प्रदीप सिंह।
डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी काफी समय से पाला बदलने की जुगत में थे। और उसके प्रमाण अब मिलने शुरू हो गए हैं। बल्कि लगभग स्पष्ट ही हो चुका है कि वह पाला बदलने वाले हैं और तय कर चुके हैं कि कहां जाना है। कुछ समय पहले जब वह ठिकाना तलाश रहे थे तब तक कुछ निश्चित नहीं था। वह इस बात का भी संकेत दे रहे थे कि अगर बात बन गई तो कांग्रेस में भी जा सकते हैं। लेकिन कहते हैं न कि दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, तो कांग्रेस में डॉ. स्वामी से जले हुए लोग हैं। और सबसे बड़ी बात ये है कि आज अगर सोनिया गांधी और राहुल गांधी जमानत पर रिहा हैं तो उसमें डॉ. स्वामी का भी योगदान है। इसलिए कांग्रेस से उनकी बात बनने वाली नहीं थी, चाहे वह कितनी भी कोशिश करते। लेकिन उन्हें कांग्रेस में उम्मीद की किरण क्यों नजर आ रही थी- वह क्यों कोशिश कर रहे थे- इसलिए कि कांग्रेस और गांधी परिवार मोदी के विरोध में किसी भी हद तक जा सकता है। लेकिन अब उनको ममता बनर्जी की तृणमूल कांगेस में नया ठिकाना मिल गया है।
रंग बदलने की नैसर्गिक क्षमता
आपने गिरगिट (कैमेलियन) को देखा होगा। उसमें रंग बदलने की बड़ी अद्भुत क्षमता होती है। वह नैसर्गिक यानी प्राकृतिक है, एक्वायर्ड नहीं है। उसी तरह डॉ. स्वामी में भी पाला बदलने की प्रतिभा बिल्कुल नैसर्गिक है, एक्वायर्ड नहीं। उनके अंदर कुछ है, ऐसा लगता है। गिरगिट (कैमेलियन) के बारे में कहा जाता है कि उसके स्किन की ऊपरी सतह ट्रांसपेरेंट होती है, जिसके नीचे कई लेयर्स होती हैं। उन लेयर्स में जब बॉडी का टैम्परेचर बदलता है या बदलना होता है तो मूड के आधार पर नर्वस सिस्टम स्पेसिफिक क्रोमेटोफोर्स को उसका एक मैसेज भेजता है। जहां मैसेज जाता है उन सेल्स में अलग-अलग रंग भरे हुए होते हैं। और उस मैसेज के कारण उसके सेल्स या तो कॉन्ट्रेक्ट होते हैं या एक्सपेंड होते हैं- यानी सिकुड़ते हैं या फैलते हैं। इससे उसकी स्किन का रंग बदलता है।
आलोचना-प्रशंसा एक साथ
डॉ. स्वामी इंसान हैं। कैमेलियन नहीं हैं- न उस प्रजाति के हैं- लेकिन उसके बावजूद उनमें राजनीतिक रंग बदलने की अद्भुत क्षमता है। दुनिया में आपको कोई ऐसा नेता नहीं मिलेगा, जो बिना चेहरे पर शिकन लाए, पलक झपकाए- किसी भी नेता या राजनीति से बाहर के किसी भी व्यक्ति की उतनी ही शिद्दत से आलोचना कर सकता है- और उसकी उसी तरह से प्रशंसा कर गले भी लगा सकता है। आज वह जिसके प्रशंसक हैं, कल उसके दुश्मन हो सकते हैं। आज जिसके दुश्मन हैं उसको कल बिना किसी लाग-लपेट के गले भी लगा सकते हैं। और इसमें उनको कोई संकोच, कोई शर्म या इस तरह का कोई विचार नहीं आता है। वह जिन लोगों के भी साथ रहे हैं, किसी के साथ उनकी स्थायी दोस्ती नहीं है। जिसके भी बहुत करीब गए, उसके बहुत विरोध में जरूर गए। अगर याद करें तो शायद ही कोई ऐसा अपवाद निकल आए। लेकिन फिलहाल कोई अपवाद भी नजर नहीं आ रहा है।
एक ही आदमी नकेल डाल पाया
