‘तपस्या’ का यह सिला- मंत्रिमंडल गठन में न 2017 में योगी की चली, न 2022 में । 

प्रदीप सिंह।
योगी आदित्यनाथ ने दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है। उनके साथ 52 मंत्रियों ने भी शपथ ली है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में यह एक ऐतिहासिक घटना है। इससे पहले उत्तर प्रदेश में कभी ऐसा नहीं हुआ कि कोई मुख्यमंत्री पांच साल तक रहे और उसके बाद फिर चुनाव जीत कर आए। इस मामले में न सिर्फ भाजपा ने बल्कि योगी आदित्यनाथ ने भी नया इतिहास बनाया है। मगर नए मंत्रिमंडल के गठन से जो संकेत निकल रहे हैं वह कम से कम मेरी नजर में शुभ नहीं हैं। देखने में तो ऊपर से सब कुछ अच्छा लगता है, पुराने मंत्रियों में से कुछ को रखा गया है और 22-23 को हटा दिया गया है। ये ऐसे लोग थे जिनका सारा ध्यान पिछली सरकार में सिर्फ लक्ष्मी पूजन पर था। महेंद्र सिंह, सिद्धार्थ नाथ सिंह, श्रीकांत शर्मा, नीलकंठ तिवारी जैसे मंत्रियों की छुट्टी हो गई है। यह अपने आप में अच्छा और स्वागत योग्य कदम है।

योगी की छाप नहीं

Yogi Adityanath inducts 23 new ministers in Cabinet

मगर दूसरे कार्यकाल के मंत्रिमंडल का गठन जिस स्वरूप में हुआ है उसमें कई बातें स्पष्ट रूप से बताई गई हैं। एक, योगी आदित्यनाथ को भारतीय जनता पार्टी अभी भी बाहरी ही समझती है। पार्टी उन्हें उस तरह से अपना इंटीग्रल पार्ट नहीं मानती है। दूसरा, 2017 और 2022 की स्थिति में पार्टी को कोई अंतर दिखाई नहीं देता है। 2017 में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के रूप में पेश कर चुनाव नहीं लड़ा गया था। साथ ही कहा गया था कि उनको कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है इसलिए उनको दो सहायकों की जरूरत है और दो डिप्टी सीएम बनाए गए। 2017 में भी जब मंत्रिमंडल का गठन हुआ था तो न तो किसी मंत्री के चुनाव में और न ही डिप्टी सीएम को चुनते वक्त उनकी चली थी। इस मंत्रिमंडल के गठन में भी योगी आदित्यनाथ की छाप नजर नहीं आती है। मुझे नहीं लगता है कि इस पूरे मंत्रिमंडल में उनका कोई व्यक्ति है। मुझे नहीं लगता है कि देश में कोई भी मुख्यमंत्री ऐसा होगा या कोई ऐसी सरकार होगी जिसमें मुख्यमंत्री का कोई अपना मंत्री न हो। अपना से मतलब भरोसे से है।

सीएम विरोधी पुरस्कृत

KP Maurya, Brajesh Pathak Appointed New UP Deputy CMs: Why Did BJP Choose Them?

