उच्च पद मिला। भारतीय सेना से मुठभेड़ करने वाले जिन्नाभक्त निजाम मीर उस्मान अली को स्वाधीन हैदराबाद का राजप्रमुख नामित किया गया।

अंग्रेज को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाना चाहते थे नेहरू

VK Krishna Menon: Nehru's comrade and confidant

स्वतंत्रता पाने के तुरंत बाद जिन ऊंचे पदासीन ब्रिटिश शासनाधिकारियों को बजाये रिटायर करने के, नवीन भारत का उन्हीं को भाग्य विधाता बनाया गया। इसीलिये हसरत मोहानी तथा सोशलिस्टों का नारा था: ”यह आजादी झूठी है, देश की जनता भूखी है।”  उन सभी ने संविधान सभा का बहिष्कार किया था। हसरत ने दस्तखत करने से इंकार किया था। इस गणराज्य के संविधान को गठनेवाले कौन धुरंधर थे? ब्रिटेन के सर आईवोर जेनिंग्स को नेहरु ने संविधान रचना समिति के अध्यक्ष पद हेतु सुझाया था। आजाद भारत की कानून समिति और लंदन से आयातीत उसका अध्यक्ष? बापू ने तब डा. भीमराव अंबेडकर को नियुक्त कराया। हालांकि यह डा. अंबेडकर 1942 में अंग्रेज वायसराय के मंत्रिमंडल में मंत्री थे। याद है 1942 तब ब्रिटिश पुलिस स्वतंत्रता प्रेमियों को गोलियों से भून रही थी और जेलों में ठूंस रही थी।

सत्ता हस्तांतरण और आज़ादी

तुलना में देखिये अलजीरिया को। वहां के सोशलिस्ट शासकों ने आजादी मिलते ही फ्रांस की तेल कंपनियां और उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। पूर्वोत्तर भारत में वर्षों बाद तक चाय बागानों में गोरे मालिक पत्ती बीननेवाली महिला कार्मिकों का शोषण करते रहे। बर्माशेल, काल्टेक्स, स्टैनवाक आदि पेट्रोल कम्पनियों द्वारा लूट चलती रही। यह तो केवल चन्द प्रमाण हैं आजाद भारत के आर्थिक शोषण के जारी क्रम के। इसकी सफाई एक ज्ञानीपुरुष ने तब दी थी कि भारत में सत्ता का मात्र ‘हस्तांतरण’ हुआ था। अलजीरिया में तो संघर्ष द्वारा सत्ता हासिल की गयी थी।

गद्दारों की रक्षा और मदद

अत: इसी परिवेश में राष्ट्रपति माक्रोन द्वारा उन अलजीरियायी गद्दारों की रक्षा और मदद की घोषणा से किसी भी स्वाधीनता-प्रेमी का दिल खुश नहीं हो सकता है। खासकर इस कारणवश भी कि पेरिस ने ही जनक्रांति द्वारा समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व के सूत्र मानवता को दिये गये थे। राष्ट्रपति माक्रोन के फ्रेंच होने पर शक सर्जता है।

घर में तीन दिन चूल्हा नहीं जला

The Untold Story Of Stalwart And Patriot Of India's First Cabinet
रफी अहमद किदवाई

यह सब विचार व्यक्त करने का अधिकार मुझे स्वाभाविक तौर पर है। स्वतंत्रता सेनानी का आत्मज हूं। सन 1942 में संपादक पिता (स्व. के. रामा राव) लखनऊ जेल में कैद थे। सबसे बड़े भाई केवल 17 वर्ष के थे। घर में तीन दिन चूल्हा नहीं जला। लगा था कि एकादशी है। याद आया तभी जेल से रफी अहमद किदवाई ने अजित प्रसाद जैन को यादवेन्द्र दत्त सिंह, राजा ओयल (खीरी), के पास भेजा। धनराशि मिली तो नजरबाग (लखनऊ) के पंसारी का पुराना बकाया चुकाया गया। फिर राशन मिला।

आजाद भारत के खादीधारी राजा

ठीक ऐसी ही भावना जगी थी ‘दूसरी आजादी’ के वक्त। (लालकृष्ण आडवाणी  के 1977 के शब्दों में) जब रेंगनेवाले बड़े कलमकारों से आज प्रेस पर अंकुश की बात सुनता हूं तो। मुझे नाज है कि मेरी संतानें मुझ पर गर्व करती हैं क्योंकि अंग्रेजों के खिलाफ हमारा परिवार लड़ा। दूसरी तानाशाही (1975-77) का प्रतिरोध भी मुझ जैसे छोटे पत्रकार ने किया। पांच जेलों में रहा। वक्त की चुनौती थी। कसौटी पर खरे उतरे। बस इसीलिये माक्रोन पर क्रोध आता है। गद्दारों से हमदर्दी- उनसे क्षमा याचना? ठीक आजाद भारत के खादीधारी राजाओं की मानिन्द!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख सोशल मीडिया से)