शिवचरण चौहान।

भगत सिंह (28 सितंबर 1907 – 23 मार्च 1931) साहसी, वीर और क्रांतिकारी युवक भर नहीं थे। भगत सिंह एक अच्छे विचारक, लेखक, इतिहास के अध्येता और खुशहाल भारत के परिकल्पनाकार थे। उनका स्पष्ट मानना था कि भारत का विकास हथियारों से नहीं विचारों से होगा। अंग्रेजों को भगाने के लिए उन्होंने क्रांतिकारियों का रास्ता चुना। गांधी जी का अहिंसा का मार्ग असफल होते देख भगत सिंह और उनके साथियों ने सोवियत रूस की क्रांति को अपना आदर्श माना था। और अंग्रेजों की ईट का जवाब पत्थर से देना शुरू किया था। कांग्रेस के कुछ नेता उस समय क्रांतिकारियों को आतंकवादी और डकैत कहने लगे थे। इस कारण भगत सिंह ने एक लंबा लेख लिखकर देश के लोगों को यह स्पष्ट कर दिया था कि वह आतंकवाद के रास्ते नहीं क्रांतिकारियों के रास्ते पर चलकर देश को आजाद कराना चाहते हैं। क्रांतिकारियों का सपना भारत को आजाद कराना है। देश का विकास तलवार की नोक से नहीं विचारों की नोक से होगा।

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प्रसिद्ध क्रांतिकारी और लेखक शिव वर्मा ने अपनी पुस्तक “सलेक्टेड रायटिंग्स ऑफ भगतसिंह” में एक प्रसंग का जिक्र किया है जब 1980 में रेल यात्रा के समय दर्शन शास्त्र के एक प्रोफेसर से उनकी भेंट हुई थी। तब वह शिव वर्मा के हाथ में भगतसिंह की पुस्तक ‘वाई आई एम एन एथीस्ट’ (मैं निरीश्वरवादी क्यों हूं) देखकर अत्यंत आश्चर्यचकित हुए थे। उन्होंने शिव वर्मा से प्रश्न किया “क्या सही में भगतसिंह ऐसे गंभीर विषय पर लिख सकते थे?”

गुरु गोविन्द सिंह का प्रभाव

Freedom fighters like Guru Gobind Singh, Shivaji, and Kartar Singh Saraba were the biggest inspiration for Bhagat Singh - Photogallery

भगतसिंह की क्रांतिकारी चेतना के विकास में पंजाब के गुरुओं का विशेष रूप से गुरु गोविन्द सिंह के भक्ति और युद्धगीतों का तथा उनकी

सशस्त्र क्रांति की धारणा का बहुत प्रभाव पड़ा। आगे चलकर जब वह युवावस्था की दहलीज पर थे तब उनके सामने यह विचार आकार ले रहा था कि राजनीतिक चेतना के विकास में साहित्य और भाषा की अपनी विशेष भूमिका है और इसी से वह भारतीय भाषाओं के बहुमुखी विकास के पक्षधर थे। खुशहाल विशाल भारत के पक्षधर थे। इस विचार को जन जन तक पहुंचाने के लिए भगतसिंह ने हिन्दी, पंजाबी और उर्दू में अनेक लेख लिखे जिसका एक संकलन वीरेन्द्र सांधू ने पत्र तथा दस्तावेज’ (1977 में प्रकाशित) नाम से किया है। इसके बाद 1905 का जापान-रूस युद्ध, जिसमें एशिया के एक छोटे से देश ने रूस को हराया… इस घटना ने जहां एशिया की सुप्त चेतना को झकझोरा, वहीं इभगतसिंह को यह आशा बंधाई की हम भी कुछ हैं।

दूसरी घटना 1917 की रूसी क्रांति की…  जिसने लाहौर के नेशनल कॉलेज के युवा छात्रों (जिसमें भगतसिंह, सुखदेव, भगवतीचरण वोहरा तथा यशपाल आदि थे) को इतना प्रभावित किया कि उन्हें यह लगने लगा कि सोवियत रूस ही वह देश है जो उनके विचारों और कार्यों को बल दे सकता है। इसका संकेत सत्यभक्त ने अपनी किताब “क्रांतिकारी भगतसिंह” में किया है।