पांच साल सरकार चलाने के बाद भी पार्टी को दो डिप्टी सीएम की जरूरत क्यों लग रही है, यह एक बड़ा सवाल है। दो उप मुख्यमंत्री बनाने का पिछला जो फैसला था उसने योगी आदित्यनाथ की सरकार चलाने में कोई मदद नहीं की, बल्कि सरकार चलाने के रास्ते में बाधा ज्यादा उत्पन्न की। जिस तरह से पिछले दिनों, खासकर कोरोना की दूसरी लहर के बाद योगी आदित्यनाथ को हटाने के लिए अभियान चला था और जिन लोगों ने यह अभियान चलाया था- इस मंत्रिमंडल में उनको पुरस्कृत किया गया है। इस बार भी दो डिप्टी सीएम बनाए गए हैं और दोनों में से कोई उनके भरोसे का व्यक्ति नहीं है। यह जरूरी भी नहीं है लेकिन दोनों ऐसे हैं जो अपने ही मुख्यमंत्री को पसंद नहीं करते। उनका मुख्यमंत्री से उस तरह का राबता नहीं है, उनकी उस तरह से कोई केमिस्ट्री नहीं है। केशव प्रसाद मौर्य पिछले पांच साल तक इस भाव में बने रहे कि मेरा हक योगी आदित्यनाथ ने मार लिया। इस बार उनको साफ तौर पर बता दिया गया है कि आपको मुख्यमंत्री को रिपोर्ट नहीं करनी है, उनसे आपको कोई लेनादेना नहीं है। आप हार भी जाएंगे तब भी आपको डिप्टी सीएम बनाया जाएगा- आपको मुख्यमंत्री पसंद नहीं करते रहे हों फिर भी आप डिप्टी सीएम बने रहेंगे। आपने मुख्यमंत्री को हटाने का अभियान चलाया तब भी आप डिप्टी सीएम रहेंगे। केशव प्रसाद मौर्य से मेरा कोई व्यक्तिगत राग द्वेष नहीं है। अगर सामाजिक समीकरण की ही बात थी, अति पिछड़ों को प्रतिनिधित्व देने की ही बात थी तो जिस मौर्य समाज से केशव प्रसाद आते हैं, उससे संख्या की दृष्टि में बहुत बड़ा समाज है कुर्मी समाज। कुर्मी समाज प्रभाव की दृष्टि से कहीं अधिक व्यापक है। और भाजपा से लंबे समय तक जुड़े रहने की कसौटी पर भी खरा उतरता है। इन सबके बावजूद कुर्मी समाज के प्रभावशाली नेता स्वतंत्र देव सिंह- जो अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं- उनको सिर्फ कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। अगर डिप्टी सीएम बनाया जाना था तो स्वतंत्र देव सिंह को क्यों नहीं, अगर सामाजिक समीकरण का ध्यान रखा जाना था तो स्वतंत्र देव सिंह को क्यों नहीं।

बाहरी ब्रजेश पाठक को मिली तरजीह

Brajesh Pathak Becomes UP Deputy CM In Elevation For Former Law Minister - India Ahead

अब दूसरे डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक की बात करते हैं। अभी कुछ साल पहले ही वे बहुजन समाज पार्टी से भाजपा में आए हैं। पार्टी से बाहर के व्यक्ति हैं लेकिन पार्टी ने उनको सबसे ज्यादा अपना समझा। योगी आदित्यनाथ 1998 से भाजपा के टिकट पर लोकसभा में पहुंचते रहे हैं, भाजपा संसदीय दल के नेता रहे हैं, इसके बावजूद ब्रजेश पाठक को उन पर तरजीह दी गई है। ब्रजेश पाठक को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का करीबी माना जाता है। राजनाथ सिंह लखनऊ में उनके संरक्षक हैं। उन्होंने ही लखनऊ सेंट्रल से पिछली बार उनको टिकट दिलवाया था। इस बार लगा कि लखनऊ सेंट्रल में मुश्किल हो सकती है और हार सकते हैं तो उनको लखनऊ कैंट से चुनाव लड़वाया गया। कैंट सीट लखनऊ में भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है। उन्हें  डिप्टी सीएम बनाकर भाजपा ने सारे ब्राह्मण नेताओं को खारिज कर दिया है। पार्टी इस नतीजे पर पहुंची है कि भाजपा में जितने भी ब्राह्मण नेता हैं वे इस योग्य नहीं हैं कि उनमें से किसी को डिप्टी सीएम बनाया जा सके। बहुजन समाज पार्टी से आए पाठक अब भाजपा में ब्राह्मणों का सबसे बड़ा चेहरा हैं। उनको जो प्रमोशन मिला है उसमें उनकी योग्यता से ज्यादा कई और कारण दिखाई देते हैं। मामला केवल योग्यता का नहीं है, अपने मंत्रालय में उन्होंने पिछली सरकार में कोई बड़ा काम किया हो, मामला यह भी नहीं है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उन्होंने अपनी ही सरकार के खिलाफ सवाल उठाए। उनके पक्ष में जो बात जाती है वह यह कि वह लोगों से बहुत ज्यादा मिलते-जुलते हैं। लोगों के लिए सहज उपलब्ध हैं, उनसे कोई भी मिल सकता है, लोगों का काम कराने में वे रुचि लेते हैं।

