गुवाहाटी हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला- धार्मिक शिक्षण संस्थानों को सरकारी मदद संविधान का उल्लंघन।
प्रदीप सिंह।
गुवाहाटी हाई कोर्ट ने 4 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसला दिया है। यह फैसला आगे चलकर पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था, खासतौर से धार्मिक शिक्षा व्यवस्था में बड़ा परिवर्तन ला सकता है। यह परिवर्तन अंततः देश में शांति और सांप्रदायिक सौहार्द की दिशा में क्रांतिकारी कदम हो सकता है। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार के वर्ष 2020 के उस कानून को संविधान सम्मत पाया है जिसमें कहा गया था कि सरकारी मदद से चलने वाले मदरसों का राष्ट्रीयकरण हो जाएगा और सरकार उसका अधिग्रहण कर लेगी। वे सामान्य स्कूल की तरह चलेंगे, बाकी स्कूलों की तरह उसमें भी सारे विषय पढ़ाए जाएंगे और उसी तरह से उनमें परीक्षा होगी। असम के मौजूदा मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वसरमा उस समय शिक्षा मंत्री थे। इस कानून के पीछे उन्हीं की सोच थी और वही यह कानून लेकर आए थे।
सरकारी मदद से मजहबी शिक्षा अवैध
इस कानून पर बहुत हंगामा मचा। कहा गया कि यह मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार है, उनके फंडामेंटल राइट्स के खिलाफ है। इसके खिलाफ 13 याचिकाएं डाली गई। कोर्ट में भी याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 29 और 30 का उल्लंघन है। इसके तहत जो फंडामेंटल राइट्स मिले हुए हैं उसका उल्लंघन है। इसके अलावा अल्पसंख्यकों को जो एजुकेशनल इंस्टीट्यूशन चलाने की छूट है उसमें भी दखलंदाजी है। हाई कोर्ट ने ये सारी दलीलें नामंजूर कर दी। हाई कोर्ट ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता संविधान की मूल भावना में है और किसी भी धर्मनिरपेक्ष देश में सरकारी पैसे से धर्म की पढ़ाई नहीं की जा सकती तो फिर सरकार के पैसे इन्हें क्यों चलाया जाना चाहिए। हाई कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 28 (1) का हवाला दिया जिसके तहत कहा गया है सरकारी मदद से या सरकारी पैसे से कोई भी मजहबी शिक्षा नहीं दी जा सकती है। किसी भी संस्थान में अगर मजहबी शिक्षा दी जाती है और उसको सरकारी अनुदान मिलता है तो यह संविधान का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं की मांग को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने असम सरकार के कानून को संविधान सम्मत बताया।
मदरसे पढ़ाते हैं नफरत का पाठ
मदरसों के कारण देश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ता है। यहां जो मजहबी शिक्षा दी जाती है उसके कारण शांति भंग होती है। सबसे बड़ी बात यह है कि मजहबी शिक्षा चाहे वह किसी भी धर्म की क्यों न हो, मैं किसी एक धर्म की बात नहीं कर रहा हूं, वह सरकारी पैसे से क्यों होना चाहिए। इसलिए जरूरी है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कानून बनाने से पहले सरकार यूनिफॉर्म एजुकेशन कोड लागू करे। पूरे देश में एक तरह की शिक्षा दी जाए, एक तरह की शिक्षा व्यवस्था हो और धार्मिक शिक्षण संस्थान बंद होने चाहिए। देश में “वन कंट्री वन करिकुलम (एक देश एक पाठ्यक्रम)” का कानून बनना चाहिए और सभी शिक्षण संस्थानों में एक ही तरह का पाठ्यक्रम होना चाहिए। अब सवाल यह है कि मदरसों में पढ़ाया क्या जाता है? मदरसों में पढ़ाया जाता है कुरान, हदीस, शरिया और इस्लामिक इनवेजन के बारे में। उसकी गौरव गाथा बताई जाती है। इन मदरसों