आज क्या है यह इस लघुलेख के अंत में बताऊंगा
—कुमार विश्वास
आज क्या तारीख़ है? आज क्या हुआ था? भारत के युयुत्सु स्वभाव,हमारी माँओं की अदम्य चारित्रिक दृढ़ता और अविचल पवित्रता का कोई विशेष पर्व, कोई विशेष दिन?
अजी जाने दो! भई कौन याद रखे ! हाँ, सौ बार के रीटेक व चेहरे की दो सौ ग्राम पुताई से ‘नायक’ बने, रूपहली दुनिया के किसी स्वयंनिर्मित खोखले खोलजीवी तथाकथित ‘स्टार’ की तीसरी पत्नी के दूसरे पुत्र ने डाइपर भी बदला हो तो हम एक हज़ार साल के गुलामों में अभी तक शेष अंदर की ग़ुलामी के कारण यह दिन ज़रूर एक त्योहार होता ! आज क्या है यह इस लघुलेख के अंत में बताऊँगा! ठीक लगे तो तो आप भी इसे सबको बता भर देना बस!
दुनियादारों को मेरी बातें, कई बार पागलपन से भरी लगती हैं ! पर मैं भी क्या करूँ? इसी पागलपन से ही तो शायद मेरा अस्तित्व है! यहीं पागलपन जीने के लिए तो शायद ईश्वर ने मुझे इस जन्म में भेजा है ! मेरे आदरणीय अग्रज और मेरे प्रति बेहद सम्मान-भरा स्नेह रखनवाले मेवाड़ राजवंश के कुलकवि, चित्तौड़गढ़ निवासी वीर-रस के उत्साहधर्मी कविश्रेष्ठ पं. नरेंद्र मिश्र की वर्षों पूर्व मंच पर सुनी यह कंठस्थ कविता एकबार जब मैंने अपने घरवालों को अपनी स्टडी में बैठकर सुनाई तो हमारे ही घर के एक चपल-बालक ने इसे उसी समय रिकार्ड करके इंटरनेट पर डाल दिया था! यह वह समय था जब हमारे समय के एक प्रतिभावान निर्देशक श्री संजयलीला भंसाली इसी विषय पर एक फ़िल्म बना रहे थे और मीडिया की महान छिद्रान्वेषी गुणधर्मिता के कारण यह विषय अकारण ही जनमानस के ग़ुस्से, नाराज़गी, तोड़फोड़ व नकारात्मकता को उद्दीप्त कर रहा था!
मैंने तब भी यह कहा था कि ये घंटे दो घंटे की फ़िल्में हमारे इतिहास की उलझन नहीं हैं बल्कि अपना इतिहास सही ढंग से न पढ़ने-पढ़ाने के कारण ही हमारी पीढ़ियाँ इस उलझन में हैं! फिर से कह रहा हूँ, सही इतिहास पढ़ते रहिए, उसकी तटस्थ समीक्षा करते रहिए! इतिहास पढ़ोगे-जानोगे तो न केवल वर्तमान अपितु भविष्य का मार्ग भी सुगम व सहज हो सकेगा!
अस्तु, आज छब्बीस अगस्त है! महान अपराजेय दुर्ग चित्तौड़गढ का पहला जौहर आज ही के दिन सन 1303 में हुआ था! सोलह हज़ार वीरांगनाओं ने हमारी माँ और चितौडवंश-जगदंबा महारानी पद्मिनी के संकल्पित नेतृत्व में स्वयं को अग्नि में समर्पित किया था! धर्म की पताका के बहाने देशों की संप्रभुता को कुचलने वाले एक अश्लील हिंसक के निकृष्ट इरादों को अपनी इच्छाशक्ति का दम दिखाया था! मैं जब-जब चितौड़गढ़ जाता हूँ, दुर्गदर्शन के दौरान कुछ भी बोल ही नहीं पाता, सिर्फ़ आँखें बरसती रहती हैं! हमारी माँओ! आप सबको आपके इस अकिंचन-वंशज का सादर प्रणाम ! मुझे गर्व है कि मेरे पूर्वजों की थाती ऐसी उज्ज्वल और कीर्तिकारिणी है !
“पाग केसरी,फाग केसरी,
तलवारों का राग केसरी !
खिलजी मरते तक न भूला,
हिंदुस्तानी आग केसरी…!”