संसद टीवी के लिए प्रदीप सिंह की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से खास बातचीत-2।

आपका अख़बार ब्यूरो।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई ऐसे फैसले लिए हैं जो कभी लगभग असंभव जैसे लगते थे। तमाम सरकारें फैसले लेना तो दूर उन विषयों पर खुलकर विमर्श तक करने से कतराती थीं। इसी से मुहावरे बना ‘मोदी मैजिक’… या- ‘मोदी है तो मुमकिन है’। प्रस्तुत है वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह की लंबे समय तक प्रधानमंत्री के सहयोगी और उनकी राजनीतिक यात्रा के सहयात्री रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से ‘संसद टीवी’ के लिए खास बातचीत के कुछ अंश।


 

प्रदीप सिंह– कहते हैं कि राजनीति में जोख़िम लेने से नेता डरते हैं। क्योंकि एक उससे अनिश्चितता पैदा होती है… अगर ये जोखिम लिया तो इसका क्या नतीजा होगा? हमारे पर इसका क्या असर होगा? लेकिन मोदी जी के बारे में देखा जाता है कि जैसे वो ज़िद करके जोखिम लेते हैं। आप नोटबंदी का फैसला देखिये, तीन तलाक़, अनुच्छेद 370…

अमित शाह- मैं आपकी बात से पार्शियली सहमत हूं। ज़िद कर करके शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। वो जोखिम लेकर फैसला करते हैं ये कहना सही है। उनका मानना है और कई बार सार्वजानिक जीवन में उन्होंने कहा भी है कि हम देश बदलने के लिए सरकार में आये हैं। सरकार चलाने के लिए सरकार में नहीं आये हैं। हमारा लक्ष्य देश के अंदर परिवर्तन लाना है… एक सौ तीस करोड़ की जनता को विश्व में, दुनिया के सब बड़े लोकतंत्र को विश्व में एक सम्मानजनक स्थान पर पहुंचाना है। हमारा युवा धन पश्चिम और अमरीका की तरफ न जाता, अगर ये फैसले पहले हो गए होते, जो आज हो रहे हैं। मैं किसी की आलोचना नहीं करना चाहता। मगर वो (मोदी) इसलिए नहीं डरते हैं कि सत्ता में बने रहना लक्ष्य नहीं है… (जो चल रहा है) उसको चलने देना, आराम का जीवन भी लक्ष्य नहीं है। एकमात्र लक्ष्य है भारत प्रथम- इंडिया फर्स्ट। जब दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ आप एक रास्ता तय कर लेते हैं कि मुझे देश को यहां पहुंचाना है तो हर क्षेत्र के फैसले आप कर सकते हैं। नोट बंदी का इतना बड़ा फैसला कोई ले ही नहीं सकता… हमारी टीका (आलोचना) करने वाले जो करेंगे, वो करेंगे। देश के अर्थतंत्र के माहौल में बहुत बड़ा परिवर्तन आया है। ये सरकार का विल है कि काला धन नहीं चलेगा। कई बार विल का परिचय कराना भी बड़ी बात होती है।

जीएसटी की बातें सब करते थे, हिम्मत नहीं थी लागू करने की

इसी प्रकार से जीएसटी। चिदंबरम साहब से लेकर मुखर्जी साहब सब बात तो करते थे, अच्छी-अच्छी अंग्रेजी में बोलते थे… परन्तु किसी की हिम्मत नहीं पड़ती थी। मोदीजी ने केंद्र का- राज्य का फर्क भूलकर (संविधान के दिए) फेडरल स्ट्रक्चर (Federal Structure) (को याद रखा कि) हम एक टीम हैं। काफी ऐसी चीज़ें जो राज्यों में अविश्वास पैदा करती थीं, उन्हें हटा दिया और जीएसटी को सर्वानुमति से लागू किया। …और मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि इक्का-दुक्का चीज़ों को छोड़कर जीएसटी काउन्सिल में एक भी फैसला बहुमत से नहीं, सर्वानुमति से लिया गया। जबकि राज्यों में अलग अलग दलों की सरकारें हैं और जीएसटी काउन्सिल में सभी राज्यों की सरकारों के वित्त मंत्री हैं। तीन तलाक़ के उन्मूलन की किसी में हिम्मत नहीं थी। शाहबानो के केस में give-up करना पड़ा था राजीव गाँधी को। अदालत का फैसला बदलना पड़ा था। वन रैंक वन पेंशन- कोई हिम्मत नहीं करता था। डिफेन्स के क्षेत्र में चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टाफ का नया कांसेप्ट… कोई हिम्मत नहीं करता था। सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक का सवाल ही पैदा नहीं होता था… हम चुप हो जाते थे एक दो निवेदन कर कर। आज सबको मालूम है भारत की सीमाओं के साथ कोई छेड़खानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। अनुच्छेद 370 और 35 ए…। सबको मालूम था ये टेम्पररी है, इसकी ज़रूरत नहीं है। कोई छूने की हिम्मत नहीं करता था।

