प्रदीप सिंह।
जवाहरलाल नेहरू के बयानों, उद्धरणों से किया कांग्रेस को ध्वस्त। बताया कि कांग्रेस न होती तो इस देश में क्या-क्या नहीं हुआ होता, नेहरू को भी किया एक्सपोज।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दो भाषण एक सोमवार सातफरवरी को लोकसभा में और दूसरा मंगलवार आठ फरवरी को राज्यसभा में, दोनों भाषणों को लंबे समय तक याद किया जाएगा, पढ़ा जाएगा और उसको उद्धृत किया जाएगा। इसलिए नहीं कि प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने अपनी सरकार का, अपनी पार्टी का पक्ष या अपना पक्ष रखने की कोशिश की। देश की राजनीति में कहां समस्या है, उसकी जड़ कहां है, कहां से समस्या शुरू हुई, क्या गलतियां हुई, उसे कैसे रोका जा सकता था, उसका निदान कैसे हो सकता है उस बारे में बात की। और सबसे बड़ी बात, सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के बारे में उन्होंने जो कहा। चुनावी राजनीति में किसी भी राजनीतिक दल की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा यह होती है कि एकदिन वह सत्ता में आए, उसको सरकार चलाने का मौका मिले। प्रधानमंत्री ने कहा कि ऐसा लगता है कि कांग्रेस पार्टी अगले सौसाल तक सत्ता में आना नहीं चाहती है। मुझे लगता है कि कांग्रेस की जो स्थिति बन गई है उसमें मोदी की इस बात से आधे से ज्यादा कांग्रेसी भी सहमत होंगे।
टुकड़े-टुकड़े गैंग की लीडर कांग्रेस
उन्होंने कहा कि इस पार्टी को अर्बन नक्सल्स ने टेकओवर कर लिया है। बिल्कुल सही बात है। आप राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा के भाषण सुनिए, उनके बयान देखिए, उनके फैसले देखिए, आप को साफ अर्बन नक्सल्स की छाप नजर आएगी। कांग्रेस पार्टी उनका एजेंडा चला रही है आपको यह साफ नजर आएगा। उन्होंने लोकसभा में कहा कि कांग्रेस पार्टी ने टुकड़े टुकड़े गैंग की लीडरशिप ले ली है। जो बातें उन्होंने कही है उनके बारे में कह सकते हैं कि वह कांग्रेस के विरोध में है, कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई लड़ कर यहां पहुंचे हैं, यह सब बातें कह सकते हैं कि कांग्रेस का विरोधी होने के नाते वे कांग्रेस पर हमला कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने जो बातें कही हैं उनमें से एक को भी आप तथ्यात्मक रूप से गलत नहीं कह सकते। लेकिन बात केवल इतनी नहीं है। कभी-कभी कोई नेता या कोई व्यक्ति एक वाक्य बोलता है जो उसको बड़ा भारी पड़ जाता है। राज्यसभा में मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक वाक्य बोला जो पूरी पार्टी पर भारी पड़ गया। मलिकार्जुन खड़गे ने कहा कि अगर कांग्रेस इस देश में नहीं होती तो क्या होता। उनका मतलब था कि देश कहां चला जाता, बीजेपी और इस तरह की ताकतें देश को कहां ले कर चली जाती, कांग्रेस ने देश को बचाया हुआ है। फिर जो प्रधानमंत्री शुरू हुए। उन्होंने महात्मा गांधी की इस बात से शुरुआत की कि कांग्रेस को विसर्जित कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी की इच्छा के विपरीत इसे विसर्जित नहीं करने का क्या नुकसान हुआ।
