रतन मणि लाल।
उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव के परिणाम कई मायनों में ऐतिहासिक है और इसके बाद देश व प्रदेश में कई राजनीतिक कीर्तिमान स्थापित हुए हैं। उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास में 37 वर्ष बाद पहली बार किसी सत्तारूढ़ राजनीतिक दल ने सत्ता में वापसी की है। प्रदेश में 1985 के बाद हुए हर विधान सभा चुनाव में तत्कालीन सत्तारूढ़ दल की हार होती थी और किसी अन्य दल या गठबंधन को सरकार बनने का मौका मिलता था। अब, 2022 के इस चुनाव में पहली बार, 2017 में प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को पुनः लोगों का समर्थन मिला है।
चुनाव प्रचार के दौरान सभी दलों की ओर से आरोप, प्रत्यारोप, वादे और दावे इस्तेमाल किये गए थे, और नेताओं ने महंगाई, महिलाओ के विरुद्ध हिंसा, कोविड संकट, बेरोजगारी, सरकारी अधिकारियों व कर्मचारियों की बेरुखी, जातिवाद, ध्रुवीकरण, पक्षपात, विकास कार्य, सरकारी योजनाओं के लाभ और आवारा पशुओं जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया था। इन सबके बीच, कुछ ऐसे भी विषय हैं जिनका प्रभाव परिणाम पर पड़ा है, भले ही वे चर्चित मुद्दे न बने हों। ये कुछ वे बातें हैं जो मतदान करते समय लोगों के ध्यान में आईं और उससे मतदान प्रभावित हुआ।
व्यक्तित्व की तुलना
इनमे मुख्य मंत्री का व्यक्तित्व एक बड़ा विषय है। प्रदेश वासियों के लिए पूर्व मुख्य मंत्रियों में मायावती और अखिलेश यादव के व्यक्तित्व और कार्यशैली अभी याद में ताजा हैं, और इनकी तुलना वर्तमान मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ से करना आसान था। योगी के कुशल प्रशासक, निर्णायक स्वभाव, अपराध-नियंत्रण और तुष्टीकरण-विरोधी छवि उनके पक्ष में गई। उत्तर प्रदेश में विगत कई वर्षों में भेदभाव, पक्षपात और निर्णय लेने में देरी जैसे कारणों की वजह से सरकार- खास तौर पर मुख्य मंत्री- के प्रति असंतोष बढ़ते देर नहीं लगती थी। मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके विपरीत, शीघ्र निर्णय लेने के अपने स्वभाव की वजह से लोगों के बीच अपनी जगह बनाई। उनका परिवार से जुड़ा न होना, किसी भी प्रकार के संबंधियों या पार्टी के गुट से नजदीकियाँ न होना भी उन्हे एक निष्पक्ष नेता के तौर पर पहचान दे गया।
ध्रुवीकरण की सीमाएं
ध्रुवीकरण की कोशिशें उत्तर प्रदेश की राजनीति में हमेशा होती आई हैं। लेकिन इस चुनाव प्रचार के दौरान, इस तरह का कोई प्रत्यक्ष प्रयास- जैसे दंगे आदि- नहीं दिखा। अयोध्या में श्री राम मंदिर का निर्माण चूंकि हो ही रहा है, इसलिए इसे भी मुद्दे के तौर पर उठाने का कोई औचित्य नहीं था। इसके स्थान पर उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के सरकार के प्रयासों की चर्चा सत्तारूढ़ नेताओं द्वारा की गई। ऐसा लगता है कि जमीनी स्तर पर ध्रुवीकरण करने की बहुत ज्यादा गुंजाइश अब शायद न रह गई हो, क्योंकि लोक सभा चुनाव में भाजपा की जीत के लिए नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ज्यादा महत्वपूर्ण है, न कि तथाकथित हिंदुत्व के मुद्दे।
इसी तरह, योगी आदित्यनाथ की पाँच साल तक चली सरकार के दौरान अल्पसंख्यक समुदाय की प्रताड़ना कोई बड़ा मुद्दा नहीं बनी। यह एक वजह हो सकती है कि सिर्फ मुस्लिम हितों को आधार बनाकर चुनाव लड़ने वाली पार्टी आल-इंडिया एमआईएम को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।