दुनिया में भारतीय संस्कृति की धमक

इसी प्रकार से हमारी संस्कृति को दुनिया के लोगों तक पहुंचाया। योग दिवस कितना बड़ा फैसला है UN General Assembly तक ने इसे स्वीकार किया। ये बहुत बड़ी बात है..। भारतीय संस्कृति का इतना बड़ा acknowledgement शायद ही कभी हुआ होगा। दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता- नयी शिक्षा नीति- और ढेर सारे फैसले। आर्थिक सुधार पर तो एक पूरा इंटरव्यू हो सकता है- इतने सारे आर्थिक सुधार उन्होंने किये हैं। मज़बूत इच्छा शक्ति वाले प्रधानमंत्री के बिना तो यह हो ही नहीं सकता है। मुझे लगता है कि वो ये इसलिए हो रहा है कि मोदी जी का लक्ष्य सत्ता में बने रहना- भारतीय जनता पार्टी के लिए सरकार चलाना नहीं है। उनका लक्ष्य… देश के लिए, ग़रीबों के लिए सरकार चलाना है।

प्रदीप सिंह- लेकिन ये विश्वास कहां से आता है कि हम जो भी फैसला लेंगे चाहे जितना कड़ा हो, चाहे जितना जोखिमवाला हो- देश की जनता उसको स्वीकार करती है।

अमित शाह- वो इसलिये आता है कि इसमें कोई निजी स्वार्थ नहीं है। ना दलगत स्वार्थ है -ना व्यक्तिगत स्वार्थ। अगर दलगत स्वार्थ होता है तो विश्वास की कमी होती है। व्यक्तिगत स्वार्थ होता है तो और भी विश्वास की कमी होती है। पर जब आप शुद्ध रुप से जनता के हित में ही सोचते हैं तो मैं मानता हूं कि ये विश्वास अपने आप इसमें से ही बनता है।

मोदी सत्ता में आकर भी अध्यात्म के पथ पर

प्रदीप सिंह- अभी प्रधानमंत्री ने अंग्रेजी की ओपन मैगजीन में इन्टरव्यू में कहा कि उनकी प्रकृति आध्यात्मिक है। तो अध्यात्म से सत्ता की राजनीति… इसका तालमेल उन्होंने कैसे बिठाया इसे आप ही बता सकते हैं क्योंकि आपने उनको बहुत करीब से देखा है।

