प्रदीप सिंह।
पंजाब में आम आदमी पार्टी को बंपर जीत मिली है। वहां जितने भी पारंपरिक राजनीतिक दल और राजनीतिक नेता थे उन्हें पंजाब की जनता ने बोरिया बिस्तर बांध कर सतलुज, झेलम, रावी, व्यास (आप जिस नदी में कहना चाहें) में फेंक दिया है। पूरी तरह से रिजेक्ट कर दिया है। जैसा कि एक विज्ञापन आता था- पूरे घर के बदल डालूंगा- कुछ वैसा ही पंजाब में हुआ… और वहां के लोगों ने पूरे देश की राजनीति को बदल दिया। आम आदमी पार्टी को विकल्प के तौर पर चुना है। वैसे भी उनके पास और विकल्प थे नहीं।
क्या क्या टूटा पंजाब में
तो इस विधानसभा चुनाव में क्या क्या टूटा है पंजाब में। ट्रेडिशनल पार्टियों का जनाधार- ट्रेडिशनल पार्टियों का गुरूर- परिवार वादी नेताओं का गुरूर, उनका साम्राज्य- यह सब पंजाब की जनता ने एक झटके में साफ कर दिया है। इनमें किसी को खड़ा होने लायक भी नहीं छोड़ा।
कथित किसान नेताओं का ऐसा बुरा हाल
इसके अलावा और एक काम हुआ है। दिल्ली की सीमा पर किसान आंदोलन के नाम पर जो आढ़तिये और बड़े किसान
13 महीने तक बैठे रहे थे… और उन्होंने देश को बदनाम करने, केंद्र सरकार को बदनाम करने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को गिराने, उनको राजनीतिक रूप से कमजोर करने के लिए जो एक नैरेटिव खड़ा किया था- उसका भी जवाब पंजाब के लोगों ने दिया है। इक्कीस बाईस किसान यूनियनों ने मिलकर पंजाब में एक पार्टी बनाई संयुक्त समाज पार्टी। उसके मुख्यमंत्री पद के दावेदार बलवीर सिंह राजेवाल को लगभग साढ़े चार हजार वोट मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई। यह हैसियत है उन लोगों की जो पूरी भारत सरकार को ब्लैकमेल कर रहे थे- जो लाखों लोगों के जीवन के लिए मुश्किल बने हुए थे। जिनके बारे में कहा जाता था कि वे सामाजिक क्रांति करने, देश की राजनीति को बदलने- इस देश में बहुत बड़ा बदलाव लाने जा रहे हैं- किसानों के रहनुमा हैं और किसानों के लिए जान देने को तैयार हैं… उनकी हालत पंजाब की जनता ने वह की है कि अगर उनमें थोड़ी भी शर्म हया बची होगी तो वे सात जन्म तक दोबारा किसान आंदोलन और किसानों के हित की बात नहीं करेंगे। जनता ने बता दिया कि आपकी हैसियत इतनी ही है… इससे ज्यादा नहीं है। वह हैसियत है- जमानत जब्त। अब ये नेता जमानत जब्त नेता हो गए हैं राजनीति में।
बड़बोले राकेश टिकैत की बोलती बंद
ऐसे ही एक कथित किसान नेता उत्तर प्रदेश में हैं राकेश टिकैत… उनकी तो आजकल बोलती बंद हो गई है। समझ में नहीं आ रहा कि क्या बोलें। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2017 में जितने जाटों ने भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था इस बार उनकी संख्या दोगुनी हो गई है। 2017 में भाजपा को जाटों का लगभग 35 फ़ीसदी वोट मिला था… जबकि 2022 में मिला है 71 फ़ीसदी। यह जाटों ने जवाब दिया है राकेश टिकैत को- किसान आंदोलन के नेताओं को- आंदोलन के पैरोकारों और उनके समर्थकों को- आंदोलनजीवियों को… जिनको लगता था कि भारी क्रांति कर दी है। योगेंद्र यादव और राकेश टिकैत चुनाव के दौरान तमाम लोगों के साथ उत्तर प्रदेश गए थे। मेरठ, लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। पूरे प्रदेश में घूम घूमकर भारतीय जनता पार्टी को हराने की अलख जगा रहे थे। उस पर उत्तर प्रदेश की जनता ने जवाब दे दिया कि हमारा हित कहां है हमें अच्छी तरह मालूम है- अपना अच्छा बुरा मालूम है।
