प्रदीप सिंह।
कांग्रेस पार्टी बदले की राजनीति का आरोप तो लगाती है लेकिन बदले की राजनीति का अगर कोई एक्सपर्ट है तो वह कांग्रेस पार्टी है। पिछले सत्तर-चौहत्तर साल में आपको इस तरह के एक नहीं कई उदाहरण मिलेंगे। कांग्रेस पार्टी जब विपक्ष में होती है तो बदले की राजनीति के आरोप लगाती है और जब सत्ता में होती है तो वही काम पूरी शिद्दत और ताकत के साथ करती है। इसमें वह कोई अपवाद या मुरव्वत नहीं करती। कांग्रेस अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ कुछ भी करने और किसी भी हद तक जाने को तैयार रहती है।
इसका ताजा उदाहरण है पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं। कुछ दिन पहले तक वह मुख्यमंत्री थे और कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेताओं में उनकी गिनती होती थी। वह गांधी परिवार के करीबियों में थे। राजीव गांधी के साथ पढ़े थे और उनसे पारिवारिक संबंध थे। उन्होंने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा को बचपन से बड़े होते हुए देखा… दोनों उन्हें अंकल बोलते थे। सोनिया गांधी के साथ उनके अच्छे रिश्ते थे। यही कारण है कि सोनिया गांधी के ही कहने पर कैप्टन कांग्रेस में वापस लौट आए या उन्हीं के कहने से उनको वापस लिया गया।
भाजपा को लेकर कही बड़ी बात, और…
कैप्टन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद कहा कि मैं कांग्रेस पार्टी छोडूंगा और पिछले हफ्ते घोषणा कर दी कि वह नई पार्टी बनाएंगे और बीजेपी से तालमेल या गठबंधन कर सकते हैं। बीजेपी के तालमेल के लिए उनकी एक ही शर्त है कि तीन कृषि कानूनों को लेकर चल रहे आंदोलन का कोई हल निकले तो उनको बीजेपी से समझौता करने में कोई गुरेज नहीं है। एक बड़ी बात कैप्टन ने यह कही कि उनको यह कभी नहीं लगा कि भाजपा मुस्लिम विरोधी पार्टी है। कांग्रेस का हमेशा से यही तर्क रहा है और कैप्टन के इस तर्क को खारिज करते ही कांग्रेस का पिछले चौहत्तर सालों से खड़ा किया गया सेक्युलरिज्म का महल भरभरा कर गिर जाता है। कांग्रेस लगातार इस तर्क पर राजनीति करती रही कि भाजपा एक सांप्रदायिक पार्टी है। यहां सांप्रदायिकता का आशय मुस्लिम विरोधी पार्टी से है। इस देश में जब भी संप्रदाय की बात होती है, अल्पसंख्यक की बात होती है तो अल्पसंख्यक मुसलमान का पर्यायवाची माना जाता है। अठारह बीस फीसदी आबादी वाले वर्ग को भारत में अल्पसंख्यक माना जाता है और किसी अन्य समुदाय को अल्पसंख्यक नहीं माना जाता। अगर किसी पर अल्पसंख्यक विरोधी का आरोप लगा दिया जाए तो साफ़ है कि आप सांप्रदायिक हैं।
भाजपा के साथ क्यों आते हैं उस पाले के लोग
सांप्रदायिक शक्तियों को रोकने के नाम पर कांग्रेस लगातार अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करती रही है। इसकी वजह से देश में राजनीति का ध्रुवीकरण हुआ- सांप्रदायिक ताकतें बनाम धर्मनिरपेक्ष ताकतें। मजे की बात यह है कि जो लोग भाजपा को सांप्रदायिक कहते रहे हैं वे भी समय-समय पर भाजपा से गठबंधन करते रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी से जो लोग गठबंधन करते हैं वह ऐसा इसलिए नहीं करते कि भाजपा के बारे में उनकी पहले की विचारधारा बदल गई है। उनको अपने भीतर मालूम है कि भारतीय जनता पार्टी को वे सार्वजनिक रूप से जैसा कहते हैं वह वैसी नहीं है। बीजेपी के साथ कौन लोग आते हैं? ऐसी पार्टियों आती हैं जिनको मुस्लिम वोटों का एक हिस्सा मिलता है। उनको बड़ा हिस्सा नहीं मिलता- एक हिस्सा मिलता है। इस तरह नीतीश कुमार, चंद्रबाबू नायडू, मायावती समय-समय पर भाजपा के साथ आ जाते हैं। वे भाजपा के साथ कब आती हैं? जवाब है कि जब उनको लगता है कि भारतीय जनता पार्टी इस स्थिति में है कि उसके साथ आने से उनको मुस्लिम वोटों का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई भाजपा के समर्थन से मिले वोट से हो जाएगी- और उससे ज्यादा वोट मिल जाएंगे- तब वे भाजपा में आते हैं या भाजपा के साथ आते हैं। फिर जैसे ही उनको लगता है कि अब यह नहीं हो पाएगा, भारतीय जनता पार्टी की स्थिति खराब या कमजोर हो गई है, वे तुरंत नारा देते हैं कि वे धर्मनिरपेक्ष ताकतों के साथ रहेंगे और उन्होंने सांप्रदायिक ताकतों से दूरी बना ली है।
