राजीव रंजन।
आप उनकी कला के मुरीद हो सकते हैं, उनसे जुड़े विवादों के कारण उनके कटु आलोचक हो सकते हैं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। शेन कीथ वार्न ऐसे ही थे। भले ही टेस्ट क्रिकेट में विकेट लेने के मामले में दूसरे नंबर पर हैं, लेकिन वह विश्व के महानतम स्पिनर हैं। आंकड़े उनकी जादूगरी की मुकम्मल तस्वीर पेश नहीं कर सकते। जिसने भी उन्हें गेंदबाजी करते देखा है, वह इस बात को महसूस कर सकता है। उनकी कलाइयों में जादू था। उनके बारे में कहा जाता है कि वह शीशे की सतह पर भी गेंद को स्पिन करा सकते थे।
शेन वार्न का देहावसान एक युग का अवसान है। विश्व क्रिकेट में जब वार्न का पदार्पण हुआ था, तब लेग स्पिन का जादू छीज रहा था। वार्न ने गेंद को लेग स्पिन कराने की अपनी क्षमता से इस विधा को पुनर्जीवन दिया। उनके तरकश में कई तीर थे- लेग स्पिन, फ्लिपर, गुगली… लेकिन लेग स्पिन उनका मुख्य हथियार था। इसी हथियार से उन्होंने सबसे ज्यादा शिकार किए। किसी भी खिलाड़ी को बड़ा होने के लिए एक खेल की जरूरत होती है और खेल को भी लोकप्रिय होने के लिए नायकों की जरूरत होती है। शेन वार्न और क्रिकेट का रिश्ता भी ऐसा ही है।
निराशाजनक शुरुआत
कुछ लोग आते ही छा जाते हैं, लेकिन शेन वार्न के साथ ऐसा नहीं था। अगर उनके पहले टेस्ट मैच को देखा जाए, तो शायद ही कोई अनुमान लगा पाता कि एक दिन वे विज्डन की “20वीं सदी के पांच सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर” की उस सूची में स्थान बना पाएंगे, जिसमें सर डॉन ब्रैडमैन, सर गैरी सोबर्स, सर जैक हॉब्स, सर विवियन रिचर्ड्स जैसे लीजेंड शामिल हैं। 2 से 6 जनवरी, 1992 तक खेले गए सिडनी टेस्ट से उन्होंने अपने टेस्ट करियर का आगाज किया था। इसमें उन्होंने पहली पारी में 150 रन खर्च किए और सिर्फ एक सफलता पाई। उन्हें रवि शास्त्री का विकेट मिला था, जो दोहरा शतक बनाने के बाद आउट हुए थे। एडिलेड में हुए अगले टेस्ट में उन्होंने 78 रन खर्च किए और कोई विकेट नहीं मिला। शुरुआती दो टेस्टों में उन्होंने 228 खर्च किए, मात्र एक विकेट के लिए।
महानता की पहली झलक
शेन वार्न के महानता की पहली झलक मिली उनके करिरयर के तीसरे टेस्ट में, श्रीलंका के खिलाफ। हालांकि उस टेस्ट की पहली पारी में भी उन्हें कोई विकेट नहीं मिला था, 107 रन खर्च करने का बावजूद। लेकिन दूसरी पारी में उन्होंने भविष्य की झलक दिखलाई। जीत के लिए 181 रनों का पीछा करते हुए श्रीलंका को और 31 रनों की जरूरत थी। तीन विकेट शेष थे। वार्न के हाथ में गेंद आई और उन्होंने 14 रनों में श्रीलंकाई पारी को समेट दिया। उनका गेंदबाजी प्रदर्शन था- 5.1 ओवर, 3 मेडन, 11 रन और 3 विकेट। वार्न के लेगस्पिन का पहली बार सबसे तीखा स्वाद चखा था वेस्टइंडीज ने। मेलबर्न टेस्ट (26-30 दिसंबर, 1992) की दूसरी पारी में वार्न ने 52 रन देकर सात विकेट लिए और अपना पहला “मैन ऑफ द मैच” अवॉर्ड जीता। यह उनका पहला बॉक्सिंग डे टेस्ट था।
बॉल ऑफ द सेंचुरी
