दिनेश श्रीनेत ।
‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ से भारतीय निर्देशकों को स्क्रीन पर कहानी कहने का हुनर सीखना चाहिए। सिनेमा में पर्सनल टच लाने का सलीका अब लगभग सभी निर्देशकों से छूटता जा रहा है। कॉरपोरेट के दखल ने सिनेमा को भी एक फैक्टरी से निकले प्रोडक्ट में बदल दिया है। संजय लीला भंसाली यथार्थवादी निर्देशक नहीं हैं। मगर लोकेशन पर खास ध्यान देना, क्लासिक एलिमेंट ‘यूनिटी ऑफ टाइम’, ‘प्लेस’ और ‘एक्शन’ का ख्याल रखना, पोशाक, परिवेश और अभिनय के माध्यम से एक वातावरण रचना- ये सब कुछ ऐसी खूबियां हैं जो सिर्फ संजय की फिल्मों में ही देखने को मिलती हैं। 

विषय और कथ्य के प्रति कमिटमेंट

Gangubai Kathiawadi: Ajay Devgn's Salary Is More Than Half Of What Alia  Bhatt Is Getting For A Very Less Screen-Space?

भंसाली से लेफ्ट और राइट दोनों की भुकुटियां तनी रहती हैं। उनकी खूब आलोचना होती है, उनकी रचनात्मकता को न तो गंभीर सिनेमा के दायरे में शामिल किया जाता है और न ही वे पूरी तरह से व्यावसायिक फिल्ममेकर हैं। इसके बावजूद उन्होंने अपनी शर्तों पर भव्य और सफल फिल्में बनाई हैं। भंसाली में कई खूबियां उन्हें भारतीय सिनेमा के सार्वकालिक बेहतर निर्देशकों में शामिल करती हैं। इसमें सबसे अहम है अपने विषय और कथ्य के प्रति उनका गहरा कमिटमेंट- जो उनको बाकी निर्देशकों से अलग करता है। चाहे वो डिसेबिलिटी पर आधारित उनकी त्रयी हो, ‘खामोशी द म्यूज़िकल’, ‘ब्लैक’ और ‘गुज़ारिश’ या फिर क्लासिक लिटरेचर के भारतीय रूपांतरण की त्रयी हो, ‘सांवरिया’, ‘गोलियों की रासलीला- रामलीला’ और ‘देवदास’ या कुछ दिनों पहले रिलीज़ ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ हो। भंसाली अपने विषय को उस तरह से नहीं देखते, जैसी सामान्य निगाह देखती है, उसे देखने का भंसाली का अपना अंदाज़ होता है। अपने इसी अंदाज़ के कारण उनकी सबसे ज्यादा आलोचना होती है।

रचनात्मक आधार

Hum Dil De Chuke Sanam - Most Watched Scenes | Salman Khan, Aishwarya Rai &  Ajay Devgn | Part 1 - YouTube

क्लासिक्स पर आधारित फिल्मों के अलावा भी उनकी ज्यादातर फिल्मों का एक रचनात्मक आधार होता है। ‘हम दिल दे चुके’ सनम गुजराती के नाटककार झावरचंद मेघानी के नाटक और बंगाली लेखिका मैत्रेयी देवी के उपन्यास ‘न हन्यते’ पर आधारित थी। ‘ब्लैक’ हेलन केलर की ऑटोबायोग्राफी पर थी तो ‘बाजीराव मस्तानी’ मराठी उपन्यासकार ‘एनएस ईमानदार’ के उपन्यास ‘राउ’ पर आधारित थी। ‘पद्मावत’ इसी नाम से मलिक मुहम्मद जायसी के महाकाव्य पर थी और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ एस हुसैन जैदी की किताब ‘माफिया क्वीन्स ऑफ मुंबई’ पर आधारित है।
Bajirao Mastani musical in the works | Entertainment News,The Indian Express

विपरीत जाने का साहस

Madhuri Dixit-Aishwarya Rai's 'Dola Re' song from 'Devdas' needed 16 days  of shooting- Exclusive! | Hindi Movie News - Times of India

वे अपनी फिल्मों के कथ्य की बुनियादी भावभूमि से बिल्कुल अलग या विपरीत जाने का साहस करते हैं। जैसे मूक-बधिर पात्रों के जीवन पर आधारित फिल्म में 10 गाने रखना, वो भी तब जब यह माना जा रहा था कि अब हिंदी फिल्मों में गानों का चलन खत्म हो रहा है। देवदास जैसी सादगी भरी प्रेमकथा को भव्य पीरियड ड्रामा में बदल देना, दोस्तोएवस्की की उदासी से भरी प्रेम कहानी को दीपावली जैसे जगमगाते काल्पनिक देशकाल से परे शहर की पृष्ठभूमि में दिखाना, शेक्सपियर की जानी-पहचानी रोमांटिक ट्रेजेडी रोमियो-जूलियट को चटख रंगों से भरे मेलोड्रामा में बदल देना। सिर्फ इतना ही नहीं वे अपने अभिनेताओं के साथ भी स्क्रीन पर विरोधाभास रचते हैं। अपनी खास धाराप्रवाह डायलॉग डिलीवरी के लिए पहचाने जाने वाले नाना पाटेकर को गूंगा बना देना, एक्शन हीरो अजय देवगन को रोमांटिक रोल देना, अपनी फिटनेस और डांस के लिए लोकप्रिय ऋतिक रोशन को व्हीलचेयर पर बैठा देना और मासूम चेहरे वाली आलिया भट्ट को रेड लाइट एरिया की माफिया क्वीन का रोल देना।
Nana Patekar Birthday Nana Patekar Superhit Roles In His BlockBuster Movies  | Nana Patekar Birthday: बेहद लाजवाब हैं नाना पाटेकर, 'गूंगे पिता' से लेकर  'गैंगस्टर' तक इन किरदारों से जीता ...