केंद्र का सहयोग
उत्तर प्रदेश में वर्ष 2017 के पहले, कई दशकों तक राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव एक सामान्य स्थिति रही है। पूर्ववर्ती सरकारों के कार्यकाल के दौरान तो योजनाओं के क्रियान्वयन, बजट आवंटन, धनराशि के आहरण आदि विषयों पर तो केंद्र व प्रदेश के बीच आरोप-प्रत्यारोप तक लगाए जाते थे। ऐसा मुख्यतः इसीलिए होता था कि दोनों जगहों पर अलग राजनीतिक दलों की सरकारें होती थीं, और दोनों ही विपरीत विचारधाराओं वाली होती थीं। ऐसा 2017 में कई वर्षों बाद हुआ कि उत्तर प्रदेश और केंद्र में भाजपा की सरकारें थीं, और परियोजनाओं के अनुमोदन से लेकर केन्द्रीय समर्थन जैसे मामले बहुत कम समय में निबट जाते थे। इसकी वजह से उत्तर प्रदेश में कई बड़ी योजनाओं पर काम तेजी से शुरू हुआ और पूरा भी हुआ। इसे ‘डबल एंजिन’ की सरकार का नाम दिया गया और इसका लाभ आम लोगों को समझाने में भाजपा सफल रही।
योजनाओं के लाभार्थी
अब यह सर्वविदित हो चला है कि केंद्र और प्रदेश की तमाम योजनाओं का लाभ सीधे लोगों को मिलना भाजपा सरकार के पक्ष में गया। इनमे प्रधानमंत्री आवास, किसान सम्मान निधि, वरिष्ठ नागरिक पेंशन, स्कूल के बच्चों के लिए यूनिफॉर्म के लिए धनराशि, रसोई गैस सिलिन्डर और सामूहिक विवाह योजना आदि प्रमुख हैं। इन योजनाओं का लाभ धनराशि के रूप में लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे भेजा गया, जिससे किसी भी प्रकार के बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं रह गई। इन सबके अलावा, कोविड काल के दौरान शुरू किया गया मुफ़्त राशन वितरण- जो अभी भी जारी है- भी भाजपा के पक्ष में बड़ा मुद्दा बना।
अपराध नियंत्रण
संगठित अपराधियों के खिलाफ चलाया गया अभियान और इसकी वजह से प्रदेश में कानून व्यवस्था पर जो प्रभाव पड़ा, वह लोगों द्वारा बहुत सराहा गया। शहरों और गावों में रह रहे लोग यह स्वीकार करते हैं कि अपराध और आपराधिक माहौल में कमी आई है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर भी लोगों में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा, जो महिलाओं द्वारा बढ़े हुए मतदान के रूप में दिखाई दिया। पिछले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश में कई कुख्यात अपराधियों के खिलाफ चलाया गया अभियान, और ऐसे तत्वों की संपत्ति जब्त करके उसे ध्वस्त करने की कार्यवाई भी सही संदेश देने में सफल रहा।
आगे का सफर और चुनौतियां
आने वाले पाँच साल भाजपा सरकार के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि उन्हे अपने संकल्प पत्र में की गई घोषणाओं को तो पूरा करना ही है, साथ ही 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा के पिछले दो चुनावों के प्रदर्शन को बनाए रखने की चुनौती भी है। नई सरकार बनाने में क्या बदलाव किये जाएंगे इस पर भी लोगों की नजर रहेगी। समाजवादी पार्टी एक मजबूत विपक्ष हो कर उभरी है, और इसके सदस्यों द्वारा विधान सभा के अंदर और बाहर एक आक्रामक रवैया अपनाने की पूरी उम्मीद है। यह भी भाजपा नेतृत्व के लिए एक चुनौती होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)