इसके बाद आई “बॉल ऑफ द सेंचुरी”, जिसने वार्न के जादू को स्थापित कर दिया। वार्न की पहली इंग्लैंड सीरीज का पहला टेस्ट (3-7 जून, 1993)… मैनचेस्टर का ओल्ड ट्रैफर्ड ग्राउंड… इंग्लैंड की पहली पारी… एशेज सीरीज में शेन वार्न की पहली गेंद… उनके सामने दिग्गज माइक गैटिंग, जिन्होंने स्वीप मार- मार कर भारत को 1987 के विश्वकप का सेमीफाइनल हरवा दिया था। तीन-चार कदम के छोटे-से रनअप से वार्न बॉलिंग क्रीज की ओर चले। अपनी कलाइयों से गेंद को रिलीज किया। गेंद लेग स्टंप के काफी बाहर पिच हुई। गैटिंग ने विकेट को गार्ड किया और गेंद को छोड़ दिया। और तभी टप्पा खाने के बाद गेंद दो से ढाई फीट टर्न हुई तथा गैटिंग के ऑफ स्टंप को चूमते हुए निकल गई। गैटिंग अवाक् रह गए। भरोसा ही नहीं हुआ कि वे आउट हो चुके हैं। वे पिच पर कुछ क्षणों तक खड़े रहे। उन्हें उम्मीद ही नहीं थी कि लेग स्टंप के इतना बाहर गिरने वाली गेंद ऑफ स्टंप ले उड़ेगी। विकेट के पीछे खड़े इयान हिली भी कम हैरान नहीं थे। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में इससे पहले, बॉल को इतना स्पिन हुए शायद ही देखा गया हो।
भारतीय बल्लेबाजों के आगे हुए लाचार
वार्न मैच दर मैच, साल दर साल महानता की सीढ़ियां चढ़ते गए। लेकिन हर खिलाड़ी के जीवन में एक दौर आता है, जब उसका आभामंडल थोड़ा क्षीण होता है। वार्न भी अपवाद नहीं थे। 1998 से 2001 के बीच कंधे की चोट और भारत के खिलाफ खेले गए मैचों ने उनके करियर को इस मुकाम पर ला दिया था कि वे बेहद साधारण गेंदबाज लगने लगे थे। भारत के खिलाफ उन्होंने कुल 14 टेस्ट खेले थे, जिनमें से 9 उन्होंने इन्हीं तीन वर्षों के दौरान खेले थे। स्पिन के खिलाफ शानदार बल्लेबाजी करने वाले भारतीय बल्लेबाजों ने उन्हें एक साधारण लेग स्पिनर बना दिया था। सचिन तेंदुलकर ने जिस तरह से उनकी गेंदों की धुलाई की थी, वह कोई नहीं भूल सकता। वार्न भी नहीं भूले थे। उन्होंने कहा कि सचिन उनके सपनों में आते हैं और उनकी गेंदों पर आगे बढ़ कर छक्के लगाते हैं। वार्न का सबसे खराब गेंदबाजी औसत भारत के खिलाफ ही रहा है, 47 से भी ज्यादा का। वहीं बाकी दूसरी टीमों के खिलाफ उनका औसत 30 से भी कम का रहा है। लेकिन वार्न इस दौर से बाहर निकले और टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज भी बने। उनका रिकॉर्ड तीन साल 39 दिनों तक कायम रहा, जिसे बाद में मुथैया मुरलीधरण ने तोड़ा। शेन वार्न बड़े मैचों के बड़े खिलाड़ी थे। एशेज और विश्व कप में उनके प्रदर्शन से इसकी तस्दीक की जा सकती है। वार्न के नाम बल्लेबाजी में भी एक अनोखा रिकॉर्ड है- बिना शतक के टेस्ट क्रिकेट में सबसे ज्यादा रन बनाने का रिकॉर्ड।
क्रिकेट का माराडोना
शेन वार्न जितना अपने खेल की वजह से प्रसिद्ध और लोकप्रिय हुए, उतने ही अपनी आदतों के कारण विवादों में भी रहे। उनका नाम अकसर विवादों से जुड़ता रहा। उसी वजह से कप्तान के लिए सबसे उपयुक्त पात्र होते हुए भी वे ऑस्ट्रेलिया के कप्तान नहीं बन पाए। उनके बारे में कहा जाता है- “द बेस्ट कैप्टन ऑस्ट्रेलिया नेवर हैड” यानी ऑस्ट्रेलिया का सर्वश्रेष्ठ कप्तान, जो ऑस्ट्रेलिया की कप्तानी नहीं कर सका। शेन वार्न और विवादों का साथ चोली-दामन जैसा था। उन्हें शराब और सिगरेट की बहुत बुरी लत थी। ड्रग्स और अनुशासनहीनता का खामियाजा उन्हें क्रिकेट से एक साल का प्रतिबंध झेल कर चुकाना पड़ा।