अमित शाह- मैं दोनों के बीच में बहुत बड़ा अन्तर नहीं देखता। अध्यात्म के दो रास्ते हैं- एक आत्म का कल्याण करना और दूसरा जनता व समग्र के कल्याण के लिये पुरुषार्थ करना। अध्यात्म के रास्ते पर जाने वाले भी वही करते हैं। मोदी जी भी आज वही कर रहे हैं। देश के साठ करोड़ गरीबों से कई सारे वायदे किये गये- मगर सत्तर साल तक उनके जीवन में गुणात्मक परिवर्तन कभी नहीं आया। गरीब कल्याण की बातें सबने की, गरीबी हटाओ के नारे भी लगे, मगर हुआ कभी नहीं था। आज मैं इतना कह सकता हूं कि ग्यारह करोड़ गरीबों के घर से धुंआ गायब है। गैस का सिलेन्डर गरीब महिला के घर पहुंच गया है। करीब ग्यारह करोड़ शौचालय इस देश में बन चुके हैं, जिनमें से करीब नौ करोड़ उपयोग में हैं। तो उन नौ करोड़ परिवारों की महिलायें आज शर्मसार नहीं हैं, सम्मान के साथ जीवन जी रही हैं, उनको भी हक होता है कि इस देश में मेरी हिस्सेदारी है, कोई हमारी चिंता कर रहा है। हर घर में नल का पानी पहुंचाने का काम हमने शुरु किया है, आठ करोड़ घरों में हमने पानी पहुंचाया है, करीब दो करोड़ घरों में पानी पहुंचने का काम हो रहा है। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शपथ ली, तब 18 हजार गावों में बिजली का खंभा तक नहीं था। ये आजादी के सत्तर साल बाद भी बिजली की पहुंच से अछूते थे। आज इन सभी 18 हजार गांव में बिजली पहुंच गई है। ग्यारह करोड़ किसानों को सालाना 6 हजार रुपया मिल रहा है और डेढ़ लाख करोड़ रुपया एक साल के अंदर सीधे किसानों को मिला है। कभी यूपीए की सरकार ने किसानों के साठ हजार रुपये का ऋण माफ कर बहुत बड़ा काम किया था, ऐसा बताते थे। ये साठ हजार करोड़ तो बैंक में ही वापिस आ गये। किसान को कुछ नहीं मिला, क्योंकि ये राशि बैंक ऋण माफ़ी के लिए थी। बैंक ऋण माफ हो गया तो ये रूपये बैंक में आ गये। लेकिन ये डेढ़ लाख करोड़ रुपया सीधा किसान को ही मिला है जिसे अब बैंक से ऋण ही नहीं लेना है। डेढ़ एकड़ / दो एकड़ के खेत हमारे बहुत सारे प्रदेश में एवरेज जोत हैं, जिनका खेती का ख़र्चा ही 6 हजार है। उनको ऋण ही नहीं लेना पड़ेगा, यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसको कोई देखता ही नही है। एक ओर ऋण माफ करने की पॉलिसी लाना और दूसरी ओर किसान को ऋण न लेना पड़े ऐसी स्थिति में ले आये। मैं मानता हूं ये यूनिक विचार है। इसी प्रकार आज घर में बैंक अकाउंट न हो ऐसा कोई घर देश में नहीं है। 60 करोड़ लोग ऐसे थे जिनके परिवार में एक भी एकॉउंट नही था, आज जनधन के माध्यम से उनको एकॉउंट मिल गया, डीबीटी डायरेक्ट आता है, कोई बिचौलिया नही है, कोई उनका पैसा खाता नहीं है, चाहे वृद्ध के पेंशन हो, चाहे वृद्धावस्था का पेंशन हो, चाहे विधवा को दी गई राशि हो, बच्ची का वजीफा हो- सीधा खाते में पहुंचता है। इसी प्रकार से पांच लाख तक का आयुष्मान भारत योजना 60 करोड़ लोगों को मिल रही है। 60 करोड़ लोग आश्वस्त हैं घर में कोई भी आपत्ति आ जाये हम मोदी कार्ड को स्वाइप करेंगे और इलाज करा लेंगे। दुनिया में कोई नहीं सोच सकता कि 130 करोड़ लोगों को मुफ्त वैक्सीन मिल सकती है। जो लोग बाकी सारे कंपेरिजन करते हैं, अंग्रेजी अखबारों में लिखते हैं उनको मालूम नही कि अमेरिका की आबादी उत्तर प्रदेश जितनी है` भारत 130 करोड़ का देश है। 130 करोड़ लोगों को मुफ्त वैक्सिनेशन देना बहुत ही साहसी फैसला है। 43 करोड़ बैंक खाते खुल गए और 80 करोड़ लोगों को कोरोना में मुफ्त राशन देने का काम किया है।

प्रदीप सिंह– इसका बड़ा असर पड़ा..।

अमित शाह– मैं इसको असर से थोड़ा ऊपर जाकर सोचता हूं। ये प्रधानमंत्री जी की, सरकार की संवेदनशीलता है जो ये योजनाएं बनाती है… हम योजनाओं के अंदर उसका स्केल और साइज दोनों को बदला। पहले यह होता था कि हम इतने घर बनाएंगे। अब हम कहते हैं सबको घर मिलेगा। पहले योजना होती थी कि इतने घर में विद्युत पहुंचेगी, अब सबके घर में पहुंचाना है। पहले इतने शौचालय बनाने की बात होती थी, अब शौचालय सबके घर में पहुंचाते हैं। ऐसी कई योजनाएं हैं। तो एक स्केल बदलने का काम किया है। और ये स्केल बदलने का ही असर है कि जो 60 करोड़ लोग अपने को आप को आजादी, लोकतन्त्र, देश और अर्थतंत्र के साथ नहीं जोड़ते थे, क्योंको वो तो बेनिफिसरी था ही नही- आज उन 60 करोड़ लोगों में आत्मविश्वास जगा है कि नहीं, देश के विकास में मेरी भागीदारी है, देश मेरे बारे में सोचता है। इन 60 करोड़ लोगों की नई ऊर्जा देश के विकास के साथ जुड़ी है। मैं मानता हूं ये बहुत बड़ी बात है। लोकतंत्र का अर्थ क्या है? समविकास करना- यही लोकतंत्र है। सर्वसमावेशक सर्वस्य विकास करना- यही लोकतंत्र है। और सबको देश के भले के लिए जोड़ना- यही लोकतंत्र है। तो अल्टीमेटली जो क्रिटिक हैं वो वही बोलेंगे जो उन्हें बोलना है- कि अध्यात्म के रास्ते से वापस आकर (मोदी) सत्ता की राजनीति में आये। मगर मैं मानता हूं कि अध्यात्म के उसी रास्ते पर नरेन्द्र भाई आज भी हैं। जरिया बदला है लक्ष्य वही है।