डॉ. संतोष कुमार तिवारी।
भारत और विदेशों में भी ऐसे तमाम लोग हैं जोकि देवनागरी लिपि में हिन्दी ठीक से नहीं पढ़ सकते हैं। परन्तु उनमें हमारे देश के धर्म ग्रन्थों को हिन्दी और संस्कृत में पढ़ने की अपार उत्कंठा है। ऐसे अधिकतर लोगों को अंग्रेजी का ज्ञान है। ऐसे जिज्ञासु लोगों के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर, हनुमान चालीसा, श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्भागवद्गीता आदि पुस्तकें रोमन लिपि में भी प्रकाशित कर रहा है। ये पुस्तकें रोमन लिपि में अंग्रेजी अनुवाद के साथ भी उपलब्ध हैं।
रोमन लिपि में अब तक हनुमान चालीसा की 5 लाख 20 हजार, श्रीमद्भागवद्गीता की 3 लाख 64 हजार और श्री रामचरितमानस की 86 हजार पांच सौ प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ लोग श्री रामचरितमानस के केवल सुन्दरकाण्ड को अलग से पढ़ना चाहते हैं, तो उनके लिए इसकी रोमन लिपि में अब तक 39 हजार प्रतियाँ अलग से प्रकाशित हो चुकी हैं।
देवनागरी लिपि में श्री हनुमान चालीसा की अब तक 7 करोड़ 54 लाख 10 हजार प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त अन्य भाषाओं में श्री हनुमान चालीसा की 2 करोड़ 18 लाख 90 हजार प्रतियाँ प्रकाशित हुई हैं।
श्रीमद्भागवद्गीता की कितनी प्रतियां छपीं
विभिन्न भाषाओं में 27 अप्रैल 2021 तक प्रकाशित श्रीमद्भागवद्गीता की प्रतियों की संख्या इस प्रकार है:
हिन्दी- 10 करोड़ 87 लाख 99 हजार, अंग्रेजी- 37 लाख 9 हजार छह सौ पचास, बंगला- 53 लाख 62 हजार पांच सौ, तेलगू- 84 लाख 95 हजार पांच सौ, मराठी- 27 लाख 44 हजार, असमिया- 2 लाख 24 हजार, तमिल- 18 लाख 27 हजार नौ सौ, नेपाली- 63 हजार, गुजराती- 1 करोड़ 12 लाख 94 हजार पांच सौ, मलयालम- 3 लाख 37 हजार, कन्नड़- 35 लाख 95 हजार, उड़िया- 78 लाख 56 हजार पांच सौ, पंजाबी- तीन हजार, उर्दू- 26 हजार। इस तरह श्रीमद्भागवद्गीता की विभिन्न भाषाओँ में (संस्कृत को छोड़कर) कुल 15 करोड़ 43 लाख 37 हजार पांच सौ पचास प्रतियां प्रकाशित हो चुकी हैं।
इसके अतिरिक्त श्रीमद्भागवद्गीता संस्कृत में तो सदैव से छपती ही है। संस्कृत भाषा में श्रीमद्भागवद्गीता को मिला कर मार्च 2021 तक इसकी लगभग 15 करोड़ 58 लाख प्रतियाँ छप चुकी थीं।
श्रीरामचरितमानस की कितनी प्रतियां छपीं
इसी प्रकार विभिन्न भाषाओं में 27 अप्रैल 2021 तक प्रकाशित श्रीरामचरितमानस की प्रतियों की संख्या इस प्रकार है: हिन्दी- 3 करोड़ 41 लाख 26 हजार दो सौ पचास, गुजराती- 4 लाख,75 हजार पांच सौ, उड़िया- 1 लाख 24 हजार पांच सौ, तेलगू- 73 हजार, मराठी- 75 हजार, कन्नड़- 23 हजार, अंग्रेजी- 1 लाख 50 हजार, बंगला- 47 हजार, नेपाली- 12 हजार, पांच सौ, असमिया- 2 हजार। इस तरह कुल प्रकाशित प्रतियों की संख्या 3 करोड़ 51 लाख नौ हजार दो सौ पचास है।
‘कल्याण’ का सन् 2022 का विशेषांक ‘कृपानुभूति अंक’