पार्टी का सीएम पर शिकंजा

deputy cm dinesh sharma law minister brajesh pathak security increased z plus and z category cm yogi government decision - यूपी के दो मंत्रियों की सुरक्षा बढ़ी, डिप्‍टी CM दिनेश शर्मा को

पाठक से पहले जो डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा थे- उनके साथ ऐसा नहीं था। लेकिन उन दोनों में एक फर्क यह भी है कि दिनेश शर्मा से जैसी अपेक्षा थी, उस तरह से वे योगी आदित्यनाथ के खिलाफ खड़े नहीं हो पाए, ब्रजेश पाठक खड़े हो गए। इस बार के मंत्रिमंडल गठन में पार्टी ने जानबूझकर, यानी सोच समझकर यह फैसला लिया है कि उत्तर प्रदेश की सरकार में सत्ता का समानांतर केंद्र होना चाहिए- समानांतर राजनीतिक शक्ति होनी चाहिए। मुख्यमंत्री के पास सभी ताकत नहीं होनी चाहिए। मुख्यमंत्री के पास सब ताकत होने से पार्टी का नुकसान होगा, सरकार का नुकसान होगा … या फायदा होगा …इसका आकलन जरूर किया गया होगा- और इस नतीजे पर पहुंचा गया होगा कि मुख्यमंत्री के हाथ पैर बांधकर रखना चाहिए। पूरे मंत्रिमंडल में किसी भी दृष्टि से, कहीं से भी आप यह नहीं कह सकते हैं कि उस मुख्यमंत्री की चली है जो मैंडेट (जनादेश) लेकर आया है। पिछली बार उनके नाम पर मैंडेट नहीं मिला था, इसलिए तब उनकी सलाह नहीं ली गई थी। उनके कहने पर किसी को मंत्री नहीं बनाया गया था। लेकिन इस बार भी ऐसा ही हुआ। अब आप याद कीजिए कि उनके खिलाफ जब अभियान चल रहा था तो यह कहा जा रहा था कि उनको या तो हटा दिया जाएगा या उनको मुख्यमंत्री बने रहने दिया जाएगा लेकिन ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी जाएगी कि वह एक तरह से काम करने में सक्षम न रह  जाएं।