एक समय वह संघ के साथ थे। संघ और जनसंघ से जुड़ाव के कारण वह आईआईटी दिल्ली से निकाल दिए गए थे। फिर वे संघ के विरोध में गए तो यहां तक गए कि संघ को सैफरन टैरर और आतंकवादी संगठन बताने तक चले गए। वो फिर संघ के डार्लिंग हो गए। पुनः बीजेपी में आ गए। वह अटल जी के प्रशंसक से विरोधी हुए- यह बात सबको मालूम है। उनको एक ही आदमी नकेल डाल पाया, वह थे चन्द्रशेखर जी। सुब्रमण्यम स्वामी को कोई परास्त या पस्त नहीं कर पाया। कुछ लोगों को उन्होंने जरूर परास्त और पस्त किया। अब दूसरे व्यक्ति होंगे नरेंद्र मोदी, जिनको स्वामी न तो पस्त कर पाए न परास्त, लेकिन कोशिश बहुत की। उन्होंने 2014 में ये माहौल बनाया कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तो उसमें उनका बहुत बड़ा योगदान है। वह ये भी माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे कि रामजन्मभूमि पर अगर भगवान राम का मंदिर बनने जा रहा है तो उसमें भी उनकी बहुत बड़ी भूमिका है। इस तरह का माहौल बनाने में- एक आभासी दुनिया, एक झूठ की दुनिया गढ़ने में- उनका कोई सानी नहीं है। दिमाग से वह बहुत तेज हैं। उनके जैसे दिमाग वाला मुझे नहीं लगता कि भारतीय राजनीति में और कोई है। वह विद्वान हैं- इसमें कोई शक नहीं। लेकिन उनकी विद्वता और इंटलेक्ट- ये सब डिस्ट्रेक्शन में जितना खिलकर आता है- कंस्ट्रक्टिव काम में कभी दिखाई नहीं देता। उनका शायद उसमें मन भी नहीं लगता है।
राज्यसभा की शोभा बने रहने की चाह में…
अब नये ठिकाने की तलाश में वह हाल ही में ममता बनर्जी से मिले और उनकी बहुत प्रशंसा की। उन्होंने ममता बनर्जी की तुलना जेपी, मोरारजी, पीवी नरसिम्हा राव और चंद्रशेखर- इन चार लोगों से की, जिनमें तीन पूर्व प्रधानमंत्री हैं और जेपी के बारे में बताने की जरूरत नहीं है। अब देखिए, ममता बनर्जी से तुलना करना इन चारों लोगों का अपमान है, जबकि डॉ. स्वामी इन चारों लोगों के करीब रह चुके हैं। तो ऐसा नहीं है कि वह उनके बारे में जानते नहीं। जानते हुए भी ऐसा कहना और ज्यादा अपमानजनक है। कोई अनजाने में ऐसा कह दे तो बात समझ में आती है कि कुछ थोड़ा बहुत इधर-उधर से सुना होगा, इसलिए बोल रहे हैं। वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? …क्योंकि अब उनको ममता बनर्जी के करीब जाना है। उनकी राज्यसभा की टर्म 25 अप्रैल 2022 को खत्म हो रही है। तो उनको नया घर चाहिए जहां से वह राज्यसभा में फिर पहुंच सकें। उन्हें समझ आ गया है कि अब उनको कोई मंत्री वगैरह बनाने वाला नहीं है तो राज्यसभा में पहुंचते रहें, ये उनके लिए काफी है। इसी के लिए वह ममता बनर्जी की इतनी प्रशंसा कर रहे हैं।
संकोच किस चिड़िया का नाम है
डॉ. स्वामी को किसी से मिलने में, किसी की प्रशंसा करने में, किसी की निंदा करने में कोई संकोच नहीं होता। वह एक समय भिंडरावाले को भी अपना दोस्त मानते थे। आजकल सोशल मीडिया पर उनके फोटोग्राफ्स चल रहे हैं। भिंडरावाले से जब वह मिले थे, तो उस समय हंसकर बातें करते हुए साथ फोटो खिंचवाते हुए दिख रहे हैं। इस तरह के उनके चित्र आ रहे हैं। लेकिन डॉ. स्वामी को इन बातों से फर्क नहीं पड़ता। बीजेपी के कार्यकर्ताओं से भी ज्यादा समर्थकों का एक वर्ग है जो बहुत खुश है। और वह सोशल मीडिया पर नजर आ रहा है। सबको लग रहा है कि जितनी जल्दी सुब्रमण्यम स्वामी से छुटकारा मिल जाए उतना अच्छा है, क्योंकि वह जिस तरह की नैगेटिविटी (नकारात्मकता) फैला रहे हैं, उससे बीजेपी को ही नुकसान होगा।