गीता प्रेस की स्थापना अप्रैल 1923 को हुए थी। तब से अब तक यहाँ से उपर्युक्त प्रकाशनों के साथ-साथ गोस्वामी तुलसीदासजी का अन्य साहित्य, पुराण, उपनिषद, आदि ग्रन्थ, महिलाओं के लिए और बालोपयोगी पुस्तकें, भक्तचरित्र एवं भजनमाला, आदि का प्रकाशन होता रहा है। इस प्रकार यहाँ से लगभग 72 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इसके अतिरिक्त मासिक पत्रिका ‘कल्याण’ का भी वर्ष 1926 से नियमित प्रकाशन हो रहा है। प्रतिवर्ष ‘कल्याण’ का एक विशेषांक प्रकाशित होता है, जिसका पाठकों को इंतजार रहता है। वर्ष 2022 का अर्थात 96वें वर्ष का विशेषांक होगा ‘कृपानुभूति अंक’।
वर्ष 2021 में पुस्तक प्रेमियों और तीर्थ यात्रियों के लिए गीता प्रेस ने ‘अयोध्या-दर्शन’ का प्रकाशन किया है। 128 पृष्ठों वाली इस पुस्तक में अनेक सुंदर रंगीन चित्रों के साथ अयोध्या के प्रमुख स्थानों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। साथ ही इसमें अयोध्या के शास्त्रीय महत्व और इतिहास सम्बन्धी जानकारी भी संक्षेप में दी गई है।
गीता प्रेस की पुस्तकों एवं ‘कल्याण’ की बिक्री 21 निजी थोक दुकानों, लगभग 50 रेलवे स्टेशन-स्टालों और हजारों पुस्तक बिक्रेताओं के माध्यम से होती है। इन पुस्तक बिक्रेताओं को नए प्रकाशनों की जानकारी देने के लिए गीता प्रेस पिछले लगभग नौ वर्षों से एक मासिक पत्रिका निकाल रहा है ‘युग-कल्याण’।
कोई आर्थिक संकट नहीं
सोशल मीडिया पर बहुधा कुछ शरारती तत्वों द्वारा यह अफवाह फैलाई जाती है कि गीता प्रेस बन्द होने वाला है। परन्तु सच यह है कि गीता प्रेस पर कोई आर्थिक संकट नहीं है। और यह संस्थान बन्द होने वाला नहीं है।
प्रारम्भ से ही गीता प्रेस की यह नीति रही है कि वह किसी से कोई दान स्वीकार नहीं करता है। गीता प्रेस बंद होने की अफवाहें इसलिए फैलाई जाती हैं, क्योंकि इस प्रकार की अफवाह फैलाने वाले लोग बाद में गीता प्रेस के नाम से चंदा इकट्ठा करते हैं और अपनी जेबें भरते हैं।
आज गीता प्रेस भारत में ही नहीं, विश्व में एक अग्रणी प्रकाशन संस्था है। अभी तीन-चार वर्ष पहले गीता प्रेस ने 11 करोड़ रुपए की एक पुस्तक-बाइंडिंग मशीन जर्मनी से आयात कर के लगाई थी। मार्च 2021 में लगभग छ्ह करोड़ रुपये की जापान की कोमोरी फोर कलर आफ़सेट प्रिंटिंग मशीन लगाई है। इस प्रकार यहाँ पुस्तकों की उत्कर्ष प्रिटिंग और बाइंडिंग का ध्यान रखा जाता है।
लाभ कमाना उद्देश्य नहीं
आज गीता प्रेस पंद्रह भाषाओं में सनातन धर्म से संबन्धित लगभग 1800 पुस्तकें प्रकाशित कर रहा है। गीता प्रेस सस्ते में पुस्तकें इसलिए दे पता है क्योंकि लाभ कमाना उसका उद्देश्य नहीं है। गीता प्रेस के एक ट्रस्टी श्री देवी दयाल अग्रवाल ने इस लेख के लेखक को बताया कि प्रति वर्ष लगभग साठ करोड़ रुपये मूल्य की पुस्तकों की बिक्री होती है और इसके अतिरिक्त चार से पाँच करोड़ रुपये मूल्य की ‘कल्याण’ की बिक्री है। उन्होंने यह भी बताया कि इन प्रकाशनों की छपाई में प्रति वर्ष लगभग साढ़े चार से पाँच हजार मीट्रिक टन कागज खप जाता है। गीता प्रेस में लगभग 185 नियमित कर्मचारी है। इनके अतिरिक्त दो सौ कर्मचारी कांटरैक्ट पर हैं। कांटरैक्ट के कर्मचारियों का भी भविष्य निधि (पीएफ) आदि का लाभ मिलता है।
(लेखक झारखण्ड केन्द्रीय विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं। वर्तमान में मानद प्रोफेसर (मीडिया से समरसता शोध पीठ), डॉ. बी. आर. अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू, मध्य प्रदेश)