योगी को अभी भी बाहरी समझ रही पार्टी

हो सकता है कि आपको यह लग रहा हो कि मेरी यह प्रतिक्रिया एकतरफा है- असंतुलित और असंगत है। लेकिन मेरे पास बहुत सारी जानकारियां ऐसी हैं जिसे मैं यहां बता नहीं सकता। उन जानकारियों के आधार पर यह कह सकता हूं इस मंत्रिमंडल के गठन में इस बात का खास ख्याल रखा गया है कि योगी आदित्यनाथ पर शिकंजा कसा रहे। एके शर्मा रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं, उनमें ऐसा क्या राजनीतिक गुण है कि उनको कैबिनेट मंत्री होना चाहिए। एके शर्मा, केशव प्रसाद मौर्य और संगठन के एक और व्यक्ति, ये तीन लोग हैं जो उस समय योगी आदित्यनाथ को हटाने के अभियान में या सरकार को अस्थिर करने के अभियान में सबसे ज्यादा सक्रिय थे। उन सभी लोगों को इस मंत्रिमंडल में पुरस्कृत किया गया है और उन्हें यह संकेत दिया गया है कि आप जो कर रहे थे, वह ठीक था और आपको आगे भी इस काम पर डटे रहना है। जबकि योगी आदित्यनाथ को यह संदेश दिया गया है कि यह ठीक है कि हमने आपको मुख्यमंत्री बना दिया है, आप मैंडेट लेकर आए हैं- लोकप्रिय हैं- आपके प्रशासन की जनता तारीफ कर रही है- आपने जिस तरह से सरकार चलाई उसकी प्रशंसा हो रही है… लेकिन आप उतने ही ताकतवर रहेंगे जितना हम आपको होने देंगे। योगी आदित्यनाथ के लिए यह संकेत है कि या तो वे इस बंधन में काम करें या फिर निकल जाएं। विकल्प उनके सामने है कि वह किस परिस्थिति में रहना चाहते हैं। मैं फिर एक बार कह रहा हूं कि मेरी यह बात आपको अतिवादी लग सकती है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के अंदरूनी समीकरणों को जो लोग जानते हैं, उन सब लोगों को यह बात समझ में आएगी कि एक मुख्यमंत्री जो इतनी विषम और विपरीत परिस्थितियों में मैंडेट लेकर आया- संगठन के असहयोग के बावजूद लेकर आया- उसके बारे में पार्टी क्या सोचती है। योगी आदित्यनाथ को फिर से यह संदेश दिया गया है कि वह बाहरी हैं और पार्टी उनको इसी रूप में स्वीकार करती है। इस समय पार्टी को उनकी जरूरत है और उनको भी पार्टी की जरूरत है। अब दोनों में से यह तय करना होगा कि किसको कब किसकी जरूरत नहीं रह जाएगी। इस फैसले के लिए दोनों पक्ष खुले हुए हैं। मंत्रिमंडल गठन की परतें तब और खुलेंगी जब विभागों का बंटवारा होगा। उससे स्थिति और स्पष्ट होगी।

असंतोष का बीजारोपण

मैं सिर्फ वो बातें कह रहा हूं जो तथ्यों के रूप में सामने हैं। शपथ ग्रहण समारोह में जितने लोग मंच पर बैठे थे उनके बॉडी लैंग्वेज पर गौर कीजिए। देखिए कि किसकी मुखमुद्रा कैसी थी। उस समारोह का मुझे कोई एक फ्रेम ऐसा नहीं दिखा जिसमें मुख्यमंत्री खुश नजर आ रहे हों। वह भी तब जब इतिहास रच कर दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हों। इसके पीछे और भी बहुत सारी बातें हैं जिनके बारे में बाद में बताऊंगा। अभी उन बातों को बताने की स्थिति में नहीं हूं। लेकिन मेरी यह बात आप मान कर चलिए कि जो कुछ हुआ है वह पार्टी के दूरगामी हित की दृष्टि से ठीक नहीं हुआ है। पार्टी में असंतोष का बीजारोपण कर दिया गया है। पार्टी में समानांतर राजनीतिक शक्ति को स्थापित कर दिया गया है। बात शक और अफवाह के दायरे से बाहर निकल गई है। कयह स्थापित सत्य है कि उत्तर प्रदेश की सरकार में सत्ता के समानांतर केंद्र होंगे और कम से कम तीन होंगे। बल्कि मैं कहूंगा कि चार होंगे, पांचवा भी हो सकता है। यह निर्भर करेगा कि प्रदेश अध्यक्ष कौन बनता है क्योंकि स्वतंत्र देव सिंह अब सरकार में आ गए हैं तो नया प्रदेश अध्यक्ष बनेगा। उनसे मुख्यमंत्री के रिश्ते कैसे हैं, मुख्यमंत्री के साथ उनकी केमिस्ट्री कैसी है- यह इस पर भी निर्भर करेगा।

नम्बर दो कौन?

