देश में वंशवाद की राजनीति को लाने का श्रेय इसी परिवार को है। इसने दिखाया कि वंशवाद के जरिये डेमोक्रेसी को डायनेस्टिक डेमोक्रेसी में बदला जा सकता है।

प्रदीप सिंह।

कांग्रेस के प्रथम परिवार नेहरू-गांधी परिवार के मन में जो यह भाव है कि यह देश हमारी संपत्ति है, यह भाव क्यों आया इस बारे में दो-तीन बातों को समझना जरूरी है। जिस घटना का जिक्र करने जा रहा हूं वह है बेनजीर भुट्टो की सोनिया गांधी को वह सलाह जिसे अगर वो मान लेतीं तो इस देश की राजनीति बदल सकती थी। हो सकता है कि इस बारे में आपने पहले भी पढ़ा हो। लेकिन उससे पहले कांग्रेस की बात कर लेते हैं ।

Remembering the legacy of Indira Gandhi

1971 में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ के नारे पर पूरे विपक्ष को ध्वस्त करते हुए बहुत बड़ी विजय हासिल की थी। उसके बाद बैंकों का राष्ट्रीयकरण जैसे आर्थिक सुधार हुए जो बाद में देश के लिए बड़ी मुसीबत बने और दूसरे मुद्दों की वजह से 1973 से ही कांग्रेस और इंदिरा गांधी अलोकप्रिय होने लगी। गुजरात का आंदोलन और फिर 1974 में बिहार का आंदोलन, फिर उसके बाद इमरजेंसी। इमरजेंसी के बाद कांग्रेस सत्ता से बाहर तो हो गई लेकिन जनता पार्टी के नेताओं की महत्वाकांक्षा, उनकी आपसी लड़ाई और उनके छोटेपन के कारण कांग्रेस की वापसी हुई और इंदिरा गांधी फिर से प्रधानमंत्री बनीं। अगर अक्टूबर 1984 में उनकी हत्या नहीं हुई होती तो आप यह मान कर चलिए कि कांग्रेस सत्ता में लौट कर नहीं आने वाली थी। 1984 का जनादेश इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति का जनादेश था। वह सरकार के पांच साल के कामकाज, सरकार की नीतियों पर जनादेश नहीं था। उसी समय से देश की अर्थव्यवस्था नीचे जाना शुरू हो चुकी थी। 1990 तक पहुंचते-पहुंचते हमारा विदेशी मुद्रा भंडार इतना नीचे चला गया कि दिवालिया होने से बचने के लिए हमें अपना सोना गिरवी रखना पड़ा। यह सब हुआ कांग्रेस की नीतियों के कारण।

सत्ता पाने की बेचैनी

Remembering Chandra Shekhar, India's 8th PM who was in office for just seven months

सहानुभूति का ज्वार जैसे ही ठंडा हुआ कांग्रेस फिर सत्ता से बाहर हो गई। 1989 में कांग्रेस की सीटें आधे से भी कम हो गई। लेकिन फिर वही खेल हुआ। विपक्ष की जिन पार्टियों पर लोगों ने भरोसा किया वे भरोसे पर खरी नहीं उतरीं। वह सरकार गिर गई। फिर चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने। उन्हें कांग्रेस का समर्थन था। सत्ता में आने के लिए राजीव गांधी कितने बेचैन थे, इसे समझने के लिए एक घटना बताता हूं। उसके बारे में बहुत से लोगों ने पढ़ा भी होगा। वह घटना है खाड़ी युद्ध के समय की। अमेरिका के राष्ट्रपति थे जॉर्ज बुश सीनियर और भारत के प्रधानमंत्री थे चंद्रशेखर। चंद्रशेखर ने सप्लाई वाले अमेरिकी हवाई जहाजों को मुंबई और चेन्नई में तेल भरने की इजाजत दे दी। इस पर राजीव गांधी ने ऐतराज जताया और बाकायदा मीडिया में बयान दिया कि हमारे समर्थन से चल रही सरकार ने अमेरिका को खुश करने के लिए ऐसा किया है। इस पर चंद्रशेखर बहुत नाराज हुए। उन्होंने विदेशी मामलों के अपने सलाहकार रोनेन सेन को एक फाइल लेकर राजीव गांधी के पास भेजा और कहा कि उन्हें यह दिखा कर बताइएगा कि इस पर उन्हीं के दस्तखत हैं जिसके जरिये यह इजाजत दी गई है। लेकिन राजीव गांधी पर इसका कोई असर नहीं पड़ा क्योंकि वह बहाना ढूंढ रहे थे कि कैसे इस सरकार को गिराया जाए और मैं फिर प्रधानमंत्री बन सकूं।