एकमात्र आस दिख रही ममता में
अब देखिए, उन पर ममता बनर्जी की इस तारीफ के कारण हमला शुरू हो गया है। उस ममता बनर्जी के कारण, जिसके राज में अभी 6 महीने पहले बीजेपी के समर्थकों, कार्यकर्ताओं की हत्या हुई- बलात्कार हुआ- उनके घर जलाए गए- उनको पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा। हाईकोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है- एसआईटी बैठी है- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट आई है, जिसमें नाम और पते के विवरण के साथ में डिटेल में बताया गया है कि किस परिवार के साथ, किस व्यक्ति के साथ क्या हुआ और कैसे हुआ। और वो प्रथमदृष्टया इसको सही मानकर इसकी जांच और इसका मुकदमा आगे बढ़ा रही है। ममता बनर्जी ने कोशिश की कि ये मुकदमा खत्म हो जाए, उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक कहीं राहत नहीं मिली। लेकिन डॉ. स्वामी तो डॉ. स्वामी हैं। वो तो सुपर जज हैं। सुप्रीम कोर्ट को क्या मालूम, जो डॉ. स्वामी को मालूम हो। तो उन्होंने घोषणा की है कि वह दिसंबर के मध्य में एक टीम लेकर जाएंगे और इस बात की तस्दीक करेंगे कि जो आरोप ममता बनर्जी और उनकी सरकार पर लगाए जा रहे हैं, वो सही हैं या गलत। इस पर वह पश्चिम बंगाल के अधिकारियों से बात करेंगे और पूछेंगे कि वास्तविकता क्या है। तो इसका पहला मतलब तो ये है कि जो बातें-खबरें आ रही हैं, जो मुकदमा अदालत में चल रहा है और जो मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है- इन सब पर डॉ. स्वामी को यकीन नहीं है। पर ऐसा है नहीं। उनको यकीन होगा, लेकिन वह करना नहीं चाहते। अगर वह यकीन कर लें तो फिर ममता बनर्जी की आलोचना करनी पड़ेगी। लेकिन उनको ममता बनर्जी की प्रशंसा करनी है- प्रशंसा ही नहीं करनी उससे आगे जाना है। ममता बनर्जी को हिंसा के इन सब मामलों में क्लीनचिट देना है। देशभर में घूमकर बताना है कि ममता बनर्जी के खिलाफ ये सब एक अभियान का हिस्सा है। ये सब साबित करने के लिए वह अपने हिसाब से ऐसे तथ्य जुटाएंगे जो उनकी थ्योरी को सपोर्ट करते हों। ऐसे में आप मानकर चलिए कि डॉ. स्वामी जब अपनी टीम लेकर दिसंबर के मध्य में पश्चिम बंगाल जाएंगे तो उसकी रिपोर्ट क्या आएगी ? यह पहले से तय है। अब स्वामी को लग रहा है कि ममता बनर्जी ही वो शख्स हैं जो उनको राज्यसभा में भेज सकती हैं।
दीदी को पक्का हिन्दू साबित करने में जुटे
अब देखिए, धीरे-धीरे बीजेपी से उन्होंने कैसे दूरी बनाना शुरू किया है। वह एक साथ कई घर चलते हैं। 2020 में उन्होंने ममता बनर्जी को पक्का हिंदू और दुर्गा-भक्त डिक्लेयर किया था। अपनी बात के समर्थन में कहा कि तारकेश्वर मंदिर को मुक्त कराने के बारे में उन्होंने ममता बनर्जी को लिखा था और उन्होंने उस पर काम किया … तो उससे ममता बनर्जी क्या दुर्गा-भक्त और पक्का हिंदू हो गईं? दो मई के बाद पश्चिम बंगाल में जो हिंदुओं की हत्या हुई- महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ- आगजनी की घटना हुई- भाजपा समर्थकों को घरों से भगाया गया और पुलिस ने कुछ नहीं किया- तो क्या उसके बावजूद ममता बनर्जी पक्का हिंदू और दुर्गा-भक्त हैं? क्या यही पहचान और क्वालिफिकेशन है पक्का हिंदू होने की? डॉ. स्वामी की नजर में तो शायद ऐसा ही है।
