जो पर्दे पर कभी नहीं दिखाया गया ‘कश्मीर फाइल्स’ में वह सच सामने लाए विवेक अग्निहोत्री।
मालिनी अवस्थी।
आतंकवादियों को हीरो बनाकर जहरीला नरेटिव स्थापित करने वाले बॉलीवुड ने जो जानबूझ कर कभी नहीं दिखाया पहली बार कश्मीर का वो सच जुझारू विवेक अग्निहोत्री सामने लाए हैं।
बहुत पुरानी बात नही है, तीस साल पहले, हमारे ही देश में, कश्मीरी पंडितों का शर्मनाक निर्वासन हुआ, और सरकार, न्यायपालिका, मीडिया, कश्मीर और पूरे देश ने खामोशी से यह सब होने दिया। कोई नहीं रोया उनके लिए।
उन पर अत्याचारों का कहीं कोई जिक्र नहीं
आज इतने बरस बाद भी, कश्मीर में कश्मीरी पंडितो पर हुए नरसंहार, अपहरण, बलात्कार, लूट पर कोई अदालत नहीं बैठी। आतंकवादियों के लिए आधी रात में मुकदमा सुनने वाले आज तक कश्मीर फाइल्स न खोल सके।
इतिहास में आप इस अत्याचार पर एक शब्द नही पाएंगे। तथाकथित बुद्धिजीवियों का मानना है कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं। ऋषि कश्यप, आदिशंकराचार्य, अभिनव गुप्त, राजा ललितादित्य की धरती आतंकवादियों की क्रीड़ा स्थली बन गई, और एक लंबे समय तक सबने सबकुछ होने दिया!
क्यों बेघर होना पड़ा कश्मीरी पंडितों को
तत्कालीन गृह मंत्री की बिटिया के अपहरण के बदले आतंकवादियों की रिहाई सबको याद है। हमारे बहुत आदरणीय श्रीनगर दूरदर्शन के डायरेकर लासा कौल जी की जघन्य हत्या की खबर आज भी दिल दहला जाती है।
कश्मीर की आजादी की बात रटने वाले इस बात में मौन रह जाते हैं कि क्या हुआ था ऐसा, जो कश्मीरी पंडितों को उनके ही घर से बेघर होना पड़ा।
कड़वा सत्य जिस पर कोई फिल्म नहीं बनी
यदि आप अपने घर से बेघर नहीं होना चाहते तो, कश्मीर फाइल्स देखिए, अपने बच्चो को दिखाइए। वह कड़वा सत्य जिस पर कोई फिल्म नहीं बनी, कोई किताब नहीं लिखी गई, कोई धरने प्रदर्शन नहीं हुए, कोई विशेष अदालतें नही बैठी।
मेरा सौभाग्य है कि दिल्ली में आयोजित विशेष प्रीमियर में कश्मीर फाइल्स देखने के लिए विवेक अग्निहोत्री और पल्लवी जोशी ने मुझे न्योता दिया। फिल्म 11 मार्च को सिनेमा हॉल में रिलीज हुई है। फिल्म देखकर उठी तो आंखे नम थीं, मन भारी। फ़िल्म में अनुपम खेर जी का जीवंत अभिनय, अभिनय नहीं, इस दौर की भोगी हुई दास्तान है।
‘कश्मीर फाइल्स’ हर व्यक्ति को देखनी चाहिए, सपरिवार देखनी चाहिए
जीते रहो बहादुर विवेक और पल्लवी।
(लेखिका प्रसिद्ध लोक गायिका हैं)
कन्वर्ट, लीव… ऑर डाय!
वन्दना विश्वास।
द कश्मीर फाइल्स टोरंटो, कैनेडा के यॉर्क सिनेमा हॉल में देखी। इतने वर्षों में पहली बार यह अनुभव हुआ कि हॉल में बैठे सभी लोग एक साथ एक ही अंतरात्मा की तरह फ़िल्म के हर दृश्य को अनुभव कर रहे है। सभी की प्रतिक्रियाएँ एक साथ हो रही थी, चाहे तालियाँ बजाना, चुप हो जाना, रोना और रोते हुए एक दूसरे को पानी देना, भारत माता की जय के नारे लगाना इत्यादि। इस फ़िल्म का उद्देश्य था सच बताना जो बहुत सफलतापूर्वक सम्पूर्ण हुआ है। यह फ़िल्म न सिर्फ हम सभी भारतीयों और भारतीय मूल के निवासियों को बल्कि विश्व के सभी लोगों को अवश्य देखनी चाहिए और सत्य से अवगत होना चाहिए। जैसे जर्मनी के एक जेनोसाइड के बारे में हम सब को पता है, वैसे जेनोसाइड्स कश्मीर में सात बार हो चुके हैं जिसके बारे में बहुतों को नही पता है। हालांकि सुनने में आया है कि सेंसर बोर्ड ने काफी चीज़ें सेंसर कराई हैं फ़िल्म में फिर भी विवेक अग्निहोत्री जी और उनके टीम ने जिस निडरता से सत्य सबके सामने रखा है वह अत्यंत प्रशंसनीय है। बहुत बहुत धन्यवाद आपको और आपकी टीम को विवेक अग्निहोत्री जी, हम सबको सत्य से अवगत कराने के लिए।
(लेखिका कनाडा में आर्किटेक्ट और जानी-मानी गायिका हैं)