में गैर-मुस्लिमों से नफरत करना सिखाया जाता है, खासतौर से मूर्ति पूजकों से। उनको दोजख में जगह मिलेगी, उनको जीने का कोई अधिकार नहीं है, इस तरह की चीजें मदरसों में पढ़ाई जाती हैं। कहीं भी इस तरह की पढ़ाई क्यों होनी चाहिए? भारत में मदरसों का इतिहास करीब एक हजार साल पुराना है यानी उतना ही पुराना है जितना भारत में इस्लाम के आने का है। जब से इस्लाम भारत में आया है तब से मदरसे हैं। इसके अलावा मकतब हैं। मकतब यानी जो मस्जिद से जुड़े हुए मदरसे होते हैं उनको मकतब कहा जाता है। पढ़ाया सब जगह वही जाता है। अब आप समझिए कि देश में कितनी बड़ी संख्या में मदरसे हैं और कितना धन हमारी आपकी टैक्स का जाता है मदरसों को मदद के नाम पर। उस टैक्स के पैसे से पढ़ाया यह जाता है कि गैर-मुस्लिमों से नफरत कीजिए, वे सब नफरत के काबिल हैं, काफिर हैं।
सुधार नामुमकिन
अगर कोई सोचता है कि इसमें सुधार हो सकता है या इसे सुधारा जा सकता है तो यह संभव नहीं है। यूपीए सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री रहे अर्जुन सिंह ने वर्ष 2009 में एक स्कीम लागू की “स्कीम फॉर प्रोवाइडिंग क्वालिटी एजुकेशन इन मदरसाज एंड मकतब्स”। इसके नाम पर सरकारी पैसा दिया गया और कहा गया कि इन मदरसों में हिंदी, अंग्रेजी, साइंस, सोशल साइंस, मैथमेटिक्स यह सब भी पढ़ाया जाएगा। लेकिन बात यह है कि जो मदरसे में पढ़ते हैं वे विज्ञान सम्मत बातों को मानेंगे या इस्लाम सम्मत बातों को मानेंगे। वे किस पर यकीन करेंगे। इसलिए इनमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है। इनको खत्म करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है। 2009 में शुरू हुई है यह स्कीम आज भी 18 राज्यों में चल रही है। इसके तहत मदरसों को 1138 करोड़ रुपये के अनुदान दिए जा चुके हैं। इस स्कीम का फायदा 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिला। उस चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 22 सीटें मिलीं जो 1985 के बाद सबसे बड़ी संख्या थी। देश के दूसरे राज्यों में भी इसका फायदा कांग्रेस को मिला। जो मुसलमान कांग्रेस से दूर हो गए थे वे इसी मदरसा पॉलिसी के कारण फिर एक बार कांग्रेस के पास वापस आए और कांग्रेस के सीटों की संख्या 143 से बढ़कर 2009 में 206 हो गई। इस पॉलिसी का पूरा फायदा कांग्रेस पार्टी को मिला लेकिन देश को क्या मिला?
मजहबी शिक्षा से पूरी दुनिया त्रस्त
मदरसों की शिक्षा से जो मिल रहा है उससे पूरी दुनिया त्रस्त है। इन मदरसों में जो पढ़ाया जाता है उससे आतंकवादी और आतंकवाद समर्थक तैयार होते हैं। सोचने की बात है कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि भारत में लगभग हर दंगा शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद ही शुरू होता है, दंगों का इतिहास उठा कर देख लीजिए। आखिर मस्जिदों में क्या बताया जाता है, क्या पढ़ाया जाता है। अकेले उत्तर प्रदेश में ही आठ हजार मदरसों में 18 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। वे क्या सीखते हैं, जीवन में कैसे अमल में लाते हैं उस शिक्षा को, उस पूरी शिक्षा से सिर्फ सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने, हिंदू-मुसलमानों के बीच में भेद पैदा करना, नफरत पैदा करना, हिंसा के लिए उकसाना, यही सब पढ़ाया जाता है। इसलिए दुनिया भर में मदरसों के खिलाफ, इस तरह की मजहबी शिक्षा के खिलाफ एक माहौल बन रहा है। भारत को भी इसके बारे में सोचना चाहिए कि अगर देश में अमन चैन कायम करना है, अगर देश में सांप्रदायिक सौहार्द स्थापित करना है तो मदरसों को खत्म करना जरूरी है। मदरसों और मौलवियों पर जब तक नियंत्रण नहीं होगा तब तक इस देश में सांप्रदायिकता का जो जहर है उसे फैलने से रोका नहीं जा सकता।