अनजानी राह
यह तो हुई किसान आंदोलन की बात। मेरा मानना है कि पंजाब में जो जनादेश आया है इसके बाद पंजाब एक अनजानी राह पर चल चुका है। कुमार विश्वास के अरविंद केजरीवाल पर लगाए आरोपों को आप भूले नहीं होंगे। तब उसको बताया गया कि यह जबरदस्ती लगवाया गया- यह झूठ है और चुनाव को प्रभावित करने के लिए ऐसा किया गया है।
सिख फॉर जस्टिस की कथित चिट्ठी
पंजाब में 20 फरवरी को मतदान था और चुनाव के दौरान ही 17 फरवरी को सिख फॉर जस्टिस की ओर से एक पत्र जारी हुआ जिसमें कहा गया कि आम आदमी पार्टी को समर्थन करना चाहिए। सिख फॉर जस्टिस ने उसका खंडन करते हुए कहा था कि यह हमारी चिट्ठी नहीं है। अब सिख फॉर जस्टिस के मुखिया गुरपतवंत सिंह कह रहे हैं कि जब हमने खंडन किया कि यह हमारी चिट्ठी नहीं है, उसके बाद आम आदमी पार्टी के एक नेता की ओर से फोन आया। हालांकि गुरपतवंत सिंह ने उस नेता का नाम लिया है लेकिन यहां हम उनके नाम का उल्लेख नहीं कर रहे हैं। फोन पर कहा गया कि आप यह बयान दे दीजिए कि यह आपकी चिट्ठी है… इसके बदले में हम आपको पैसा देने को तैयार हैं।
खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह
चलिए, मान भी लिया जाए कि यह बात झूठ है और आम आदमी पार्टी को बदनाम करने के लिए कही जा रही है। लेकिन एक चिट्ठी गुरपतवंत सिंह ने आम आदमी पार्टी की ओर से नामित मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे भगवंत मान को लिखी है। उसमें क्या कहा गया? उस चिट्ठी में लिखा है कि “आपकी जीत हमारे पैसे और समर्थन से हुई है। आपको हमारे लोगों को समर्थन मिला है। कनाडा, अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, ऑस्ट्रेलिया इन सब जगहों से खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों का पैसा मिला है। इसलिए अब आप अपने वादे के मुताबिक पंजाब विधानसभा में रेफरेंडम (जनमत संग्रह) कराने का प्रस्ताव पास कराइए। आपने वादा किया था कि अगर सिख फॉर जस्टिस आम आदमी पार्टी को समर्थन देगा तो वे पंजाब विधानसभा से इस बात पर जनमत संग्रह कराने का प्रस्ताव पास कराएंगे कि वहां के लोग भारत से अलग होकर खालिस्तान नाम से अलग देश बनाना चाहते हैं या नहीं।
संकेत शुभ नहीं
किसी सरकार के बनने से पहले ही इस तरह की खबर आना अच्छी बात नहीं है। मुझे नहीं मालूम कि गुरपतवंत सिंह जो दावा कर रहे हैं उसमें कितनी सच्चाई है। लेकिन सवाल यह है कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं? किसी और पार्टी के बारे में क्यों नहीं कर रहे हैं? चिट्ठी में उन्होंने मान को धमकी भी दी है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह ने हमारा विरोध किया तो उनका क्या हश्र हुआ आपको मालूम है। उनको तो शारीरिक रूप से नुकसान हुआ… लेकिन जिन्होंने हमारे ऊपर देशद्रोह का आरोप लगाया उन राजनीतिक नेताओं कैप्टन अमरिंदर सिंह, प्रकाश सिंह बादल जैसे लोगों का क्या राजनीतिक हश्र हुआ- यह भी आपने देख लिया है। अगर आप चाहते हैं कि आपका यह हश्र ना हो तो आप खालिस्तान मुद्दे पर जनमत संग्रह का प्रस्ताव पंजाब विधानसभा से पास कराइए। यह बड़ी खतरनाक बात है। पंजाब एक सीमावर्ती राज्य है।
सरकार कहां से चलेगी- दिल्ली या पंजाब