‘कीर्ति’ पत्रिका में अनेक लेख प्रकाशित

भगत सिंह का जीवन परिचय , इतिहास । Bhagat Singh Biography In

1924-27 का कालखण्ड भारतीय इतिहास में एक ऐसा खण्ड है, जिसमें साम्यवादी विचारधारा अपनी जड़ें जमा रही थीं तथा लाहौर के क्रांतिकारी समूह के भगतसिंह, सुखदेव आदि ने साम्यवाद को एक वैज्ञानिक दृष्टि से समझने का प्रयत्न किया। तभी भगतसिंह आदि उस समय के साम्यवादी नेता सोहनसिंह जोश के सम्पर्क में आए, जो ‘कीर्ति’ नाम की एक पत्रिका भी निकालते थे। इसमें भगतसिंह के भी अनेक लेख प्रकाशित हुए। इन युवा क्रांतिकारियों का पुस्तक प्रेम इस बात से साबित होता है कि उन्होंने तिलक राजनीति संस्थान के आचार्य झबीलदास तथा द्वारिकादास पुस्तकालय के अध्यक्ष राजाराम शास्त्री के सौजन्य से राजनीति, अर्थशास्त्र तथा दर्शन से संबंधित अनेक पुस्तकें प्राप्त कीं और उनका गहन अध्ययन किया।

भगत सिंह की ज्ञान पिपासा

Shaheed Diwas: What led to the hanging of Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev | Latest News India - Hindustan Times

दूसरा स्रोत लाहौर के अनारकली बाजार के एक पुस्तक विक्रेता जे रामकृष्ण एंड संस का था जहां से भगतसिंह आदि क्रांतिकारी युवकों का संपर्क उनसे हुआ और 1928 तक आते आते वह समाजवाद के उस रूप की ओर आकृष्ट हुए जहां अराजकता और आतंक का एक लक्ष्यप्रेरित स्थान था, यह आतंक मात्र आतंक के लिए आतंक नहीं था। दूसरा क्रांतिकारियों का कानपुर समूह था, जिसमें राधामोहन गोकुल, सत्यभक्त तथा मौलाना हसरत मोहानी आदि थे। कहा जाता है कि राधामोहन जी के पास पुस्तकों का एक अच्छा भंडार था, और वह स्वयं एक अच्छे लेखक थे, जिन्होंने “साम्यवाद- क्या है?” नाम की एक प्रसिद्ध पुस्तक भी लिखी। वह पुस्तक लोगों में बहुत लोकप्रिय हुई। वह निरीश्वरवादी चिंतक थे। उन्होंने धर्म, संप्रदाय तथा अंधविश्वासों के विरोध में अनेक लेख लिखे, जिससे प्रभावित होकर प्रसिद्ध कथाकार प्रेमचंद ने उन्हें “आधुनिक चार्वाक’ की संज्ञा दी थी। भगतसिंह ने अपनी ज्ञान पिपासा को यहाँ भी शांत किया और गोकुलदास से उनका सम्पर्क उन्हें साम्यवाद की क्रांति चेतना की ओर क्रमशः ले गया।

क्रांतिकारियों के नाम अंतिम संदेश

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भगतसिंह के विचारों तथा अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि वे लक्ष्यहीन क्रांतिकारी नहीं थे। उनकी क्रांति चेतना के पीछे वैचारिकता और अध्ययनशीलता की ऊर्जा थी। जेल से बाहर और जेल के अंदर उन्होंने जिस साहित्य का अध्ययन-मनन किया और स्वतंत्र रूप से अपने विचारों को समाज के सामने रखा, उसका अपना महत्व है, क्योंकि वह असल में भगत सिंह के जानने का अर्थ है। भगत सिंह का लिखा हुआ साहित्य पढ़े बिना भगत सिंह को न ही जाना जा सकता न ही समझा जा सकता। लिंकन के “संस्मरणों” (मोग्यास) से वह बहुत प्रभावित हुए। भगतसिंह के आरंभिक चिंतन में बैकुनिन के इस विचार का प्रभाव था कि राजनीतिक परिवर्तन के लिए हिंसा और आतंक का उपयोग जरूरी है, लेकिन आगे चलकर वह लेनिन और ट्राटस्की के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि क्रमशः व्यक्तिगत हिंसा और आतंक से उनका विश्वास उठता गया। इसे स्वयं भगतसिंह ने इलाहाबाद से प्रकाशित साप्ताहिक पत्र “अभ्युदय” (8 मई 1931) में अपने लेख “क्रांतिकारियों के नाम अंतिम संदेश” में व्यक्त किया है। भगतसिंह का यह भी मानना था कि धार्मिक और साम्प्रदायिक हठधर्मिता के कारण अंग्रेजों ने “विभाजन और शासन करो” (डिवाइड एण्ड रूल] के सिद्धांत को एक हथियार के रूप में भारतीय राजनीति में प्रयुक्त किया, जिससे हुआ यह कि क्रांति का सामूहिक स्वरूप पूरी तरह से उभर नहीं पाया। भगत सिंह की क्रांति की अवधारणा भारत को आजाद कराना और उसे खुशहाल बनाना था।