नाटकीय तनाव बनाए रखा

Who is Gangubai Kathiawadi, whose husband sold her at a brothel for Rs 500?  | Bollywood News – India TV

अब बात करते हैं ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ की। पश्चिमी सौंदर्यशास्त्र मानता है कि कुरूपता को जब कला के माध्यम से चित्रित किया जाता है तो उसका अपना अलग सौंदर्यबोध होता है। एस्थेटिक्स भंसाली के सिनेमा का मूल तत्व है और ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ भी इसका अपवाद नहीं है। सेक्सवर्कर्स के जीवन की कहानी कहते हुए वे फिल्म में सेक्स या न्यूडिटी दिखाने के लालच में बिल्कुल नहीं पड़े। इसकी जगह वे वातावरण के निर्माण पर जोर देते हैं। कोठा, सिनेमाहॉल, एक बड़े हॉल या आंगन में बेसुध और अस्तव्यस्त सोती औरतें, गलियां, दुकानें – ये सब कुछ सेट लगाकर सजीव किया गया है। उन्होंने कहानी का नाटकीय तनाव बनाए रखा है। गंगूबाई अपनी इंस्टिंक्ट पर काम करती है और साहस करके कहीं भी कूद पड़ने से सफल होती जाती है, इसे निर्देशक ने बखूबी स्थापित किया है। प्रेमी के साथ खिलवाड़ का भाव, घर पर फोन से बात करना, रजिया बाई से मुठभेड़ और नेहरू से मुलाकात के दृश्य अच्छे बन पड़े हैं। रंगों के प्रयोग को लेकर भी संजय बहुत सचेत रहते हैं। इसे ‘ब्लैक’, ‘रामलीला’ और ‘पद्मावत’ में देखा जा सकता है। यहां पर भी धूसर और सफेद के कंट्रास्ट को उन्होंने बखूबी उभारा है।

भव्यता पर कलात्मकता को तरजीह

Gangubai Kathiawadi Review: Alia Bhatt owns the show in Sanjay Leela  Bhansali's ruthless world | PINKVILLA

फिल्म की एक और खूबी है इसकी कोरियोग्राफी – जिसमें भंसाली को हमेशा महारत हासिल रही है। आम तौर पर ‘देवदास’ या ‘बाजीराव मस्तानी’ के नृत्य दृश्यों का जिक्र होता है मगर भंसाली की इस कला को गुजारिश फिल्म के गीत “उड़ी नींदे आंखों से जुड़ी रातें ख्वाबों से” को देखना चाहिए। इस गीत के कोरियोग्राफर का कहना था कि भंसाली गीत को अलग और अनोखा बनाना चाहते थे। कोरियोग्राफर ने पूछा कि क्या हम इसमें थोड़ा सा स्पेनिश टच दे सकते हैं और एक कच्चेपन का एहसास दे सकते हैं। उन्हें यह विचार पसंद आया, इसलिए पूरे नृत्य को यथासंभव नेचुरल दिखाने की कोशिश थी। डांस सीक्वेंस इस मायने में बहुत अलग था कि दर्शकों ने ऐश्वर्या राय को इस तरह के स्टेप्स करते हुए कभी नहीं देखा था। उनको नृत्य सीखने में देर नहीं लगी लेकिन उसे पूरा करने और चरित्र के मूड में आने में कुछ समय लगा। संजय लीला भंसाली ने कहा कि गाइड में वहीदा रहमान के चरित्र के लिए यह मेरी श्रद्धांजलि थी। ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ के में भी गीतों का फिल्मांकन भव्य कम मगर कलात्मक ज्यादा है। ज्यादातर नृत्य लंबे टेक में फिल्माए गए हैं और कैमरा सेंटर में रहते हुए गोल-गोल घूमता रहता है। इसी तरह से ‘जब सैंया’ गीत का फिल्मांकन सिर्फ एक लंबे शॉट में किया गया है जो मुश्किल तो है मगर स्क्रीन पर उसका एक अलग प्रभाव पैदा होता है।

महान भले ना हो पर यादगार है फिल्म

फिल्म के मूल विचार, प्लॉट और चरित्र चित्रण में बहुत सी कमियां हैं, जिन्हें संजय लीला भंसाली अपने भव्य चित्रण और एस्थेटिक सेंस से ढक देते हैं। उनका जिक्र करने की जरूरत इसलिए नहीं है कि ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ एक महान फिल्म भले न हो मगर संजय लीला की अपनी खुद की शैली में बनी एक यादगार फिल्म जरूर है, जिसे इसकी कलात्मकता के लिए एक बार अवश्य देखा जाना चाहिए।
(लेखक टाइम्स इंटरनेट में हेड, लैंग्वेजेज एंड स्पेशल प्रोजेक्ट हैं। आलेख सोशल मीडिया से)