आम आदमी पार्टी जिस तरह की पार्टी है और अरविंद केजरीवाल जिस तरह के नेता हैं… कंट्रोल-ब्रेक उनको सब अपने कब्जे में चाहिए। उनकी मर्जी के बिना कोई पत्ता नहीं खड़कना चाहिए। उनकी पार्टी में उनकी मर्जी के बिना या उनसे असहमत होकर कोई रह नहीं सकता। सवाल यह होगा कि पंजाब पंजाब से चलेगा या दिल्ली से चलेगा? पंजाब के सिख या पंजाबी इस बात को कभी स्वीकार नहीं करेंगे कि उनकी सरकार कहीं और से चले… भगवंत मान स्वतंत्र तौर पर काम करेंगे या अरविंद केजरीवाल के प्रतिनिधि के तौर पर- यह सवाल बहुत जल्दी सामने आने वाला है। इस तरह के संकेत आ रहे हैं कि पंजाब की सरकार को चलाने में राघव चड्ढा की विशेष भूमिका होगी। उनको वहां सलाहकार या किसी और रूप से कोई पद दिया जाएगा- यह भगवंत मान के शपथ लेने के बाद स्पष्ट हो जाएगा।
पंजाब एक पूर्ण अधिकार संपन्न राज्य है- दिल्ली नहीं है। यही दर्द है अरविंद केजरीवाल का कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है और पुलिस उनके हाथ में नहीं है। पंजाब की पुलिस अब भगवंत मान के हाथ में रहेगी या केजरीवाल के हाथ में? क्या भगवंत मान मुख्यमंत्री बनने के बाद भी अरविंद केजरीवाल की बातें उसी तरह से सुनेंगे जैसे अब तक सुन रहे हैं? अगर इन दोनों में संघर्ष हुआ तो उसका नतीजा क्या होगा?
इस गुण की तो दाद देनी पड़ेगी
एक बात तो माननी पड़ेगी आम आदमी पार्टी और खासतौर से अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक रणनीति की। जिस तरह से दिल्ली में भारी जीत हुई और अपने विरोधियों का सफाया कर दिया उसी तरह की जीत पंजाब में हुई है। सभी विरोधियों का सफाया कर दिया। यह जो गुण है इसकी दाद तो देनी पड़ेगी। ऐसा तभी होता है जब लोगों को आप पर विश्वास होता है। आप से मेरा आशय- जो भी सत्ता में आ रहा है। अगर कोई इतने बड़े पैमाने पर जीत कर आ रहा है तो इसका मतलब है कि लोगों को उस पर भरोसा है- उससे उम्मीद है।
जवाब के इंतजार में कुछ सवाल
तो क्या पंजाब के लोगों ने जो उम्मीद भगवंत मान या अरविंद केजरीवाल से की है उस पर वे खरे उतरेंगे? और पंजाब में पहले से ही सुरक्षा को लेकर जितनी चिंताएं हैं उनको देखते हुए पंजाब किस और जाएगा? यह सरकार किस तरह और कितने दिन चलेगी? क्या खालिस्तानी तत्वों का प्रभाव इस पर होगा? क्या खालिस्तानी तत्वों के दबाव को रोकने, बर्दाश्त करने या उसको दरकिनार करने की शक्ति भगवंत मान और उनकी सरकार में होगी? ये सारे सवाल हैं जिनका जवाब आना बहुत जरूरी है। इस जवाब के बिना पंजाब के भविष्य के बारे में कोई निष्कर्ष निकालना बहुत मुश्किल है।
दो बातें हो सकती हैं…
पंजाब में एक तरफ आम आदमी पार्टी की जीत यह उम्मीद जगाती है कि जनतंत्र में स्थापित पार्टियों और उनके नेताओं को बाहर किया जा सकता है- अगर लोग आप पर भरोसा करने को तैयार हों। वे यह मानने को तैयार हों कि आप जो भी वादा या दावा कर रहे हैं वह पूरी ईमानदारी से कर रहे हैं। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी की अपनी कार्यशैली और नीतियां हैं। यह देश की एक ऐसी पार्टी है जिसकी कोई विचारधारा नहीं है। यह ऐसी पार्टी है जिसे आप जिस विचारधारा की बोतल में रख दीजिए वह उसका आकार ले लेती है। ऐसे में आम आदमी पार्टी का पंजाब में आना एक साथ दो भावनाएं जगाता है- खुशी की और चिंता की। खुशी की भावना लंबे समय तक चलेगी- या चिंता बढ़ेगी- इस सवाल का जवाब पंजाब से जल्दी ही मिलेगा।