उनके कई महिलाओं से विवाहेत्तर सम्बंध रहे। इसकी वजह से 2006 में उनकी शादी टूट गई। कुछ महीने पहले उन पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज हुई थी, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि 2005 में उनकी पत्नी सिमोन को उनके अन्य महिलाओं से सम्बंधों के बारे में पता चला और एक साल बाद उनका तलाक हो गया। इसके करीब पांच साल बाद उनकी जिंदगी में ब्रिटिश अभिनेत्री एलिजाबेथ यानी लिज हर्ले आईं, जिनका कुछ ही माह पहले भारतीय मूल के अमेरिकी व्यवसायी अरुण नायर से तलाक हुआ था। वार्न और लिज ने सगाई भी कर ली, लेकिन दोनों का का सम्बंध लंबा नहीं चला। 2013 में दोनों के रास्ते अलग हो गए।
वर्ष 2000 में एक इंग्लैंड की एक नर्स ने वार्न पर अश्लील मेसेज भेजने, गंदी बातें करने और शारीरिक सम्बंध बनाने के लिए दबाव डालने का आरोप लगाया, जिसकी वजह से उन्हें उपकप्तानी से हाथ धोना पड़ा। कुछ और महिलाओं ने भी उन पर इस तरह के आरोप लगाए। 2006 में एक काउंटी मैच से पहले वार्न एक होटल में रात भर दो मॉडलों के साथ रहे और अगली सुबह मैच में घातक गेंदबाजी कर विपक्षी टीम को ध्वस्त कर दिया। ये तस्वीरें जब एक मैगजीन में छपीं, तो हंगामा हो गया। उन पर स्पॉट फिक्सिंग का साया भी पड़ा। उन्होंने खुद स्वीकार किया था कि एक भारतीय बुकी को उन्होंने और मार्क वॉ ने पिच तथा मौसम के बारे में जानकारी दी थी।
विवाद कभी भी वार्न के खेल को प्रभावित नहीं कर पाए, उनकी जीवनशैली में भी कोई बदलाव नहीं आया। वे बिंदास जिंदगी जीते रहे, आखिरी दम तक। सबसे बेपरवाह होकर। वे “क्रिकेट के माराडोना संस्करण” थे।
भारत से खास रिश्ता
शेन वार्न भारत में बहुत लोकप्रिय थे। वे भी मानते थे कि भारत से उनका रिश्ता बहुत खास था और भारत में उन्हें बहुत प्यार मिला। इस रिश्ते को और खास बना दिया इंडियन प्रीमियर लीग ने। वे आईपीएल की नीलामी में खरीदे जाने वाले पहले खिलाड़ी थे। वे आईपीएल के पहले सीजन में राजस्थान रॉयल्स के कप्तान भी थे और कोच भी। यह टीम एक बेहद युवा और अनुभवहीन टीम थी। इसमें वार्न, शेन वाटसन और मोहम्मद कैफ के अलावा सारे युवा खिलाड़ी थे, जिनमें बहुत कम का नाम लोगों को पता था। वार्न ने अपने नेतृत्व और मार्गदर्शन में इस टीम को आईपीएल का पहला चैम्पियन बनवाया। आज दुनिया के दिग्गज ऑलराउंडर रवींद्र जडेजा भी उसी टीम का हिस्सा थे और उनकी प्रतिभा को निखारने, आत्मविश्वास देने में वार्न ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। जडेजा ने वार्न को याद करते हुए कहते हैं कि वार्न के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर करना उनके लिए सौभाग्य की बात थी।
कितने ही युवाओं ने शेन वार्न से प्रेरित होकर लेग स्पिनर बनने का फैसला किया। वे आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरित करते रहेंगे। उनकी देह का अवसान हुआ है, उनकी कला अक्षुण्ण है। अलविदा वार्नी!
शेन वार्न का गेंदबाजी करियर एक नजर में
मैच पारी विकेट औसत सर्वश्रेष्ठ (पारी में) सर्वश्रेष्ठ (मैच में)
टेस्ट 145 273 708 25.41 8/71 12/128
वनडे 194 191 293 25.73 5/33 5/33
शेन वार्न का बल्लेबाजी करियर एक नजर में
मैच पारी रन उच्चतम औसत
टेस्ट 145 199 3154 99 17.32
वनडे 194 107 1018 55 13.05
(आंकड़ों का स्रोत ईएसपीएनक्रिकइन्फो.कॉम है।)