अगर कांग्रेस नहीं होती तो…
उन्होंने कहा कि कांग्रेस न होती तो इस देश में इमरजेंसी का कलंक न लगता। अगर कांग्रेस न होती तो 50 से ज्यादा चुनी हुई सरकारें बर्खास्त न की जाती। अगर कांग्रेस न होती तो सिखों का नरसंहार न होता। अगर कांग्रेस न होती तो कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़कर निकलना नहीं पड़ता। लंबी सूची है जो उन्होंने गिनाई और कहा कि कांग्रेस के होने के कारण यह सब हुआ।उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस न होती तो इस देश में वंशवाद न होता। वंशवाद की राजनीति डेमोक्रेसी के लिए सबसे बड़ा खतरा है।उन्होंने संघीय ढांचे की बात की। उन्होंने अपने भाषण में कहीं भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नाम नहीं लिया। लेकिन उन्होंने जो मुद्दे उठाए थे उसका चुन-चुन कर और पूरी शिद्दत से जवाब दिया। पूरी ताकत से जवाब दिया और जवाब ऐसा कि कांग्रेस में अगर थोड़ी भी शर्म हो तो उसे इस बात पर शर्मिंदा होना चाहिए कि उसके नेता ने सदन में ऐसी बात क्यों बोली। लेकिन ऐसा कुछ नहीं होगा। पूरे दोसाल बाद बोले हैं। पूरीमहामारी के दौरान उन्होंने किसी पार्टी पर, किसी राज्य सरकार पर कोई आक्षेप नहीं किया। एक वाक्य एक शब्द भी नहीं बोला लेकिन संसद में उन्होंने बोला।उन्होंने तब बोला जब लग रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर भी जाने वाली है। उन्होंने कहा कि पहली लहर के दौरान, लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों को उकसा कर मुंबई से, दिल्ली से, देश के दूसरे शहरों से निकलने को कांग्रेस ने मजबूर किया। उन्होंने अरविंद केजरीवाल का भी नाम लिया। दिल्ली में लाखों लोगों को ले जाकर उत्तर प्रदेश की सीमा पर छोड़ दिया। इन दोनों सरकारों ने पूरी कोशिश की पैनडेमिक के दौरान देश में अराजकता फैल जाए, हाहाकार मच जाए। उन्होंने कहा कि ये ऐसे लोग हैं जो देश में कुछ बुरा हो जाए, खराब हो जाए तो खुश होते हैं। अब आप सोचिए कि किसी देश का कोई नागरिक हो सकता है जो अपने देश में कुछ बुरा हो रहा हो तो वह खुश हो जाए। लेकिन इन पार्टियों ने किया।
सरकार बर्खास्त करने वाले कर रहे फेडरलिज्म की बात
उन्होंने वैक्सीन को लेकर कहा कि किस तरह की अफवाह फैलाई गई जबकि यह इतनी बड़ी उपलब्धि है। दुनिया के किसी भी देश से बड़ी उपलब्धि है। दुनिया के किसी देश ने यह उपलब्धि हासिल की होती तो उसका एक-एक व्यक्ति इसका गुणगान कर रहा होता। लेकिन हमारा विपक्ष और भाजपा के विरोध का जो पूरा इकोसिस्टम है उसमें क्रेडिट देना तो छोड़िए, तारीफ करना तो छोड़िए, पूरी कोशिश की कि मामला पटरी से उतर जाए। वैक्सीनेशन शुरू हुआ तो कह रहे थे कि यह काम एक साल में कैसे पूरा हो सकता है,तीन साल लगेंगे,पांच साल लगेंगे, यह नहीं है, वह नहीं है। फेडरलिज्म की बात पर भी उन्होंने कहा कि फेडरलिज्म की बात वो नहीं कर सकते जो चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त करते रहे हों।