आतंकवाद से जुड़े हैं तार
मदरसे आतंकवादियों के ब्रीडिंग ग्राउंड हैं। दुनिया के किसी भी आतंकवादी को उठा कर आप देख लीजिए, उसके अतीत पर नजर डालेंगे तो कहीं न कहीं किसी न किसी मदरसे से वह जुड़ा मिलेगा और सबसे ज्यादा देवबंद से। देवबंद से मजहबी शिक्षा लिए हुए लोगों की संख्या आतंकवादियों में सबसे ज्यादा है। मैंने पहले भी कहा था कि पाकिस्तान तक भारत से यह कह चुका है कि “आप हमारी बात करते हैं। आप ही के मदरसों से आए हुए लोग, देवबंद से आए हुए लोग हमारे यहां हैं। उन्होंने यहां आकर मदरसे खोले हैं।” ऐसे में यह जरूरी है कि सारे मदरसों का सरकार अधिग्रहण कर ले। इनको सामान्य शिक्षण संस्थान, स्कूलों में तब्दील कर दिया जाए। इनमें उसी तरह से पढ़ाई हो जैसे दूसरे स्कूलों में होती है, सभी वर्गों, सभी धर्मों के बच्चों को इनमें एडमिशन मिले। मजहबी शिक्षा किसी भी सूरत में बंद होनी चाहिए और सरकारी पैसे से तो बिल्कुल नहीं होनी चाहिए। वन नेशन वन करिकुलम बनाना जरूरी है। मुझे लगता है कि गुवाहाटी हाई कोर्ट के फैसले से इसका रास्ता खुलेगा। दूसरे राज्यों को इससे प्रेरणा मिलेगी कि वे अपने यहां सरकारी मदद से चलने वाले मदरसों को बंद करें। हालांकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जरूर आएगा। ऐसा नहीं है कि यह अंतिम निर्णय है लेकिन जिस आधार पर गुवाहाटी हाई कोर्ट ने फैसला दिया है वह संविधान की कसौटी पर पूरी तरह से खरा उतरने वाला दिखाई दे रहा है। इसलिए अब जरूरी है कि राज्य सरकारें और केंद्र सरकार इसके बारे में सोचें, कदम उठाएं। इन मदरसों से जो जहर फैलाया जा रहा है, नफरत का जो बीज बोया जा रहा है उसे रोकना बहुत जरूरी है। देश को तोड़ने में, देश में अलगाववाद पैदा करने में इन मदरसों की बहुत बड़ी भूमिका है। इन मदरसों में जो शिक्षा दी जाती है उससे कोई देशभक्त नहीं निकल सकता है। आप इसे सरकारी मदद से चलाएंगे तो इसका मतलब है कि आप एक तरह से आत्महत्या कर रहे हैं। आप अपनी मौत का सामान जुटा रहे हैं। सरकारी मदद देकर, हमारी गाढ़ी कमाई से लिए गए टैक्स का पैसा देकर इन मदरसों को क्यों चलाया जाना चाहिए? इस बात पर बहस होनी चाहिए, चर्चा होनी चाहिए और सरकार को इस पर जल्द से जल्द कानून बनाना चाहिए।
हमने सीएए के दौरान जो देखा उसके बाद तो सरकार की आंखें और खुल जानी चाहिए कि किस तरह से राष्ट्रीय हित के मुद्दों का इस्तेमाल राष्ट्र के विरोध में होता है। मदरसों को लेकर सरकार को अपनी नीति पर तत्काल पुनर्विचार करना चाहिए, यूपीए सरकार के समय जो स्कीम बनी थी उसको तुरंत खत्म करना चाहिए। इस तरह के कठोर कदम उठाए बिना आगे का रास्ता आसान नहीं होने वाला है। अगर यह सब अभी नहीं किया गया तो एक ऐसा समय भी आ सकता है जब आप ऐसा करने की स्थिति में ही नहीं होंगे। वह समय आए, उससे पहले नींद से जाग जाना चाहिए। मदरसों के खिलाफ एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलना चाहिए। जो नहीं जानते हैं उन लोगों को बताया जाना चाहिए कि मदरसों में क्या पढ़ाया जाता है और इनका बंद होना क्यों जरूरी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बारे में सरकार जागेगी और जल्दी ही कुछ न कुछ जरूर करेगी। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने एक रास्ता दिखा दिया है।