बीजेपी के सदस्य और टीएमसी के साथ
आप देखिए, अब वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाएंगे, क्योंकि राज्यसभा की उनकी सदस्यता 25 अप्रैल को खत्म होनी है। अगर वह अभी टीएमसी जॉइन कर लेते तो उनकी राज्यसभा की सदस्यता चली जाती और पांच महीने का घाटा हो जाता। इसलिए उन्होंने टीएमसी की सदस्यता अभी नहीं ली। इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर ने उनसे पूछा कि टीएमसी जॉइन कर रहे हैं, तो उन्होंने कहा ‘जॉइन करने की क्या जरूरत है, मैं तो पहले से ही ममता बनर्जी के साथ हूं।’ अब बताइये कि आप बीजेपी के सदस्य हैं, बीजेपी ने आपको राज्यसभा में भेजा है और आप कह रहे हैं कि मैं पहले से ही ममता बनर्जी के साथ हूं। ऐसे व्यक्ति के राजनीतिक चरित्र के बारे में आप समझ लीजिए और ये ऐसे लोग हैं जो किसी के सगे नहीं होते। ये अपने अलावा किसी के बारे में कुछ नहीं सोचते हैं। वो चाहे सुब्रमण्यम स्वामी हों, यशवंत सिन्हा हों, शत्रुघ्न सिन्हा हों, कीर्ति आजाद हों, इन लोगों को पार्टी कुछ भी दे दे- कुछ भी कर दे- ये संतुष्ट होने वाले नहीं हैं। ये ‘और दे’ – ‘और दे’ वाले लोग हैं। इनका पेट कभी भरता नहीं है। इसलिए सही रणनीति अपनाई नरेंद्र मोदी ने, कि इनका पेट भरने की कोशिश ही मत करो। संघ के दबाव में उन्हें राष्ट्रपति के कोटे से राज्यसभा में भेज दिया गया। बावजूद इसके उनको पार्लियामेंटरी पार्टी का सदस्य नहीं बनाया गया। जो राज्यसभा के नोमिनेटिड मेंबर्स होते हैं, उनको ये सुविधा होती है कि 6 महीने के अंदर वो अगर कोई पार्टी जॉइन करना चाहें तो कर सकते हैं। उन्होंने भाजपा जॉइन कर ली। इसके बावजूद अभी उनको पार्टी की नेशनल एग्जिक्यूटिव का सदस्य जो बनाया गया था, उससे निकाल दिया गया। तो स्वामी को भी मालूम है कि यह अब चला चली की बेला है। बीजेपी में इससे ज्यादा कुछ मिलने वाला नहीं है। तो वह सरकार की आलोचना तो काफी समय से कर रहे हैं।
स्वामी और ममता की जोड़ी!
डॉ. स्वामी आलोचना, प्रशंसा जो भी करते हैं, लक्ष्य को ध्यान में रखकर करते हैं। आलोचना वह दबाव बनाने के लिए करते हैं, कि देखो अगर हमारी बात नहीं मानोगे तो हम ये करेंगे – आपके लिए मुश्किल पैदा करेंगे तो डर जाओगे। तो ये सरकार डरी नहीं। बीजेपी का नेतृत्व डरा नहीं। इसलिए अब उन्होंने दूसरा रास्ता चुना है। डॉ. स्वामी का अगला ठिकाना तृणमूल कांग्रेस होने जा रहा है। अब इसमें शक की गुंजाइश बहुत ही कम रह गई है, बशर्ते कि उनको कोई इससे बड़ा ऑफर दे दे, जो कि लगता नहीं कहीं से मिलने वाला है। तो आप अंदाजा लगाइये कि डॉ. स्वामी और ममता बनर्जी की क्या जोड़ी बनेगी। अब उसके बारे में ज्यादा कुछ कहना ठीक बात नहीं होगी। देखना ये है कि ममता बनर्जी डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी से कैसे डील करती हैं? वह मोदी और बीजेपी को गाली दिलवाने के लिए उनका इस्तेमाल तो करेंगी ही- लेकिन जब स्वामी की अपेक्षा पर वो खरी नहीं उतरेंगी तब क्या होगा- उस समय देखने लायक दृश्य होगा। तब तक के लिए इंतजार करते हैं।