टीएन जैय्या का जिक्र किया उन्होंने। एक प्रधानमंत्री के बेटे एयरपोर्ट पर पहुंचे और वे एयरपोर्ट पर आवभगत की व्यवस्था से खुश नहीं हुए तो सरकार बर्खास्त कर दी। मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया लेकिन मैं बता रहा हूं कि वे राजीव गांधी के बारे में कह रहे थे। कर्नाटक के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री वीरेंद्र पाटील की सरकार को जब बर्खास्त किया गया था तब वे बीमार थे। कांग्रेस के लिए या किसी भी पार्टी के लिए सबसे ज्यादा सीटें जिता कर लाने वाले मुख्यमंत्री थे वे। इस तरह के तमाम उदाहरण उन्होंने दिए। 50 के दशक में सीपीएम की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। प्रधानमंत्री ने पूरे दौर का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि 60 से 80 के दशक के बीच में यह पूरा परिवार आ जाता है। उन्होंने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार ने कैसे क्या-क्या किया। प्रधानमंत्री लगातार कांग्रेस पर हमलावर थे। उन्होंने कांग्रेस के इस आरोप को भी खारिज किया कि भारतीय जनता पार्टी संविधान बदलने वाली है। उन्होंने कहा कि हम संविधान बदलने वाले नहीं हैं लेकिन हम मानते हैं कि देश संविधान से ऊपर है। हम देश के बारे में सोचते हैं।
नेहरू पर पहली बार हुए हमलावर
ये सब बातें तो आपने सुनी होगी अगर आपने प्रधानमंत्री का भाषण सुना होगा, अखबार में पढ़ा होगा या सोशल मीडिया पर पढ़ा होगा। मैं बात कर रहा हूं उसकी जो प्रधानमंत्री ने इन दोदिनों में किया। एक, कांग्रेस पार्टी के सबसे बड़े आइकॉन जवाहर लाल नेहरू के उद्धरण देकर कांग्रेस को ध्वस्त किया। महात्मा गांधी कांग्रेस के आइकॉन नहीं हैं। कांग्रेस के लिए परिवार के अलावा कुछ नहीं है, कोई नहीं है। कांग्रेस के लिए जो कुछ है वह इसी परिवार के लोग हैं और उसमें सबसे कद्दावर नेता जवाहरलाल नेहरू हैं। उन्हीं के उद्धरण देकर कांग्रेस को ध्वस्त किया। चाहे महंगाई की बात हो, चाहे फेडरलिज्म की बात हो। राहुल गांधी ने जो कहा था कि यह देश राज्यों का संघ है राष्ट्र नहीं है, उस पर उन्होंने नेहरू के बयान सुनाए कि नेहरू ने क्या कहा था। उसके बाद महंगाई पर उन्होंने 15 अगस्त,1951 को लाल किले से दिए गए जवाहरलाल नेहरू के भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि कैसे उन्होंने कहा था कि किसी देश में कुछ होता है तो उसका असर देश पर पड़ता है, यहां महंगाई पर पड़ता है। तब इस तरह से ग्लोबल इकोनॉमी जुड़ी हुई नहीं थी। ग्लोबलाइजेशन नहीं हुआ था। जवाहरलाल नेहरू का यह वीडियो मौजूद है,उसे आप सुन सकते हैं। जब कोरोना की वजह से पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संकट हो, महंगाई दुनिया भर में बढ़ रही है, भारत में भी बढ़ रही है। ऐसा नहीं है इस पार्टी का शासन है इसलिए बढ़ रही है। फिर उन्होंने याद दिलाया कि 2004 से 2014 तक जब यूपीए का शासन था तब महंगाई की क्या स्थिति थी। तब महंगाई की चिंता क्यों नहीं की। तब इससे ज्यादा महंगाई थी। इसी तरह उन्होंने गोवा का जिक्र किया, गोवा मुक्ति संग्राम का जिक्र किया और कहा कि नेहरू के अहंकार के कारण वहां के आंदोलन में गोली चली, हिंसा हुई।
