रामायण और महाभारत में भी निषादों का उल्लेख।

शिवचरण चौहान।
उत्तर भारत में आदिकाल से ही गंगा यमुना और गोमती घाघरा सरयू के किनारे निषाद संस्कृति फली फूली और पल्लवित हुई है । ऋग्वेद से लेकर पुराण काल और पुराण काल से लेकर आज तक निषाद भारतीय संस्कृति को समर्पित रहे हैं। रामायण और महाभारत में भी निषादों का उल्लेख मिलता है। महाभारत में शांतनु की पत्नी मत्स्यगंधा सत्यवती एक निषाद ( धेवरी) कन्या थी तो अयोध्या नरेश दशरथ की मित्रता निषाद राजाओं के साथ थी।


संस्कृति के निर्माण में योगदान

प्राचीन भारत की हकीकत

सिंधु नदी अति प्राचीन नदी है तो गंगा नदी उसके बाद की नदी है। सिंधु घाटी सभ्यता के अवसान के साथ ही गांगेय  घाटी सभ्यता का विकास हुआ माना जाता है। आर्य एक सबल जाति थी जो सारे भारत में फैल गई किंतु आर्यों से पहले भी भारत में द्रविड़, किरात और निषाद जातियों का उल्लेख मिलता है।
आचार्य सुनीति कुमार चटर्जी ने लिखा है भारतीय संस्कृति के निर्माण में 70 प्रतिशत योगदान निषाद जातियों का है। मल्लाह निषाद केवट कश्यप , कहार, गोडिया आदि निषादों की 14 से अधिक जातियां उत्तर प्रदेश में निवास करती हैं।

ऋग्वेद, रामायण, महाभारत में उल्लेख

ऋग्वेद में भी निषाद जातियों का उल्लेख मिलता है और महाभारत रामायण में भी निषाद का उल्लेख मिलता है। केवट कन्या सत्यवती से महर्षि वेदव्यास उत्पन्न हुए थे। सत्यवती को हस्तिनापुर के महाराज शांतनु ने अपनी रानी बनाया और भीष्म पितामह ने प्रतिज्ञा की थी कि वह शांतनु  पुत्रों को ही राजगद्दी देंगे।
रामायण में बाल्मीकि ने मा निषाद कह कर निषाद का उल्लेख किया है। अयोध्या नरेश महाराज दशरथ से निषादों के मित्रवत संबंध थे और कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि महाराज दशरथ की सबसे छोटी रानी सुमित्रा भी निषाद कुल से संबंधित थीं। सुमित्रा काशी नरेश  की पुत्री थीं और जब महाराज दशरथ के कौशल्या और कैकेई से कोई पुत्र नहीं उत्पन्न हुआ तो उन्होंने काशी नरेश की पुत्री सुमित्रा से विवाह किया था।  सुमित्रा के शत्रुघ्न और लक्ष्मण दो पुत्र थे। सुमित्रा कौशल्या की सेवा करती थी और आदर करती थीं । सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण राम के अनुयाई थे तो शत्रुघ्न भारत के।

अवध तहां जह राम निवासू

Goswami Tulsidas Ramcharitmanas, Biography, and Sainthood

तुलसीदास की रामचरितमानस में उल्लेख मिलता है कि सुमित्रा ने राम की 14 वर्ष वनवास के समय लक्ष्मण से कहा था-
अवध तहां जह राम निवासू। तहहि दिवस तह भानु  प्रकासू/ जौ पय राम सीय बन जाही। अवध तुम्हार काज कछु नाही।।

नदियों के किनारे बसे

गंगा यमुना गोमती घाघरा सरयू आदि अनेक नदियों के किनारे प्राचीन काल से ही निषाद लोग बसे हुए हैं। इन निषादों  की आस्था धर्म और अध्यात्म में रही है और आज भी है। निषादों ने सभी जातियों के सामंजस्य स्थापित किया। कहते हैं चक्रवती सम्राट वेनु के पुत्र प्रथु के कारण ही इस  धरती का नाम पृथ्वी पड़ा और महाराज वेणु निषाद थे। पुराणों और इतिहास में उल्लेख मिलता है कि निषाद राजाओं की अनेक राजधानियां थीं। प्रयाग से 40 किलोमीटर दूर श्रृंगवेरपुर में निषाद राज गुह का किला आज भी मौजूद है और उनकी प्रतिमा भी लगी है।
महर्षि वशिष्ठ के कहने पर महाराज दशरथ ने श्रृंगवेरपुर से श्रृंगी ऋषि को बुलवाकर पुत्र प्राप्ति  हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया था। यज्ञ से प्राप्त की खीर के दो भाग किए गए  और एक कौशल्या और एक कैकई को दिया गया। कौशल्या और कैकई ने अपनी खीर का आधा आधा भाग रानी सुमित्रा को दिया था इस कारण सुमित्रा के दो पुत्र उत्पन्न हुए।

गांगेय घाटी सभ्यता की खोज क्यों नहीं

गंगा घाटी में बस्तियाँ - भौमिकीय समस्यायें एवं समाधान | Hindi Water Portal

वैसे तो अनेक जातियों का सम्मिलन सारे भारतवर्ष में भी हुआ है किंतु गंगा घाटी सभ्यता में इस के स्पष्ट प्रमाण दिखाई देते हैं। निषाद जातियों ने सभी से अपने मधुर संबंध रखे हैं और इसी कारण अनादि काल से आज तक निषाद छोटे पदों से लेकर बड़े-बड़े पदों पर आसीन हुए हैं। निषादों की राष्ट्रभक्ति पर राम भक्ति पर कभी संदेह नहीं किया गया। गंगा घाटी सभ्यता सरस्वती नदी घाटी सभ्यता हमारी वैदिक सभ्यता है किंतु इतिहासकारों ने सिंधु घाटी सभ्यता की खोज की किंतु गांगेय घाटी सभ्यता की खोज आज तक विधिवत नहीं की गई।

मगध और काशी नरेश के निषाद राजाओं से अच्छे संबंध

काशी का इतिहास - विकिपीडिया

समूचे उत्तर भारत में निषाद जातियों का योगदान सर्वश्रेष्ठ पाया गया है। एकलव्य निषाद जाति का बालक था जिसके पिता हिरण्य धनु का राज्य श्रृंगवेरपुर में था। मगध और काशी नरेश निषाद राजाओं से अच्छे संबंध रखते थे।
कहते हैं देवियों की कल्पना निषादों की ही है। अनेक विद्वानों ने सिंधु घाटी सभ्यता पर तो बहुत शोध किए हैं किंतु गांगेय घाटी सभ्यता पर कोई परिपूर्ण शोध नहीं हुआ। निषाद, किरात और द्रविड़  जातियों के सम्मिलन पर भी कभी कोई शोध अभी नहीं किया गया। भारत की सभ्यता को पुष्पित पल्लवित और विकसित करने में निषादों का बहुत बड़ा योगदान है किंतु इनके योगदान पर कभी किसी ने कोई शोध नहीं किया। ऋग्वेद, रामायण काल और महाभारत काल में निषादों का उल्लेख मिलता है फिर भी किसी ने इन पर समुचित ध्यान नहीं दिया। आज उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार की राजनीति में निषादों की महत्वपूर्ण भूमिका है।