हो जाएगी कांग्रेस के बड़े बड़ों की बोलती बंद
लेकिन यहां हम इस मुद्दे पर बात नहीं कर रहे हैं। हम बात इस पर कर रहे हैं कि अमरिंदर सिंह ने बदले की राजनीति को लेकर कांग्रेस पर ऐसा पलटवार किया है जिससे कांग्रेस के बड़े बड़ों की बोलती बंद हो जाएगी। अमरिंदर सिंह के यह घोषणा करते ही कि वह नई पार्टी बनाने जा रहे हैं और भाजपा से गठबंधन कर सकते हैं- कांग्रेस के पंजाब के नेताओं ने उन पर हमला बोला। पहले पंजाब के प्रभारी हरीश रावत ने हमला किया, फिर पंजाब के दूसरे नेताओं ने किया। उसके बाद पंजाब के उपमुख्यमंत्री और गृहमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने कैप्टन पर पर्सनल अटैक किया। यह सबको पता है कि पाकिस्तानी पत्रकार अरूसा आलम कैप्टन अमरिंदर सिंह की दोस्त हैं और उनसे मिलने आती रहती हैं। यह सिलसिला 16 साल से चल रहा है लेकिन कल सुखजिंदर सिंह रंधावा को याद आया कि अरूसा आलम का संबंध पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से है। पंजाब के गृहमंत्री के नाते उन्होंने इसकी जांच का आदेश दिया। उन्होंने डीजीपी से यह पता करने को कहा है कि इस महिला का आईएसआई और पाकिस्तानी सेना के दूसरे अफसरों से कोई संबंध है या नहीं।
सौ सुनार की, फिर एक लुहार की
इसका कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जवाब दिया। वह ऐसे लोगों में हैं जो कुछ भी छिपा कर नहीं रखते। अगर उनकी दोस्ती पाकिस्तानी जर्नलिस्ट से है तो इस बात को कभी छुपाया नहीं। उन्होंने कहा कि 16 साल पहले अरूसा आलम को भारत आने का वीजा मिला। सामान्य प्रक्रिया है कि पाकिस्तान से जो भी लोग भारत आना चाहते हैं वे पाकिस्तान में भारतीय हाई कमीशन के पास वीजा के लिए अप्लाई करते हैं। वीजा की वह दरखास्त विदेश मंत्रालय के पास आती है। विदेश मंत्रालय आईबी और रॉ से उसे वेरीफाई कराता है कि वह व्यक्ति कैसा है, इसके संबंध कैसे हैं, जासूस तो नहीं है। इस प्रकार की तमाम आवश्यक सुरक्षा जांच कराई जाती है। उसके बाद वीजा मिलता है। 16 साल पहले जब अरूसा आलम को भारत का वीजा दिया गया उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी। डॉ. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। तो सुखजिंदर रंधावा क्या कहना चाहते हैं? यह कि डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार आईएसआई के एजेंटों को वीजा दे रही थी। अमरिंदर सिंह ने कहा कि 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आदेश पर अरूसा आलम की जांच हुई। उस समय के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से इस मामले की जांच कराई गई। जांच की रिपोर्ट क्या है यह तो किसी को पता नहीं है, लेकिन उसके बाद अरूसा आलम का वीजा फिर रिन्यू किया गया। इसका मतलब है कि जांच में कुछ नहीं मिला होगा। अगर जांच में कुछ मिला और उसके बाद फिर उनको वीजा जारी किया गया तो यह और गंभीर बात है।
‘साढ़े चार साल क्यों चुप रहे’
कैप्टन यहीं नहीं रुके। उन्होंने कहा कि ‘सुखजिंदर, तुम तो मेरे ही मंत्रिमंडल में मंत्री थे। साढ़े चार साल में तो एक बार भी तुमने यह मुद्दा नहीं उठाया। एक बार भी यह नहीं कहा कि अरूसा आलम का आईएसआई से कोई संबंध है या नहीं इसकी जांच होनी चाहिए। इस समय प्रदेश में कानून व्यवस्था की चिंता है, सीमा पार से आ रहे हथियारों के कारण चिंता है, त्यौहार आने वाला है उस समय कोई गड़बड़ ना हो उसकी चिंता है। तुम इन सब बातों की चिंता करने के बजाए डीजीपी को इस बेकार की जांच में लगा रहे हो।’
महत्वपूर्ण बात कांग्रेस ने कैप्टन को घेरने की जो कोशिश की थी वह अब कांग्रेस को ही उलटी पड़ रही है। कांग्रेस खुद घिरती नज़र आ रही है। सोनिया गांधी तक आंच ली लपटें जा रही हैं। और कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सीधे सोनिया के जरिए पलटवार किया है। यह सब जानने के लिए नीचे दिए वीडियो लिंक पर क्लिक करें।