और इसी से शुरू कर रहा हूं अपनी बात की दरअसल प्रधानमंत्री ने क्या किया।प्रधानमंत्री ने कांग्रेस के सबसे मजबूत किले को ध्वस्त कर दिया। जवाहरलाल नेहरू से बड़ा कांग्रेस के पास कोई आइकॉन नहीं है। आजादी के बाद और इस समय की सोनिया गांधी की कांग्रेस के पास। आजादी के समय के कांग्रेस की बात मत कीजिए, वह तो कब की खत्म हो चुकी है। जवाहरलाल नेहरू की छवि बहुत बड़े डेमोक्रेटिक, इंटरनेशनल ब्रांड, डेमोक्रेसी में यकीन रखने वाले, सामाजिक समता में यकीन रखने वाले, इकोनॉमी को, खासतौर से पब्लिक सेक्टर इकोनॉमी को ऊपर ले जाने वाले, देश में बड़े-बड़े कारखाने लगाने वाले, बांध बनवाने वाले की रही है। नरेंद्र मोदी ने जिस तरह से जवाहरलाल नेहरू को ध्वस्त किया है अभी तक किसी भी नेता ने ऐसा नहीं किया। पुराने नेताओं के बारे में कोई बोलता था तो राजीव गांधी के खिलाफ बोलता था, इंदिरा गांधी के खिलाफ बोलता था, इमरजेंसी को लेकर, सिखों के नरसंहार को लेकर बातें होती थी। नेहरू के बारे में सभी बचकर बोलते थे। या तो उनकी प्रशंसा करते थे या फिर थोड़ा बगल से निकल जाते थे। प्रधानमंत्री ने पहली बार जवाहरलाल नेहरू की गढ़ी हुई छवि को ध्वस्त कर दिया। उसमें उन्होंने इतने छेद कर दिए हैं कि अब उसका जुड़ना बहुत कठिन है। लगभग असंभव है।
अपनी छवि के कैदी थे नेहरू
उन्होंने कहा कि वह देश के बारे में नहीं सोचते थे, अपनी छवि के बारे में सोचते थे। वह अपनी छवि के कैदी थे।कौन सा काम करने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी छवि कैसी होगी इसका ख्याल रखते थे। गोवा के मामले में, कश्मीर के मामले में, तिब्बत के मामले में, चीन से संबंध के मामले में उन्होंने यही किया। तमाम उदाहरण उठाकर देख लीजिए नेहरू ने हमेशा अपनी अंतरराष्ट्रीय छवि की चिंता की क्योंकि वह खुद को एक ग्लोबल लीडर मानते थे। उनका भारत की संस्कृति से कोई जुड़ाव नहीं था। मैं पहले बता चुका हूं कि कैसे डॉक्टर लोहिया ने कहा था कि एंग्लो-इंडियन संस्कृति में पढ़े, पले-बढ़े होने के कारण नेहरू का भारतीय संस्कृति से जमीनी जुड़ाव उस तरह से नहीं था। उनकी सारी शिक्षा विदेश में हुई थी। आजादी के आंदोलन के दौरान भी जेल से निकलने के बाद उनका सबसे ज्यादा समय विदेशों में बीता। तो नेहरू की जो यह छवि बनी हुई थी उसको मोदी ने ध्वस्त कर देश का नैरेटिव बदल दिया है। जो नेहरूवादी छाया थी नेहरू के जाने के बाद भी, यहां तक कि भारतीय जनता पार्टी पर भी। आपने वह किस्सा सुना होगा अटल जी का। जब प्रधानमंत्री बने तो संसद की गैलरी में नेहरू की जो फोटो लगी हुई थी, दोदिन बाद उन्होंने देखा कि वह हट गई है। उन्होंने पूछा कि क्यों हटा दिया गया, फिर उसे लगवाया। मोदी यह नहीं करेंगे क्योंकि अतीत में जो गलत हुआ है मोदी को उसे सही करना है। यह हमला सीधा-सीधा नेहरूवियन फिलॉसफी पर थी, सोच पर थी। वह जो नैरेटिव था उस पर था।
परिवार के लिए देश के नायकों को भूले