‘प्रताप’ में बलवंत’ और ‘कीर्ति में ‘विद्रोही के नाम से लेख लिखे

भगतसिंह अनेक नामों से लेख लिखते थे, जो समय समय पर कानपुर से प्रकाशित ‘प्रताप, पंजाब से प्रकाशित कीति’ और इलाहाबाद से प्रकाशित ‘चांद’ पत्रिकाओं में छपते रहते थे। वह कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी के संपर्क में आए और पत्रकारिता भी सीखी। प्रताप में वह बलवंत’ के नाम से और ‘कीर्ति में वे ‘विद्रोही के नाम से लेख लिखते थे। चांद के महत्वपूर्ण फांसी अंक में भगतसिंह के अनेक लेख संगृहीत किए गए हैं। यही नहीं, भगतसिंह ने जेल में पुस्तकें भी लिखीं- बायोग्राफी’ (आत्मकथा), डोर टु  डेथ’ (मौत के दरवाजे पर), आइडियल ऑफ सोशलिस्ट।

भूपेन्द्र राना तथा शिव वर्मा का कहना है कि ये पाण्डुलिपियां किसी सहयोगी के पास थीं। आजादी की लड़ाई में भूमिगत होने के दौरान कुछ डरपोक लोगों ने जानबूझकर उन्हें नष्ट कर दिया। यह भी हो सकता है किसी के घर पर अभी भी वह पांडुलिपियां रखी हों। पर इतना कहा जा सकता है कि जेल के अन्दर भगत सिंह नोटबुक लिखते रहे थे। शहादत से पूर्व 1929-31 में जेलर द्वारा प्राप्त एक अभ्यास पुस्तिका मे वह उन उद्धरणों को लिपिबद्ध करते रहे, जो अनेक पुस्तकों के अध्ययन के दौरान उन्हें महत्वपूर्ण एवं उपयोगी लगे थे। इस नोटबुक के पढ़ने से भगत सिंह की आजाद भारत खुशहाल भारत के बारे में राय पता चलती है।

सत्य, सौंदर्य तथा ईश्वर पर अध्ययन

चमन लाल द्वारा संकलित भगत सिंह के विचारों की एक प्रति 1984 में नेहरू मेमोरियल लाइबेरी एण्ड म्यूजियम से प्राप्त हुई। 1993 में 404 पृष्ठों की इस नोटबुक’ का प्रकाशन भूपेंद्र ने कराया था। उन्होंने इसे वर्गीकृत संपादन, विशिष्ट टीका टिप्पणियों के साथ जयपुर से प्रकाशित कराया था। नोटबुक में 100 से अधिक युवा लेखकों की पुस्तकों का जिक्र है। उनके नोट्स में 65 साहित्य क्षेत्र के लेखक जैसे गोको, दोस्तोलाकी , हिटमैन, उमर खय्याम, यूजीन विक्टर हेमा, रवीन्द्र नाथ ठाकुर तथा रसेल लावेल आदि शामिल हैं। भगत सिंह ने विचारकों व दार्शनिको में अरस्तू, कार्ल, मार्क्स, लेनिन, माइकावेली, पेटिकोनी, रसेल आदि की पुस्तकों का गहन अध्ययन किया था। भगत सिंह ने सत्य, सौंदर्य तथा ईश्वर पर खूब अध्ययन किया था। भगतसिंह ने रूसी क्रांति, फ्रांसीसी तथा अमेरिकी की क्रांति के इतिहास का अध्ययन किया था, जो उनकी नोटबुक पढ़ने से प्रतीत होता है।

विचारक, क्रांतिकारी लेखक और समाज सुधारक

Chandra Shekhar Azad: Son of 'Swatantrata' living in 'Jail'- Facts you did not know about Azad

भगत सिंह एक क्रांतिकारी भर नहीं थे। आजाद भारत के बाद उसके खुशहाल होने की परिकल्पना उन्होंने की थी। भगत सिंह एक विचारक, क्रांतिकारी लेखक और समाज सुधारक थे। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद आदि अनेक क्रांतिकारियों के बारे में हमारे इतिहास में अब तक गलत पढ़ाया जाता रहा है। अब समय आ गया है की क्रांतिकारियों के भारत की आजादी में योगदान का सही सही मूल्यांकन किया जाए। उन्हें अब तो आतंकवादी ना पढ़ाया जाए। शहीद भगत सिंह को किसी ने सही समझा ही नहीं। भगत सिंह का सही मूल्यांकन किया जाए यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।