KP Maurya, Brajesh Pathak Appointed New UP Deputy CMs: Why Did BJP Choose Them? - ApDirect

मुख्यमंत्री के अलावा दो डिप्टी सीएम सत्ता के समानांतर केंद्र हैं। कुछ दिनों में ही केशव प्रसाद मौर्य को पता चलेगा कि वह जो कर रहे थे उसमें वह बहुत धीमे थे- जब ब्रजेश पाठक करेंगे तो उनसे वह मुकाबला नहीं कर पाएंगे। ब्रजेश पाठक की इस योग्यता पर मुझे कोई शंका नहीं है। खासकर तब जब दूसरी पार्टी से आकर भारतीय जनता पार्टी जैसी कैडर और विचारधारा पर आधारित पार्टी में पांच-छह साल में ही वह नंबर दो बन गए। इस सरकार में नंबर दो केशव प्रसाद मौर्य नहीं हैं, ब्रजेश पाठक हैं। इससे पहले की सरकार में केशव प्रसाद मौर्य नंबर दो थे। इससे आप अंदाजा लगाइए कि जिन लोगों ने सालों-साल भारतीय जनता पार्टी में लगाए हैं- मैं ब्राह्मण समाज के लोगों की बात कर रहा हूं- उनके मन पर क्या गुजर रही होगी। कलराज मिश्र ने अपना पूरा जीवन लगा दिया, कभी डिप्टी सीएम का ख्वाब भी नहीं देख पाए- सीएम बनना तो दूर है। बीजेपी में अब यह कल्चर बनता जा रहा है कि बाहर से आने वाला सबको पीछे छोड़ कर सबसे आगे निकल जाएगा। इसमें जाति का आधार मत देखिएगा। इसमें आप देखिए भाजपा की रणनीति को- बदलती कार्य संस्कृति को कि किस तरह के लोगों की स्वीकार्यता बढ़ रही हैं और किस तरह के लोगों को खारिज किया जा रहा है, इन सब पर आपकी नजर होनी चाहिए।

 

उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल

Five big takeaways from Yogi Adityanth's new cabinet - India Today Insight News

1- योगी आदित्यनाथ- मुख्यमंत्रीUP cabinet expansion today; Sangeeta Bind, Jitin Prasada likely to take oath as ministers - India News
2- केशव प्रसाद मौर्य- उप मुख्यमंत्री
3- ब्रजेश पाठक- उप मुख्यमंत्री
कैबिनेट मंत्री
4- सूर्य प्रताप शाही
5- सुरेश कुमार खन्ना
6- स्वतंत्र देव सिंह
7- बेबी रानी मौर्य
8- लक्ष्मी नारायण चौधरी
9- जयवीर सिंह
10- धर्मपाल सिंह
11- नंद गोपाल नंदी
12- भूपेंद्र सिंह चौधरी
13- अनिल राजभर
14- जितिन प्रसाद
15- राकेश सचान
16- अरिवंद कुमार शर्मा
17- योगेंद्र उपाध्याय
18- आशीष पटेल
19- संजय निषाद
Yogi Adityanath chose his UP Cabinet to accomplish 'Mission 2022'?- The New Indian Express
राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार)
20- नितिन अग्रवाल
21- कपिल देव अग्रवाल
22- रवींद्र जायसवाल
23- संदीप सिंह
24- गुलाब देवी
25- गिरीश चंद्र यादव
26- धर्मवीर प्रजापति
27- असीम अरुण
28- जेपीएस राठौर
29- दयाशंकर सिंह
30- नरेंद्र कश्यप
31- दिनेश प्रताप सिंह
32- अरुण कुमार सक्सेना
33- दयाशंकर मिश्र दयालु
राज्यमंत्री
34- मयंकेश्वर सिंह
35- दिनेश खटीक
36- संजीव गोंड
37- बलदेव सिंह ओलख
38- अजीत पाल
39- जसवंत सैनी
40- रामकेश निषाद
41- मनोहर लाल मन्नू कोरी
42- संजय गंगवार
43- बृजेश सिंह
44- केपी मलिक
45- सुरेश राही
46- सोमेंद्र तोमर
47- अनूप प्रधान वाल्मीकि
48- प्रतिभा शुक्ला
49- राकेश राठौर गुरू
50- रजनी तिवारी
51- सतीश शर्मा
52- दानिश आजाद अंसारी
53- विजय लक्ष्मी गौतम