अमेरिका को ऐतराज

President Reagan's Remarks after Discussions With Prime Minister Rajiv Gandhi on October 20, 1987 - YouTube

अमेरिका ने भी उनके बयान पर ऐतराज जताया। बयान देने के बाद राजीव गांधी ने कई बार जॉर्ज बुश सीनियर को फोन किया लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया। कुछ दिनों बाद भारत में अमेरिकी दूतावास के जरिये राजीव गांधी के पास एक बड़ा रुखा पत्र आया जिसमें कहा गया कि यह आपने ठीक नहीं किया है।रिफ्यूलिंग के मुद्दे का आपने राजनीतिक इस्तेमाल करने की जो कोशिश की है, उससे भारत और अमेरिका के संबंध खराब हो सकते हैं। चंद्रशेखर ने रोनेन सेन से राजीव गांधी को एक बात और बताने को कही थी। उन्होंने सेन से कहा था कि राजीव गांधी को यह बता देना कि अगर मैं इस फाइल के कंटेंट को सार्वजनिक कर दूं तो उनकी क्या इज्जत रह जाएगी। इतना बड़ा झूठ ऐसे संवेदनशील अंतरराष्ट्रीय मामले पर वह कैसे बोल सकते हैं। लेकिन राजीव गांधी पर इन सब बातों का कोई असर नहीं हुआ। दुर्भाग्यवश 1991 के आम चुनाव के दौरान पहले चरण के मतदान के बाद राजीव गांधी की हत्या हो गई। पहले चरण में कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं थी। दूसरे चरण में फिर से सहानुभूति मिली और कांग्रेस की सीटें बढ़ गई। हालांकि बहुमत नहीं मिला लेकिन सरकार बन गई।

सांसदों की खरीद-फरोख्त

When L K Advani was arrested in Bihar during Ram Rath Yatra | Deccan Herald

बहुमत के जुगाड़ के लिए पहली बार भारत के इतिहास में सांसदों की खरीद-फरोख्त हुई। यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना कि खरीद-फरोख्त हुई है लेकिन उसकी सजा किसी को यह कहते हुए नहीं दी कि यह सदन के अंदर का मामला था इसलिए अदालत हस्तक्षेप नहीं करेगी। इस तरह 1996 तक सरकार चली। उसके बाद फिर कांग्रेस हार गई और दोबारा लौटी 2004 में। 2004 में कांग्रेस के सत्ता में आने का अगर सबसे बड़ा श्रेय किसी को है तो वह भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी को है। उन्होंने भाजपा के गठबंधन को तोड़ दिया। गठबंधन के केवल एक साथी के जाने से पूरा परिदृश्य बदल गया। तमिलनाडु की डीएमके- जो भाजपा गठबंधन में शामिल थी- उसे हटाकर एआईएडीएमके से समझौता कर लिया। नतीजा यह हुआ कि डीएमके कांग्रेस के साथ चली गई और तमिलनाडु में स्वीप किया। 2004 में लोकसभा चुनाव के जो नतीजे आए थे उसमें कांग्रेस और भाजपा की सीटों में सिर्फ 6 सीटों का फर्क था। अब आप अंदाजा लगा लीजिए कि डीएमके साथ रहती तो क्या स्थिति होती। पांच साल बाद लालकृष्ण आडवाणी ने दूसरी गलती की। उन्होंने पार्टी पर दबाव बनाया और पार्टी को उन्हें 2009 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना पड़ा। उस चुनाव में भाजपा बुरी तरह हारी। पिछले 10-15 सालों में बीजेपी की यह सबसे बड़ी हार थी। इसके बाद बीजेपी बढ़ नहीं पाती अगर राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य पर नरेंद्र मोदी का उदय नहीं होता।

वह समय जा चुका

कांग्रेस के लिए अब जो परिस्थिति है- वह समय, वह ताकत- सब कुछ जा चुका है। लेकिन यह परिवार पार्टी को छोड़ने को तैयार नहीं है क्योंकि उन्हें मालूम है कि जिस दिन पार्टी को स्वेच्छा से या पार्टी नेताओं की मर्जी से छोड़ा उस दिन के बाद वे ज्यादा दिनों तक देश में रह नहीं पाएंगे। इसके कारणों में मैं नहीं जाऊंगा कि क्यों देश छोड़ना पड़ेगा। (जारी)