आपने इस देश के नायकों को भुला दिया सिर्फ एक परिवार के लिए। नेहरू ने यह किया अपनी छवि के लिए ताकि उनकी छवि सबसे ऊपर, सबसे बड़ी, सबसे उजली दिखाई दे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ जो कुछ हुआ, यह मैं कह रहा हूं मोदी ने नहीं कहा, सरदार पटेल, मदन मोहन मालवीय, के.एम. मुंशी के साथ हुआ। इसकी सूची बड़ी लंबी है। डॉक्टर अंबेडकर के बिना तो यह सूची पूरी ही नहीं होगी। जिस तरह का अपमानजनक व्यवहार इन लोगों के साथ हुआ,इनका जिस तरह से तिरस्कार हुआ, ये आजादी के नायक थे। किसी मामले में ये सभी नेहरू से कद में कम नहीं थे। लेकिन नेहरू ने अपने 17 साल के प्रधानमंत्रित्व काल में इन सबको बौना बनाने की या इन सबको हाशिये पर धकेलने की कोशिश की। राष्ट्रीय स्मृति से इनको बाहर करने की कोशिश की ताकि नेहरू का कद सबसे बड़ा नजर आए। परिवार ही देश है, यह कांग्रेस पार्टी की देन है। यह जो नेहरू-गांधी परिवार है यही देश है,इसे मानकर चलिए आप तो आप देश को सही समझ रहे हैं। राहुल गांधी का जिक्र मैं नहीं करना चाहता हूं लेकिन उनकी समझ में ये बातें कभी आ ही नहीं सकती। राहुल गांधी किस कल्चर में पले बढ़े हैं यह तो बताना भी मुश्किल है। उनका केवल जन्म भारत में हुआ है। उनका भारत से और भारतीयों से कोई लेना-देना नहीं है।यह दुर्भाग्य है कि यह शख्स देश की सबसे पुरानी पार्टी में मुख्यमंत्री तय करता है, अध्यक्ष तय करता है, पदाधिकारी तय करता है और कोई पद नहीं लेता है क्योंकि पद के साथ जवाबदेही आती है। जवाबदेही से भागने वाला ऐसा नेता मैंने तो अपने जीवन में न देखा, न सुना और न पढ़ा।
नेहरू को किया पूरी तरह एक्सपोज
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन दोदिनों में जिस तरह से मुद्दों को उठाया है, जिस तरह से एक झूठा आवरण या कहें कि संकोच का जो एक आवरण बना हुआ था उसको हटा दिया और बताया कि सच्चाई क्या है। उन्होंने लोकसभा में एक शेर सुनाया था जिसकी आखिरी लाइन थी,“इनको अगर दर्पण दिखाओगे तो ये दर्पण तोड़ देंगे”। कांग्रेस पार्टी वही है। कांग्रेस पार्टी सच्चाई देखने को तैयार नहीं है। स्वीकार करने की बात तो बाद में आती है, पहले देखने को तो तैयार हों। कांग्रेस पार्टी पर इतना बड़ा हमला मुझे नहीं लगता कि इससे पहले कभी हुआ होगा। बड़ा हमला इसलिए कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री कांग्रेस की खामियों को अक्सर उजागर करते रहे हैं लेकिन नेहरू को बचाकर। हमेशा कोशिश करते रहे कि नेहरू को छोड़ दें लेकिन इन दोदिनों में उन्होंने इस संकोच को भी त्याग दिया। जो सच है वह सबके सामने रखा। नेहरू को इस तरह से एक्सपोज इससे पहले किसी ने नहीं किया था। उन्होंने राज्यसभा और लोकसभा में यह साबित किया कि जवाहरलाल नेहरू के लिए देशहित बाद में था, अपना हित अपनी छवि पहले थी। इस तरह की बात बोलने का साहस आज तक किसी भारतीय राजनेता ने नहीं किया। प्रधानमंत्री पद पर बैठे हुए किसी व्यक्ति की तो बात ही छोड़ दीजिए। इसलिए मैं कह रहा हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ये दोनों भाषण इतिहास में दर्ज होंगे। लंबे समय तक शोधकर्ता इस पर अध्ययन करेंगे, इन को उद्धृत किया जाएगा और इनके आधार पर समकालीन राजनीति की व्याख्या की जाएगी। इन दोनों भाषणों को अगर आपने नहीं सुना है तो आपको सुनना चाहिए।