शिवचरण चौहान।
निष्पक्ष चुनाव कराना भारत के चुनाव आयोग के लिए हरदम चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। ऐसे में जब निष्पक्ष चुनाव को लेकर सवाल उठते हैं तो टीएन शेषन (15 दिसंबर 1932 – 10 नवंबर 2019) की बहुत याद आती है। तिरू नेल्लेई नारायण नैयर शेषन एक कड़क, ईमानदार और निष्पक्ष चुनाव मुख्य चुनाव आयुक्त थे। उन्होंने भारत को ही नहीं सारी दुनिया को बता दिया था कि निष्पक्ष चुनाव क्या होते हैं? चुनाव आयोग के अधिकार क्या होते हैं? टी एन शेषन आज इस दुनिया में नहीं है। किंतु उनकी कड़क और ईमानदार निष्पक्ष अधिकारी की छवि आज तक कायम है। टी एन शेषन, भारत के दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त थे। इनका कार्यकाल 12 दिसम्बर 1990 से लेकर 11 दिसम्बर 1996 तक था। इनके कार्यकाल में स्वच्छ एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिये नियमों का कड़ाई से पालन किया गया जिसके साथ तत्कालीन केन्द्रीय सरकार एवं ढीठ नेताओं के साथ कई विवाद हुए।

भूल पाना मुश्किल

Photos: Remembering former CEC TN Seshan -- known for poll reforms | Hindustan Times

निष्पक्ष चुनाव और चुनाव सुधारों के कारण टीएन शेषन भारत में इतिहास कायम कर गए हैं उन्हें भूल पाना तब तक मुश्किल है जब तक उनसे भी बड़ा निष्पक्ष ईमानदार और कर्मठ चुनाव आयुक्त नहीं आ जाता। 8 दिसंबर 1990 को जब चंद शेखर सरकार ने राजीव गांधी की संस्तुति पर टी एन शेषन को 6 साल के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था तब शेषन ने कहा था- ‘खुदा इन्हें माफ करना… यह नहीं जानते कि यह लोग क्या कर रहे हैं।‘ और शेषन ने दिखा दिया कि उनका चयन सरकार के लिए एक भूल थी। इतना कड़क ईमानदार चुनाव आयुक्त तो कोई राजनीतिक दल नहीं चाहता था।
15 मई 1933 को केरल के पालघाट में जन्मे टी एन शेषन मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़े थे। पहली बार आईपीएस की परीक्षा उत्तीर्ण हुए किंतु पुलिस की नौकरी नहीं की। बाद में उन्होंने आईएएस की परीक्षा बहुत अच्छे नंबरों से पास की। प्रमाण पत्र में उनकी उम्र 15 दिसंबर 1932 दर्ज की गई थी जिसका वह जिंदगी भर विरोध करते रहे। तमाम बड़े पदों पर रहते हुए शेषन ने अपनी कड़क और ईमानदार निष्पक्ष अधिकारी की छवि हरदम बनाए रखी।

सब कुछ बदल गया

शेषन के चुनाव आयुक्त बनने तक चुनाव आयोग सिर्फ पोस्ट ऑफिस जैसा कार्य करता था। केंद्र में जिसकी भी सरकार होती उसी के अनुसार चुनाव आयोग बोली बोलता था। राजधानियों में जिसकी सत्ता होती है उसके मुख्यमंत्री, मंत्री, डीएम एसडीएम अन्य अधिकारी जैसा चाहते वैसा चुनाव कराते थे। शेषन के चुनाव आयुक्त बनते ही सब कुछ बदल गया।

सबके ताने सहे पर झुके नहीं

I&B Minister Smriti Irani falls victim to TN Seshan death hoax week after news debunked, deletes tweet

टी एन शेषन को भारतीय और विदेशी मीडिया ने क्या क्या नहीं कहा। तुनक मिजाज, अड़ियल, तानाशाह, पागल मूर्ख, कुत्ता। राजनीतिक दलों में कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी आदि पार्टियों ने शेषन का विरोध किया पर शेषन नहीं माने और उन्होंने भारत में गरीब मतदाता, लाचार मतदाता को आगे लाकर खड़ा कर दिया। चुनाव में धांधली होते देख शेषन ने यहां तक कह दिया था कि वह चुनाव प्रक्रिया ठप कर देंगे।

निकाल दी बाहुबलियों की हेकड़ी

Lalu Prasad Yadav, Mulayam Singh all set to establish family ties - The Economic Times

शेषन ने अपने मुख्य चुनाव आयुक्त कार्यकाल में सभी बाहुबलियों की हेकड़ी निकाल दी। बिहार में बूथ लूटना और भोट छापना इतिहास की बातें हो गई थीं। लालू जैसे नेता टी एन शेषन से थरथर कांपते थे। यूपी में मुलायम सिंह यादव बूथ कैपचरिंग लिए विख्यात थे। लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव और नगर निगम के चुनाव तक में भी बहुत धांधली बाजी, घपले होते थे। शेषन ने चुनाव आयोग को इतने अधिकार दे दिए कि चुनाव आयोग की पूरे भारत में जय जयकार होने लगी। लोगों को वोट देने का अपना अधिकार वापस मिल गया। लोक चुनाव प्रेक्षकों से डरने लगे थे।
यह बात सच है कि चुनाव आयोग की कोई मशीनरी नहीं होती। चुनाव आयोग स्थानीय प्रदेशों की पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के सहारे ही चुनाव संपन्न करवाता है। उस समय तक ऐसा चलन था कि केंद्र में अथवा जिस प्रदेश में जिस किसी भी दल की सरकार होती थी सरकारी अधिकारी कर्मचारी उसी सरकार के पोलिंग एजेंट की तरह काम करते थे। सरकार के विशेष कृपा पात्र बनकर चुनाव में धांधली करवा कर अच्छी-अच्छी पोस्टिंग पाते थे और लाभ कमाते थे। सरकारी कर्मचारियों पर अधिकारियों पर निष्पक्ष रहने का अंकुश लगाना बहुत कठिन काम होता है। सरकारी कर्मचारी अधिकारी आम मतदाता के हक में डाका डाल लेते हैं। और लोकतंत्र कलंकित होता है। अब भी कहीं कहीं ऐसी सामंती व्यवस्था के निशान दिख जाते हैं।

चुनाव सुधार

पहले एक मुख्य चुनाव आयुक्त होता था किंतु टी एन शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनते हैं चुनाव सुधार होने लगे और गरीब मतदाता की सुनी जाने लगीं। भारत सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त पर अंकुश लगाने के लिए दो चुनाव आयुक्तों की और नियुक्त कर दी थी। तब से दो चुनाव आयुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ काम करते हैं। चुनाव आयुक्त सरकार का चपरासी नहीं होता है। जब चुनाव आयोग देश में चुनाव कराए तो उसकी जिम्मेदारी बनती है कि देश में लोकतंत्र कायम रहे और निष्पक्ष मतदान हो। मतदाता अपने मनपसंद का उम्मीदवार चुन सके।

लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी

आज एक बार फिर चुनाव आयोग और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया की कसौटी है। निष्पक्ष चुनाव प्रणाली की मांग सभी विपक्षी दल करते हैं किंतु जब वे सरकार में होते हैं तो चुनाव आयुक्त को चपरासी की भूमिका में देखना चाहते हैं। चुनाव आयोग की भूमिका चुनाव के दौरान महत्वपूर्ण होती है और वही लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी है। निष्पक्ष चुनाव आयोग के बिना किसी भी देश में सच्चा लोकतंत्र कायम नहीं हो सकता।